ये दिलाएंगे ‘आधी आबादी’ को उनके अधिकार ?

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– निर्मल रानी –

women's right,article on indian  women's right,  women's right and the law,  women's right and man's rightsजिस भाारतवर्ष को 21वीं सदी में ले जाने के स्वप्र दिखाए जा रहे हों,जहां स्मार्ट सिटी बनाने व बुलेट ट्रेन चलाए जाने जैसी आधुनिकता भरी बातें की जा रही हों वह देश अभी तक इन्हीं बातों में उलझा हुआ है कि महिलाओं को अमुक-अमुक जगहों पर प्रवेश नहीं करना चाहिए? भले ही हम आधुनिकता के दौर की थोथी बातें क्यों न करने लगे हों परंतु कभी-कभी इस देश से ऐसे समाचार प्राप्त होते हैं जो आम इंसान को विचलित कर देते हैं। आज भी ऐसा प्रतीत होता है कि भारत का पुरूष प्रधान समाज महिलाओं को अपने इशारों पर नाचने वाली और उसके अधीन रहने वाले एक ऐसे प्राणी के रूप में समझता है जिसपर पुरुष द्वारा थोपे गए नियम व कानून ही चल सकते हों। गोया महिलाओं का कहीं आना-जाना,पहनना-ओढऩा,मिलना-जुलना सबकुछ पुरुषों की इच्छा व उसकी मरज़ी पर ही निर्भर हो। मज़े की बात तो यह है कि भारत में हिंदू व मुसलमानों के बीच कभी-कभी सांप्रदायिक तनाव की जो खबरें सुनाई देती हैं वह भी महिलाओं के मुद्दे को लेकर ‘धार्मिक सद्भाव’ के रूप में बदल जाती हैं। यानी क्या पंडित तो क्या मुल्ला दोनों ही ओर से महिलाओं पर समान रूप से निशाना साधा जाने लगता है। इन दोनों ही धर्मों का पुरुष प्रधान समाज यह तय करता है कि महिलाओं को किस मंदिर-मस्जिद,दरगाह,धर्मस्थल आदि पर जाना चाहिए अथवा नहीं।

देश में सैकड़ों ऐसे मंदिर हैं जहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित है। तमाम ऐसी दरगाहें भी हैं जहां महिलाओं को मज़ार शरीफ के भीतर जाने की इजाज़त नहीं है। मस्जिदों में नमाज़ पढऩा तो शायद भारतीय मुस्लिम महिलाओं को पुरुष प्रधान समाज ने संस्कारों में ही नहीं दिया। सवाल यह है कि क्या किसी पुरुष को यह निर्धारित करने का अधिकार है कि महिलाएं कहां जा सकती हैं और कहां नहीं? और महिलाओं को वर्जित बताए गए स्थानों पर न जाने देने के पीछे आिखर कारण क्या है? उदाहरण के तौर पर महाराष्ट्र के शिंगणापुर शनि मंदिर के विषय में कहा जा रहा है कि वहां औरतों को मंदिर में शनि देवता के दर्शन हेतु भीतर नहीं जाने दिया जाता। जबकि कुछ लोगों का कहना है कि मंदिर में महिलाओं के प्रवेश निषेध की बात करना एक दुष्प्रचार है। हां इतना ज़रूर है कि शनि शिंगणापुर मंदिर के परिसर में स्थित एक चबुतरे पर चढक़र महिलाओं को शनिदेव पर तेल अर्पित करने की मनाही ज़रूर है। तेल अर्पित न किए जाने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि चूंकि शनिदेव को तेल अर्पित करते समय भक्त का शरीर कमर के ऊपर से निर्वस्त्र होना चाहिए। इस लिहाज़ से महिलाओं को तेल अर्पित करने हेतु चबूतरे पर चढऩे की मनाही सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। यदि यह तर्क सही भी मान लिया जाए तो यहां एक प्रश्र यह खड़ा होता है कि कमर के ऊपर से निर्वस्त्र होने का नियम आिखर किसने बनाया? आज महिलाएं खेल-कूद व तैराकी जैसी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती हैं। और महिलाओं व पुरषों के अलग-अलग ड्रेस कोड निर्धारित किए जाते हैं। पुरष यदि अपने कमर के ऊपरी हिस्से को नग्र रखकर तैराकी करते हैं तो महिलाओं के लिए विशेष स्वीमिंग सूट बनाए जाते हैं। क्या वह इस पहनावे के आधार पर किसी महिला को तैरने या किसी दूसरे खेल में हिस्सा लेने से कभी रोका गया है? जिस पुरुष प्रधान समाज ने कमर से ऊपर के हिस्से को नग्र रखकर शनिदेव पर तेल चढ़ाने का नियम बनाया वही समाज कमर से नीचे के हिस्से को नग्र रखकर भी यही नियम बना सकता था। परंतु यहां पुरुषों द्वारा अपनी सुविधा को ध्यान में रखते हुए तो नियम गढ़ लिया गया परंतु महिलाओं को स्व:गढि़त नियमों का निशाना बनाते हुए उसे शनिदेव पर तेल चढ़ाने से रोका गया। और आज उस दकिय़ानूसी परंपरा को समाप्त करने के बजाए उसे प्राचीन व शास्त्रीय और न जाने कैसी-कैसी परंपरा बताकर उसे संरक्षित रखने व उसकी पैरवी करने की कोशिश की जा रही है?

