योग दिवस – हंगामा क्यूँ हैं बरपा

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invcnews,sanjaykumarazad–  संजय कुमार आजाद  –

योगश्चित वृतिनिरोध: यानी चित्त वृतिओं को रोकना ही योग है फिर इसे धर्म की घोल में कैसे समेटा जा सकता है ?योग धर्म ,आस्था और अन्धविश्वास से परे है. योग पूर्णत: एक चिकित्सा पद्यती है.मानव अपने जीवन की श्रेष्ठता के चरण पर योग के माध्यम से ही पहुच सकता है .योग जैसे विषयों पर भारत में हो रहे बयानवाजी देश मानवता के विकास के लिए वाधक है जिसकी जिंतनी निदा की जाय कम है. भारत जैसे गरीब देश में आधुनिक सुखसुविधाओ और देश विदेश के अस्पतालों की सेवा लेने बाले कुछ मानवता के हत्यारों को योग जैसे सरल और नि:शुल्क शरीर को स्वस्थ रखने बाली कला पर दिग्भ्रमित करना घातक है. खासकर कुछ तथाकथित इस्लामी और इसाई तंजीमो के जहरभरे सोच और बोल पर .

“योग दिवस मनाने में किसी को क्यों दिक्कत होनी चाहिए. यह तो अच्छी बात है कि भारत की जिन चीजों से पहचान होती थी,वह फिर दुनियां भर में छा रही है.धार्मिकता की बात बकवास है — शगुफ्ता बानो” | “योग हर इंसान के लिए ज़रूरी है जो लोग कह रहें है की यह मुस्लिम धर्म के खिलाफ है तो वह गलत है हम नमाज़ भी पढतें है तो उसमे भी योग का आसन है.—फरहान खान” (रांची से प्रकाशित दैनिक हिन्दुस्तान के सिटी पेज २१ पर कुछ मुस्लिम युवाओं का मन की बात योग विषय पर) यह पढ़कर तसल्ली हुई कि अब देश का मुस्लिम युवा भी संकुचित धार्मिक सोच से ऊपर उठकर राष्ट्र प्रथम को आत्मसात कर स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निवास होता है की ओर कदम बढा रहा है .यह प्रगति कट्टर सोच से ग्रसित कुछ तंजीमो और नेताओं को हजम नही हो रहा .

आज जिस तरह से भारत में रचा-बसा योग को विश्व स्वीकार करने को उतावला है वहीँ भारत में ही मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसे कुछ दाकियानुसी और बर्बर अरवी संस्कृति की कट्टर सोच बाले तंजीम योग पर बबाल काट इस्लाम को बदनाम कर रहा है. सदियों से भारत में मशहूर योग को अब अंतरराष्ट्रीय पहचान मिलने जा रही है. वैसे तो योग भारत में ही नहीं दुनिया भर में मशहूर है लेकिन भारत के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र  मोदी के संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर में भारत नीत प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की घोषणा की थी संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष श्री सैम के कुटेसा ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा की और कहा कि 170 (जिनमे अधिकाँश मुस्लिम और इसाई देश शामिल है )से अधिक देशों ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के प्रस्ताव का समर्थन किया है, जिससे पता चलता है कि योग के अदृश्य और दृश्य लाभ विश्व के लोगों को कितना आकर्षित करते हैं. संयुक्त राष्ट्र के एलान से दुनिया में योग के प्रति और चेतना विकसित होगी और ज्यादा से ज्यादा लोग योग अभ्यास से जुड़ेंगे. संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी बधाई दी, जिनकी पहल से 21 जून को हर साल अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष श्री सैम के कुटेसा के मुताबिक, “योग विचारों और कर्म को सामंजस्यपूर्ण ढंग से एकाकार करता है और स्वास्थ्य को ठीक रखता है.” भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की ओर से इस संबंध में लिया गया फैसला वैश्विक स्तर पर योग को लोकप्रिय करेगा और इस ‘अमूल्य भारतीय धरोहर’ से लोग लाभ पा सकेंगे.

