रेल क्रॉसिंग पर हादसे का जिम्मेदार कौन ?

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sanjayswadesh,invcnews– संजय स्वदेश –

यदि आपको याद हो तो करीब एक साल पहले तेलंगाना के मेडक में मानव रहित क्रॉसिंग पर भी एक दर्दनाक हादसा हुआ था। बच्चों को स्कूल ले जा रही बस एक्सप्रेस ट्रेन से टकरा गई थी और 14 नौनिहाल अकाल काल के गाल में समा गए थे। तब देश भर में मानवरहित रेलफाटकों को लेकर काफी हो हल्ला मचा। मीडिया में भी बसह चली थी। लेकिन क्या हुआ। न सरकार ने सबक लिया और लोग। रेलवे फाटक पार करते हुए एक बार दाये बाये देखकर थोड़ा संयम रख लेने में कौन सी आपदा टूट पड़ती है।

मानवरहित रेलवे क्रांसित पर हादसों का इतिहास पुराना है। अंग्रेजों ने जब रेल पटरियां बिछाई थीं, तब न तो इतनी सड़कें थीं और न जनसंख्या का ऐसा दबाव। शायद इसीलिए उन्होंने कम यातायात वाले मार्गों पर बिना फाटक और चौकीदार के क्रांसिंग को आम लोगों के आने-जाने का रास्ता खोलने का फैसला किया होगा। तब पटरियों पर दौड़ रही ट्रेनों अथवा मालगाड़ियों की संख्या बहुत कम थी। तब के ट्रेनों में कोयले के इंजन होते थे और उनकी स्पीड कम होती थी। तब से अब तक हालात में जमीन-आसमान का परिवर्तन हो गया है। तेज गति से दौड़ने वाले इंजन आ गए हैं। सवारी और मालगाड़ियों की संख्या में कई गुना बढ़ोततरी हो गई है। रेल पटरियों के दोनों ओर की आबादी का घनत्व कई गुना बढ़Þ गया है, लेकिन जानलेवा व्यवस्था अभी भी जस का तस है। यही वजह है कि हमें आए दिन ऐसी दुर्घटनाओं की खबरें पढ़नी पड़ती हैं।
नई दिल्ली में ससंद का जब भी सत्र होता है, करीब करीब हर सत्र में मानवरहित रेलवे क्रासिंग पर होने वाले हादसों को लेकर कोई न कोई सांसद प्रश्नकाल में जरूर सवाल उठाता है। मानसून सत्र में 24 जुलाई को रेलराज्य मंत्री मनोज सिंहा ने एक सवाल के लिखित जवाब में संसद को बताया कि देश में बिना चौकीदार वाले मानवरहित रेलवे समपार (फाटक) की कुल संख्या 10440 है, जिनमें सबसे अधिक 2087 ऐसे समपार पश्चिम रेलवे में हैं। पश्चिम रेलवे में 2087 ऐसे रेलवे क्रांसिंग हैं जबकि उत्तर पश्चिम रेलवे में 1057, उत्तर रेलवे में 1050 और पूर्वोत्तर रेलवे में 1036 रेलक्रांसिंग मानवरहित हैं।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत में ऐसी जानलेवा घटनाएं होती हैं। यूरोप और अमेरिका के विकसित देश भी इस महामारी से ग्रस्त हैं। अमेरिका में हर साल तकरीबन 300 और यूरोप में 400 लोग रेलवे क्रॉसिंग पर मारे जाते हैं। रेलवे क्रॉसिंग पर विश्व इतिहास का अब तक का सबसे बड़ा हादसा 1967 में जर्मनी में हुआ। इसमें एक साथ 97 लोगों की जान गई थी। 2005 में पश्चिमी भारत के शहर नागपुर के पास भी ऐसी ही दिल दहलाने वाली दुर्घटना हुई, जिसमें 55 लोग मारे गए थे। आंकड़े समस्यता की विकरालता को साबित कर रहे हैं। लेकिन यह समस्या स्वयं खत्म भी हो जाएगी ऐसा भी नहीं है। 2011-12 में मानव रहित क्रॉसिंग पर 131 हादसे हुए। इनमें 319 लोग मारे गए, जिसमें 17 रेलकर्मी भी थे। यदि साल का औसत देखें तो पता चलता है कि हमारे एक-तिहाई से ज्यादा दिन इस तरह की दुर्घटनाओं के नाम हो जाते हैं।
अनिल काकोदकर की अगुवाई वाली समिति ने 2012 में सरकार से सिफारिश की थी कि अगले पांच साल में सभी मानव रहित क्रॉसिंग समाप्त की जानी चाहिए। समिति का दावा था कि इससे रेल हादसों में 60 फीसदी की कमी आ सकती है। इस रिपोर्ट को आए तीन से ज्यादा समय बीत चुका है। लेकिन न तब के और न अब की सरकार में इसको  लेकर गंभीरता दिखी। समिति की रिपोर्ट की कही कोई आता पता और न ही चर्चा सुनाई दे रही है। हालांकि पिछली बजट में सरकार ने रेल बजट में 5,400 मानव रहित क्रॉसिंग हटाने का संकल्प किया था। लेकिन उसके बाद एक और बजट भी आ गया हुआ क्या? अगले साल एक और बजट आ जाएगा। हादसे होते रहेंगे। सरकार की ओर से ऐसे आश्वासन मिलते हैं फिर सब कुछ वैसा के वैसा ही रहता है।
 एक अनुमान के तहत मानव रहित रेलवे क्रांसिंग की सुविधा समाप्त करने पर 30,646 करोड़ रुपए का खर्च आएगा। इसकी भरपाई पेट्रोल और डीजल पर उपकर के प्रतिशत के रूप में केंद्रीय सड़क निधि द्वारा किया जाता है। इसके बाद भी हालत जस के तस है। सरकार चाहे किसी भी दल की रही हो लेकिन इस समस्या को निपटने के लिए किसी में भी जबर्दस्त इच्छाशक्ति नहीं दिखी। ऐसे हादसे आए दिन देश के किसी ने किसी हिस्से में होते हैं। हादसे के बाद तत्कालीन जनाक्रोश तो दिखता है, लेकिन आंक्रोश की आग जल्द ही ठंड पड़ जाती है। बिना फाटक वाला रेलवे क्रांसिंग फिर से हादसे का इंतजार करता है।__________________