इसी परिपेक्ष्य में कुछ सवाल पुरुष प्रधान समाज से भी किए जा सकते हैं। जिस हिंदू समाज में करोड़ों देवताओं की भरमार है उसी समाज में देवियों की संख्या भी कम नहीं है। हमारे तमाम भगवान तो ऐसे हैं जो अपनी जोड़ी के साथ देश के अधिकांश मंदिरों में विराजमान रहते हैं। जैसेशिव-पार्वती,राम-सीता,राधा-कृष्ण,विष्णु-लक्ष्मीआदि। इनके अतिरिक्त दुर्गा,मनसा, काली,विंध्यवासिनी,ज्वालाजी,नैना देवी जैसी कई देवियां हमारे धर्म में पूजनीय हैं। इन सभी देवताओं के सपरिवार वाले तथा समस्त देवियों के सभी मंदिरों में प्राय: हर जगह पुरुष पुजारी तथा पुरुष पंडित ही विराजमान पाए जाएंगे। हमारे धार्मिक नियमों के अनुसार प्रत्येक देवी-देवता को स्नान भी कराया जाता है। और इनकी पोशाकें भी बदली जाती हैं। यहां एक ज़रूरी सवाल यह है कि किसी पुरुष पुजारी को क्या इस बात का अधिकार है कि वह किसी देवी का स्नान अपने हाथों से कराए और उनकी पोशाक बदले? देवियों के वस्त्र बदलने और उनको स्नान कराए जाने की जि़म्मेदारी महिलाओं को क्यों नहीं सौंपी जानी चाहिए? महिला देवियों को पुरुष पुजारियों या पंडितों द्वारा स्नान कराया जाना या उनके वस्त्र बदलना देवियों का अपमान नहीं तो और क्या है? परंतु किसी पुरुष द्वारा इस विषय पर आज तक कोई सोच-विचार नहीं व्यक्त किया गया। सिर्फ आसान लक्ष्य समझ कर महिलाओं पर ही सभी प्रकार के प्रतिबंधों की बरसात की जाती रही है।

