क्यों रुकता नहीं नारी पर वार?

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nirmal rani– निर्मल रानी –

पिछले दिनों देश को एक बार फिर हरियाणा के रोहतक में दोहराए गए निर्भया कांड से शर्मसार होना पड़ा। राक्षसी प्रवृति के बलात्कारियों ने नेपाली मूल की एक लडक़ी के साथ न सिर्फ बलात्कार किया बल्कि उसके शरीर की ऐसी दुर्गति कर डाली जिसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर लडक़ी के शरीर की हालत देखकर स्वयं दहल उठे। हालांकि घटना के आठ दिनों बाद बलात्कारियों को गिरफ्तार किए जाने का पुलिस ने दावा तो ज़रूर किया है परंतु एक बार फिर यह सवाल खड़ा हो गया है कि आिखर ऐसे बलात्कारी दरिंदों से देश को कभी निजात मिलेगी भी अथवा नहीं? केवल रोहतक ही नहीं बलिक देश के और भी कई राज्यों से यहां तक कि राजधानी दिल्ली से भी इसी प्रकार की खबरें लगातार आ रही हैं। केंद्र में सत्तारुढ़ दल भारतीय जनता पार्टी ने हालांकि पिछले लोकसभा चुनाव में बलात्कार की घटनाओं को पिछली यूपीए सरकार के सिर मढ़ते हुए अपने शेखी बघारने वाले विज्ञापनों में यह नारा लिखवाया था कि- बहुत हुआ नारी पर वार-अब की बार मोदी सरकार। इस प्रकार के नारों को सुनकर तो ऐसा ही लगता है गोया देश में नारियों पर होने वाले हमले तथा बलात्कार की घटनाएं संभवत: भाजपा शासन में समाप्त हो जाएंगी। परंतु आंकड़े तो यह बता रहे हैं कि ऐसी घटनाएं रुकना या कम होना तो दूर बल्कि इनके आंकड़ों में वृद्धि ही होती जा रही है। ऐसे में यह सवाल उठना ज़रूरी है कि क्या भारतीय जनता पार्टी द्वारा उपरोक्त नारे का इस्तेमाल महज़ एक ‘जुमले’ के रूप में ही किया गया था? क्या भाजपा द्वारा यूपीए सरकार को बलात्कार या नारी उत्पीडऩ की घटनाओं को रोक पाने के लिए अक्षम बताना भाजपा का महज़ सियासी दांव था? क्या 9 महीने की केंद्र की भाजपा सरकार अथवा भाजपा शासित अन्य राज्य सरकारों का ऐसी घटनाओं को केवल सरकार की मुस्तैदी से रोका जाना संभव है?

जहां तक राजधानी दिल्ली में ऐसी घटनाओं को रोकने का प्रश्न है तो यहां सीसीटीवी कैमरे लगाकर बलातकार व छेड़छाड़ की घटनाओं पर नियंत्रण पाने की बात सत्ता में आई आम आदमी पार्टी नेताओं द्वारा की जा रही है। क्या चप्पे-चप्पे पर ऐसे कैमरे लगा पाना संभव है? और क्या दिल्ली के बाहर पूरे देश में कैमरों की निगरानी में ऐसे अपराध रोके जा सकते हैं? कैमरों की नज़रों में कैद किए गए अनेकानेक हत्या,चोरी-डकैती व ठगी जैसे मामले सीसीटीवी पर देखे जा चुके हैं। परंतु इन कैमरों का लाभ अधिक से अधिक केवल यही होता है कि अपराधियों को पकडऩे में अथवा उनका सुराग़ लगाने में कुछ सहायता ज़रूर मिल जाती है। परंतु यह कैमरे अपराध को कतई रोक नहीं सकते। वैसे भी हमारे देश की जनता अभी दुनिया के अन्य विकसित देशों की तरह सीसीटीवी की इतनी आदी भी नहीं कि वह कैमरे के भय की परवाह करे। विकसित देशों में तो पूरा का पूरा ट्रैिफक संचालन मात्र कैमरे व लाईटस द्वारा संचालित होता है। परंतु यहां लोगों को न तो रेड लाईट की परवाह होती है न ही ट्रैिफक पुलिस के इशारों की चिंता। ऐसा लगता है कि देश की जनता स्वतंत्रता का कुछ अपने ही तरीके से फायदा उठाना चाहती है। जो भी व्यक्ति जहां भी चाहे खड़े होकर पेशाब करने लग जाता है। जहां चाहे थूक देता है। पान खाकर थूकने के लाल निशान हमारे ही देश की सडक़ों व दीवारों यहां तक कि तमाम दफ्तरों व स्कूलों में देखे जा सकते हैं। जो चाहता है और जहां चाहता है ज़मीन पर कब्ज़ा कर बैठता है। अतिक्रमण के मामले में चाहे किसी का घर हो या दुकान जब तक वह सरकारी ज़मीन पर किसी न किसी रूप में कब्ज़ा न करे तथा अपने घर व दुकान के सामने से निकलने वाली नाली व नालों को ढककर उस सरकारी नाले-नालियों पर अपना अधिकार न जमाए तब तक गोया उसे चैन ही नहीं मिलता। मोटरसाईकल,कार आदि की पार्किंग किस प्रकार करनी है,कहां करनी है,उसकी पार्किंग से सडक़ पर जाम भी लग रहा है इन सब बातों की किसी को कोई चिंता नहीं क्योंकि प्रत्येक देशवासी आज़ाद जो ठहरा?