अभी हाल में हीं सर गंगाराम अस्पताल दिल्ली  में सौ रोगियों पर योग के प्रभाव का परीक्षण किया गया। कारोनरी हृदय रोग और मधुमेह के रोगियों को दो वर्गों में बांटकर उनकी जीवन शैली में थोड़ा बदलाव किया। इनमें एक वर्ग को सिर्फ दवाओं के भरोसे ही रखा गया और दूसरे वर्ग को योगपरक जीवन शैली के लिए प्रेरित किया। खानपान, योग और ध्यान समन्वित इस जीवन शैली के उत्साह वर्धक परिणाम आए। जिन साधकों ने योगपरक जीवन शैली अपनाई थी उनके बाडी मास इंडेक्स (बीएनएल), कोलेस्ट्रोल और रक्तचाप नियंत्रित मिले। इस अध्ययन का संयोजन कर रहे डा. डीएससी मनचंदा के अनुसार मधुमेह, हृदय रोग और अस्थमा जैसे आधुनिक सभ्यता के रोगों पर योग से नियंत्रण की दिशा में उत्साह वर्धक परिणाम आए हैं।

“आत्मानं रथिन विदि शरीरं रथ मेल च”  अर्थात आत्मा राठी है शरीर रथ है आत्मा शरीर पर सवार होकर ही परमात्मा को प्राप्त करती है.योग के सन्दर्भ में महर्षि पतंजली का योग सत्य तक स्वयं तक मोक्ष तक पहुँचने का साधन है. योग के बारे में कहा गया है- योग:कर्मषु कौशलम यानी कर्मो में कुशलता को योग कहतें है,

योग व व्यवहारिक उद्देश्य –

-योग समग्र रूप से जीवन जीने की कला है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने अन्तर्निहित शक्तियों/ऊर्जाओं का सदुपयोग कर जीवन को उत्कर्ष की ओर ले जाता है
– योग मात्र करने का नाम नहीं होने का नाम है अर्थान् अपने मौलिकता में स्थित होना या मूल स्वभाव में स्थित होने का नाम योग है। आसान करना तो मात्र एक शारीरिक हिस्सा है जो की सहज रूप से अनिवार्य भी है। योग से समग्र व्यक्तित्व का विकास होता है(शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व आध्यात्मिक स्तर पर)।
– योग का अभ्यास और अनुप्रयोग एक प्रकार से किसी संस्कृति, राष्ट्रीयता, जाति, संप्रदाय, लिंग, उम्र और शारीरिक अवस्था से परे, सार्वभौमिक है।
– अपनी चेतना को परिष्कृत कर चेतना के उच्चतर स्तरों का अनुभव करना योग की पराकाष्ठा को दर्शाता है जो मात्र अभ्यास द्वारा ही अनुभव किया जा सकता है।
– समझदारी, ईमानदारी, जिम्मेदार व बहादुरी को जीवन में धारण करने की शिक्षा योग हमें देती है।
– अपनी दिनचर्या में सद् व्यवहार , सद्चिन्तन व स्वाध्याय को शामिल करना एवम् चिंतन, चरित्र व व्यवहार को परिष्कृत कर मानवता को विकसित करना योग का व्यवहारिक उद्देश्य है।

यानी गागर में सागर की उक्ति योग चरितार्थ करती है फिर भी कुछ मुस्लिम {जब संयुक्त राष्ट्र में प्रस्ताव पारित किया गया था तब 177 देश इसके पक्ष में थे (जिनमें से 37 मुस्लिम देश) हैं} और इसाई संगठन इसका विरोध करते है क्योंकि यह भारत की संस्कृति से जुड़ा है और भारत की संस्कृति इनके लिए हराम है. योग दिवस को लेकर मचे हंगामे के बीच मुस्लिमों की बड़ी संस्था दारुल उलूम अब इंटरनेशनल योग दिवस के समर्थन की है। दारुल उलूम ने कहा है कि योग को किसी तरह के मजहब (धर्म) से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए। इसके खिलाफ किसी तरह का फतवा भी नहीं जारी करना चाहिए। इसी तरह आल इंडिया मुस्लिम इमाम आर्गेनाइजेशन के मुख्य इमाम उमर अहमद इलियासी ने भी योग का खैरमकदम कर वर्जिस में भाग लेने की गुजारिस आम मुस्लिमों से की है.

हद तो तब हो गयी जब कैथोलिक इसाइओ का तथाकथित प्रगतिशील (या कट्टर?) संस्था कैथोलिक बिशप्स कांफ्रेंस ऑफ़ इंडिया (CBCI) ने ये कहकर विरोध करना शुरू किया की योग दिवस रविबार को क्यों रखा गया? ऐसे संस्थानों की मानसिक स्थिति पर तरस आती है यह निर्णय यूएनओ में लिया गया और इस निर्णय में अनेक इसाई देशों ने अपनी सहमती दी क्या उन देशों में रविबार पवित्र नहीं है? इस तरह के दुर्भावना से ग्रसित संस्थानों और उसके मानवद्रोही प्रतिनिधिओ को ईसाइयत को बदनाम करने का अधिकार किसने दिया? इन्हें जानना चाहिए की इस दिन को इसलिए चुना गया क्योंकि 21 जून साल का सबसे लंबा दिन होता है और समझा जाता है कि इस दिन सूरज, रोशनी और प्रकृति का धरती से विशेष संबंध होता है. इस दिन को किसी व्यक्ति विशेष धर्म विशेष जाति विशेष या पंथ विशेष को ध्यान में रख कर नहीं, बल्कि प्रकृति को ध्यान में रख कर चुना गया है. इसाई मतावलंबियों को अब सोचना होगा की ऐसे मानसिक बिमारी से ग्रसित संगठन और उसके गिरोहों से ईसाइयत को कितना फ़ायदा है ?

