सच छुपाने के यह ‘इश्तेहारी झूठ’

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निर्मल रानी –

राष्ट्रीय स्तर पर चलाये जा रहे स्वच्छता मिशन पर केंद्र सरकार अब तक अरबों रूपये ख़र्च कर चुकी है। इस अभियान पर प्रत्येक वर्ष केंद्रीय बजट में सैकड़ों करोड़ की धनराशि ख़र्च करने की घोषणा की जाती है। ग़रीबों के मकानों में व शौचालय विहीन मकानों में शौचालय बनाने के लिये सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर पैसे भी दिये गये हैं। इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिये राज्य सरकारें भी केंद्र सरकार का यथासंभव सहयोग कर रही हैं। यह योजना कितनी सफल हुई और कितनी असफल कितनी पूर्ण हुई और कितनी अपूर्ण, ज़मीनी स्तर पर यह जाने बिना ही विभिन्न राज्य सरकारों ने अपनी पीठ थपथपानी भी शुरू कर दी है। अपनी झूठी सफलता के परचम बड़ी ही बेशर्मी से लहराये जाने लगे हैं। अफ़सोस तो यह है कि इस झूठ के प्रचार में भी सरकार जनता के टैक्स का ही करोड़ों रुपया पानी में बहा रही है।

पिछले दिनों अपने बिहार प्रवास के दौरान कई ग्राम पंचायतों में ऐसे ही झूठे दावों के प्रचार दृश्य देखने को मिले। बिहार राज्य का दरभंगा ज़िला किसी समय में न केवल राज्य के सबसे समृद्ध ज़िले के रूप में जाना जाता था बल्कि इसे मिथिलांचल का सिरमौर भी कहा जाता था। इसी दरभंगा ज़िले में बहेड़ी मुख्य मार्ग पर स्थित है ग्राम पंचायत चंदनपट्टी। इस ग्राम पंचायत से होकर गुज़रने वाले मुख्य मार्ग की काली चमचमाती सड़कें और इनपर तेज़ रफ़्तार दौड़ते वाहनों को देखकर प्रथम दृष्टया तो यही लगेगा कि आधारभूत सुविधाओं से युक्त इस क्षेत्र में वास्तव में विकास के पंख लग गये हैं। इन्हीं मुख्य मार्गों पर सरकार के झूठे दावों को दर्शाने वाले अनेक विशाल बोर्ड भी लगे हुये हैं जिनमें सरकार द्वारा अपना गुणगान किया गया है। इसी चंदन पट्टी पंचायत के मुख्य मार्ग पर लगे एक विशाल होर्डिंग ने मुझे आकर्षित किया। ज़िला जल एवं स्वच्छता समिति (ग्रामीण विकास अभिकरण),दरभंगा की ओर से जारी इस होर्डिंग में यह दावा किया गया है कि यह ग्राम पंचायत ‘खुले में शौच मुक्त’ हो चुकी है। इसमें गांव को स्वच्छ रखने की प्रतिबद्धता का दावा करते हुये ग्राम पंचायत चंदन पट्टी द्वारा आपका स्वागत भी किया गया है। अपने दावों को और मज़बूत करने के लिये होर्डिंग में ग्राम पंचायत के खुले में शौच मुक्त की 27 -09 -2019 की तिथि भी अंकित की गयी है।

परन्तु जब आप इसी ग्राम पंचायत के भीतरी या बाहरी मार्गों पर प्रातःकाल अथवा सूर्यास्त के बाद भ्रमण करें फिर आप को इस झूठे प्रचार करने वाले होर्डिंग व दावों की हक़ीक़त नज़र आ जायेगी। इसमें कोई शक नहीं कि सड़क किनारे बैठ कर व खुले खेतों व पगडंडियों पर शौच करने वाले लोगों की संख्या में काफ़ी कमी ज़रूर आयी है। किसी समय में तो शौच की दुर्गन्ध के चलते सड़क से गुज़रना भी मुहाल था। परन्तु ग्राम पंचायत पूरी तरह से अमुक तिथि को खुले में शौच मुक्त हो चुकी है यह दावा भी पूरी तरह ग़लत व झूठा है। आज भी जगह जगह लोग खुले में शौच त्यागते तथा उसकी दुर्गन्ध व उसपर भिनभिनाती मक्खियां,सब कुछ आसानी से देखने को मिलेगा। रहा सवाल प्रचार बोर्ड में ग्राम पंचायत को स्वच्छ रखने की प्रतिबद्धता का दावा करने का तो यह दवा तो ऐसा है जिसे महाझूठ भी कहा जा सकता है और ऐसे झूठ को गिन्नीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड में भी आसानी से दर्ज किया जा सकता है।

