सावन की काली घटा, फिल्म और साहित्य

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– घनश्याम भारतीय – 

Black slashed Sawan, film and literatureमानव जीवन में यदि सुख के सागर उफनाते हैं तो दुःख का सैलाब भी आता है। ….और प्रकृति तो प्रत्येक मानव के सुख-दुःख में बराबर की भागीदार होती है। उसी प्रकृति का सजीव चित्रण हिन्दी काव्य और भारतीय फिल्म में खूब किया गया है। गीतों गजलों और कविताओं के माध्यम से हमारे रचनाकारों ने अपने अपने ढंग से प्रकृति बधू का श्रंगार किया है। खासतौर से वर्षा ऋतु और सावन पर रीझते हुए रचनाकारों ने तमाम प्रणय गीत लिखे हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं। कालिदास के मेेघदूत से लेकर सेनापति, घनानन्द, प्रसाद, निराला, पंत, महादेवी और तुलसीदास की रचनाओं में प्राकृतिक सौन्दर्य की अभिव्यक्ति वाले सन्दर्भों के बीच रचनाकारों के कलम से इस ऋतु का सौन्दर्य शब्द बनकर फूटा है। भारतीय हिन्दी फिल्मों ने तो इसमें और ही चार चांद लगाया है। सावन का महीना साहित्यिक दृष्टिकोंण से वर्ष की जवानी का महीना माना जाता हैं। तभी तो बसन्त, शरद और शिशिर को स्नेह भरा आमंत्रण देने वाले रचनाकारों ने वर्षा ऋतु और सावन को अपनी रचनाओं में सर्वाधिक महत्व दिया है।
माना जाता है कि इस ऋतु में जिनके प्रियतम उनसे दूर बसे हो उनक प्राणों में घिरती हुई घटाये, चमकती हुई बिजलियां, दर्द का एक स्पंदन भर देती है। रंचनाकारों की नजर में वर्षा ऋतु विरहणियों के लिए उद्दीपनकारी है। उनके बिरह को चित्रित करने वालों की फेहरिस्त में सूरदास कब पीछे रहे है। उन्होंने श्याम के विरह में गोपियों के मुंह से कहलवाया है…..निस दिन बरसत नैन हमारे, सदा रहत पावस ऋतु हम पर, जबसे श्याम सिधारे, निस दिन बरसत नैन हमारे । सावन में परदेश जाते पति को देख कर विरहणियां जहां एक प्रसिद्ध लोकगीत ‘रेलियां बैरी पिया को लिये जा रे‘ के माध्यम से रेल को अपना दुश्मन ठहराती है वहीं कविवर बिहारी की नायिका रोटी की तलाश में परदेश जाते पति के प्यारी कहने पर यूं भडक उठती है-वामा, भामा, कामिनी, कहि बोलो प्राणेश। प्यारी कहत लजात नहिं सावन जात विदेश। महा कवि तुलसी दास ने वर्षा के माध्यम से मानवीय कल्याण से भरे संदेशों को यंू स्थान दिया है- बरसहि जलध भूमि नियराये। यथा नवहि बुधि विद्या पाये। वयो वृद्ध कवि और फिल्मी गीतकार गोपालदास नीरज ने इस ऋतु में उपेक्षित रहे गये लोगों की अनुभूतियों को इस प्रकार व्यक्त किया है- अबकी सावन में शरारत ये मेरे साथ हुई, मेरा घर छोड़ पूरे शहर में बरसात हुई।
हृदय को छू लेने वाली गांव की जिन्दगी के एहसास को स्पर्श करते हुए वरिष्ठ कवि राजेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी राहगीर ने वर्षा ऋतु आते देख लिखा- रात करें झनन झनन दिल को दुखाये, पपिहों की बोली में सावन के साये, बडी मेरी पीर पुरानी, मीत बरखा नियरानी। सावन में घिरती घटाओं को स्मृतियों केे झरोखे से झांकते हुए 500 पुस्तकों के प्रणेता राहगीर ने पुरवईया के झांेके और वर्षा सुन्दरी का यूं चित्रण किया है- पंक्षी बोले पख पसारी, दिन में घेरत है अधियारी, नभ में पुरवईया की डोली, सज धज फिर आयी री, बदरियां घिर घिर आयी री। राहगीर ने एक रचना में बादलों को चोर तक कह डाला है- घटा घिरे पूरब मगर बरसे पश्चिम ओर, ये बरसाती मेघ हैं जनम जनम के चोर। बरसा सुन्दरी की कजरारी आंखो में झांकने और उस पर रीझने वाले कवियों शायरों की कमी नहीं है। एक शायर ने लिखा है- खनकती हुई गिरती है ये फलक से बंूदे, कोई बदली जैसे तेेरे पांव से टकरायी। वर्षा सुन्दरी के पांव के पायल की खनक लोगों के मन को बिहवल कर देती है। ऐसे में प्रिय और प्रियतम की याद उन्हें झकझोर देती है जिसका एहसास एक रचनाकार बखूबी करता है। उमडती घुमडती घटाओं के बीच गिरने वाली सरस जल लहरों से खेलने वाले गीतकार डा0 ईश्वर चन्द्र त्रिपाठी ने सुधियों की बेबसी का चित्रण कुछ यू किया है- ये घटा फिर से छायी तो मै क्या करूं, ये दिशा मुस्कुराई तो मै क्या करूं। आपका प्रश्न है आसुओं के लिए, आपकी याद आयी तो मै क्या करूं। सरस एवं सुकोमल काव्य शिल्पी, भालचन्द्र त्रिपाठी ने वर्षा ऋतु का खाका कुछ यू खीचा है- सर में सरसिज सुमन सुहाये, उफनी सरिता विटप नहाये। झुकि झुकि मतवारे घन बरसे लपि जाये बसवार, जब सावन पडे फुहार। शायर शादाब मुबारकपुरी ने सावन में बिरह बेदना का चित्रण इस प्रकार किया है- सावन कही न जाये बीत, अब आ जाओ मन के मीत, कि नैना नीर बहावत है।