चाहे कोई प्राणी रूपी में अवतरित हुआ देवता हो,भगवान हो अथवा बड़े से बड़ा पीर या फकीर क्या महिला के बिना किसी की उत्पति संभव है? आज विभिन्न देवी-देवताओं पर दूध चढ़ाया जाता है। यह दूध भी स्त्रीलिंग पशु से ही प्राप्त होता है। चाहे वह गाय का हो या भैंस का। मंदिरों में देसी घी के दीप जलाए जाते हैं तथा इससे आरती की जाती है। कहां से आता है यह देसी घी? स्वयं महिलाओं पर प्रतिबंधों की बौछार करने वाला पुरुष प्रधान समाज कहां से जन्म लेता है? यह बातें सोचने की तो ज़हमत ही नहीं की जाती। बस दिमाग में स्त्री के विषय में उसकी अपवित्रता तथा उसकी शारीरिक संरचना को लेकर पुरुषों में बैठी उसकी रुग्ण सोच उसे महिलाओं के विरुद्ध न जाने कैसे-कैसे फैसले लेने पर मजबूर करती रहती है। जबकि हकीकत तो यह है कि महिलाओं को अपनी पवित्रता व अपवित्रता के विषय में पूरा ज्ञान होता है और वह यह स्वयं भलीभांति समझती हैं कि उन्हें किस स्थिति में कहां जाना चाहिए और कहां नहीं? इस विषय पर महिलाओं की आयु भी महत्वपूर्ण होती है। परंतु पुरुष समाज सभी आयु की महिलाओं को नियमों के नाम पर एक ही डंडे से हांकता है। सच तो यह है कि पुरुषों की ही तरह महिलाओं की शारीरिक संरचना तथा उसके भीतर पाए जाने वाले गुण अथवा अवगुण जो भी हैं, प्रकृति की ही देन हैं। और इन सभी का सीधा संबंध मानव जाति के विकास से है। ऐसे में यह पुरुष समाज की सोच तथा उसकी दृष्टि का दोष है कि वह महिलाओं को बुरी अथवा नीची सोच के साथ देखता है। न कि महिलाएं इसके लिए दोषी हैं कि उन्हें प्रकृति ने ऐसा क्यों बनाया? ऐसे में ज़रूरत तो इस बात की होनी चाहिए कि पुरुष अपनी सोच व मानसिकता पर तथा अपनी नज़रों पर नियंत्रण रखे न कि महिलाओं के कहीं प्रवेश पर ही प्रतिबंध लगाकर महिलाओं को अपमानित करने की कोशिश करे।

इसी संदर्भ में महिलाओं को भी एक बात बड़ी गंभीरता से सोचनी चाहिए। कहा जाता है कि औरतों का पीर कभी भूखा नहीं मरता। इस कहावत की व्याख्या यही है कि चूंकि औरतें प्राय: अंधविश्वासी,भावुक तथा धर्म व अध्यात्म पर बिना कुछ सोचे-समझे विश्वास कर लेने वाली होती हैं लिहाज़ा क्या पीर तो क्या पंडित,क्या पुजारी,ज्योतिषी,बाबा,भिखारी,पाखंडी सभी पर समान रूप से विश्वास कर बैठती हैं। और औरतें ही अपने परिवार के पुरुषों को भी अलग-अलग धर्मस्थानों पर जाने हेतु प्रोत्साहित करती हैं। लिहाज़ा महिलाओं पर मंदिर या दरगाहों में प्रवेश करने की लड़ाई महिलाओं द्वारा ऐसे स्थानों पर प्रवेश की अनुमति हेतु संघर्ष करने के लिए नहीं बल्कि उन्हें ऐसे स्थानों के बहिष्कार करने हेतु संगठित होना चाहिए। महिलाओं को किसी भी मंदिर-मस्जिद अथवा दरगाह में जाना ही नहीं चाहिए। क्योंकि इन स्थानों पर तैनात स्वयंभू धर्म के ठेकेदार महिलाओं का न केवल आर्थिक शोषण करते हैं बल्कि उनपर बुरी नज़रें भी डालते हैं। और जिस दिन देश की महिलाएं अपने ह्रदय में सच्चे दिल से देवी-देवताओं या अपने आराध्य पीर-फकीर को जगह देने लगेगीं तथा इन भवनों में जाना छोड़ देंगी उसी दिन औरत के कहे जाने वाले यही ‘पीर’ भूखे मरने लगेगें। और इन्हें अपनी औकात का पता चल जाएगा। आज जहां देश के अनेक मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है वहीं दर्जनों ऐसे पाखंडी तथाकथित महापुरुषों,संतों व बाबाओं के िकस्से भी सुिर्खयों में रहते हें जो महिलाओं को शिष्या बनाकर उनका शारीरिक शोषण किया करते हैं। ऐसे कई ‘महापुरुष’ जेल की सलाखों के पीछे हैं और कई पर मुकद्दमे चल रहे हैं। इन सबसे निजात पाने का यही तरीका है कि महिलाएं अपनी इज्ज्ज़त-आबरू व मान-सम्मान की स्वयं रक्षा करें तथा दूसरों को प्रतिबंध लगाने का मौका देने की बजाए स्वयं बहिष्कार का मार्ग अपनाएं। अन्यथा पुरुष प्रधान समाज से यह उम्मीद रखना कि वह लिंग के आधार पर आधी आबादी को कभी उसका अधिकार दिला सकेगा यह सोचना बेमानी है।

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nirmal-rani-निर्मल-रानीनिर्मल-रानी11परिचय – :

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क : – Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City13 4002 Haryana ,  Email : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

* Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS

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