VIP संस्कृति बनाम आवाम की मूलभूत सुविधाएं

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– तनवीर जाफरी –

रेल मंत्री पीयूष गोयल ने पिछले दिनों जहां रेल विभाग से वीआईपी संस्कृति को समाप्त करने के उद्देश्य से कई महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए वहीं गत् माह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा उनके जापानी समकक्ष ने गुजरात के अहमदाबाद महानगर में संयुक्त रूप से भारत में बुलेट ट्रेन चलाए जाने की एक अत्यंत महत्वपूर्ण व खर्चीली योजना की आधारशिला रखी। प्रधानमंत्री ने इस अति महत्वपूर्ण परियोजना की इन शब्दों में प्रशंसा की है कि इसमें सुविधा भी है,सुरक्षा भी,रोज़गार भी है और रफ्तार भी। वह इसे लोक हितैषी भी बता रहे हैं और इको फें्रडली भी। प्रधानमंत्री के अनुसार इस परियोजना से तेज़ प्रगति के रास्ते खुलेंगे तथा देश को नई रफ्तार मिलेगी। वहीं दूसरी ओर जहां भारत के पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम इस परियोजना को नोटबंदी जैसी असफल तथा अति हानिकारक बता रहे हैं वहीं राज ठाकरे ने यह चेतावनी भी दे दी है कि इस योजना से संबंधित एक ईंट भी वे महाराष्ट्र सीमा के भीतर नहीं रखने देंगे।

बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस परियोजना का शिलान्यास तो ज़रूर किया है परंतु इतनी बड़ी परियोजना का खाका मोदी के सत्ता में आने के मात्र तीन वर्षों के भीतर ही तैयार नहीं हुआ बल्कि इसकी शुरआत तब हुई थी जब रेलमंत्री के रूप में लालू प्रसाद यादव 2009 में जनवरी के दूसरे सप्ताह में अपने सात दिवसीय जापान दौरे पर गए हुए थे। उनके साथ रेलवे बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष के सी जेना तथा रेल मंत्रालय के दर्जनों वरिष्ठ अधिकारियों की एक टीम जापान इसीलिए गई थी कि वे लोग वहां चल रही तीव्रगामी रेल पर यात्रा कर उसके तकनीकी पहलुओं को समझ सकें। उसी समय लालू यादव ने जापान व भारत दोनों ही जगह अपनी यह इच्छा व्यक्त की थी कि वे भारत में जापानी तकनीक पर आधारित बुलेट ट्रेन लाना चाहते हैं। लालू यादव के रेल मंत्री रहते सबसे पहले जिस रूट पर इस परियोजना के शुरु होने की संभावना जताई गई तथा जिस रूट पर सर्वेक्षण का काम शुरु हुआ था वह था दिल्ली-चंडीगढ़ के मध्य का देश का सबसे व्यस्त मार्ग। ज़ाहिर है लालू यादव द्वारा शुरु की गई उसी बातचीत को आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री ने बुलेट ट्रेन को जापान से आने का न्यौता तो ज़रूर दे दिया है। परंतु प्रस्तावित रूट को बदलकर चंडीगढ़-दिल्ली-चंडीगढ़ के बजाए अहमदाबाद-मुंबई-अहमदाबाद कर दिया गया। हालांकि मोदी के आलोचक उनसे यह ज़रूर पूछ रहे हैं कि मुंबई-अहमदाबाद के मध्य इतनी खर्चीली परियोजना शुरु करने की ज़रूरत आिखर क्या थी। अहमदाबाद-मुंबई के मध्य जितने साधन आने-जाने के हैं वही यात्रियों के लिए पर्याप्त हैं। परंतु प्रधानमंत्री का गृह राज्य होने के कारण ही अहमदाबाद का चुनाव किया गया है।

इस संदर्भ में इस बात का जि़क्र करना भी बहुत ज़रूरी है कि आज जब देश के विभिन्न राज्यों में यहां तक कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मैट्रो रेल चलाकर स्थानीय दैनिक यात्रियों को सुविधा देने वाली योजनाएं शुरु हो चुकी हैं ऐसे में क्या अहमदाबाद में यह परियोजना शुरु नहीं की जा सकती थी। जबकि नरेंद्र मोदी इतने लंबे समय तक राज्य के मुख्यमंत्री बने रहे? बहरहाल बुलेट ट्रेन जैसी अति महत्वपूर्ण योजना का स्वागत किया जाना चाहिए परंतु एक ऐसी परियोजना जिससे केवल अमीर या व्यापारी वर्ग के यात्री लाभ उठा सकेंगे उसको शुरु करने से पहले या उसके साथ-साथ क्या यह ज़रूरी नहीं कि भारतीय रेल पर यात्रा करने वाले लगभग एक करोड़ साधारण व्यक्ति जिन दैनिक परेशानियों का आए दिन सामना करते हैं उनका भी समाधान किया जाए? कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि पिछले ही दिनों जिस समय इस तीव्रगामी रेल परियोजना के शुरु होने की खबरें रोज़ाना अखबारों की सुिर्खयों में थीं उन्हीं दिनों लगभग प्रतिदिन किसी न किसी रेल के पटरी से उतरने का समाचार सुनाई दे रहा था। हद तो यह है कि एक दिन 24 घंटे के भीतर देश के अलग-अलग हिस्सों से दो ऐसी घटनाएं होने की खबरें मिलीं।

