भाजपा का खेल आप के हाथ- क्या कांग्रेस बचा पायेगी साख?

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0,,17240991_303,00{सोनाली बोस} लोकतंत्र के महापर्व का तीसरा चरण गुरुवार को पूरा होने वाला है। कल होने वाले तीसरे चरण के मतदान मेँ दिल्ली निवासी भी अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। ऐसे वक़त पर सभी की निगाहेँ दिल्ली मेँ 49 दिनोँ तक सत्ता मेँ क़ाबिज़ रहने वाली आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियोँ पर लगी रहना स्वाभाविक है। भले ही लोकसभा के आम चुनाव मेँ ‘आप’ ने 400 सीटोँ पर अपने उम्मीदवार खड़े किये हैँ लेकिन फिर भी इसमेँ दो राय नहीँ है कि उन सभी मेँ दिल्ली की 07 सीटेँ सबसे ज़्यादा महत्तवपूर्ण है।

दिल्ली में वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के की ऐतिहासिक प्रदर्शन के बाद लोकसभा चुनाव में पूरे देश की निगाहें दिल्ली की सात लोकसभा सीटों पर लगी हैं। वर्तमान में सातों ही सीटोंपर कांग्रेस का कब्ज़ा है लेकिन हम ये भी जानते हैँ कि इस बार के लोकसभा चुनाव कांग्रेस के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं हैं। दिल्ली में पिछले 15 वर्ष तक सत्ता पर क़ाबिज़ रही कांग्रेस की साख विधानसभा चुनाव में पहले ही खराब हो चुकी है। इस 2013 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को सर्वाधिक 33.1 प्रतिशत मत हासिल हुए थे जबकि आम आदमी पार्टी 29.5 प्रतिशत मत लेकर  बड़ी ताकत के रूप में सामने आई थी। कांग्रेस मात्र 24.6 प्रतिशत मत पर सिमट गई थी. कांग्रेस को 15.7 प्रतिशत  मतों का नुकसान हुआ था जबकि भाजपा को 3.2 प्रतिशत मतों का लाभ हुआ था| लेकिन फिर भी विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली में राजनीतिक हालात बहुत ज़्यादा नहीं बदले  है।

दिल्ली ही वो जगह है जहाँ आम आदमी पार्टी ने सबसे नई नवेली पर्टी के रूप मेँ अपने पहले ही विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व मेँ सरकार बनाई थी। तब कई लोगोँ को इस दल की 70 मेँ से 28 सीटेँ जीतना एक ‘तुक्का’ ही लगा था, लेकिन कल का दिन इस पार्टी के लिये एतिहासिक साबित हो सकता है जब इनके पास 2014 मेँ एक बार फिर अपने विधानसभा चुनाव के जादू को दोहराने का मौक़ा मिलेगा।

लेकिन एक बात यहाँ पर क़ाबिले ग़ौर है कि विधानसभा चुनाव की तय्यारियोँ के लिये जितना समय और समर्थन आप को 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के समय मिला था उतना वक़्त 2014 के लोकसभा चुनावोँ मेँ नहीँ मिला है। लेकिन फिर भी सातो सीटोँ पर अपने उम्मीदवारो की काफी पहले ही घोषणा कर ‘आप’ ने कई मर्तबा अपने नेताओँ की आम सभाएँ भी आयोजित कर ली हैँ, जिसका फायदा इनको ज़रुर मिलेगा। वैसे भी ‘आप’ चाहेगी कि कल के आम चुनावोँ मेँ उसके प्रत्याशी बेहद उम्दा प्रदर्शन करेँ ताकि सभी विरोधियोँ की ज़ुबान पर ताले लगायेँ जा सकेँ। लेकिन फिर भी आम आदमी पार्टी अपने सातोँ उम्मीदवारोँ; आशीष खेतान (नई दिल्ली), जरनैल सिँह( पश्चिम दिल्ली), राखी बिड़लान (उत्तर पश्चिम दिल्ली), राजमोहन गाँधी (पूर्वी दिल्ली), आशुतोष (सेंट्रल दिल्ली), कर्नल देवेन्द्र सहरावत (दक्षिणी दिल्ली), प्रो. आनंद कुमार (उत्तर पूर्वी दिल्ली) की कामयाबी के प्रति पूरी तरह आशांवित हैँ।

फिर भी मैँ यहाँ एक बात कहना चाहुंगी कि सभी मतदाता ‘आप’ के बीते दिनोँ का लेखाजोखा भी ज़रुर देखेंगे। वैसे भी पिछले तीन महिनोँ मेँ ‘आप’ के प्रदर्शन का ग्राफ अगर हम देखते हैँ तो हमेँ इस दल मेँ सिर्फ आंतरिक कलह, बगावत और अराजकता का माहौल ही नज़र आता है। और इससे बढ़कर उन 49 दिनोँ के केजरीवाल सरकार के दिनो को भी कोई नहीँ भूल पाया है जिसका पटाक्षेप ‘जन लोकपाल’ के मुद्दे पर अति नाटकिय तरिके से हुआ था।

