क्या बदल रहे हैं आमिर खान और मोहन भागवत

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– संजय रोकड़े –

aamir-khan-mohan-bhagvatकुछ तुम बदलों कुछ हम बदले। वैसे भी मानव स्वभाव समय -समय पर बदलते रहने का ही है। जो बदलते नही है वह परिवर्तन के वाहक नही होते है। वह विकासवादी नही होते है। जो झुकता है वही इंसान होता है, अक्खड़ और खड़े टेक रहना तो निर्जीवता की पहचान है। जो निर्जीव है वह इंसान नही चलती फिरती जिंदा लाश है। देश के सबसे बड़े सामाजिक संगठन आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत और प्रयोगधर्मी कलाकार अमिर खान ने बीते दिनों एक दूसरे के प्रति सम्मान दिखा कर ये साबित कर दिया है कि वे दोनों जड़ नही है। इनने इस बात का भी पक्का सबूत दिया कि वे चलती फिरती जिंदा लाश भी नही है, बल्कि बदलाव और परिवर्तन के वाहक और पेरोकार है। बता दे कि इन दोनों ने इस बात का परिचय भारत रत्न मशहूर गायिका लता मंगेशकर के पिता मास्टर दीनानाथ मंगेशकर की स्मृति में आयोजित सम्मान समारोह में दिया। हम सब ये अच्छे से जानते है कि आरएसएस यानि राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ फिल्म और फैशन की बहुत समर्थक नहीं रही है। कई बार वह इसके विरोध में भी खड़ी होती दिखाई दी है। ऐसे में संघ प्रमुख मोहन भागवत का सिनेमा के अवार्ड फंक्शन में जाना और कभी अपना विरोधी माने जाने वाले लोगों को स्वंय के हाथों से सम्मान करना यह साबित करता है कि वे बदलाव के परिचायक है। इधर अमिर खान भी अवॉर्ड समारोह से दूर रहने वाले कलाकारों की श्रेणी में शुमार है। आमिर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हाथों सम्मान लेने से मना नहीं कर सके। वे सौलह साल बाद किसी अवॉर्ड फंक्शन में पहुंचे थे।

वे सार्वजनिक जीवन में हमेशा इससे बचते रहे है लेकिन इस मौके पर वे भी खुद को मोहन भागवत के हाथों सम्मान पाने से रोक नही सके। आमतौर पर इन दोनों को इस तरह के आयोजनों में कम ही देखा जाता है। इसी कारण यह समारोह खासी चर्चा का विषय भी बन गया। आखिर क्यों मोहन भागवत ने असहिष्णुतापर बयान देने के बाद विवादों में घिरे वॉलीवुड एक्टर आमिर खान को अपने हाथों से सम्मानित किया। हालाकि इस समारोह की सबसे आकर्षित करने वाली बात यह भी रही कि अवॉर्ड समारोह से दूर रहने वाले 53 साल के आमिर खान खुद इस अवॉर्ड को लेने पहुंचे थे। आमिर को 75 वें दीनानाथ मंगेश्कर अवॉर्ड सेरेमनी में उनकी दंगल फिल्म के लिए विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया। दंगल साल 2016 की सबसे बड़ी फिल्मों में से एक रही थी। बता दे कि अवॉर्ड फंक्शन में मोहन के हाथों आमिर को अवार्ड लेते देख कई लोग हैरान-परेशान से थे। इस परेशानी का सबब आमिर का वह असहिष्णुता वाला बयान रहा जिसे लेकर कुछ समय पहले संघ और उससे जुड़े संगठन बहुत नाराज थे। आमिर खान ने साल 2015 में कहा था कि देश में असहिष्णुता बढ़ रही है। इस बयान के बाद बड़ी संख्या में लोगों ने उनकी फिल्म का बहिष्कार किया था और कुछ लोगों ने तो उन्हें पाकिस्तान चले जाने के कह दिया था इसमें आरएसएस के लोग भी शामिल थे। बहरहाल, जब मोहन भागवत के हाथों आमिर खान को अवार्ड मिल रहा था तब उस वक्त पूरा नजारा बदला-बदला सा दिखाई दे रहा था। खुद आमिर भी कभी अवार्ड समारोह में नहीं जाते है पर यहां आकर उन्होंने अपने पिछले सारे रिकार्ड को तोड़ा दिया। आमिर- मोहन ने भी कभी ये नहीं सोचा होगा कि ऐसा दिन भी आएगा। आखिर इन दोनों का एक साथ इस अवार्ड समारोह में मौजूद होने की खास वजह क्या थी, यह सवाल अभी भी आमजन के बीच खड़ा है। आखिर क्यों ये एक-दूसरे की मौजूदगी को नकारने का साहस नही दिखा पाए। इस बात को जानने की शुरूआत सबसे पहले हम मोहन भागवत से करते है।