गांव के भीतर घनी आबादी से गुज़रने वाली सड़क से यदि आप गुज़रें तो कई जगह सड़कों पर कीचड़,शौच,नाली की ओवर फ़्लो गंदिगी देखकर ही आप यक़ीनन आधे रास्ते से ही वापस आ जायेंगे। गांव की बड़ी आबादी इसी कीचड़ व दुर्गन्धयुक्त वातावरण में रहती है और दिन में कई कई बार अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिये इन्हीं रास्तों से गुज़रने के लिये मजबूर है। पूरे गांव में नाले नालियां व भूतलीय नाले पूरी तरह से जाम पड़े हैं। इस गंदिगी और इसमें संतुष्ट होकर रहने वालों को देखकर आपको यह पता चल जायेगा कि बिहार में जापानी बुख़ार,काला ज़ार और इंसेफ़िलाइटिस जैसी बीमारियों के फैलने की वजह क्या है। होर्डिंग के झूठे दावों और ज़मीनी हक़ीक़त के अंतर को देखिये फिर आसानी से पता चलेगा कि किस तरह सरकार झूठ का प्रचार कर और सच से आँखें मूंद कर महामारियों को स्वयं नेवता दे रही है।

स्थानीय लोगों से जानकारी हासिल करने पर पता चला कि सरकार द्वारा शौचालय विहीन लोगों को शौचालय बनाने हेतु 12 हज़ार रुपये प्रति आवास की दर से पैसे दिये गये हैं। इनमें दो हज़ार रुपये तो धन वितरण करने वाले कथित तौर पर हड़प जाते हैं जबकि केवल दस हज़ार रूपये बांटे जाते हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार पैसे भी उसे दिये जाते हैं जो पहले अपने ख़र्च से शौचालय बनाकर और उस निर्मित शौचालय का फ़ोटो खींचकर सरकार को जमा करता है। बताया जाता है कि इस में कई ऐसे लोगों को भी पैसे मिले जिनके मकानों में शौचालय पहले से ही मौजूद थे। जबकि अनेक शौचालय विहीन मकान वालों को पैसे इसलिये नहीं मिल सके क्योंकि वे अपनी कमाई से शौचालय बनाकर उसका फ़ोटो जमा नहीं कर सके। ग़ौर तलब है कि इस पंचायत सहित बिहार के लाखों गांवों के करोड़ों लोग ऐसे हैं जिनके लिये दस हज़ार रुपये स्वयं ख़र्च कर शौचालय बना पाना एक सपने जैसा है। ज़ाहिर है जब इन्हें योजना के नियमानुसार शौचालय बनाने का पैसा नहीं मिल सकेगा तो खुले में शौच करने के सिवा इनके पास चारा ही क्या है ?

मज़े की बात तो यह है कि हिन्दू-मुस्लिम की संयुक्त आबादी वाले इस गांव में तथाकथित धर्मपरायण लोगों की भी बहुतायत है। दोनों समुदाय के लोग परस्पर प्रेम व सहयोग से रहते हैं। प्रायः मदिरों में भजन और मस्जिदों से अज़ानों व मजलिस-मिलादों की आवाज़ें साथ साथ सुनाई देती हैं। पाप-पुण्य और स्वर्ग-नर्क के रास्ते भी यहाँ के धर्मगुरु अपने अनुयायियों को बख़ूबी बताते हैं। परन्तु कभी किसी मौलवी अथवा प्रवचन कर्ता को सफ़ाई पर ‘प्रवचन ‘ देते कभी नहीं सुनियेगा। बल्कि यह लोग स्वयं इन्हीं गंदे व दुर्गन्धपूर्ण रास्तों पर राज़ी ख़ुशी चलते व इसी ‘नरकीय वातावरण ‘ में रहते नज़र आयेंगे। मरणोपरांत लोगों को जन्नत भेजने का मार्ग बताने वाले प्रवचन कर्ता अपने अनुयायियों को नारकीय जीवन से मुक्ति का कोई मार्ग नहीं बताते। यहाँ का आम आदमी चायख़ानों पर चाय व खैनी का आनंद लेता हुआ अमेरिका-ईरान-रूस-यूक्रेन जैसे जटिल अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर बहस करता दिखाई देगा। यहाँ के लोग बी बी सी लंदन से कम किसी मीडिया हॉउस का समाचार सुनना पसंद नहीं करते। परन्तु इनकी यह ‘तथाकथित जागरूकता’ दशकों से इस ग्राम पंचायत में चली आ रही गंदिगी व दुर्गन्ध से मुक्ति पाने जैसे जीवन के सबसे ज़रूरी विषय को लेकर न जाने कहां चली जाती है। निश्चित रूप से ग्रामवासियों की इस तरह की अनदेखी ही सरकार व पंचायत के सच छुपाने के ‘इश्तेहारी झूठ’ को प्रोत्साहित करती है।

 

परिचय:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -: E-mail : nirmalrani@gmail.com

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

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