फिदेल कास्त्रो : एक किवदंती

0
39

– उपासना बेहार –

Fidel-Castro-फिदेल कास्त्रो का नाम सामने आते ही लोह पुरुष की छबी उभर आती है. इन्हें क्यूबा में कम्युनिस्ट क्रांति का जनक माना जाता है. क्यूबा के इस महान क्रांतिकारी और पूर्व राष्ट्रपति का 90 साल की आयु में 26 नवम्बर 2016 को हवाना में निधन हो गया.  फिदेल कास्त्रो ने 49 साल तक क्यूबा में शासन किया जिसमें वे फरवरी 1959 से दिसंबर 1976 तक क्यूबा के प्रधानमंत्री और फरवरी 2008 तक राष्ट्रपति रहे. 2008 में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया.

फिदेल कास्त्रो का जन्म 13 अगस्त, 1926  को क्यूबा के पूर्वी ओरिएंट प्रान्त के बिरान नामक ग्रामीण इलाके के एक जमीदार परिवार में हुआ था. फिदेल 7 भाई बहनों में 3 नंबर पर थे. इनकी माता का नाम लिना रुज गोंजालिस और पिता का नाम एंजेल कास्त्रो अर्गिज़ था. इनके पिता स्पेनी मूल के थे और स्पेन ने क्यूबा पर कब्ज़ा करने के लिए जो हमला किया था उन सेना में ये शामिल थे और बाद में क्यूबा में बस गए और उन्हें जमीदारी दी गयी थी. कास्त्रो को अपनी माँ से बहुत लगाव था.वे धार्मिक महिला थी और बहुत कड़ी मेहनत करती थी.वे कभी स्कूल नहीं गयी थी,इस कारण उन्होंने बच्चों के शिक्षा को लेकर विशेष ध्यान दिया.

4 साल की आयु में इनका बिरान के स्कूल में दाखिला कराया गया. शिक्षक इनके उपर ध्यान नहीं देते थे लेकिन फिर भी इन्होने सहपाठियों की मदद से लिखना-पढ़ना सीख लिया था. इसी स्कूल की एक शिक्षिका के साथ ये और इनकी बहन पढाई करने के लिए पहली बार गाव छोड़ कर सेंटीयागो नगर गए थे.लेकिन शिक्षिका द्वारा इन बच्चों के साथ सही व्यवहार ना करने पर इन्हें वापस ले आया गया. कुछ समय बाद कास्त्रो पढाई के लिए सेंटीयागो के एक बोर्डिंग स्कूल में डाला गया लेकिन वहाँ भी कुछ ऐसी घटना हुयी कि इनकी गलती ना होते हुए भी इन्हें और इनके भाइयों को स्कूल से निकल दिया. तीसरी बार इनके पिता ने इन्हें सेंटीयागो में अपने मित्र के घर रखा. इस बार इन्होने वहाँ रह कर हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी की. फिदेल कास्त्रो कहते हैं कि वो जन्म से क्रन्तिकारी नहीं थे धीरे धीरे परिस्थियों ने उन्हें ये बनाया.

1941 में इन्होने कालेज में प्रवेश लिया तब तक वे देश की राजनीति को लेकर जागरूक नहीं थे कानून के पढ़ाई में उन्हें मजा नहीं आ रहा था धीरे धीरे उनका ध्यान राजनीति पर केन्द्रित होता चला गया. और छात्र राजनीति में सक्रिय भागीदारी करने लगे. फिर वो छात्र सभा के उपाध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित हुए और बाद में छात्र सभा के अध्यक्ष बने. इसी दौरान वे मार्क्स,एंजेल्स और लेनिन के विचारधारा की ओर आकर्षित होने लगे.

1947 में कालेज छोड़ कर वे एक फ़ौज ट्रेनिंग में डोमिनिक रिपब्लिक चले गए और वहाँ के तानाशाह के खिलाफ तख्तापलट में भाग लिया.यहाँ पकडे जाने के पहले ही ये बच निकले. वापस कालेज आ कर पुन: छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए. 1950 में हवाना से कानून में स्नातक किया और वाही के एक क़ानूनी फार्म में काम करने लगे. 10 मार्च 1952 में बतिस्ता नमक एक सैनिक ने क्रांति कर सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया. ये अमेरिका के समर्थक थे।  बतिस्ता द्वारा किये इस तख्तापलट से लोगों में असंतोष बढ़ता गया.तब 1952 में कास्त्रो ने हवाना से संसद का चुनाव लड़ा लेकिन हार गए. बतिस्ता ने सविधान भंग कर दिया और तानाशाह बन गया. कास्त्रो ने हवाना के एक अदालत में बतिस्ता शासन को असंवैधानिक बताते हुए उसे जेल भेजने की मांग की लेकिन अदालत ने उनकी याचिका को ख़ारिज कर दिया.

