बारहवीं कहानी -: धुंध

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लेखक  म्रदुल कपिल  कि कृति ” चीनी कितने चम्मच  ”  पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l

-चीनी कितने चम्मच पुस्तक की बारहवीं कहानी –

____ धुंध ______

mradul-kapil-story-by-mradul-kapil-articles-by-mradul-kapilmradul-kapil-invc-news1111नीलिमा  ने अपनी डेस्क का काम निपटा कर घड़ी की तरह देखा 3 बजने वाले थे , उसे बहुत तेज़ भूख लग रही थी , किसी बात पर नाराज हो कर आज वो अपना लंच बॉक्स नही लायी थी ,उसे पति के हाथ कि बनायीं मैगी की याद आ रही थी ,अनजाने में ही उसने अपने पति का नंबर डायल कर दिया ,
” मुझे भूख लगी है ”
” तो कुछ खा लो ”
” नही मुझे मैगी खानी वो भी तुम्हरे हाथ की ”
” लेकिन मै तो एक मीटिंग में जा रहा हू …? ”
” मुझे कुछ नही पता , मुझे मैगी खानी है वो भी तुम्हरे हाथ की , और वो भी आधे घंटे के अंदर , देर हुयी तो मै भूख से मर जाउगी बाय “

नीलिमा को खुद नही पता था की आज कैसे उसके अंदर से 8 साल पुरानी नेहा जाग उठी थी , नीलिमा को पता था की रविन्द्र नही आ पायेगे … , नीलिमा के दिल और दिमाग में बहुत सी पुरानी यादो ने एक साथ धावा बोल दिया था ,कैसे 6 सालो के प्यार , इंतिजार और घर वालो के विरोध के बाद वो शादी कर पाये थे , उसे याद आ रहा था की कैसे वो सुबह सुबह 5 किलोमीटर स्कूटी चला कर रविन्द्र को जगाने आती थी , उसे याद आ रहा था की पूरी पूरी रात बाते करने के बाद भी उनकी बाते नही खत्म होती थी , उसे याद आ रहा था की कैसे उसकी हर सही गलत बात को रविन्द्र ने माना था , उन दोनों का अंश उनके आँगन में था ,
नीलिमा जानती थी की समय के साथ साथ उनकी जिम्मेदारिया बढ़ गयी है , लेकिन वो समझ नही पा रही थी की क्या इन जिम्मेदारियों के बोझ तले उसका प्यार भी दब गया है ? क्यों कभी कभी साथ रहते रहते वो अजनबी बन जाते है ? क्यों उनके पास बात करने के लिए कोई बात नही होती है ? क्यों लगता है की जिंदगी रुक सी गयी है ? क्यों अब एक दूसरी की खूबियों की जगह वो एक दूसरे की बुराइया देखने लगे है ? नीलिमा खुद के सवालो में खुद को घिरा पा रही थी .

तभी उसे अपनी डेस्क के पास कोई हलचल सुनाइए दी , उसने सर उठा कर देखा समने रविन्द्र हाथ में मैगी का टिफिन लिए खड़े थे ?
अवाक् सी नीलिमा शायद बोलना भूल गयी थी , बड़ी मुश्किल से उसे मुँह से आवाज निकली
” …. तुम सच में ?’
” हाँ देख लो तुम्हे कॉल किये हुए अभी 28 मिनट ही हुए है ” रविन्द्र ने मुस्कुराते हुए बोला
‘ …. लेकिन तू तो मीटिंग में ?’
” मीटिंग के पीछे मै अपनी एकलौती बीवी को भूखे तो नही मरने दे सकता न , मीटिंग छोड़ दी , रास्ते में दोस्त के घर पर रुक कर तुम्हरे लिए मैगी बनायीं , और सीधे तुम्हरे पास ”
” तुम अपनी मीटिंग छोड़ कर , 12 किमोमीटर बाइक चला कर सिर्फ मुझे मैगी खिलाने आये हो ”
जवाब में रविन्द्र सिर्फ मुस्करा दिया।
किसी की परवाह न करते हुए नीलिमा सब के सामने रविन्द्र के गले लग गयी , उसे सारे सवालो का जवाब उसे मिल गया था , वो जान गयी थी की उनके रिश्ते में एक धुंध जम गयी थी , जिसके नीचे उनका वही पुरना चमकदार प्यार छुपा था .

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mradul kapil,writer mradul kapil,mradul kapil writer, author mradul kapil,mradul kapil invc news , mradul kapil story tellerपरिचय – :

म्रदुल कपिल

लेखक व् विचारक

18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब  दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां  देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया .  ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी  हाऊसिंग  कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और  अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l

पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया  है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक  के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची  ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का  सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो ,  वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक  आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार  भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको  अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका  हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी  डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती  जिंदगी का .

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