सियासत में तल्ख़ियो की इंतेहा

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– तनवीर जाफरी –

भारतवर्ष की सत्ता केंद्रित राजनीति संभवत: वर्तमान रूप में सबसे शर्मनाक दौर से गुज़र रही है। पक्ष तथा विपक्ष एक दूसरे से सहयोग करने के बजाए एक दूसरे को नीचा दिखाने, अपमानित करने तथा पूरी तरह से परस्पर असहयोग का वातावरण पैदा करने में जुटे हुए हैं। चुनावी वादों को पूरा करने, देश को एक सूत्र में पिरोए रखने की कोशिशों व सामाजिक एकता बनाए रखने की आवश्यकताओं, मंहगाई, बेरोज़गारी जैसे विषयों को पूरी तरह से नज़रअंदाज़ करने की कोशिश की जा रही है और ठीक इसके विपरीत अपने विरोधी दल व उसके नेताओं पर लांछन लगाने, देश की विकास संबंधी परियोजनाओं में बाधा डालने, किसी की उपलब्धि का दूसरे पक्ष द्वारा झूठा श्रेय लेने, अपनी राजनीति को शत-प्रतिशत मर्किटिंग के माध्यम से चमकाने जैसी कोशिशें परवान चढ़ रही हैं। वैसे तो हर आने वाला चुनाव पिछले चुनावों से अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। परंतु 2019 का चुनाव तो गोया पक्ष-विपक्ष दोनों ही के लिए करो या मरो जैसी स्थिति पैदा करने वाला होने जा रहा है। ऐसे तल्ख राजनैतिक वातावरण का सीधा नुकसान देश की जनता को उठाना पड़ रहा है।

सवाल यह है कि राजनेताओं द्वारा आिखर ऐसे हालात क्यों पैदा किए जा रहे हैं? क्या इस विभाजनकारी राजनीति के अंजाम से यह नेता बेखबर हैं? क्या इन्हें इस बात का एहसास नहीं कि तल्ख सियासत का यह तरीका उन्हें छल-कपट, मक्कारी व मार्किटिंग तथा झूठे-सच्चे आरोपों व दावों-प्रतिदावों के माध्यम से शायद सत्ता तक तो पहुंचा दे परंतु इस तरीके से जनता के मध्य तथा राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय राजनीति की क्या छवि बन रही है उन्हें इस बात का भी एहसास है? जो भारतवर्ष अपनी शिष्टता, सौम्यता तथा नैतिकता के लिए जाना जाता था जिस देश में सैकड़ों ऐसे समर्पित राजनेता पैदा हुए जिन्होंने अपना पूरा जीवन सच्चाई, ईमानदारी तथा सदाचार के साथ राजनीति में गुज़ारा, आज वही राजनीति गाली-गलौच, धक्का-मुक्की तथा अपने विरोधी दल को पूरी तरह से समाप्त करने जैसी घिनौनी कोशिशों का पर्याय बनकर रह गई है? और तल्ख सियासत की पराकाष्ठा तो यह है कि सांप्रदायिक व जातिगत दुर्भावना से पोषित इस अंधेरी सियासत के अनेक पैरोकार अब किसी निहत्थे, बेगुनाह, कमज़ोर व अकेले व्यक्ति के हत्यारे समूह के पक्ष में खुल कर खड़े होते नज़र आने लगे हैं।

पिछले दिनों दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली में निर्मित सिग्रेचर ब्रिज के उद्घाटन अवसर पर एक भाषण दिया जो वर्तमान तल्ख सियासत का जीता जागता सुबूत था। मुझे नहीं लगता कि देश की किसी महत्वपूर्ण लोकहितकारी योजना के उद्घाटन के अवसर पर किसी जि़म्मेदार नेता द्वारा ऐसा भाषण दिया गया होगा। ज़रा कल्पना कीजिए कि यदि विदेशी मीडिया मनीष सिसोदिया के उस भाषण को जस का तस अपने-अपने देश में प्रसारित करे तो भारतीय राजनीति के लिए वह स्थिति कितनी शर्मनाक होगी। आमतौर पर उद्घाटन के समय योजना से संबंधित बातें की जाती हैं। उसके लाभ गिनाए जाते हैं या उसके तकनीकी पहलुओं पर प्रकाश डाला जाता है। यदि किसी राज्य की योजना में केंद्र सरकार का भी सहयोग अथवा योगदान होता है तो उसकी सराहना की जाती है तथा केंद्र व राज्य सरकारों के प्रतिनिधि वहां सम्मानपूर्वक उपस्थित रहते हैं। परंतु दिल्ली के 154 मीटर ऊंचे ऐतिहासिक सिग्रेचर ब्रिज के उद्घाटन के अवसर पर उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया द्वारा किया गया यह ट्वीट दिल्ली सरकार व केंद्र सरकार के रिश्तों की तल्खी को उजागर करने के लिए काफी था। मनीष सिसोदिया ने 4 नवंबर को अपने ट्वीट में लिखा कि ‘सिग्रेचर ब्रिज के उद्घाटन के दौरान जब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का भाषण चल रहा था तब भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी जी मंच पर बोतल से हमला करने और सरकारी संपत्ति की तोडफ़ोड़ के महान कार्य में व्यस्त थे।’ सिसोदिया का यह ट्वीट भाजपा सांसद मनोज तिवारी के धक्का मुक्की व हाथापाई के उन प्रयासों के संदर्भ में आया जिसके द्वारा तिवारी उद्घाटन मंच पर आमंत्रित न होने के बावजूद मंच पर सम्मानपूर्ण स्थान चाह रहे थे। इतने महान, शुभ व मंगलकारी अवसर पर मात्र श्रेय लेने व श्रेय देने जैसे प्रयासों के चलते न केवल उद्घाटन समारोह स्थल पर अफरातफरी का माहौल दिखाई दिया बल्कि उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने तो अपने पूरे भाषण में इस महत्वपूर्ण पुल के निर्माण के प्रति केंद्र सरकार की न केवल उदासीनता बल्कि नकारात्मकता का भी जो रहस्योद्घाटन किया वह बेहद चिंताजनक था।