तब कास्त्रो ने देश के संविधान को पुन: लाना और एक निर्वाचित सरकार का गठन करना अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया. कास्त्रो ने आर्टोडॉक्सो पार्टी के कुछ युवाओं को साथ लेकर सैन्य प्रशिक्षण शुरू किया और 26 जुलाई, 1953 में इन्ही युवकों ने सेना पर हमला कर दिया. यह हमला बेहद प्रभावशाली था और इसमें बतिस्ता की सेना के बहुत से जवान मारे गये लेकिन कास्त्रो और विद्रोहियों को गिरफ्तार कर लिया गया. कास्त्रो पर मुकदमा चलाया गया. यह मुकदमा ऐतिहासिक महत्व रखता है. कास्त्रो ने अपनी पैरवी खुद की. कास्त्रो ने इस पैरवी के दौरान कहा था कि वो ये संघर्ष अपने हित के लिए या सत्ता पर कब्ज़ा करने के लिए नही कर रहे थे बल्कि ये संघर्ष देश और देश के लोगों के हित के लिए कर रहे हैं, उनका संघर्ष अन्याय और अत्याचार के खिलाफ है. उन्होंने देश में फैले भ्रष्टाचार पर हमला किया और उदारतावादी संविधान को फिर से लागू करने की मांग की. कास्त्रो ने छोटे किसानों को जमीन का पट्टा देने, विदेशी स्वामित्व वाली बड़ी सम्पत्तियों के राष्ट्रीयकरण और दूसरे देशों के लोगों के स्वामित्व वाले कारख़ानों में मजदूरों को फायदा देने जैसे कार्यक्रमों की माँग की. इसके अलावा कास्त्रो ने सार्वजनिक सेवाओं के राष्ट्रीयकरण, लगान में कटौती और शिक्षा में सुधार पर भी बल दिया. लेकिन अदालत ने उन्हें 15 साल की सजा दी. जेल में उन्होंने “इतिहास मुझे निरपराधी ठहराऐगा” लिखा. बाद में इस लेख ने लोगों मे राजनीति जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

फ़िदेल कास्त्रो और दूसरे बागी नेताओं के साथ हुए बरताव ने जन-आक्रोश को बढ़ाया। इसके विरोध में लगातार जन आंदोलन होने लगे और इन लोगों की रिहाई की मांग की जाने लगी. जुलाई, 1955 में कास्त्रो को जेल से रिहा कर दिया गया। कास्त्रो ने सरकार के खिलाफ अहिंसक विरोध शुरू किया लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ. तब उन्होंने कहा ‘हमने सशस्त्र सघर्ष के विचार को स्वीकार है.’ उन्हें भरोसा था कि क्रांतिकारियों की कार्रवाई से जन-विद्रोह पैदा होगा. इसके बाद वे मैक्सिको चले गये. कास्त्रो के विदेश जाने के बाद भी उनके द्वारा बनाया गया संगठन सक्रिय रहा जिसे 26 जुलाई मूवमेंट (जे-26-एम) के नाम से जाना गया. वहाँ उनकी मुलाकात चे ग्वेरा से हुयी. मैक्सिको में कास्त्रो और उनके साथीयों ने गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण लिया.

फिर 3 दिसम्बर 1956 को 82 साथियों के साथ कास्त्रो क्यूबा के तट पर पहुँचे तो इन्हें बतिस्ता के सैनिकों का सामना करना पड़ा. बतिस्ता के सैनिकों के हमले में अधिकांश गुरिल्ला लड़ाके मारे गये. बतिस्ता को अमेरिका सपोर्ट कर रहा था. लेकिन कास्त्रो, चे और फिदेल कास्त्रो के छोटे भाई राउल कास्त्रो इस हमले में बच गये. जंगलों में ही गुरिल्ला लड़ाकों को इकट्ठा करना शुरू किया और  दिसम्बर 1958 में सेंटा कालरा शहर में 350 छापामारों के साथ बतिस्ता के चार हज़ार गार्डों को तीन दिन की लड़ाई के बाद हरा दिया और 31 दिसम्बर 1958 को बतिस्ता देश छोड़कर भाग गया। इस तरह क्यूबा की क्रांति पूर्ण हुयी. कास्त्रो कहते हैं ‘क्रांति कोई फूलों की शैय्या नहीं है,भविष्य तथा भूतकाल के बीच के जानलेवा संघर्ष का ही दूसरा नाम क्रांति है.’

