दर्द का साक्षात्कार – बसूली और दलाली के इस दौर में पत्रकार का इमानदार होना बेमानी लगता हैं

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IMG_20140606_182459बसूली और दलाली के इस दौर किसी पत्रकार का इमानदार सा होना एक दम बेमानी सा लगता हैं ! लगता जैसे अब भी कोई किसी मारी हुई लाश में प्राण फूकने की कवायत में जुटा हुआ हैं ! मैंने किसी दूरदराज़ के गाव से आये झोला छाप पत्रकार को करोडो रूपये के घर और लाखो रूपये की गाडियों का सफ़र तय करते हुए देखा हैं ! मैंने राडिया की गुलामी में लींन पत्रकारिता के सिरमोरो को जनता के पैसे से अपनी जेब भरते हुए देखा हैं ! खबर दबाने के लियें सौ – सौ करोड़ की बसूली करने के इलज़ाम में सफ़ेद कालर पत्रकार का काला चेहरा देखा हैं देखा हैं मैंने मंत्री ,संत्री,  सरकारी बाबू को किसी सत्ता के दलाल पत्रकार के छींक आ जाने मात्र से घरो के चक्कर काटते हुयें !

दलाली और बसूली के इस दौर में एक इमानदार श्रमजीवी पत्रकार को इमानदारी से पत्रकारिता धर्म निभाने के लियें अपनी जान को दांव पर लगाते हुयें भी देखा हैं और साथ ही देखा हैं मैंने इमानदारी से अपना पत्रकारिता धर्म निभाने का खामियाजा भुगतते हुयें इमानदार पत्रकारों को ! अखबारों या मीडिया हाउस के मालिक अब लाला हो गये हैं अथार्थ खबर के साथ विज्ञापन ला  ,पैसा अलाबला भी अब ला ! मीडिया हाउसेस की इस लाला चलन के कारण पत्रकार की सारी मेहनत पर एक विज्ञापन मेहनत फेर देता हैं  !

बहुत सारे इमानदार पत्रकार इस लाला प्रवर्ती कि वेदी पर वलि चढ़ गये जो बच गये वोह बद से बदतर हालात में बस ज़िंदा रहने की कवायत में लगे हैं ! ये वोह ईमानदार पत्रकार हैं जो खबर के लियें या तो मारे जाते हैं या घायल होकर सरकारी अस्पतालों के विस्तार पर अपना दम तौड़ देते हैं जो बच जाते हैं वोह अपना इलाज़ कारने के लियें अपना घर, ज़मीन जयदाद सब कुछ बेचकर हसिय पर आ जाते हैं !ऐसा नहीं हैं की सरकारी अफसर मंत्री संतरी इनके लियें कुछ नहीं करते हैं करते हैं मीडिया के सामने बड़ी बड़ी घोषणाए पर खबर के साथ साथ इनकी घोषनाए भी वक़त के साथ पुरानी हो जाती हैं और किसी कबाड़ी की दूकान का कबाड़ा मात्र बनकर रह जाती हैं !

ऐसा ही कुछ हुआ था 22 नवंबर 2012 एक ईमानदार श्रमजीवी पत्रकार नरेदर शर्मा के साथ जब नरेदर शर्मा भोपाल नगर निगम के बुलाने पर एक कवरेज पर गए थे । बेपरवाह – लापरवाह  नगर निगम ने अपनी लापरवाही से टंकी का  ब्लास्ट  किया और टंकी गिरते  समय मौके पर कवरेज कर रहे मीडियाकर्मी, नगर निगम कर्मचारी और कुछ स्थानीय लोग घायल हो गए थे। इसमें  सबसे ज्यादा चोट नरेद्र शर्मा को आई  । इस हादसे में नरेद्र शर्मा के जबडा  टुकड़े टुकड़े हो गया ! नरेदर शर्मा की जान बच पाना भी मुश्किल हो गया था  । इस हादसे की लापरवाही से बचने के लियें और मीडिया को शांत करने के लियें  तत्कालीन नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर और भोपाल नगर निगम की महापौर श्रीमती कृष्णा गौर ने नर्मदा अस्पताल पहुंचकर नरेदर शर्मा मिले थे । इन दोनों ने  अच्छे से अच्छा इलाज शासन द्वारा कराए जाने की घोषणा की थी। इसके अगले दिन यानि 24 नबंवर को नगर निगम भोपाल की परिषद की बैठक में आदेश पारित हुआ कि हादसे में घायल पत्रकारों का पूरा इलाज कराया जाए और 1353602237-journalist-injured-in-water-tank-demolition-explosion_16228731इसके लिए अतिशीघ्र अलग से बजट निधार्रित किया जाए। लेकिन सब एक  झूठ का पुलिंदा निकला !

