सत्ता के संरक्षण में नफरत का व्यापार?

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  तनवीर जाफरी –

पिछले दिनों भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कर्नाट्क विधानसभा को संबोधित करते हुए जहां अन्य कई उपयोगी एवं ज्ञानवर्धक बातें कीं वहीं उन्होंने मैसूर की इस धरती पर शेर-ए-मैसूर टीपू सुल्तान को भी उनके शानदार व्यक्तित्व व बेशकीमती कारगुज़ारियों के लिए याद किया। राष्ट्रपति महोदय ने टीपू सुल्तान को हीरो का दर्जा देते हुए कहा कि टीपू सुल्तान अंग्रेज़ों से युद्ध लड़े थे, उनकी कुर्बानी हमेशा याद रहेगी। टीपू ने रॉकेट की खोज की तथा मिसाईल की खोज की। राष्टपति महोदय द्वारा टीपू सुल्तान की प्रशंसा में उनको ऐसे समय में याद किया गया जबकि कुछ ही दिन पहले कर्नाट्क से ही संबंधित एक केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने टीपू सुल्तान को हिंदू विरोधी शासक बताया था और उनके विरुद्ध अमर्यादित टिप्पणी की थी। गौरतलब है कि कर्नाट्क सरकार टीपू सुल्तान की जयंती गत् 2015 से मनाती आ रही है। और दूसरी ओर हिंदूवादी राजनैतिक संगठनों के लोग विशेषकर दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी के अनेक नेता बड़े ही सुनियोजित ढंग से टीपू सुल्तान के चरित्र हनन पर लगे हुए हैं और यही लोग कर्नाट्क सरकार के टीपू सुल्तान की स्वर्ण जयंती मनाने के फ़ैसले का विरोध करते आ रहे हैं। गौरतलब है कि देश के प्रथम व द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम से लेकर देश की आज़ादी तक के अंग्रेज़ विरोधी संघर्ष में टीपू सुल्तान अकेले ऐसे भारतीय शासक थे जिन्होंने अंग्रेज़ो से चार युद्ध लड़े और मैदान-ए-जंग में लड़ते-लड़ते अंग्रेज़ों के हाथों शहीद होने वाले देश के अकेले राजा बने। उनके इसी शौर्य के कारण उन्हें मैसूर का शेर कहा जाता है।

परंतु चूंकि टीपू सुल्तान हैदर अली के पुत्र तथा एक मुस्लिम परिवार से संबंध रखने वाले शासक थे इसी लिए उनकी प्रशंसा या उनके बारे में कुछ सकारात्मक कहना-सुनना हिंदूवादी स्वयंभू राष्ट्रवादियों को फूटी आंख नहीं भाता। और भले ही वे टीपू सुल्तान के विरुद्ध कोई तथ्य अथवा प्रमाण नहीं जुटा पाते जिससे कि वे उन्हें हिंदू विरोधी साबित कर सकें। इसके विपरीत ऐसे अनेक प्रमाण पाए जाते हैं जिससे यह साबित होता है कि वे अपनी प्रजा को समान नज़रों से देखने वाले तथा सभी धर्मों व जातियों के लोगों का समान रूप से आदर करने वाले एक न्यायप्रिय शासक थे। टीपू सुल्तान को कर्नाट्क व आसपास के दक्षिणी राज्यों में मुसलमानों से अधिक गैर मुस्लिम लोगों में बड़ी ही आस्था,सम्मान व श्रद्धा के साथ देखा जाता है। दुर्भाग्यवश टीपू सुल्तान जैसे देशभक्त स्वतंत्रता सेनानी को राष्ट्रविभाजक स्वयंभू राष्ट्रवादी शक्तियां जोकि1947 से पूर्व खुद ही अंग्रेज़ों की खुशामदपरस्ती,मुख़बिरी तथा उनकी चाटुकारिता में लगी रहा करती थीं वही ताकतें अब टीपू सुल्तान को हिंदू विरोधी बताकर देश के बहुसंख्य समाज को गुमराह करने का घिनौना खेल रही हैं। और मज़े की बात तो यह है कि जो सरकार या जो नेता टीपू सुल्तान के जीवन का वास्तविक इतिहास बताते हैं उन्हें यह सांप्रदायिक शक्तियां मुस्लिम परस्त व तुष्टिकरण की राजनीति करने वाला ठहरा देती हैं।

