न्यू इंडिया का सपना और ज़हरीले खाद्य पदार्थों का धंधा ?

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– निर्मल रानी –    

इसमें कोई संदेह नहीं कि खान-पान को लेकर आम आदमी का रुझान शाकाहार की ओर बढ़ता जा रहा है। स्वास्थय के प्रति सजग व्यक्ति दूध,फल व हरी सब्जि़यों की ओर आकर्षित हो रहा है। बाज़ार में भी एक से बढक़र एक आकर्षक व लुभावने फल व सब्जि़यां बिकते दिखाई दे रहे हैं। इतने सुंदर व आकर्षक तथा सुडौल फल व सब्जि़यां बाज़ार में पहले दिखाई नहीं देते थे। इसी प्रकार देश में आप कहीं भी जब और जितना चाहे दूध,दही,पनीर,देसी घी तथा खोया आदि खरीद सकते हैं। यह सभी खाद्य सामग्रियां सरेआम बाज़ार में दुकानों व रेहडिय़ों पर तथा डेयरी में हर समय उपलब्ध हैं। किसी भी शादी-विवाह अथवा दूसरे बड़े से बड़े आयोजनों में यदि आप चाहें तो कहीं भी गांव,कस्बे या शहर में टनों के हिसाब से आपको प्रत्येक वस्तु हासिल हो सकती है। होना तो यह चाहिए था कि जिस प्रकार की हरी व सुंदर सब्जि़यां व आकर्षक फल व दूध,घी व खोया बाज़ार में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं और हमारा समाज इन खाद्य सामग्रियों का एक नियमित उपभोक्ता भी है, ऐसे में देश के लोगों को हृष्ट-पुष्ट व पूरी तरह से स्वस्थ व निरोगी होना चाहिए था। परंतु वास्तविकता तो यही है कि इतने आकर्षक खान-पान के बाद भी आम लोगों में नई-नई बीमारियां बढ़ती जा रही हैं। छोटे व कम उम्र के बच्चों को ऐसे-ऐसे रोग हो रहे हैं जो अल्पायु में होते हुए सुने ही नहीं गए। आंखों की रौशनी से लेकर हृदय रोग व कैंसर तथा पीलिया जैसी बीमारियां कम उम्र के लोगों को होने लगी हैं। तरह-तरह के चर्म रोग होते देखे जा रहे हैं। आिखर क्या वजह है कि हमारा समाज ‘अच्छे खान-पान’ के बावजूद ऐसी बीमारियों का शिकार हो रहा है और शाकाहार से सेहतमंद होने के बजाए वह बीमारियों को क्यों गले लगा रहा है?

दरअसल इसके पीछे व्यवसायिकता की वह मानसिकता जि़म्मेदार है जो कम समय में अधिक पैसे कमाना चाहती है तथा रातों-रात धनवान बनने की िफराक में लगी रहती है। और इसी के साथ-साथ ऐसी खतरनाक व्यवसायिक मानसिकता रखने वाले लोगों को उन सरकारी विभागों का संरक्षण हासिल रहता है जिनका काम ऐसे खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता पर लगातार निगरानी बनाए रखना है। परंतु भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी ने जब ज़हरीले खाद्य पदार्थों की बिक्री पर नज़र रखने वाले विभाग की आंखों पर ही पट्टी बांध दी है ऐसे में भला इनके ज़हरीले खाद्य पदार्थों के बढ़ते साम्राज्य को रोक ही कौन सकता है? इस पूरे प्रकरण में एक सबसे आश्चर्यजनक बात यह भी है कि यदि कोई सब्ज़ीफरोश ऐसी सब्जि़यां बेचता है जिसे प्रतिबंधित ऑक्सीटोक्सिन इंजेक्शन के बल पर सुंदर,गाढ़ा हरा व सुडौल बनाया गया है तो वही सब्ज़ीफरोश अपने घर में इस्तेमाल करने के लिए जो फल या दूध खरीद कर ले जाता है उसमें भी उसे मिलावट या इंजेक्शन का प्रयोग ज़रूर मिलता है। हद तो यह है कि जो रिश्वतखोर,भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी अपनी जेबें गर्म करने के चक्कर में इस प्रकार की धड़ल्ले से बिकने वाली ज़हरीली खाद्य सामग्रियों की बिक्री से अपनी नज़रें फेरे रहते हैं वह सरकारी कर्मचारी भी अपने घर-परिवार के लिए यही फल व सब्जि़यां तथा दूध आदि ले जाने के लिए बाध्य हैं। गोया रिश्वत के लोभ में अंधे यह लोग इतना भी नहीं सोच पाते कि वे चंद पैसों की लालच में न केवल दूसरे बल्कि अपने परिवार के लिए भी ज़हर तथा बीमारियां खरीदकर ले जा रहे हैं।