आज डेढ़ साल से भी ज्यदा वक़त निकल गया पर नरेद्र शर्मा एक निबाला खाने को तरस रहे हैं ,जबड़ा ,दांत सब बुरी हालत में हैं !  डाक्टरों की सलाह पर खाली लिक्विड डाईट ही ले सकते हैं कुछ भी चबाने की हालत में आज नरेद्र शर्मा नहीं हैं ! ये सोच कर भी मेरी रूह काप जाती हैं की कैसा लगता होगा जब नौकरी चली जाए सारे सारकारी दावे झूठे साबित हो जाए ! शादी टूट जाए ! इलाज़ के लियें एक अदद आशियाँ प्लाट भी बिक जाए  ! इसी कवायत ने मुझे दिल्ली से भोपाल का सफर तय करने पर मजबूर कर दिया और मजबूर कर दिया था एक दर्द का साक्षात्कार करने के लियें !

ज़ाकिर हुसैन – घटना के बारे में बताइए ।

नरेदर शर्मा – घटना भोपाल के आनंद नगर की है। 22 नवंबर 2012 को भोपाल में नगर निगम के बुलाने पर हम एक कवरेज पर गए थे । यहां नगर निगम द्वारा लापरवाही से ब्लास्ट करके टंकी गिराते समय मौके पर कवरेज कर रहे मीडियाकर्मी, नगर निगम कर्मचारी और कुछ स्थानीय लोग घायल हो गए थे। इसके सबसे ज्यादा चोट मुझे आई । इस हादसे में मेरा जबड़ा टुकड़े टुकड़े हो गया। जान बचना भी मुश्किल लग रहा था ।

ज़ाकिर हुसैन – क्या सरकार ने कोई मदद नही की ।

नरेदर शर्मा – जब में अस्पताल में भर्ती था, तब उसके अगले दिन हादसे की गंभीरता को देखते हुए और मीडिया में अपनी किरकिरी होते देख तत्कालीन नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर और भोपाल नगर निगम की महापौर श्रीमती कृष्णा गौर ने नर्मदा अस्पताल पहुंचकर मुझसे मिले थे । उन्होंने अच्छे से अच्छा इलाज शासन द्वारा कराए जाने की घोषणा की थी। इसके अगले दिन यानि 24 नबंवर को नगर निगम भोपाल की परिषद की बैठक में आदेश पारित हुआ कि हादसे में घायल पत्रकारों का पूरा इलाज कराया जाए और इसके लिए अतिशीघ्र अलग से बजट निधार्रित किया जाए। लेकिन सब झूठ निकला। मेरे दो आपरेशन होने थे, जिसमें से एक तो कर दिया गया, लेकिन हालत नाजुक होने की वजह से डाक्टरों ने दूसरा आपरेशन छह महीने बाद करने का फैसला लिया। छह महीने तो क्या अब डेढ़ साल बीत चुका है।

ज़ाकिर हुसैन- क्या अखबार मालिक ने कोई सहायता नहीं की ।

नरेदर शर्मा – बिलकुल नहीं की। उल्टा हादसे के वक्स अखबार के लोगों में जमकर प्रचार किया कि जरूरत पड़ी तो विदेश तक ले जाकर इलाज कराएंगे, पर इलाज के लिए पैसे देने की बारी आई तो मालिक सहित सभी ने हाथ उंचे कर दिये। अखबार वालों ने तो ऐसी धोखेबाजी की है कि अब उस संस्थान को अखबार कहने में भी शर्म आती है ।

ज़ाकिर हुसैन- आप मंत्री बाबूलाल गौर से दोबारा क्यों नहीं मिले ।

नरेदर शर्मा –  मिला हूं । एक दो बार नहीं कई बार उनके घर गया हूं । मैनें अधिकारियोंं, मंत्रियों और सभी से अपने इलाज की गुहार लगाई, लेकिन किसी ने ठोस इंतजाम नहीं किया। नाउम्मीद होकर अब मैंने अपना प्लाट बेच दिया है और बोनस ग्राफटिंग का आपरेशन करा रहा हूं। इस आपरेशन में मेरे कूल्हे की हड्डी निकालकर जबड़ा बनाया जाएगा।