लेकिन जो उम्मीदवार ‘आप’ ने इस मर्तबा लोकसभा चुनाव के लिये दिल्ली से उतारे हैँ वे यहाँ का चुनावी मुक़ाबला काफी दिलचस्प बनाने मेँ माहिर नज़र आ रहे हैँ। जैसे कि दिल्ली की चांदनी चौक सीट पर केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, उनके सामने भाजपा ने अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार डा. हषर्वर्धन को उतारा है तो आम आदमी पार्टी यहाँ पर पत्रकार से राजनेता बने आशुतोष के साथ चुनाव मैदान में हैं। और इसी वजह से यहां मुकाबला दिलचस्प है। चांदनी चौक लोकसभा क्षेत्र की 10 विधानसभा सीटों  में से चार पर आम आदमी पार्टी का कब्ज़ा है जबकि तीन पर भाजपा, दो पर कांग्रेस और एक पर जद यू का कब्ज़ा है। वैसे तो यहां 25 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं लेकिन मुख्य मुकाबला इन तीनों में ही होना तय है।

कमोबेश यही हालात नई दिल्ली के भी हैँ, यहाँ की लोकसभा सीट पर पूर्व केंद्रीय मंत्री व कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अजय माकन चुनाव लड़ रहे हैं। यहां भाजपा ने अपनी तेज़ तर्रार राष्ट्रीय नेता मीनाक्षी लेखी को चुनाव मैदान में उतारा है तो आप की ओर से खोजी पत्रकार के रूप मेँ मशहूर आशीष खेतान चुनाव मैदान में हैं। इस लोकसभा क्षेत्र की 10 विधानसभा सीटों में से आप के पास सात तथा भाजपा के पास तीन सीटें हैं जबकि कांग्रेस के पास एक भी सीट नहीं है। हालांकि अजय माकन की पकड़ मज़बूत है लेकिन  भाजपा की लहर व सात विधानसभा सीटों पर आप का वर्चस्व उन्हें कड़ी टक्कर दे रहा है। यहां कुल 29 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

उत्तर पश्चिम सुरक्षित लोकसभा सीट है और यहाँ पर केंद्रीय मंत्री कृष्णा तीरथ कांग्रेस की प्रत्याशी हैं।  उनके सामने भाजपा उम्मीदवार के रूप में  हाल ही में भाजपा में शामिल हुए उदित राज हैं तो आप ने अपनी विधायक व मंत्री रही राखी बिड़लान को चुनाव मैदान में उतारा है।

पश्चिमी दिल्ली सीट पर भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के पुत्र व विधायक प्रवेश वर्मा को चुनाव मैदान में उतारा है| उनके सामने कांग्रेस के मौजूदा सांसद महाबल मिश्रा व आप के सिख उम्मीदवार जरनैल सिंह हैं|

दक्षिणी दिल्ली सीट पर भाजपा ने अपने विधायक व प्रदेश उपाध्यक्ष रमेश विधूड़ी को चुनाव मैदान में उतारा है तो कांग्रेस की ओर से कांग्रेस के दिग्गज नेता सज्जन कुमार के भाई व मौजूदा सांसद रमेश कुमार चुनाव मैदान में है, लेकिन फिर भी इस जगह में राहुल गांधी की जनसभा के बाद कांग्रेस को कुछ फायदा तो माना जा रहा है लेकिन भाजपा के रमेश विधूड़ी के साथ क्षेत्र के गुर्जर मतदाताओं के अलावा भाजपा के परंपरागत मतदाता हैं. आप ने यहां से कर्नल देवेन्द्र सहरावत को उतारा है।

लेकिन पूर्वी दिल्ली मेँ नज़ारा कुछ अलग दिखाई दे रहा है। यहाँ लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के सांसद पुत्र संदीप दीक्षित चौतरफा घिरे दिखाई दे रहे हैं । उनके सामने भाजपा के महेश गिरि हैँ तो यहाँ आप की ओर से राजमोहन गांधी चुनाव मैदान में हैं। यहां 21 उम्मीदवार चुनाव मैदान में है और् पूर्वी दिल्ली की 10 विधानसभा सीटों में पांच पर आप का कब्ज़ा है जबकि तीन  भाजपा के पास व दो कांग्रेस के पास है और विधानसभा चुनाव में मिली सफलता के बूते पर ‘आप’ यहां त्रिकोणीय संघर्ष में आने की कोशिश ज़रुर करेगी।

उत्तर पूर्व लोकसभा सीट पर कांग्रेस के मौजूदा सांसद व पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जयप्रकाश अग्रवाल जहां अपनी सीट बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं तो प्रमुख भोजपुरी गायक मनोज तिवारी तथा आप के प्रो. आनंद कुमार उन्हें कड़ी टककर दे रहे हैं।

अगर चाँदनी चौक मेँ मामला मुस्लिम और दलित वोटोँ का है तो, सिक्खोँ और पूर्वांचलीयोँ से पश्चिम दिल्ली अटा पड़ा है। यहाँ पर ‘आप’ की 1984 के दंगोँ के लिये  SIT बनाने की घोषणा एक दिलचस्प रोल अदा कर सकती है जो वोटो की संख्या मेँ तब्दिली ला सकती है।

बहरहाल, क़यास चाहे जितने भी लगाये जायेँ आखिर मेँ सारा दारोमदार आम मतदाता पर ही है जिसे कल अपने सर्वोच्च लोकतांत्रिक अधिकार का उपयोग  ज़रुर करना चाहिये ताकि देश को सही और बहुमत वाली सरकार नसीब हो जिससे देश मेँ स्थायित्व क़ायम किया जा सके।

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लेखिका सोनाली बोस  वरिष्ठ पत्रकार है , उप सम्पादक – अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम –

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