इस प्रकार के हादसे होने के बाद रेल अधिकारी भविष्य में ऐसे हादसे की पुनरावृति न होने पाए इससे जूझने के बजाए अपना पूरा ध्यान इस बात पर केंद्रित कर देते हैं कि इस हादसे की जि़म्मेदारी किसके सिर पर मढ़ दी जाए और किसे बलि का बकरा बना कर जनता के मध्य पैदा होने वाले गुस्से को ठंडा कर दिया जाए। आज जिस रेल ट्रैक पर देश की अत्यंत महत्वपूर्ण गाडिय़ां जैसे स्वर्ण शताब्दिी,शताब्दी,संपर्क क्रांति,जनशताब्दी,राजधानी, दुरंतो जैसी तीव्रगामी रेल गाडिय़ां दौड़ रही हैं उन रेल ट्रैक का कोई वारिस नहीं हैं। सुनसान व असुरक्षित क्षेत्रों से गुज़रने वाले यह ट्रैक अपने आसपास की आबादी वालों के लिए कूड़ा घर बने हुए हैं। कूड़ा-करकट के अतिरिक्त मरे हुए जानवर तक लोग इन्हीं ट्रेक पर फेंक दिया करते हैं। इसका कारण यही है कि जहां लोगों को रेल ट्रैक की रक्षा करने की तौफीक व सलाहियत नहीं है वहीं रेलवे ने भी इसे संभवत: सुरक्षा योग्य न समझ कर इसी प्रकार लावारिस व खुला छोड़ रखा है। बिना फाटक की क्रासिंग पर अक्सर होने वाले दर्दनाक हादसे इस बात का सुबूत हैं।

भारतीय रेल की कंप्यूटरीकृत पूछताछ व समय सारिणी प्रणाली दुनिया के गिने-चुने देशों में पाई जाने वाली उच्चस्तरीय प्रणाली है। इस प्रणाली को पूरी तरह अचूक होना चाहिए। और निश्चित रूप से शुरुआत में यह प्रणाली भरोसेमंद थी भी। परंतु अब लगता है कि इस प्रणाली को अपडेट करने वालों ने रेल सिग्रलिंग प्रणाली से जुड़े लोगों से तालमेल कर इसमें भी गुमराह करने के नए आयाम तलाश कर लिए हैं। यही वजह है कि जहां अधिकांशत: यह कंप्यूटरीकृत पूछताछ प्रणाली घर बैठे किसी भी व्यक्ति को देश की किसी भी ट्रेन की चलने की सही स्थिति बता देती है वहीं कई बार ऐसा भी देखा गया है कि यह प्रणाली ट्रेन स्टेशन पर पहुंचने से पहले ही उसे पहुंचा हुआ दिखाने लगती है तो कई बार तो ऐसा भी होता है कि रेल अभी निर्धारित स्टेशन पर पहुंचती भी नहीं पर यह उसे उसी सटेशन से प्रस्थान किया हुआ बता देती है। आऊटर पर खड़ी ट्रेन को स्टेशन पर पहुंचा बता देती है तो कई बार पहुंची हुई ट्रेन को बहुत पीछे दिखाने लगती है। ज़ाहिर है यदि किसी यात्री के साथ दो-चार बार ऐसा ही होने लगे तो उसका विश्वास इस उच्चस्तरीय कंप्यूटरीकृत पूछताछ प्रणाली से उठ जाना स्वाभाविक है।

यदि कुछ प्रमुख रेलगाडिय़ों जिन पर कि धनाढ्य लोग यात्रा करते हैं शायद उन्हें छोडक़र देश की अधिकांश रेलगाडिय़ों में वातानुकूलित श्रेणी में मिलने वाले बेड रोल इस्तेमाल किए हुए,मैले-कुचैले तथा फटे-पुराने होते हैं। यह शिकायतें अब तक लाखों बार रेल मंत्रालय के समक्ष रखी जा चुकी हैं। परंतु रेल विभाग या तो इस व्यवस्था से जुड़े ठेकेदारों पर नियंत्रण नहीं कर पा रहा या फिर मिलीभगत होने के कारण ठेकेदार यात्रियों की इस शिकायत की परवाह नहीं करते। स्टेशन पर गाय,सांड़,कुत्ते आदि का बेलगाम घूमना-फिरना तो आम बात है। बिना टिकट रेल यात्रा करना खासतौर पर भगवाधारी बाबा रूपी निठल्ले लोगों का ट्रेन को अपनी पैतृक संपत्ति समझना और रेलवे सटेशन को अपना घर समझना और अनेक बुरे कामों में उनका संलिप्त रहना यह सब देश के आम नागरिकों को भली-भांति मालूम है। लिहाज़ा बुलेट ट्रेन के खूबसूरत फसानों और वीआईपी संस्कृति को समाप्त किए जाने जैसी रेल मंत्री की लोक लुभावन घोषणाओं के बीच सरकार को भारतीय रेल से संबंधित बुनियादी सुविधाओं से मुंह नहीं फेरना चाहिए।

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 About the Author

 Tanveer Jafri

Columnist and Author

 Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

 He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

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