कवि मुकेश मुकुंद की कविता : ज्ञान की देवी

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आगत वसंत पंचमी और ज्ञान की देवी माँ शारदा को अर्पित मुकेश मुकुंद की काव्यांजलि

 

– “ज्ञान की देवी”  – 

 
 

हे ब्रह्मा की मानसी, हे विष्णु की वैष्णवी !
ज्ञान से करो आलोकित, आसमां से जमीं
मिटे अंधकार का बंधन, सुगम हो जीवन पथ
कर्म से नहीं विमुख, माँ के चरणों की शपथ
मन एकाग्र, तीक्ष्ण बुद्धि, कर्म में हो निपुणता
वर दे माँ शारदे, न रह जाये गुणों की कमी
हे ब्रह्मा की मानसी ———————-

 

——————— आसमां से जमीं
उर में करुणा का सुर, प्रेम स्नेह का गूँजता राग
अंतस में जले ज्ञान का दीप, माँ से चिर अनुराग
निज क्लेश कोलाहल मिटे, विपुल वैभव भंडार
परहित की भावना से नयनों में उतर आए नमीं
हे ब्रह्मा की मानसी ———————

 

——————– आसमां से जमीं
तम, तिमिर, अज्ञानता दारुण दुख का मूल
विद्या विवेक से विनष्ट ईर्ष्या द्वेष समूल
माँ के आशीष से प्रज्ञा का शुभ्र उजाला
ज्ञान के अभियान में न रह जाये कोई कमी
हे ब्रह्मा की मानसी, हे विष्णु की वैष्णवी !
ज्ञान के अवदान से धन्य, आसमां से जमीं

 
 

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परिचय -:

मुकेश मुकुंद

साहित्यकार व् प्रशासनिक कर्मचारी

 

मुकेश मुकुंद, डिप्टी एस. पी., सी.बी.आई. है 

 


 

 
 

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