सोनाली बोस की कहानी “ सर्दियों की बरसात ”

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सोनाली बोस की कहानी “ सर्दियों की बरसात ”

 सर्दियों की बरसात –

sonali bose,story of sonali bose, written by sonali bose invc newsसुबह की हलकी हल्की बारिश और ज़मीन पर पड़ती बूंदों ने उम्र –दराज़ रियाज़ अली खान को अनायास ही उसके माज़ी की गर्द में धकेल दिया | मानो अभी कल ,हाँ कल ही की तो बात थी जब रियाज़ अली खान सिर्फ रियाज़ हुआ करता था | रियाज़ की बरसातों में और रियाज़ अली खान की बरसातों में ज़मीन आसमान का फर्क था | हरे भरे खेत ,और सर्द कोहरे की चादर में लिपटे गाँव का पूरा का पूरा मंज़र ऐसा होता था जैसे मानो समूचा आकाश ही इस गाँव को अपनी गोदी में समेटे हुये है | सर्द हवाएं तो तब भी होती थी पर साफ़ स्वछन्द माहौल इन हवाओं को जीने के लायक बना देता था |रियाज़ को नहीं पता था की दमा किसे कहते हैं ,हाँ बस … कभी कभी किसी को गाँव में खांसते हुए या छोटे बच्चों को पसलियों के दर्द से जूझते हुए ज़रूर देख लिया करता था इस ठण्ड में |

रियाज़ का बचपन एक गाँव में गुजरा …पर जबसे विकास का पहिया रियाज़ के गाँव की सड़क तक पहुंचा तो जिन खेतों पर जहां पहले फसल उगती थी विकास के पहिए के घूमने के बाद अब उन खेतों से काला धुँआ निकलने लगा था | जिन नहरों में रियाज़ बचपन में तैराकी किया करता था और पूरा गाँव जिनसे पानी पीया करता था उन्हीं नहरों में अब विकास के पहिये पर घूम रही फैक्ट्रियों से निकला ज़हरीला और बदबूदार कैमिकल ने इन साफ़ सुथरी नहरों को एक गंदा बदबूदार ,बीमारियों का गढ़ बनाने वाली नहर में तब्दील कर दिया था | प्रदूषित गंदा पानी इस साफ़ सुथरी नहर को कब का मौत के घाट उतार चुका था | जिस नहर के  घाटों पर ईश्वर को याद करके डूबकी लगाई जाती थी अब उसी नहर के मरने के बाद इन घाटों पर विकास के कारखानों से निकला ज़हरीला मलबा अपने मोक्ष के लिये डूबकी लगाता रहता है |
आज इस सर्द मौसम की पहली बरसात ने रियाज़ अली खान को हस्पताल पहुंचा दिया था | पैसा ,पद ,पावर सभी कुछ तो है रियाज़ अली खान के पास पर नहीं है तो बस किसी भी मौसम को इंजॉय करने की शारीरिक ताकत | आज तो डॉक्टरो ने साफ़ साफ़ कह दिया था कि अब आपको इस शहरी आबो – हवा को छोड़ कर किसी हिल स्टेशन या फिर जहां प्रदूषण न हो उस जगह की तलाश शुरू कर देनी चाहिये वरना आपको अब बहुत मुश्किल होने वाली हैं |

रियाज़ …से रियाज़ अली खान बनने का सफ़र बहुत आसान नहीं था | रियाज़ के वालिद साहब जो की गाँव के सरपंच थे वे इस प्रदूषण विकास के सख्त खिलाफ थे | अपने वालिद साहब की  मुखालफत के बावजूद  रियाज़ ने सत्ता के केंद्र में अपनी ऊँचीं पहुँच का भरपूर फायदा उठाया था और गाँव को विकास के नाम पर पत्थरों के शहर में तब्दील कर दिया था | रियाज़ अली खान ने नहर के किनारे वाले सबसे शानदार प्लाट पर अपने सपनों का कंकड़ पत्थरों का महल खड़ा किया था | रियाज़ को बचपन से प्रकृति से बहुत लगाव था पर रियाज़ अली खान को पैसा ,पद पावर से बहुत प्यार था | पैसे, पद और पावर से लबरेज़ रियाज़ अली खान का दमा अब आखिरी स्टेज पर था , दवाईयों से ज़्यादा अब उन्हें साफ़ आबो – हवा की ज़रुरत थी |

