काम कम बातें ज्यादा करती है मोदी सरकार,माया

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modi sarkar kaam kam bate jyada karti  hआई एन वी सी न्यूज़
नई दिल्ली,
  • केन्द्र की श्री नरेन्द्र मोदी सरकार ‘‘सामाजिक न्याय‘‘ के सरोकार को एकदम भुलाकर, केवल ’’काम कम परन्तु बातें अधिक’’ करके सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के प्रयास में लगी है, जिस कारण ही देश भर में सर्वसमाज के लोग दुःखी व निराश; मा. राष्ट्रपति जी के आज के अभिभाषण से भी यह स्पष्ट है: बी.एस.पी. प्रमुख मायावती जी
  • प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मन की बात बहुत कर ली है और अब उन्हें लोगों के मन की बात पर अमल करना प्रारम्भ करना चाहिये तभी देश में सर्वसमाज का भला हो सकेगा:  मायावती जी
संसद के बजट सत्र-2015 के पहले दिन आज संयुक्त अधिवेशन को सम्बोधन करते हुये माननीय राष्ट्रपति महोदय ने अपने सम्बोधन में जो कुछ कहा है उससे भी यह स्पष्ट हो गया है कि अपने भारत देश में ‘‘समता, समानता व सामाजिक न्याय‘‘ के सिद्धान्त का विशेष महत्व है जिस कारण ही इसके लिये संविधान में विशेष प्रावधान रखे गये हैं जिसके प्रति अब तक केन्द्र की सत्ता में रही सभी सरकारों की ख़ास ज़िम्मेदारी रही है, परन्तु बड़े दुःख की बात है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत के साथ बनी भाजपा की पहली सरकार ने संविधान के इस मूल उद्देश्य को इस प्रकार से भुलाकर पूरी तरह से नज़रअन्दाज़ किया हुआ है जैसे इस सरकार से इसका कोई सरोकार है ही नहीं, यह करोड़ों ग़रीब, शोषित- पीड़ित भारतीयों के जीवन से जुड़ी एक बड़ी चिन्ता वाली बात है।
बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष, सांसद (राज्यसभा) व पूर्व मुख्यमंत्री, उत्तर प्रदेश सुश्री मायावती जी ने आज एक बयान में कहा कि इतना ही नहीं बल्कि श्री नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा यह समझ लेना कि ग़रीबी दूर करने, महँगाई कम करने, बेरोज़गारी घटाने आदि जनहित व जनकल्याण के अतिज़रूरी कामों का कोई ख़ास महत्व नहीं हैं और बड़े-बड़े धन्नासेठों व पूँजीपतियों के विकास में ही देश व सर्वसमाज का हित निहित है, एकदम व सरासर ग़लत अवधारणा है। और शायद यही कारण है कि श्री नरेन्द्र मोदी सरकार अपने शासनकाल में बहुत जल्द केवल नौ महीने के भीतर ही लोगांे में अपना समर्थन तेज़ी से खोती जा रही है, क्योंकि अत्याधिक बयानबाज़ी व कोरे आश्वासन और केवल अपनी तारीफ़ अपने आप ही करते रहना लोगांे को पसन्द नहीं आया है। अब तक लोगों ने यही देखा है कि ‘‘सस्ती लोकप्रियता‘‘ हासिल करने के लिये केवल बड़ी-बड़ी बातें ही की गयी हैं, उन जनहित वायदों को पूरा करने के लिये नीयत और नीति दोनों का ही अभाव जनता को श्री नरेन्द्र मोदी सरकार में देखने को मिला है।
साथ ही, भ्रष्टाचार को समाप्त करने के मामले में भी श्री नरेन्द्र मोदी सरकार जनता से किये गये बड़े-बड़े वायदों को भुलाकर वैसा ही लचर व ढुलमुल रवैया अपनाये हुये हैं जैसा  कि कांग्रेस पार्टी का आचरण व व्यवहार हुआ करता था और जिसकी कड़ी सज़ा भी जनता ने कांग्रेस पार्टी की सरकार को दे दी है। परन्तु श्री नरेन्द्र मोदी सरकार का उसी प्रकार का कमज़ोर व लाचारी भरा व्यवहार जनता को काफी चकित व सशंकित भी कर रहा है।
इसके अलावा, श्री नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा केवल मुट्ठी भर लोगांे के हित व कल्याण में काम करने के लिये उन्हीं के हिसाब से नीति व कार्यक्रम बनाना, जैसे कि भूमि अधिग्रहण क़ानून में किसान-विरोधी संशोधन, डिजिटल इण्डिया कार्यक्रम, स्मार्ट व हाईटेड सिटी, बुलेट ट्रेन आदि और इन्हीं प्रयासों में श्री नरेन्द्र मोदी सरकार सत्ता की शक्ति और संसाधन दोनों का ग़लत इस्तेमाल कर रही है और इसी में अपने आपको गौरवान्वित भी महसूस कर रही है, जबकि आमजनता को इससे कोई भी वह लाभ मिलने वाला नहीं है जिसकी उसे सख़्त ज़रूरत है।
वैसे भी यह सर्वविदित है कि भारत एक ग़रीब लोगों का देश है और यहाँ शिक्षा, रोज़गार व स्वास्थ्य आदि के क्षेत्र में काफी विकट समस्या के साथ-साथ बड़े पैमाने पर सामाजिक, आर्थिक व क्षेत्रीय असमानतायें हैं और श्री नरेन्द्र मोदी सरकार की इस प्रकार की ग़लत नीति से देश को और बड़ी विकट समस्या में डाल सकती है। इस प्रकार की घोर अमीरपरस्त व पूँजीपति-समर्थक नीति का दुष्परिणाम दुनिया के दूसरे देशों यहाँ तक यूरोपीय देशों आदि में स्पष्ट तौर पर भी देख सकते हैं।