सिसोदिया ने सार्वजनिक रूप से यह बताया कि किस प्रकार उनके अधिकारीगण इस सिग्रेचर ब्रिज के पूरा होने से पूर्व होने वाली समीक्षा बैठकों में उन्हें यह बताया करते थे कि केंद्र सरकार किसी भी कीमत पर इस पुल को पूरा नहीं होने देना चाहती। उन्होंने यहां तक आरोप लगाया कि हमारे अधिकारियों को केंद्र द्वारा सीबीआई तक की धमकी दी गई। उन्होंने साफतौर पर यह कहा कि प्रधानमंत्री ने इस पुल के निर्माण में एक इंच का भी सहयोग नहीं दिया। उनके भाषण में उस बात का भी जि़क्र था किस प्रकार मैट्रो रेल के नोएडा सेक्शन के उद्घाटन के समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से दिल्ली के मुख्यमंत्री को आमंत्रित न किए जाने की परंपरा की शुरुआत की गई। और भी इस प्रकार के कई आरोप मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने अपने भाषणों में लगाए। यदि आप इनके भाषणों को गौर से सुनें व उनकी समीक्षा करें तो ऐसा महसूस होगा जैसे कि दो सरकारें नहीं बल्कि दो दुश्मन राज्य एक-दूसरे पर निशाना साध रहे हैं। केजरीवाल ने तो यह भी कहा कि ‘भाजपाई स्टेच्यू तथा मंदिर के निर्माण में व्यस्त हैं तो हम पुल,स्कूल व अस्पताल बनवा रहे हैं।

वैसे भी यदि भाजपा नेताओं खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के भाषणों को सुनें तो ऐसा महसूस होता है कि गोया इनका पूरा ज्ञान तथा तथा पूरी की पूरी चुनावी मुहिम कांग्रेस व नेहरू-गांधी परिवार के विरोध पर ही आश्रित है। और उसी नेहरू-गांधी परिवार के विरोध की पराकाष्ठा ने इन्हें कांग्रेस नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल की विशालकाय प्रतिमा बनाए जाने हेतु प्रेरित किया। पिछले दिनों सरदार पटेल से संबंधित एक और रहस्योद्घाटन पूर्व केंद्रीय मंत्री तथा गुजरात के वरिष्ठ नेता शंकर सिंह वाघेला द्वारा किया गया। उन्होंने बताया कि जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे उस समय सर्वप्रथम उन्होंने अहमदाबाद एयरपोर्ट का नाम बदलकर सरदार पटेल एयरपोर्ट का नाम दिया था। जिस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा को सरदार पटेल एयरपोर्ट के नामकरण हेतु आमंत्रित किया गया था उस समय सरदार पटेल के नामकरण के विरोध में भाजपा नेताओं ने प्रधानमंत्री देवगौड़ा के कार्यक्रम का तथा नामकरण का जमकर विरोध किया था। इतना ही नहीं बल्कि तत्कालीन सांसद जो बाद में नरेंद्र मोदी की अनुकंपा से राज्य की मुख्यमंत्री भी बनीं उन्होंने ही पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ देवगौड़ा को काले झंडे दिखाए जाने वाले प्रदर्शन का नेतृत्व किया था। ऐसे लोगों का सरदार पटेल की मूर्ति स्थापित करना वाक़ई गिरगिट को भी शर्मिंदा करने जैसा है।

सियासत की इन्हीं तल्िखयों का ही नतीजा है कि आज सत्ताधारियों को उनका प्रत्येक विरोधी अथवा आलोचक अपना दुश्मन दिखाई दे रहा है। विरोधियों को सीबीआई,आईटी तथा ईडी जैसे विभागों का भय दिखाया जा रहा है। विरोध जब ज़्यादा प्रखर हो जाए तो उसे देशद्रोही, राष्ट्रविरोधी,अराजक, राष्ट्रविभाजक,हिंदू शत्रु और यहां तक कि पाक परस्त तक बताया जा रहा है। मुझे नहीं लगता कि भारतवर्ष ने तल्ख सियासत का ऐसा घिनौना दौर पहले भी कभी देखा हो? राजनीति का यह निम्रतम स्तर देश और देश की मेहनतकश अवाम को कहां ले जाएगा कुछ कहा नहीं जा सकता।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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