इसी प्रकार लड़कियों के मामले में भी भारतीय मर्द ज़रूरत से ज़्यादा स्वतंत्र व मानसिक रूप से पीडि़त या कमज़ोर दिखाई देते हैं। मिसाल के तौर पर विकसित देशों में यदि कोई पति-पत्नी या पुरुष-स्त्री मित्र एक-दूसरे के हाथ में हाथ डालकर सडक़ पर चलते हों तो उनकी ओर वहां कोई मुडक़र भी नहीं देखता। दुनिया के कई देशों के पहनावे ऐसे हैं कि लड़कियां अपनी पूरी टांगें या तो खुली रखती हैं या मात्र ऊंची जुराबें पहनती हैं। उनकी ओर भी देखने का न तो किसी के पास समय है न ही उनके संस्कार ऐसे हैं कि वे मुड़-मुड़ कर ऐसी लड़कियों को देखें। परंतु हमारे देश में लड़कियों के प्रति लोगों का क्या रुख रहता है यह बताने की कोई ज़रूरत ही नहीं है। आम लोग किसी जवान लडक़ी को संपूर्ण लिबास पहने होने के बावजूद इस प्रकार घूरते रहते हैं जैसे कि वे उसे निगल ही जाना चाहते हैं। लड़कियों के स्कूल व कॉलेज लगने के समय तथा छुट्टी के समय आवारा िकस्म के लडक़ों की भीड़ प्रत्येक स्कूल व कॉलेज के आसपास मंडराती देखी जा सकती है। लड़कियों के पीछे सीटियां बजाना, उनपर फब्तियां कसना,चलती सडक़ पर लडक़ी के साथ अश£ील हरकतें करना यह सब इस देश का आम ढर्रा बन चुका है। और यही सिलसिला जब आगे बढ़ता है तो हमें कभी चलती बस व ट्रेन में लडक़ी से छेड़छाड़ या बलात्कार की खबर सुनाई देती है, कभी कार्यालयों में किसी सहकर्मी द्वारा महिला के साथ छेड़छाड़ अथवा बलात्कार के समाचार सुनाई देते हैं। ज़ाहिर है यह सब भी लोगों की आज़ादी का शायद एक हिस्सा बन चुका है। और यह कहने में भी कोई हर्ज नहीं कि इस प्रकार की नकारात्मक सोच संभवत: ऐसी हरकत करने वाले लोगों के संस्कारों में शामिल है।