भागवत इस अवार्ड सेरेमनी में खुद को आने से इसलिए नही रोक पाए कि वे जिस आदमी की स्मृति में पहुंचे थे वे प्रसिद्ध गायिका लता मंगेश्कर के पिता नही बल्कि संघ के एक स्वंयसेवक की स्मृति समारोह में पहुंचे थे। हां दीनानाथ मंगेशकर हिन्दू महासभा और संघ के स्वंयसेवक थे। हालाकि लता मंगेशकर ने अपने पिता और संघ के बीच संबंधों को बता कर यह जता दिया कि संघ प्रमुख के आने की वजह पूरी फिल्मी नहीं थी। ऐसे में भागवत का इस समारोह में नही जाने का कोई कारण ही नही बनता था। इसके अलावा लोगों के बीच मोहन के इस समारोह में पहुंचने के चर्चा का दूसरा कारण यह भी रहा है कि अब वे अपनी कट्टरवादी छवि से उभरना चाहते है। वे अपनी छवि को उदारवादी नेता के रूप में स्थापित करना चाहते है। वैसे भी पिछले कुछ समय से संघ प्रमुख को उदारवादी सोच को बढ़ावा देने वाला माना जाने लगा है। इसके प्रमाण के रूप में संघ के हर क्षेत्र में विस्तार का हवाला दिया जाता है। दीनानाथ मंगेश्कर के स्मृति समारोह में पहुंच कर आमिर खान को अवार्ड देना भी ये साबित करता है कि संघ प्रमुख भागवत कुछ बदल रहे हैं। यही नहीं भागवत की अपनी नीतियों के कारण ही संघ आज पूरे देश में अपनी पहचान स्थापित कर रहा है। आज जो संघ चुनावी तैयारियों से लेकर चुनाव में प्रचार प्रसार तक में मजबूती से भाजपा का साथ देता दिख रहा है उसमें भागवत की ही रणनीति शामिल है। इस रणनीति के कारण ही आज भाजपा को पूरे देश में काम करने और अपने प्रसार का मौका मिला सका है। आज के राजनीतिक दौर में एक ही दल के नेता एक-दूसरे को फूटी आंख नही सुहाते है वहीं आरएसएस ने राजनीति में किसी से परहेज न रखने की नीति को अपना कर पूरे देश में भाजपा का विस्तार किया। भागवत की रीति-नीतियों के चलते ही भाजपा ने अलग-अलग दलों से तालमेल किया और बाहरी नेताओं को पार्टी में शामिल कर सत्ता हासिल की। यह काम सबके बस का नही है। आज जहां दूसरे दलों के संगठन टूट रहे है वहीं  संघ अपने मजबूत संगठन की ढ़ाल लेकर भाजपा के साथ खड़ा है।

यह मोहन की बदलती उदारवादी छवि का ही कमाल है। बहरहाल हमने मोहन के समारोह में पहुंचने का राज तो जान लिया पर आमिर की ऐसी क्या मजबूरी बनी कि वे भी इसमें पहुंचने से खुद को रोक नही पाए। आमिर के इस स्मृति समारोह में पहुंचने का सबसे बड़ा कारण अपनी छवि को एक सर्वमान्य व सहज व्यक्ति के रूप में बनाना रहा है। अमिर इस समारोह में नही पहुंच कर अपने प्रशंसकों के बीच यह संदेश भी नही देना चाहते थे कि वे एक घमंड़ी किस्म के अभिनेता है। वैसे भी उनको लता मंगेश्कर का आग्रह इस समारोह में नही पहुंचने की इजाजत नही दे पा रहा था। आज भी फिल्मी इंडस्ट्रीज में लता का एक अलग ही सम्मान है। उनके बुलावे को टालना मतलब खुद का अपमान करने जैसा है। इन सबके इतर आमिर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हाथों सम्मान लेने से खुद को रोक नही सके। उनने ऐसा करके आरएसएस और खुद के बीच पनपे विवाद को विराम देना भी चाहा। ऐसी स्थिति में अगर वे अवार्ड सेरेमनी में नही पहुंचते तो उनके विरोधी और मीडिय़ा तरह-तरह के कयास लगाते। तमाम तरह के जायज नाजायज सवाल खड़ा करते। इससे अच्छा तो यही था कि आमिर को इसमें पहुंच कर सबकी बोलती बंद कर देना चाहिए था और उनने यही किया।

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sajnay-rokdeपरिचय – :

संजय रोकड़े

पत्रकार ,लेखक व् सामाजिक चिन्तक

संपर्क – :
09827277518 , 103, देवेन्द्र नगर अन्नपुर्णा रोड़ इंदौर

लेखक पत्रकारिता जगत से सरोकार रखने वाली पत्रिका मीडिय़ा रिलेशन का संपादन करते है और सम-सामयिक मुद्दों पर कलम भी चलाते है।

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his  own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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