डॉक्टरो ने  जब अपने हाथ खड़े कर दिये तो रियाज़ अली खान को अब किसी प्रदूषण मुक्त रथान पर ले जाना तय हुआ | बरसात अभी भी हो रही थी , रियाज़ अली खान एक एम्बुलेंस में लेटा कृत्रिम सांस का सहारा लिए  एम्बुलेस की खिड़की से बाहर झाँक रहा था | अभी एम्बुलेंस शहरी आबादी निकलकर विकास से दूर किसी गाँव के पास से गुज़र ही रही थी की तभी एम्बुलेंस में कुछ खराबी आ गई| एम्बुलेंस को एक तरफ लगा कर ड्राइवर उसे ठीक करने की कोशिश करने लगा | एम्बुलेंस में लेटे रियाज़ अली खान की नज़र ठण्ड की पहली बरसात का लुत्फ़ लेते हुए एक छोटे से रियाज़ पर जाती है | उसे देख कर रियाज़ अली खान को लगता है कि मदमस्त सा छोटा सा रियाज़ मानो पैसे, पद और पावर की मूर्ती रियाज़ अली खान को बार बार चिढ़ा रहा हो  …मानो कह रहा हो कि “ आखिर में तो इंसान को इसी प्रकृति के साथ ही जीना और मरना है …तो फिर …क्यूँ विकास के नाम पर हम प्रकृति को नाराज़ करते हैं ? जबकि ये बात भी जग ज़ाहिर है कि इस धरा पर कोई भी जाति – प्रजाति प्रकृति से कभी नहीं जीत पाई है| फिर इंसान पर्यावरण को नष्ट करके अपनी आने वाली नस्लों की बर्बादी का मार्ग खुद ही क्यों खोल रहा है? रियाज़ अली खान को अब अपने मरहूम वालिद साहब की सभी बातें याद आ रही थी | लेकिन वो अब सिर्फ पछताने के अलावा कर भी क्या सकता था |

कुछ समय पश्चात एम्बुलेंस के ड्राईवर ने एम्बुलेस को ठीक कर दिया और एम्बुलेंस रियाज़ अली खान को लेकर किसी प्रदूषण मुक्त जगह की तलाश में चल दी | बरसात अब भी हो रही थी लेकिन ठण्ड और कोहरे  में एम्बुलेंस कहीं गायब हो चुकी थी और साथ ही गुम हो चुका था रियाज़ अली खान|

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उप – सम्पादक
इंटरनेशनल न्यूज़ एंड वियुज़ डॉट कॉम
व्
अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम

Sonali Bose
Sub – Editor
international News and Views.Com
&
International News and Views Corporation

संपर्क –: sonali@invc.info & sonalibose09@gmail.com

12 COMMENTS

  1. प्रदुषण वाकई एक गम्भीर मुद्दा है। आपने इस मुद्दे को बहुत ही नेक तरीके से अपने कहानी मे उकेरा है लेकिन मुद्दा केवल प्रदुषण नही है बल्कि इसका रोक-थाम क्या हो?

  2. सोनाली जी ,आपकी कहानी भी ग्लोबल मुद्दा उठाती हैं ! आपके लेखन को सलाम ! आपके सभी लेख ग्लोबल उद्दो के साथ होते हैं !आप सच में महिला लेखन के आकश का चमका सूरज हैं जो अभी बहुत लंबा सफ़र तय करेगा ! बधाई !!

  3. शुक्र है आपकी कहानी में मुंशी प्रेम चंद का कोई किरदार मौजूद नहीं ! नहीं तो कहानी पढ़ना ऐसा हो गया हैं जैसे बार बार एक ही कहानी पढ़ रहे हो ! बधाई हो !!

  4. सोनाली जी आपने कहानी लिखी ,पर एक मुद्दे ,एक ताजगी की साथ ! आपकी कलम को सलाम !

  5. एक मुद्दा उठाती कहानी ! इस कहानी में भारत और भारतीय समाज की दरिद्रता नहीं हैं ! न उबाऊ ,पकाउन सा कोई परेशान हाल रामू काका ! कहानी पढ़ने से भी डर लगने लगा था ! पर आपने कहानी लेखन का नया दौर शुरू कर दिया हैं !

  6. यह नई कहानियों का नया दौर हैं ! महिला लेखन में अब मुद्दों की कोई कमी नहीं हैं ! सोनाली जी लेखन उस दौर का पहला पन्ना हो सकता हैं ! बधाई सोनाली जी !

  7. कहानी अपने आप मे पर्यावरण की कहानी हैं ,हम सच में अब भी नहीं बदले तो एक न एक दिन सभी रियाज़ अली खान बन जाएंगे ! आप सच में कहानी में भी कोई न कोई मुद्दा ले आती हैं !

  8. आपकी कहानी सच में सोचने को मजबूर करती हैं ! आपकी कहानी पढ़ने के बाद मैंने अपने कई दोस्तों के साथ शेयर की हैं ! ताकि हम सभी वक़्त रहते पर्यावरण को बचा सके !

  9. सोनाली जी ,आपकी कहानी भी आपके लेखो की तरहा ही गंभीर मुददा उठाए हुए हैं ! आपकी कहानी पढ़ने के बाद सच में लगा की आपने कुछ अलग हटके प्रयास किया हैं !

  10. शानदार ,एक गंभीर समस्या की तरफ ध्यान खिचती कहानी लिखी हैं सोनाली जी आपने ! आप माहिलावादी लेखक हैं पर अब आपकी कहानी पढ़कर लगा की नहीं आप अब पर्यावरण वादी लेखक भी हैं

  11. सोनाली जी आप सच में महिला लेखन और मुद्दों की बात करने वाली लेखिका हैं ! आपको पढ़ना बहुत ही सुखद होता हैं !

  12. सोनाली जी आपकी कहानी पढ़ी ! आपके बाकी लेख भी पढ़े हैं ! आप बिना किसी मुद्दे के कुछ नहीं लिखती हैं यह आपकी सबसे मजबूत पहचान है ,आप इसे बनाएं रखियें ! अभी तक जो कहानियाँ पढ़ते आये है मुंशी प्रेम चंद छाप होती थी पर बधाई आपने एक नई परम्परा को जनम दिया हैं !

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