ठीक इसी प्रकार आगरा स्थित विश्व की सबसे अनूठी भारतीय धरोहर ताजमहल को लेकर बड़े ही सुनियोजित ढंग से कई दशकों से इन्हीं दक्षिणपंथियों द्वारा तरह-तरह के बेबुनियाद सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। इतिहास के यह दक्षिणपंथी स्वयंभू रचयिता बताना चाहते हैं कि यह शाहजहां का बनाया हुआ ताजमहल नहीं बल्कि इसका नाम तेजो महालय है। और यह किसी मुमताज़ का मकबरा नहीं बल्कि शिव मंदिर पर बनाई गई भव्य इमारत है। जबकि सदियों से इतिहास हमें यही बताता आ रहा है कि मुगल शासक शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में इस अनूठी एवं भव्य इमारत ताजमहल का निर्माण करवाया था और अपनी अनूठी वास्तुकला,चित्रकारी तथा बेजोड़ संगतराशी की बदौलत यह इमारत एक ऐसी इमारत बन गई जिसका पूरी दुनिया में अब तक कोई जवाब नहीं। ताजमहल को दुनिया की सात अजूबी इमारतों की गिनती में सर्वोपरि रखा गया है। इसी अनूठे ताजमहल को लेकर समय-समय पर कभी कोई बड़ा नेता तो कभी छुटभैया नेता अपने ज़हरीले बोल बोल कर सुिर्खयों में आ जाता है और समय-समय पर देश को यह भी पता चलता रहता है कि भारतीय इतिहास की इस बेशकीमती धरोहर पर गिद्ध दृष्टि रखने वाले सांप्रदायिकतावादी लोग बहुसंख्यवाद की राजनीति करने में सक्रिय हैं। ऐसे ही एक आपराधिक छवि रखने वाले तथा बूचड़खाना संचालित करने वाले एक भाजपाई विधायक ने ताजमहल को ग़द्दारों का प्रतीक बताया था और अपनी इस विद्वेषपूुर्ण भाषा के समर्थन में उसने इतिहास की गलत,झूठ और बेबुनियाद ‘ज्ञान’ भी लोगों को दे डाला।

केवल इस दक्षिणपंथी विधायक द्वारा ही ताजमहल का विरोध अपनी मजऱ्ी से नहीं किया गया बल्कि इसके पीछे मुख्य कारण यह था कि अभी दो माह पूर्व ही उत्तर प्रदेश के पर्यट्न विभान ने राज्य के प्रमुख पर्यटक स्थलों की जो सूची एक ब्रोशर के द्वारा जारी की थी उसमें ताजमहल का जि़क्र कहीं नहीं था। लखनऊ की सबसे ऐतिहासिक धरोहर बड़ा इमामबाड़ा भी इस सूची से निकाल दिया गया है। पूरे देश में राज्य सरकार के इस फैसले की कड़ी निंदा की गई। नफरत के इसी फैसले से उस भाजपाई विधायक को प्रेरणा मिली और उसने दो कदम और आगे बढुते हुए इसे ग़द्दारों की निशानी बता डाला। हालांकि मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी द्वारा आगरावासियों की संभावित नाराज़गी को दबाने के मद्देनज़र अपने विधायक की इस आपत्तिजनक बात से पल्ला झाडऩे की कोशिश भी की गई। ज़रा सोचिए कि आज देश की तमाम अनमोल धरोहरें जैसे कि ताजमहल,कुतुबमीनार,फतेहपुर सीकरी,चारमीनार,लाल िकला आदि सैकड़ों ऐसी इमारतें हैं जिनपर भारत गर्व करता आ रहा है और यह इमारतें पर्यट्कों को आकर्षित कर देश की अर्थव्यवस्था में अपना मज़बूत योगदान भी दे रही हैं। केवल ताजमहल को ही ले लीजिए तो अकेले इसी इमारत के दम पर ताजमहल के आस-पास के दौ सौ किलोमीटर तक के लोगों का कारोबार चल रहा है। आज पूरा आगरा शहर ताजमहल को गौरव के रूप में देखता है। क्या आगरा के लोगों को ताजमहल के अपमान व उपेक्षा में उठाया गया कोई कदम अच्छा लगेगा? यह बात इन नफरत के सौदागरों को सोचने की तो ज़रूरत ही नहीं महसूस होती।

इसी प्रकार इन तथाकथित स्वयंभू राष्ट्रवादी इतिहासकारों ने कुतुबमीनार के लिए भी अपनी सुविधा का इतिहास गढ़ लिया है। गोया साफ शब्दों में यह कहा जाए कि इन हिदूवादी स्वयंभू राष्ट्रवादियों को प्रत्येक मुस्लिम शासक में सिवाय कमी या बुराई के कुछ और दिखाई ही नहीं देता। यह इन शासकों के विरुद्ध अपनी सुविधा के मुताबिक कोई न कोई नया इतिहास गढ़ लेते हैं और उन्हें बदनाम करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहते। और इस संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण और ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि उन मुगल शासकों में तो इन्हें कमियां दिखाई देती हैं जो अंग्रेज़ो के विरुद्ध लड़ते-लड़ते शहीद हो गए या अपनी सल्तनत गंवा बैठे। परंतु इन लोगों को उन अंग्रेज़ों के विरुद्ध इस प्रकार की नफरत का इज़हार करते नहीं देखा जाता जोकि अपने शासनकाल के दौरान भारतीय नागरिकों को न केवल अपमानित कर गए बल्कि लाखों लोगों की कत्लोगारत के भी जि़म्मेदार रहे। इतना ही नहीं बल्कि जिन मुगल आक्रमणकारियों को यह हिंदुत्ववादी लोग लुटेरा बताते हैं वे कथित लूट का माल लेकर कभी अपने-अपने देश वापस नहीं गए बल्कि लूटे हुए माल के साथ ही भारत की मिट्टी में समा गए जबकि अंग्रेज़ों ने देश को लूटकर यहां की बेशकीमती चीज़ें ब्रिटेन व अन्य जगहों पर पहुंचा दीं। परंतु इतिहास की इन वास्तविकताओं से मुंह फेरकर सत्ता की लालच के लिए सत्ता के ही संरक्षण में फैलता नफरत का यह व्यापार कब तक चलता रहेगा और इसके क्या नतीजे होंगे कुछ कहा नहीं जा सकता।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

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