अभी पिछले दिनों हवाई जहाज़ में किसी झुनझुनवाला नामक एक बुज़र्ग उद्योगपति ने अपने साथ की सीट पर बैठी हुई एक महिला के साथ छेड़छाड़ करनी शुरु कर दी। उस युवती ने दो-तीन बार उसकी हरकतों की अनदेखी भी की। परंतु उस नीच व्यक्ति ने उसके शरीर को छूने व गलत हरकतें करने का सिलसिला जारी रखा। आिखरकार उस महिला की सहनशक्ति जवाब दे गई। और उसने उस उद्योगपति महाशय की उड़ते विमान में सार्वजनिक रूप से ऐसी-तैसी कर डाली। विमान यात्रियों द्वारा यहां तक कि स्वयं उस युवती द्वारा भी उस उद्योगपति को उसकी औकात दिखाए जाने का वीडियो भी बनाया गया जो न केवल टीवी पर प्रसारित हुआ बल्कि सोशल मीडिया पर भी खूब देखा गया। सोचने की बात है कि जिस परिवार का बुज़ुर्ग व्यक्ति और वह भी तथाकथित सम्मानित व प्रतिष्ठित कहा जाने वाला बुज़ुर्ग ऐसी हरकतें करेगा तो क्या उसका असर उसके बेटे व बेटियों पर नहीं होगा? किसी अंजान पुरुष द्वारा किसी अंजान महिला के शरीर को इस प्रकार छूने अथवा उससे ज़बरदस्ती छेड़छाड़ किए जाने का आिखर मकसद ही क्या है? यह एक ऐसी सामान्य त्रासदी है जो बसों,रेलगाडिय़ों,मैट्रो अथवा भीड़भाड़ वाली किसी भी जगह पर सामान्य रूप से देखी जा सकती है जहां कि पुरुष किसी महिला के शारीरिक संपर्क में आने की ज़बरदस्ती कोशिश करते हैं। और यदि महिला खमोशी से उस व्यक्ति के शारीरिक घर्षण को सहन कर जाए तो ऐसे मर्द का हौसला और बढ़ जाता है और वह अपने हाथ से महिला के दूसरे अंगों को छूना अथवा सहलाना शुरु कर देता है।

उपरोक्त बातों से यही सिद्ध होता है कि बलात्कार,छेड़छाड़ अथवा महिला उत्पीडऩ के मामले कानून व्यवस्था से अधिक पारिवारिक संस्कारों से जुड़े मामले हैं। प्रत्येक परिवार के बुज़ुगों को सर्वप्रथम तो स्वयं को अत्यंत संयमित रखने की ज़रूरत है। क्योंकि जब परिवार के बड़े बुज़ुर्ग तथा प्रौढ़ आयु के लोग स्वयं महिलाओं की इज़्ज़त करेंगे,उन्हें बुरी नज़रों से ताकना-झांकना बंद करेंगे तभी उनकी औलादें उनसे कुछ सीख सकती हैं तथा वे भी अपने बच्चों को कुछ समझाने का अधिकार रखते हैं। जिस प्रकार परिवार में लड़कियों पर सख्ती की जाती है तथा उन्हें नियंत्रण में रखने की पूरी कोशिश मां-बाप व भाईयों द्वारा की जाती है ठीक उसी प्रकार प्रत्येक परिवार के लडक़ों को भी लड़कियों के प्रति सचेत करने,उनका मान-सम्मान करने व उन्हें गलत नज़रों से न देखने की शिक्षा बचपन से ही देनी चाहिए। ज़ाहिर है लडक़ों को मिलने वाली खुली छूट व आज़ादी उन्हें घूमने-फिरने के लिए मिलने वाली बाईक या कारें,खर्च के लिए मिलने वाले पैसे, देर तक या बेवजह घर से बाहर उन्हें घूमते रहने की खुली छूट यह सब बातें उनकी आपराधिक प्रवृति में शामिल होने का कारण बनती हैं। लिहाज़ा नारी पर वार रुकने न रुकने का सीधा संबंध न तो यूपीए सरकार से था और न ही इसके लिए किन्हीं दूसरी सरकारों को दोषी माना जा सकता है। क्योंकि किसी भी व्यक्ति की मानसिकता व उसके इरादों पर नज़र रख पाना किसी भी शासन व्यवस्था के बूते की बात नहीं है। केवल वंश से मिलने वाले संस्कार या उसका सामाजिक परिवेश ही उसे सदाचार व दुराचार के रास्ते पर ले जाते हैं।
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nirmal-rani-invc-news-invc-articlewriter-nirmal-rani-aricle-written-by-nirmal-rani1परिचय :-
निर्मल रानी

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क : –Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City134002 Haryana
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* Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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