कवियों और शायरों की माने तो सावन का एकाकीपन महिलाओं को सर्वाधिक कष्ट देता है और यदि उनका प्रियतम् पास हो तो खुशियां कई गुना बढ जाती है। इस ऋतु हर विरहिणी राधा बन जाती है और कजरी गा गा कर अपने श्याम को ढ़ढती है। इस मौसम में उत्पन्न सौन्दर्य के साथ हृदय में उठने वाले स्पन्दन को केन्द्र मानकर रचा गया साहित्य सदियों तक लोक ग्राहृय रहेगा। ऐसा इस लिए क्योंकि मस्ती भरे इस मौसम में लोगों का मन प्राकृतिक सौदर्य देख कर बरबस ही झूम उठता हैं। गांवो की बागो में झूले पड जाते है और बैमनसता व कटुता का परित्याग कर युवतियां और नई नबेली बहुएं हसीं ठिठौली के साथ सावन के फुहार से भीग कर कजली गीतों के माध्यम से वातावरण को श्याममय कर देती है। इस महीने गांव का वातावरण अत्यन्त ही मन मोहक हो जाता है। जब बच्चे बूढे युवा सभी सावन की मस्ती में सराबोर हो जाते है।
बात सावन की हो और फिल्मों की चर्चा न हो तो अधूरापन लगता है क्योंकि इस ऋतु की मनमोहक छटा से प्रभावित साहित्यकारों की तरह फिल्मकारों ने भी इसका महत्व बखूबी समझा है। सावन पर केन्द्रित फिल्मों में ऐसे ऐसे दृश्यों को दर्शाया गया है जिसकी हर कोई कल्पना नहीं कर सकता। दर्जनों फिल्मों और उसके गीत इस बात को प्रमाणित करते है कि प्रियतम् से दूर प्रेयसी की विरह वेदना को फिल्मकारों ने बखूबी जाना और समझा है। 1967 में बनी फिल्म मिलन का गीत ‘‘सावन का महीना पवन करे शोर, जियरा रे झूमें ऐसे जैसे बन मां नाचे मोर’’ आज भी लोगों की जुबान पर सावन आते ही गूंज उठता है। सुनील दत्त और नूतन पर फिल्माये गये इस गीत  को आनन्द बख्शी ने लिखा है जिसे लता और मुकेश ने स्वर दिया है। इसी तरह 1969 में बनी फिल्म आया सावन झूम के में धर्मेन्द्र और आशापारिख पर फिल्माया गया आनन्द बख्शी का गीत ‘‘ बदरा छाये कि झूले पड गये हाय कि मेेले लग गये, मच गयी धूम रे ’’  सावन के महत्व को दर्शाने को काफी है। इसीक्रम में 1974 में बनी फिल्म में रेाटी कपडा और मकान में नौकरी को दो टके की बताते हुए सावन को लाखों का बताया गया है।  सन्तोष आनन्द लिखित यह गीत आज भी लोगों की जुबान पर है। हाय हाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी, मुझे पल पल है तडपाये, तेरी दो टकिया दी नौकरी, मेरा लाखों का सावन जाये। 1970 में बनी फिल्म जीवन मृत्यु का धर्मेन्द्र और राखी पर फिल्माया गया गीत ‘‘ झिलमिल सितारों का आंगन होगा, रिमझिम बरसता सावन होगा ’’ आज जब भी गूंजता है लोग सावन की याद में खो जाते हैं। इसके पूर्व 1959़ में सावन नाम से फिल्म भी बन चुकी है। जिसका भीगा भीगा प्यार का समा हर बुजर्ग की जुबान पर है।
कुल मिलाकर काव्य और फिल्म में सावन, बर्षा तथा उसमें विरहिणीं की व्यथा व प्रसन्न नायिका के उल्लास का वर्णन किसी न किसी रूप में मिल ही जाता है, क्यांेकि रचनाकारों ने सावन को वर्ष की जवानी का महीना मानते हुए इस सुहानी ऋतु में उसके सौन्दर्य पर रीझते हुए अपनी रचनात्मक यात्रा को गति दी है।

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Ghanshyam-Bharti1परिचय :-

घनश्याम भारतीय

स्वतंत्र पत्रकार/स्तम्भकार

ग्राम व पोस्ट-दुलहूपुर
जनपद-अम्बेडकरनगर (यू0पी0)

संपर्क :  मो0-9450489946,

 ई-मेल :  ghanshyamreporter@gmail.com

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