लेखक म्रदुल कपिल कि कृति ” चीनी कितने चम्मच ” पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l
-चीनी कितने चम्मच पुस्तक की सोलहवीं कहानी –
_________ भंवर _________
जंहा तक नजर जाती सिर्फ पानी ही पानी , गहरा नीला पानी , और इस समंदर के बीचो बीच एक छोटा सा मालवाहक जहाज हिचकोले खा रहा था , इस जहाज में 300 से ज्यादा लोग भरे हुए थे , इस भीड़ में सब थे बच्चे , बूढ़े , जवान स्त्री पुरुष सब
ये लोग भागे थे अपने उस वतन को छोड़ कर जिसने कभी उन्हें अपना नही माना था , ये निकले थे एक ऐसे जहां की तलाश में जंहा वो इज्जत से जी सके , जंहा बेगुनाह होने पर भी उनके लड़को को सजा न दी जाये , उनकी बेटी बहुओं से रोज रोज बलत्कार न हो , जंहा रोज मर मर के न जीना पड़े . ये बर्मा के वो अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुसलमान थे ,जिसे संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन ‘दुनिया के सबसे प्रताड़ित’ लोगों में गिनते हैं. ये अपनी और बच्चो की जान बचाने के लिए समंदर के रास्ते अपने उस मुल्क को छोड़ कर भागे थे जंहा उनका जन्म हुआ था , पले बढे थे लेकिन अब अपने ही मुल्क में बेगाने हो गए थे , पिछले 26 दिनों उन्होंने 4 देशो ( मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड और ऑस्ट्रेलिया ) में अपने लिए कुछ जगह जमीन मांगी थी हर जगह से उन्हें सिर्फ दुत्कार मिली थी , और अब ये सब के सब मानव तस्करो की गिरफ्त में थे ,
इस भीड़ का एक हिस्सा थी 19 साल की साजिदा बेगम। जिसे उसके माँ बाप ने बहुत नाजो से पाला था . और 2 साल पहले ही उसकी शादी सज्जाद से की थी . साजिदा का पति सज्जाद निहायत ही नेक दिल इंसान था . और वो साजिदा को टूट कर प्यार करता था . गुरबत में भी सज्जाद ,साजिदा को किसी हूर की तरह रखता था और साजिदा को अपनी छोटी सी दुनियां किसी जन्नत से कम नही लगती थी . अब तो अब उनके प्यार की निशनी के रूप में २ माह का बच्चा साजिदा के गोद में था .
पर न जाने किस की नजर साजिदा की खुशियों पर लग गयी . रात के अँधेरे में एक भीड़ आई और सज्जाद को मुर्गे की चोरी के आरोप में घर से उठा ले गयी . और चौराहे पर ले जा कर उस बहुसंख्यक भीड़ ने सज्जाद को पीट पीट कर मर डाला . सज्जाद चीखता रहा कि वो बेगुनाह है और उसने कोई चोरी नही की है पर भीड़ पर तो मौत का जूनून सवार था . उन्हें तो अपने बीच से एक और रोहिंग्या मुसलमान खत्म करना था .
इस पूरी इंसानी कायनात जब भी कोई हिंसा हुयी है भले ही वो धर्म के नाम का हो , या देश के नाम का , किसी तानाशाह की सनक की वजह से हु हो या इंसानी लालच की वजह से वजह कोई भी रही हो , उसका खमियाजा सबसे ज्यादा औरतो को ही उठाना पड़ा है . कभी वो युद्ध में जीते हुए पुरुषो के इनाम के रूप में उनकी हवस का शिकार बनी .तो कभी खुद को खुद ही जौहर नाम की पुरुषो की थोपी गयी आग में जला लिया . इन बेमतल के लड़ाइयो में कभी सुहाग खोया तो कभी संतान . और उसके बाद ताउम्र अपनी जिंदगी की जंग लडती रही .
अपनी इज्जत और जान बचाने के लिए बाकी लोगो के साथ साजिदा भी भाग निकली थी , लेकिन वो शायद भूल गयी थी की वो अपने मुल्क से भाग सकती है भाग्य से नही , एक जहन्नुम से निकल कर साजिदा दुसरे दलदल में जा धंसी थी . वो अब तस्करों की गुलाम थी . पिछले 3 दिनों से सजीदा को एक टुकड़ा खाना तक नसीब न हुआ था , और न जाने कितनी बार तस्करों ने साजिदा के साथ बलात्कार किया था .
जहाज भी शायद इन रोहिंग्या मुसलमानो की जिंदगी तरह भंवर में फंस गया था , वो लगतार हिचकोले खा रहा था , साजिदा का बच्चा उसकी सूख चुकी छातियो को चूस कर अपनी भूख मिटना चाह रहा था ,इन तस्करो के हाथ में पड़ने के बाद साजिदा को अपना भविष्य पता था ,जिसमे सिर्फ अँधेरा ही अँधेरा था ,
तभी एक तेज़ आवाज आई और वो छोटा सा जहाज कई हिस्सों में बँट गया . इंसानी चीख पुकार से समंदर गूंज उठा . नीले पानी में बुलबले उठे और फिर सब उसमे समां गया और हवा फिर से वैसे ही बहने लगी मानो कुछ हुआ ही न हो .
जब जमीं के रहनुमा उन्हें २ गज जमीं न दे सके तो ऊपर के रहनुमा ( खुदा ) ने उन्हें हरदम के लिए अपने पास बुला लिया।
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म्रदुल कपिल
लेखक व् विचारक
18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया . ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी हाऊसिंग कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l
पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो , वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती जिंदगी का .