ज़ाकिर हुसैन – इसके बार तो आप ठीक हो जाएंगे ना ।

नरेदर शर्मा – नहीं । इस आपरेशन के बाद भी इलाज चलेगा। इंप्लांटेशन होगा । टोटल 11 इंप्लांट होना है । इसमें भी पांच से छह लाख रुपए खर्च होंगे । फिर एक छोटी सी प्लास्टिक सर्जरी भी होगी ।

ज़ाकिर हुसैन – उसके  लिए पैसा कहां से आएगा ।

नरेदर शर्मा – पता नहीं । पहला आपरेशन मुख्यमंत्री सहायता कोष से हो गया । दूसरा मैं अपने प्लाट बेचकर करा रहा हूं। तीसरा यानि इंप्लांटेशन कैसे होगा, पता नहीं।

ज़ाकिर हुसैन – दिल्ली में प्रधानमंत्री सहायता कोष से मदद की मांग की क्या ।

नरेदर शर्मा – नहीं। मुझे वहां के प्रोसीजर की जानकारी नहीं है। किसी पत्रकार यूनियन में भी परिचय नहीं है, इसलिए नहीं कर सका।

ज़ाकिर हुसैन – दिल्ली में तो प्रेस क्लब है, इतने बड़े-बड़े पत्रकार संघ हैं किसी ने तो संपर्क किया होगा मदद के लिए ।

नरेदर शर्मा –  नहीं । आर्थिक मदद के लिए दिल्ली या अन्य किसी भी बड़े पत्रकार संघ ने अब तक मदद दिलाने के लिए कोई संपर्क नहीं किया है।

ज़ाकिर हुसैन – मंत्री जी से मिले तो उन्होंने क्या कहा ।

नरेदर शर्मा – मना नहीं किया, लेकिन कोई ठोस व्यवस्था भी नहीं की । यही कारण है कि जनवरी में उनसे मिला था, लेकिन आज तक न तो उनकी तरफ से कोई मदद मिली है और न ही मिलने की उम्मीद है ।  दिया जा रहा है तो सिर्फ झूठा आश्वासन। कभी आचार संहिता के नाम पर तो कभी मुख्यमंत्री सहायता कोष को चिटठी लिखने का आदेश देकर बात को टाला जा रहा है। गृह मंत्री श्री गौर जनवरी 2014 में इस मामले में एक पत्र मुख्यमंत्री को लिखकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ रहे हैं, जबकि इस वायदे के भी छह महीने तक इंतजार करने के बाद मैने जिंदगी भर की जमापंूजी से खरीदा प्लाट बेचकर दो लाख रुपए जुटाए हैं। इस पैसे से अस्पताल का स्टाफ बोन ग्राफटिंग सर्जरी कराकर दोबारा जबड़ा बनवाने की तैयारी कर रहा है।

ज़ाकिर हुसैन – कोई एनजीओ या अन्य संगठन साथ देने नहीं आया ।

नरेदर शर्मा – बिलकुल नहीं । मुझे तो ऐसा लगता है कि एनजीओ और सामाजिक संगठन हमारे पास सिर्फ खबरे छपवाने आते हैं । क्योंकि घटना के समय ऐसा कोई भी अखबार या टीवी चैनल नहीं था, जिसमेंं मेरी खबर प्रकाशित न हुई हो। पर सहायता की बात करें तो भोपाल के मेरे साथी मीडिया कर्मी और दोस्तों ने ही मिलकर कुछ मदद की है। बाकी तो किसी ने अब तक न ही संपर्क किया और न मुझे ऐसे संगठनों से कोई उम्मीद बची है।

ज़ाकिर हुसैन – आगे क्या सोचा है ।

नरेदर शर्मा- पता नहीं । लेकिन इतना जरूर पता है कि जिस ईश्वर ने यह जीवन दिया है, वही आगे का रास्ता भी दिखाएगा ।