ऑक्सीटोक्सिन का अधिकृत उपयोग प्रसव के दौरान गर्भवती महिलाओं पर किया जाता है। परंतु आज देश में इसका बड़े पैमाने पर गैर कानूनी इस्तेमाल किया जा रहा है। गाय-भैंसों से अधिक दूध प्राप्त करने की लालच में इसके इंजेक्शन इन जानवरों को लगा दिए जाते हैं। इससे जानवर न केवल अधिक बल्कि जल्दी से जल्दी दूध देने लगते हैं। इसी प्रकार फलों व सब्जि़यों को पकाने व इन्हें आकार में बड़ा व सुडौल करने के लिए भी औक्सीटोक्सिन इस्तेमाल किया जाता है। आपको यह जानकर भी आश्चर्य होगा कि अब ऑक्सीटोक्सिन इंजेक्शन भी असली के बजाए नकली तैयार होने लगा है यानी ज़हर भी असली नहीं बल्कि नकली तैयार हो रहा है। अब यह नकली इंजक्शन कितना घातक व हानिकारक होगा इसका अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है। अभी कुछ ही दिनों पूर्व राजस्थान में जयपुर-जोधपुर व अजमेर में कई स्थानों पर एक साथ छापे मारे गए। जयपुर के अर्जुन नगर क्षेत्र में ऑक्सिटोक्सिन की बिना लेबल लगी 267 बोतलें ज़ब्त की गईं जबकि जोधपुर में ऐसी ही 76 बोतलें पकड़ी गईं। जयपुर के ही दुर्गानगर इलाके में ऑक्सिटोक्सिन बनाने व इसकी पैकिंग करने का अड्डा पकड़ा गया। गौरतलब है कि सरकार ने ऑक्सीटोक्सिन इंजेक्शन की बिक्री प्रतिबंधित कर रखी है। इसीलिए इसे बेचना अनाधिकृत है और यह एक बड़ा अपराध है। इसकी बिक्री करने वाले को दो वर्ष से लेकर उम्र कैद तक की सज़ा भी हो सकती है।

परंतु इतने कठोर कानूनी प्रावधानों के बावजूद इस तरह की सामग्रियां सडक़ों पर बाज़ारों में व गली-कूचों में सरेआम बिक रही हैं। क्या आम आदमी,क्या गरीब,क्या अमीर, क्या कर्मचारी तो क्या अधिकारी,क्या नेता तो क्या अभिनेता, क्या नीति निर्माता तो क्या कानून का रखवाला सभी इन्हीं खाद्य पदार्थों पर लगभग आश्रित हो चुके हैं। हद तो यह है कि यदि आप किसी फल या सब्ज़ी विक्रेता से या दूध,घी-पनीर आदि बेचने वाले से उसके द्वारा बेचे जा रहे किसी सामान की गुणवत्ता या उसकी वास्तविकता पर कोई संदेह जताना चाहें या उससे इस प्रकार के कोई सवाल-जवाब करना चाहें तो वह दुकानदार लडऩे-झगडऩे को भी तैयार हो जाता है। कई दुकानदार तो यहां तक कहते हैं कि जाओ जो करते बने कर लो। तो कई दुकानदार यह कहकर बहस में पडऩे से कतराते हैं कि जो सामान मंडी में बिकने को आता है हम वही लाकर बेचते हैं। प्रत्येक साधारण व्यक्ति इस बात को भलीभांति स्वीकार कर रहा है कि आजकल बाज़ार में बिकने वाले इस प्रकार के खाद्य पदार्थ भले ही पहले से अधिक सुंदर व लुभावने क्यों न दिखाई देते हों परंतु न तो उनमें कोई स्वाद बाकी है न ही कोई खुश्बू बची है। इन चीज़ों के खाने-पीने में भी कोई कशिश या आकर्षण नहीं रह गया है। ज़ाहिर है ऐसे में यह चीज़ें फायदा पहुंचाने के बजाए नुकसान ही पहुंचाएंगी और पहुंचा रही हैं।

सवाल यह है कि जब शासन निरंकुश हो,सरकारी विभाग, दुकानदारों,मिलावटखोरों तथा नकली वस्तुओं के उत्पादकों के बीच एक बड़ा व खतरनाक नेटवर्क बन जाए ऐसे में आम लोगों को इस मुसीबत से निजात कैसे मिले? इसका सबसे आसान उपाय यही है कि संदेह होने पर ऐसे दुकानदारों का बहिष्कार किया जाए। और यदि हो सके तो संगठित रूप से इसका विरोध किया जाए। जहां तक हो सके स्वयं को ऐसी सामग्रियों के सेवन से दूर रखा जाए। यदि आपके घर में कच्ची ज़मीन उपलब्ध है या गमले आदि की व्यवस्था हो सकती हो तो घरों में ही अधिक से अधिक सब्जि़यां व फल लगाने व उगाने की व्यवस्था करें। सहकारिता के आधार पर गली-मोहल्ले के कुछ लोग मिलकर किसी खाली पड़े प्लाट पर यही काम सामूहिक रूप से भी कर सकते हैं। मिलावटख़्ाोरों या मिलावटी व ज़हरीले सामान बेचने वालों के विरुद्ध निरंतर उच्चाधिकारियों से शिकायतें की जाएं। बार-बार समाचार पत्रों में ऐसे व्यवसायियों के नाम व उनके चित्र आदि प्रकाशित कर उनकी जनहानि पहुंचाने वाली हरकतों से लोगों को आगाह कराया जाए। अन्यथा हम बेवजह ‘न्यू इंडिया’ का ढोल पीटते रहेंगे और हमारी नाक के नीचे इसी प्रकार ज़हरीले खाद्य पदार्थों का व्यापार धड़ल्ले से होता रहेगा।

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परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 4003
E-mail : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.



 

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