इसके साथ ही, प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने विश्व स्तर पर काफी सख़्त आलोचना झेलने के बाद देश में बढ़ते ’’धार्मिक उन्माद एवं साम्प्रदायिक घृणा व नफ़रत’’ फैलाने वालों के ख़िलाफ काफी लम्बे समय बाद अभी हाल ही में अपनी चुप्पी तोड़ी है, परन्तु इस मामले में वैसे असामाजिक तत्वों के ख़िलाफ क्या सख़्त प्रभावी क़ानूनी कार्रवाइयाँ होती हैं, यह अभी देखना बाकी है। ।
वैसे कुल मिलाकर वर्तमान में देश की जो स्थिति है उससे साफ लगता है कि श्री नरेन्द्र मोदी सरकार को लगभग हर मामले में अब ‘‘अविश्वसनीयता‘‘ के घोर संकट का सामना है, जिसकी ख़ास वजह यह है कि अब तक उनके लगभग 9 माह के शासनकाल में ’’बातें कम, काम अधिक’’ करके लोगांे का ख़्याल रखने के बजाये, केवल सस्ती लोकप्रियता व वाहवाही लूटने के लिये ‘‘काम कम परन्तु बातें अधिक‘‘ की गयी हैं, जिस कारण ही देश भर में आमजनता अधिकतर मामलों में अब तक काफी ज़्यादा दुःखी व निराश नज़र आती है।
और इस प्रकार प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्र की सत्ता में आयी भाजपा सरकार अपनी चमक-दमक के साथ-साथ अपना रूतबा भी मात्र नौ महीने के अन्दर इतनी तेज़ी से खो देगी, इसका अन्दाज़ा स्वयं भाजपा व आर.एस.एस. को भी नहीं रहा होगा और यही कारण है कि दिल्ली विधानसभा आमचुनाव का सनसनीख़ेज़ हार के परिणाम ने उन दोनों ही संगठनों के नेताओं को पहले चकित व फिर घोर चिन्ता में डाल रखा है।
वैसे भी जो लोग भारतीय समाज की संरचना व यहाँ की राजनीति की थोड़ी समझ रखते हैं उनका मानना है कि लोक-लुभावन वायदों से ग़रीबों व निम्न आय वर्ग के लोगांे का वोट हासिल करने में ज़्यादातर सफलता तो मिल जाती है, परन्तु इस प्रकार की ‘‘सस्ती लोकप्रियता‘‘ उन लोगांे की निगाह में उतनी ही तेज़ी से गिरा भी देती है और ऐसा ही कुछ श्री नरेन्द्र मोदी सरकार के साथ भी होता हुआ लग रहा है।
साथ ही, सबका साथ, सबका विकास, ग़रीबी हटाओं जैसे लोक-लुभावन नारे वास्तव में अब सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के हथियार के रूप में लोगों द्वारा देखे जाते हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि जिस प्रकार भारत जैसे विशाल देश में हर क्षेत्र व हर राज्य की अलग-अलग समस्या व ज़रूरतें हैं उसी प्रकार ग़रीबी व जातिवाद के अभिशाप से ग्रस्त सर्वसमाज के लोगांे व विभिन्न जातियों के लोगांे की अलग-अलग जटिल समस्यायें हैं। सूखी रोटी खाकर भी व एक वक्त भूखे रह कर भी लोग अपना गुजारा कर ले सकते हैं, परन्तु जातीय अपमान का दंश हर दिन साथ लेकर जीने वाले लोगांे को क्या ’’विशेष अवसर’’ नहीं सुनिश्चित किया जाना चाहिये, जिसका प्रावधान भारतीय संविधान में तो है, किन्तु इसे थोड़ी ईमानदारी से भी यहाँ कभी भी लागू नहीं किया गया। ऐसे शोषित व पीड़ित करोड़ों लोगों को ’’सबका साथ, सबका विकास’’ के नाम पर इन्हें असहाय व लाचार एवं मजबूर छोड़ देना कहाँ तक उचित है।
आख़िर क्या कारण हैं कि केन्द्र की श्री नरेन्द्र मोदी सरकार के एजेण्डे में ’’सामाजिक न्याय’’ कहीं भी नजर नहीं आता है। श्री नरेन्द्र मोदी सरकार के ’’सबका साथ सबका विकास’’ का साफ मतलब यह है कि समाज के दबे-कुचले हजारों वर्ष से पीड़ित-शोषित लोग जीवन के किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिये और हज़ारों साल और इन्तज़ार करना पड़ेगा, क्योंकि आरक्षण सुविधा जैसे विशेष अवसर के अभाव में तो दलित एवं अन्य पिछड़े वर्ग की भारी जनसंख्या हमेशा की तरह शोषित व पिछड़ी ही बनी रहेगी। अमरीका जैसे देश में भी दबे-कुचले लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाने के लिये बड़े पैमाने पर ’’साकारात्मक कार्रवाई ;।ििपतउंजपअम ।बजपवदद्ध कार्यक्रम चलाये गये और अब निम्न व मध्यम आय वर्ग के लोगों के स्वास्थ्य बीमा के लिये राष्ट्रपति ओबामा ने अपना सब कुछ दाव पर लगा रखा है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मन की बात बहुत कर ली है, और अब उन्हें लोगों के मन की बात पर अमल करना प्रारम्भ करना चाहिये तभी सर्वसमाज का भला हो सकेगा।

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