डॉ डीपी शर्मा के समर्थन में अमेरिकी सीनेटर क्रिस वैन होलीन

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आई एन वी सी न्यूज़
नई  दिल्ली ,

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन को दिए जाने वाली आर्थिक सहायता में कटौती के मुद्दे पर अंतरराष्ट्रीय बहस में भाग लेते हुए राजाखेड़ा निवासी डॉ डीपी शर्मा ने अमेरिका के निर्णय की आलोचना करते हुए कहा कि माना कि कोई संस्था किसी देश का अप्रमाणिक समर्थन करने में लिप्त पाई जाए तब भी उस संस्था को दिया जाना आर्थिक सहयोग रोकना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। आज पूरी दुनिया कोरोनावायरस वैक्सीन की आस लगाए बैठी है यदि हम दुनिया के विकसित देशों यानी ओईसीडी समूह के देशों को छोड़ दें तो दुनिया के अधिकांश विकासशील देशों की आर्थिक हालत इतनी खस्ता हो चुकी है कि वह हर नागरिक को वैक्सीन उपलब्ध कराने में सक्षम नहीं है। इन हालातों में यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हुआ तो यह महामारी न केवल भयावह रूप धारण कर लेगी बल्कि गरीब देशों के गरीब नागरिकों को मौत के अंधे कुएं में धकेल देगी । स्वच्छ भारत मिशन के राष्ट्रीय ब्रांड एंबेसडर एवं यूनाइटेड नेशंस की संस्था आईएलओ के अंतरराष्ट्रीय सूचना तकनीकी परामर्शक डॉ डीपी शर्मा  ने कहा कि यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन से जुड़े अधिकारियों ने किसी देश का अप्रत्यक्ष समर्थन करते हुए गलतियां भी की हैं तो भी जब तक आरोप सिद्ध नहीं हो जाते या जांच रिपोर्ट नहीं आ जाती तब तक इस तरह का निर्णय किसी भी दृष्टि से उचित नहीं ठहराया जा सकता। विश्व स्वास्थ्य संगठन की सेवाओं पर दुनिया के नागरिकों का अधिकार है। डॉ शर्मा ने सवाल किया कि क्या इन अधिकारों से मानवता को वंचित करना अमेरिका जैसे लोकतांत्रिक देश का एक और अपराध नहीं है? दंड देना है तो उन अधिकारियों को दिया जाना चाहिए जो इस अप्रमाणित अपराध में लिप्त हैं । पूरी संस्था और उसकी सेवाओं की प्रतीक्षा में मौत से जूझ रही मानवता को दंडित करना किसी भी दृष्टि से न तो तर्कसंगत है और ना ही न्याय संगत।

डॉ डीपी शर्मा का समर्थन करते हुए अमेरिकी सीनेटर “क्रिस वैन होलीन’   ने कहां कि आज दुनिया के सभी विषय विशेषज्ञ एवं यूनाइटेड नेशंस को सपोर्ट करने वाले प्रोफेशनल्स इस बात से लेकर चिंतित हैं कि यह  आरोप-प्रत्यारोप का दौर लंबे समय तक चलता रहा तो यूनाइटेड नेशंस एवं उससे जुड़ी हुई संस्थाएं कमजोर होकर अपनी स्थापना के महत्व को खो देंंगी। क्रिश वैन होलीन ने कहा कि मैं डॉ शर्मा की बात से सहमत हूं और इस संस्था से हटने के राष्ट्रपति के फैसले का कड़ा विरोध करता हूं। जैसा कि आप जानते हैं, डब्ल्यूएचओ एक वैश्विक स्वास्थ्य संगठन है जो  इबोला चेचक मलेरिया एवं कोरोना जैसी घातक बीमारियों के प्रकोप के प्रसार को रोकने में पूरी दुनिया को मदद करता है। ब्रिसबेन होलीन ने आगे कहा कि  संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य के रूप में,  अमेरिका के साथ काम करने और संयुक्त राष्ट्र संगठनों का समर्थन करने के लिए हमारी एक विशेष जिम्मेदारी है। मैं यह सुनिश्चित करने की वकालत करता रहूंगा कि डब्ल्यूएचओ के पास एक प्रभावी वैश्विक प्रतिक्रिया के समन्वय के लिए , संसाधन और स्वतंत्रता है, जिसको नुकसान पहुंचाना तर्कसंगत नहीं।

ज्ञात रहे कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को फंडिंग रोकने के फैसले की दुनिया भर में आलोचना हो रही है। अमेरिका द्वारा फंडिंग रोकने की कवायद इसलिए की क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोनोवायरस प्रकोप के जवाब में “अपने मूल कर्तव्य में विफल” रहा है

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी पर चीन में गलत तरीके से वायरस फैलाने और इसे जवाबदेह ठहराये जाने कि दुनिया भर में आलोचना हो रही है। यूं तो राष्ट्रपति ट्रंप चुनाव हार गए हैं परंतु उनके निर्णय अब विवाद की नई नजीर पेश कर रहे हैं। विवादों की इस श्रंखला में डब्ल्यूएचओ से अमेरिका द्वारा आर्थिक सहयोग की राशि रोकने के मुद्दे पर दुनिया में बहस छिड़ी हुई है कि आखिर यदि कोई अंतरराष्ट्रीय संस्था किसी देश का समर्थन या विरोध करती है तो उसकी फंडिंग रोकना या उसकी सदस्यता से बाहर निकलना किसी देश के लिए कितना तार्किक, लोकतांत्रिक एवं भूमंडलीकृत पंचायत में व्यवहारिक है, वह भी उस वक्त जब पूरी दुनिया महामारी कोरोना से अस्त-व्यस्त त्रस्त है।

ज्ञात रहे कि अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2018-19 के बजट का 15% यानी $ 400 मिलियन दान किया था। सन 2020 में यह राशि विश्व स्वास्थ्य संगठन को नहीं मिली है और उसकी अर्थव्यवस्था चरमरा रही है। डब्ल्यूएचओ ने कोरोनो वायरस महामारी से लड़ने में मदद के लिए मार्च में $ 675 मिलियन यूएस डॉलर के लिए एक अपील शुरू की थी और कम से कम $ 1 बिलियन यूएस डॉलर के लिए नए सिरे से अपील करने की योजना बनाई थी।

माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक और दुनिया के जाने-माने दानदाता बिल गेट्स ने भी ट्विटर पर कहा था कि “विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए वित्त पोषण न करना बहुत खतरनाक खेल है ।”

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