भोग से मुक्ति का मार्ग दिखाता है योग

0
19

– डॉ नीलम महेंद्र –

yoga,yoga-and-helthमानव सभ्यता आज विकास के चरम पर है ।
भले ही भौतिक रूप में हमने बहुत तरक्की कर ली हो लेकिन शारीरिक आघ्यात्मिक और सामाजिक स्तर पर लगातार पिछड़ते जा रहे हैं।
मनुष्य अपनी बुद्धि का प्रयोग अपने शारीरिक श्रम को कम करने  एवं प्राकृतिक संसाधनों को भोगने के लिए कर रहा है ।
यह आधुनिक भौतिकवादी संस्कृति की देन है कि आज हमने इस शरीर को विलासिता भोगने का एक साधन मात्र समझ लिया है।
भौतिकता के इस दौर में हम लोग केवल वस्तुओं को ही नहीं अपितु एक दूसरे को भी भोगने में लगे  हैं। इसी उपभोक्तावाद संस्कृति के परिणामस्वरूप आज सम्पूर्ण समाज में भावनाओं से ऊपर स्वार्थ हो गए हैं और समाज न सिर्फ नैतिक पतन के दौर से गुजर रहा है बल्कि अल्पायु में ही अनेकों शारीरिक बीमारियों एवं मानसिक अवसाद ने मानव जाति को अपनी गिरफ्त में ले लिया है।
आधुनिक विकास की चाह में हमने प्रकृति के विनाश की राह पकड़ ली है।
इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि हम इस बात को समझें कि हमारे विकास की राह हमारे भीतर से होकर निकलती है, जब हमारे व्यक्तित्व का विकास होगा, हमारी सोच का विकास होगा तो हम प्रकृति के विकास के महत्व को समझेंगे और तभी सभ्यता का सर्वांगीन विकास होगा ।
अंग्रेजी में एक कहावत है, ” हेल्दी माइन्ड रेस्ट्स इन अ हेल्दी बोडी ” अर्थात एक स्वस्थ मस्तिष्क एक स्वस्थ शरीर में ही रहता है इस आधार पर आधुनिक विज्ञान एक स्वस्थ शरीर की आवश्यकता पर जोर देता है।
लेकिन हमारे ॠषि मुनियों ने से इस मानव शरीर को उसके भौतिक स्वरूप से आगे जाना और शारीरिक स्वास्थ्य से अधिक मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य पर बल दिया।इसी आधार पर मानव जाति के कल्याण के लिए उन्होंने “योग” नामक उस विद्या की रचना की जिसकी ओर आज सम्पूर्ण विश्व अत्यंत उम्मीद से आकर्षित हो रहा है।
यह हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है कि 21 जून को सम्पूर्ण विश्व योग दिवस के रूप में मनाता है और इसे न केवल शारीरिक स्वास्थ्य बल्कि तनाव मुक्त होने के विज्ञान के रूप में भी स्वीकार कर चुका है।
योग हमारे शरीर को  हमारी आत्मा के साथ जोड़ता है।  योग अर्थात मिलना,  एक होना, एकीकार होना, न सिर्फ ईश्वर से परन्तु स्वयं से  प्रकृति से और सम्पूर्ण सृष्टि से भी।
आज जब पूरी पृथ्वी का संतुलन बिगड़ जाने से सम्पूर्ण जीव जगत के लिए  एक खतरा उत्पन्न हो रहा है ऐसे समय में योग न केवल मनुष्य बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि को एक नई दिशा प्रदान करके नवजीवन देने वाला सिद्ध हो रहा है।
योग को अगर हम केवल शारीरिक व्यायाम समझते हैं तो यह हमारी बहुत बड़ी भूल है।
योग वह है जो हमारा साक्षात्कार अपने भीतर के उस व्यक्ति से कराता है जो आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में थककर कहीं खो गया है । यह केवल हमारी शारीरिक क्षमताओं का विकास नहीं करता बल्कि हमारी मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों को भी जगाता है। योगासन केवल कुछ शारीरिक क्रियाएँ नहीं अपितु पूर्ण रूप से वैज्ञानिक जीवन पद्धति है।
गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है,
“योग: कर्मसु कौशलम् ” अर्थात योग से कर्म में कुशलता आती है क्योंकि योग के द्वारा हम अपने शरीर और मन का दमन नहीं करते अपितु उनका रूपांतरण करते हैं, अपने शरीर एवं मन की शक्तियों को सही दिशा में केन्द्रित करके आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग की ओर अग्रसर करते हैं। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार एक बालक का भविष्य उसकी परवरिश पर आधारित होती है, उसे जैसा माहौल दिया जाता है वैसा ही मनुष्य वह बनता है घर और आसपास का वातावरण उसके व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किसी शरारती बालक की नकारात्मकता को हम अनुकूल वातावरण देकर प्रेम व अनुशासन के साथ  उसके विचारों एवं क्रियाओं को सकारात्मकता की ओर मोड़ कर उसके एवं उसके परिवार की दिशा ही बदल सकते हैं । वैसे ही हम योग के द्वारा अपनी सोच अपनी शक्तियों को नियंत्रित करके सही दिशा में मोड़ते हैं, उनका रूपांतरण करते हैं।
आज जब सम्पूर्ण विश्व योग के महत्व को समझ रहा है तो हम लोग भी इसे अपने आचरण में  उतार कर न सिर्फ अपने स्वयं के स्वास्थ्य बल्कि अपने आस पास के सम्पूर्ण वातावरण में एक नई ऊर्जा का संचार कर सकते हैं।
जिस प्रकार हमारे शरीर का कोई भी अंग तभी तक जीवित रहता है जब तक कि वह हमारे शरीर से जुड़ा है,कोई भी फूल, पत्ता या फिर फल जब तक अपने पेड़ से जुड़ा है सुरक्षित एवं संरक्षित है उसी प्रकार हमें भी अपनी सुरक्षा के लिए प्रकृति से जुड़ना होगा यह बात योग हमें  सिखाता है।
योग के दो महत्वपूर्ण अंग हैं  “यम” एवं  “नियम” ।
यम हमें प्रकृति से सामंजस्य करना सिखाता है जबकि नियम हमें स्वयं पर नियंत्रण करना सिखाता है।
हम प्रकृति को देखते हैं कि  सूर्य चन्द्रमा ॠतुएँ सभी न सिर्फ अपने  नियमों में बन्धे हैं बल्कि एक दूसरे के पूरक भी हैं और अपने अपने चक्र को पूर्ण करने के लिए एक दूसरे पर निर्भर भी हैं उसी प्रकार मानव और प्रकृति न सिर्फ एक दूसरे पर निर्भर हैं बल्कि एक दूसरे के पूरक भी हैं।
और जब एक व्यक्ति योग को अपने जीवन में उतारता है वह केवल  अपनी शारीरिक क्रियाओं एवं इन्द्रियों पर नियंत्रण प्राप्त नहीं करता बल्कि सम्पूर्ण प्रकृति से एकात्मकता के भाव का अनुभव करता है तथा उसके व्यक्तित्व की यह सकारात्मक तरंगें सम्पूर्ण समाज में फैलती हैं , समाज से राष्ट्र में और राष्ट्र से विश्व में।
योग केवल हमारे शरीर को रोगमुक्त नहीं करता बल्कि हमारे मन को भी तनाव मुक्त करता है यह ‘भोग ‘ से मुक्ति का मार्ग दिखाता है।

