मध्यप्रदेश में उपचुनाव के मतदान की तारीख सिर पर आ चुकी है। मगर कांग्रेस अब भी कमल नाथ सरकार का तख्तापलट करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया पर हमला करने का कोई मौका नहीं चूक रही है। पार्टी सिंधिया राजवंश को गद्दार साबित करने के लिए सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र में बुद्घिजीवियों के घर डॉ.वृंदावनलाल वर्मा का उपन्यास झांसी की रानी लक्ष्मी बाई पहुंचा रही है। इस उपन्यास में 1857 की क्रांति को लेकर सिंधिया राजघराने को कटघरे में खड़ा किया गया है। कांग्रेस का दावा है किइस उपन्यास को सिंधिया राजघराने ने धनबल के जोर पर बाजार से गायब करा दिया था। मगर उपचुनाव के मतदान से कुछ दिन पहले 1857 की क्रांति की गाथा सुनाता नये प्रिंट में यह उपन्यास बुद्धिजीवियों के बीच बंटवाया जा रहा है।
इस ऐतिहासिक उपन्यास का प्रथम प्रकाशन सन् 1946 में हुआ था। 1951 में इस उपन्यास का पुन: प्रकाशन हुआ। उपन्यास 1857 के विद्रोह की आधुनिक व्याख्या प्रस्तुत करता है। लेखक डॉ.वृंदावनलाल वर्मा ने उपन्यास की भूमिका में लिखा है कि रचना इस खोज से संबंधित थी कि क्या रानी ने वास्तव में स्वराज के लिए लड़ाई लड़ी थी, या वे केवल अपने शासन को बचाना चाहती थीं। रचना के लिए उन्हें जो भी लिखित दस्तावेज प्राप्त हुए, पर्याप्त नहीं थे। कई लोगों के साक्षात्कार का सार यह था कि रानी ने अंग्रेजों से स्वराज के लिए युद्घ किया था।
इनका कहना है
-इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद सिंधिया परिवार अपने वास्तविक चरित्र का खुलासा नहीं होने देना चाहता था। इसलिए धन बल से इस उपन्यास की सारी प्रतियां बाजार से गायब करवा दी थीं। सिंधिया ने एक बार फिर गद्दारी की मिसाल कायम की है, जिसके बाद हमने इस ऐतिहासिक उपन्यास को बुद्धिजीवियों के बीच पुन: सार्वजनिक किया है। PLC.
-इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद सिंधिया परिवार अपने वास्तविक चरित्र का खुलासा नहीं होने देना चाहता था। इसलिए धन बल से इस उपन्यास की सारी प्रतियां बाजार से गायब करवा दी थीं। सिंधिया ने एक बार फिर गद्दारी की मिसाल कायम की है, जिसके बाद हमने इस ऐतिहासिक उपन्यास को बुद्धिजीवियों के बीच पुन: सार्वजनिक किया है। PLC.