Sanjay-Swadesh-Manichhapar-Hathuwa.invc-news1परिचय – :

संजय स्वदेश

वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक

संजय स्वदेश दैनिक अखबार हरी भूमि में कार्यरत हैं

बिहार के गोपलगंज जिले के हथुआ के मूल निवासी। दसवी के बाद 1995 दिल्ली पढ़ने पहुंचे। 12वीं पास करने के बाद किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक स्नातकोत्तर। केंद्रीय हिंदी संस्थान के दिल्ली केंद्र से पत्रकारिता एवं अनुवाद में डिप्लोमा। अध्ययन काल से ही स्वतंत्र लेखन के साथ कैरियर की शुरुआत। आकाशवाणी के रिसर्च केंद्र में स्वतंत्र कार्य।

अमर उजाला में प्रशिक्षु पत्रकार। सहारा समय, हिन्दुस्तान, नवभारत टाईम्स समेत देश के कई समाचार पत्रों में एक हजार से ज्यादा फीचर लेख प्रकाशित। दिल्ली से प्रकाशित दैनिक महामेधा से नौकरी। दैनिक भास्कर-नागपुर, दैनिक 1857- नागपुर, दैनिक नवज्योति-कोटा, हरिभूमि-रायपुर के साथ कार्य अनुभव। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के अलावा विभिन्न वेबसाइटों के लिए सक्रिय लेखन कार्य जारी…

सम्पर्क – : मोबाइल-09691578252 , ई मेल – : sanjayinmedia@gmail.com

*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his  own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

 

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