भारत में ही भारत सरकार ने ऐसे कुंठित मानसिकता से ग्रसित तंजीमो के विरोध पर योग से सूर्य नमस्कार को उन विभिन्न आसनों की सूची से हटाने पर मजबूर हो गई जिन्हें 21 जून को ‘अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’ पर देश भर के स्कूलों में किया जाना है. मुझे लगता है कि ऐसा सोचना और करना दोनों दयनीय है क्योंकि सूर्य नमस्कार सबसे समेकित आसन है और आप किसी भी धर्म या जाति के हों ये संभवतः सबसे अच्छा व्यायाम है यदि योग में शामिल ओम शब्द से मतान्तरण होता है तो जिन मुस्लिम देशों में योग किया जाता है वहां की पूरी जनसंख्या ही हिन्दू हो गयी होती. यह केवल कुछ कुंठित तंजीमो और उससे जुड़े मुस्लमानों की छोटी सोच का नतीजा है कि वे भारत में रहकर भारत की संस्कृति का विरोध करते हैं.’’भारत सरकार का यह कदम योग को हतोसाहित करना और ऐसे तंजीमो को बढावा देना है.

आज विश्व में योग की बढती लोकप्रियता ने इसे बाज़ार में ढाल दिया है.भारत से लेकर अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया तक योग का अरबों डॉलर का कारोबार है. अमेरिका सहित अनेक पश्चिमी देशों में बाकायदा योग स्टूडियो हैं. और कई योगा स्टाइल विकसित की गई हैं. योग से जुड़ी चीज़ों का कारोबार भी तेज़ी से पनप रहा है. योगा क्लॉथ, योगा मैट्स, योगा बैंड, योगा एक्सेसरीज़, योगा स्टूडियोज़ की डिजाइनिंग और निर्माण भी एक कौशलपूर्ण पेशा है. योग सीखना अब एक महंगा सौदा है. भारत की योग नगरी कहे जाने वाले ऋषिकेश के एक मशहूर योग केंद्र में एक महीने के कोर्स की फ़ीस दो हज़ार डॉलर है और पश्चिमी देशों में तीन सौ से पांच सौ घंटे तक के लिए तीन हज़ार से पांच हज़ार डॉलर की फीस ली जाती है. इसके अलावा मशहूर योग विशेषज्ञों के वर्कशॉप उनके नाम से बिकते हैं.योग के प्रति लोगों की आकंक्षा को व्यवसाय में तब्दील किया जा चुका है.

आज भारत की अधिकाँश जनता इसलिए उद्दिग्न है की कम से कम योग के रूप में कुदरत ने जो नेमत हम गरीबों के लिए बख्शी है उसपर तो तोहमत मत लगाओ. मत और मजहब की चाशनी में इसे डूबोकर देखने अपनी गन्दी मानसिकता से दूर तो हटो. हमें भी इतनी सोचने समझने की शक्ति इश्वर ने दी है की हम कैसे अपने ईमान पर अडिग रहेंगे इसके लिय तुमलोगों की टुच्ची और कुंठित सलाह हमें हरगिज मंजूर नही है. आज भी भारत में योग सरल और सुलभ है जिनके पास आर्थिक समृधि है वे एयर कंडिशन में बैठ योग सीखते जिनके पास कुछ भी नहीं वे खुले आसमान में सूर्योदय के साथ अपने योग का अभ्यास कर अपनी तन मन की रक्षा के गुर सीखते हैं. सदियों से सभी वर्गों के लोग शरीर और मन को एकाकार करने में सहायक योग का अभ्यास करते आए हैं और आगे भी करते रहेंगे !

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 sanjay-kumar-azad2परिचय :-

संजय कुमार आजाद

स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं

पता : शीतल अपार्टमेंट,निवारणपुर रांची 834002

ईमेल — azad4sk@gmail.com  , फोन–09431162589

*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं ।

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