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zakir hussein46 डिग्री तापमान ! तपती दुपहरी की चुभन भी मुझे महसूस नहीं हो रही थी ! पसीने आ रहे थे पर  कहाँ जा रहे थे पता नहीं ! लूए भी अपना ज़ुल्म भूल कर नाखुदा सी बन गयी थी ! इस पूरे  साक्षात्कार के दौरान मोदी चचा कई बार चाय लाये थे  ! नीरज चौधरी  कई बार पानी की बोतले ले आया था हेमंत वहीँ बैठा था अजय दिवेदी को भी दुपहर की गर्मी नहीं सता रहीं थी !  साक्षात्कार पूरा के साथ साथ बहुत सारे सवाल खड़े हो गये थे ! ये सभी सवाल वाजिब थे ! ये सवाल थे पत्रकारिता की दूकान चलाने वालो से ! पत्रकारिता के नाम पर दुनिया भर चलने वाले संगठनो से !  झूठे वादे करने वाले सरकारी तंत्र से ! इस पब्लिक से भी जिसके लियें कबर खोजने वक़त एक पत्रकार खुद खबर बन जाता हैं  ! फिलहाल मेरे पास किसी सवाल का कोई जबाब नहीं था शायद सभी सवालों के जबाब अभी  वक़त के गर्भ पल रहे हैं और गुस्सा बनकर फूटने के तैयारी में लगे हैं !
M P नगर ज़ोन वन में भोपाल डेवलपमेंट अथोरटी के सामने  एक खाली पड़े ग्राउंड में मोदी चचा ने कब चाय की दूकान लगा रखी हैं ये चाय की दूकान कितनी पुरानी हैं इसके बारे में मैं कुछ साफ़ साफ़ तो बता नहीं सकता पर हाँ इतनी गरमी में सभी पत्रकार मित्र और पत्रकारिता का पाठ पढ़ रहे  माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के विद्यार्थी यहाँ  चाय के साथ साथ पत्रकारिता पर चर्चा करने ज़रूर चले आते हैं !

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पत्रकार नरेद्र शर्मा को आज मदद की दरकार हैं आप चाहे तो नरेद्र शर्मा से सीधा संपर्क साध कर उनकी मदद कर सकते हैं !

नरेद्र शर्मा का नम्बर हैं – 09827867862

4 COMMENTS

  1. यहाँ लोकतंत्र की दुहाई दी जाती है और दुहाई देने वाले ही इसका मजाक उड़ाते हैं . पूरी घटनाक्रम बहुत ही मार्मिक है . आज किसी भी क्षेत्र में ईमानदार होने की कीमत चुकानी पड़ती है . कई बार यह कीमत इतनी बड़ी होती है कि अपनी जान तक देनी पड़ती है . आपको याद होगा कुछ वर्ष पहले तामिलनाडू में दिन दहाड़े कुछ माफियों ने सड़क पर काट दिया था . वहां मंत्री /एम पी भी मौजूद थे . पर किसी ने भी दर्द से तड़पते उस पुलिस वाले को हाथ तक नही लगाया था . जबकि इन्ही पुलिस के बिना हमारे देश के किसी नेता की हिम्मत नही कि सड़क पर निकल जाएँ . पत्रकारों / कार्टूनिस्ट के साथ तो इस तरह का व्यवहार पुराना है यहाँ . हमारे देश को दलाल पसंद हैं ईमानदार नही .

  2. अभी पढ़ा मैंने ………मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ की आप ज़्यादा अच्छा इंट्रो लिखते हैं या रवीश कुमार

  3. ऐ देश का दुर्भाग्य ही हैं की इमानदार पत्रकारों की हालत दयनीय हैं ! आपने सही लिखा

  4. आपने तो रवीश को भी पीछे छोड़ दिया ! अब लगता हैं कि रवीश को भी आपका इंट्रो पढ़ना चाहिए !
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    बहुत सारे इमानदार पत्रकार इस लाला प्रवर्ती कि वेदी पर वलि चढ़ गये जो बच गये वोह बद से बदतर हालात में बस ज़िंदा रहने की कवायत में लगे हैं ! ये वोह ईमानदार पत्रकार हैं जो खबर के लियें या तो मारे जाते हैं या घायल होकर सरकारी अस्पतालों के विस्तार पर अपना दम तौड़ देते हैं जो बच जाते हैं वोह अपना इलाज़ कारने के लियें अपना घर, ज़मीन जयदाद सब कुछ बेचकर हसिय पर आ जाते हैं ऐसा नहीं हैं की सरकारी अफसर मंत्री संतरी इनके लियें कुछ नहीं करते हैं करते हैं मीडिया के सामने बड़ी बड़ी घोषणाए पर खबर के साथ साथ इनकी घोषनाए भी वक़त के साथ पुरानी हो जाती हैं और किसी कबाड़ी की दूकान का कबाड़ा मात्र बनकर रह जाती हैं ! –

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