___________

Dr-Neelam-Mahendra.writer-Dr-Neelam-Mahendra-article-by-Dr-Neelam-Mahendra-Dr-Neelam-Mahendra-authers-poet-Dr-Neelam-MahendraDr-Neelam-Mahendra-poet11परिचय –

डाँ नीलम महेंद्र

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

समाज में घटित होने वाली घटनाएँ मुझे लिखने के लिए प्रेरित करती हैं।भारतीय समाज में उसकी संस्कृति के प्रति खोते आकर्षण को पुनः स्थापित करने में अपना योगदान देना चाहती हूँ। हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं यह देश हमारा है हम ही इसके भी निर्माता हैं क्यों इंतजार करें किसी और के आने का देश बदलना है तो पहला कदम हमीं को उठाना है समाज में एक सकारात्मकता लाने का उद्देश्य लेखन की प्रेरणा है।

राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय समाचार पत्रों तथा औनलाइन पोर्टल पर लेखों का प्रकाशन फेसबुक पर ” यूँ ही दिल से ” नामक पेज व इसी नाम का ब्लॉग, जागरण ब्लॉग द्वारा दो बार बेस्ट ब्लॉगर का अवार्ड

संपर्क – : drneelammahendra@hotmail.com  & drneelammahendra@gmail.com

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here