इस क्रांति के बाद लेटिन अमेरिका के अनेक देशों में ऐसे राष्ट्राध्यक्ष चुन कर आये जो जनता के हितैषी थे और वामपंथी या उदारवादी थे. क्रांति के बाद मैनुअल उर्रुटिया लिएओ क्यूबा के प्रथम राष्ट्रपति बने. फिर फिदेल कास्त्रो 1959 से दिसंबर 1976 तक क्यूबा के प्रधानमंत्री और फिर फरवरी 2008 तक राष्ट्रपति रहे. इस दौरान इन्होने कृषि सबंधी सुधार की घोषणा की और अमेरिकी फार्म मालिकों की बड़ी बड़ी जमीनों और क्यूबा में स्थित अमेरिकी रिफायनरीयों का रास्ट्रीयकरण कर दिया. इससे अमेरिका नाराज हो गया. अमेरिका ने क्यूबा से अपने सबंध ख़त्म कर लिये पर कास्त्रो और देश की जनता अमेरिका की इस दादागिरी के सामने कभी नहीं झुकी और दुनिया की सबसे शक्तिशाली माने जाने वाले देश का डट कर मुकाबला किया.अमेरिका की ख़ुफ़िया एजेंसी सी.आई.ए. ने इन्हें मारने की 638 बार साजिश की लेकिन हर बार असफल रही. कास्त्रो ने अपने कार्यकाल में शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर जबरदस्त काम किये. जो दुनिया के लिए मॉडल है.

2008 में खराब स्वास्थ्य के चलते उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दी दिया. कास्त्रो कहते थे ‘क्रांति का जन्म केवल संस्क्रती और विचारों के माध्यम से हो सकता है. विचार और चेतना हमारे सबसे अच्छे अस्त्र हैं.’ वे कहते थे “स्वतंत्रता,सार्वभौमिकता,इतिहास व गरिमा विक्रय हेतु नहीं होते.” कास्त्रो सिगार के बहुत शौक़ीन थे लेकिन दिसंबर 1985  में सिगार छोड़ने की घोषणा करते हुए उन्होंने कहा था कि “मैं बहुत पहले ही इस निष्कर्ष पर पहुंच गया था कि मुझे धूम्रपान छोड़ देना चाहिए, जो कि (क्यूबा में) जन स्वास्थ्य के प्रति चेतना के लिए मेरा आखिरी बलिदान होगा. सिगार के इस बॉक्स के साथ सबसे अच्छी चीज यही होगी कि इसे आप अपने दुश्मन को दे दें.”

दुनिया में साम्यवाद के पतन पर 2005 में  कास्त्रो ने कहा था ‘इतने सालों बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं : जो गलतियां हमने की, उन सब में सबसे बड़ी गलती थी कि हम यह मान रहे थे कि कोई सच में जानता है कि समाजवाद की स्थापता कैसे करनी है. जब भी वे कहते… यही फॉर्मूला है, तो हम सोचते कि उसे पता है. जैसे कि वह कोई डॉक्टर हो.’

भारत ने सबसे पहले क्यूबा की क्रन्तिकारी सरकार को मान्यता दी थी. नेहरु के समय से ही भारत के साथ इनके घनिष्ट सबंध थे. 1960 संयुक्त राष्ट्र संघ की 15वीं वर्षगांठ के लिए दुनिया भर के प्रमुख नेता न्यूयॉर्क में जमा हुए थे. कास्त्रो भी वहाँ थे, नेहरु जी सबसे पहले व्यक्ति थे जो उनसे मिलने पहूँचे. नेहरू और फिदेल कास्त्रो की इस मुलाक़ात ने भारत प्रति उनके मन में सम्मान और स्नेह पैदा किया. कास्त्रो तात्कालिक प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की ओर से शुरू किए गए गुट निरपेक्ष आंदोलने के शुरूआती समर्थकों में से थे और गुटनिरपेक्ष देशों के सम्मलेन में शामिल होते थे.1983 में भारत में गुटनिरपेक्ष सम्मेलन हुआ तो फिदेल कास्त्रो उसमे शामिल होने आये थे.  पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी के साथ उनके भाई-बहन जैसे रिश्ते थे.

कास्त्रो का सपना था कि सभी क्रन्तिकारी ताकतें संगठित होकर साम्राज्यववाद तथा विस्तारवाद का डटकर मुकाबला करे. फिदल कास्त्रो अपने अंतिम समय तक शोषितों, दब कुचले लोगों के लिए आवाज उठाते रहे और स्वतंत्रता की आवाज को मजबूत करने वाली हर कोशिश के साथ खड़े .

______________

upasana-beharपरिचय -:

उपासना बेहार

लेखिका व्  सामाजिक कार्यकर्त्ता

लेखिका  सामाजिक कार्यकर्त्ता हैं और महिला मुद्दों को लेकर मध्यप्रदेश में काम करती हैं !

संपर्क – : 09424401469 ,upasana2006@gmail.com
पता -: C-16, Minal Enclave , Gulmohar clony 3, E-8, Arera Colony Bhopal Madhya Pradesh -462039

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here