‘लक्षित आक्रमण’ से पैदा होता अविश्वास का वातावरण

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– तनवीर जाफरी –

Targeted attack, atmosphere of distrust arisesधर्मनिरपेक्षता तथा सहिष्णुता के लिए दुनिया में अपनी अलग पहचान रखने वाला हमारा देश भारतवर्ष इन दिनों अल्पसंख्यक समुदाय विशेषकर ईसाई समुदाय के चर्च,मिशनरी स्कूलों तथा नन आदि पर होने वाले लक्षित आक्रमण को लेकर एक बार फिर चर्चा में है। हालांकि देश मेें ऐसे धर्मस्थलों पर होने वाले हमलों का इतिहास कोई नया नहीं है। परंतु इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि देश में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद दक्षिणपंथी उग्र विचारधारा रखने वाली शक्तियों के हौसले काफ़ी बढ़ गए हैं। और शायद यही वजह है कि केवल राजधानी दिल्ली में दिसंबर 2014 से लेकर अब तक ऐसे 6 हादसे घटित हो चुके हैं जिनमें विभिन्न चर्चों व कान्वेंट स्कूलों पर हमले किए गए। पहला हादसा दिसंबर में सेंट सिबेसटियन चर्च, दिलशाद गार्डन में घटित हुआ जिसमें आसामाजिक तत्वों द्वारा चर्च में तोडफ़ोड़ की गई। केंद्रीय गृहमंत्रालय ने इस हादसे की जांच के लिए एसआईटी भी गठित की है। दूसरी घटना इसके बाद जसेला क्षेत्र में हुई जिसमें एक चर्च पर पत्थरबाज़ी की गई। तीसरी घटना में रोहिणी के एक चर्च में क्रिसमस का पालना जला दिया गया। इसी प्रकार विकासपुरी में कुछ लोगों द्वारा एक चर्च पर आक्रमण किया गया तथा तोडफ़ोड़ की गई। इसके पश्चात वसंतकुंज के एक चर्च में तोडफ़ोड़ व हमला किए जाने का समाचार आया। और अभी ताज़ातरीन घटना में वसंतकुंज के एक ईसाई स्कूल में भी अवांछित तत्वों द्वारा लूटपाट की घटना अंजाम दी गई है। हालांकि इनमें से कई घटनाओं को दिल्ली पुलिस सांप्रदायिकतापूर्ण अथवा लक्षित हिंसा के दृष्टिकोण से नहीं देखना चाह रही है। परंतु कुछ ही समय के अंतराल में एक ही समुदाय के धर्मस्थलों व स्कूल पर होने वाली इस प्रकार की घटनाओं ने अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय के लोगों के दिलों में भय व दहशत का माहौल ज़रूर पैदा कर दिया है। दिल्ली में ईसाई धर्मस्थलों पर हुए हमलों के विरोध में ईसाई समुदाय के लोगों को गुहमंत्री राजनाथ सिंह के निवास पर प्रदर्शन तक करना पड़ा है।

उपरोक्त घटनाओं की गंभीरता का अंदाज़ा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने भी पिछले दिनों अपने एक सार्वजनिक संबोधन में इन्हीं घटनाओं के परिपेक्ष्य में देश के अल्पसंख्यकों को पूर्ण सुरक्षा का भरोसा भी दिलाया। इसके अतिरिक्त भाजपा शासित राज्य हरियाणा के हिसार में एक निर्माणधीन चर्च को कुछ उपद्रवियों द्वारा गिरा दिया गया तथा कथित रूप से इसमें हनुमानजी की मूर्ति  उग्र भीड़ द्वारा स्थापित कर दी गई। ऐसे ही एक लक्षित आक्रमण में पश्चिम बंगाल -में कोलकाता से मात्र 80 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रानाघाट टाऊन में गत् 14 मार्च को एक 72 वर्षीय नन के साथ कुछ लोगों द्वारा सामूहिक बलात्कार किया गया। कान्वेंट स्कूल में काम करने वाली इस नन ने हालांकि अपराधियों को सार्वजनिक रूप से माफ किए जाने की घोषणा तो ज़रूर कर दी है परंतु पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने अपराधियों की गिरफ्तारी हेतु तथा मामले की तह तक जाने के लिए इस घटना को सीबीआई के सुपुर्द कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हरियाणा व पश्चिम बंगाल में घटी इन दोनों घटनाओं पर संज्ञान लेते हुए घटनाओं की रिपोर्ट तलब की है। दूसरी ओर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने हिसार की घटना के पीछे ईसाई समुदाय द्वारा धर्म परिवर्तन कराए जाने के चलते लोगों के आक्रोशित होने का अंदेशा जताया है। वहीं विश्व हिंदू परिषद के कुछ जि़म्मेदार नेता भी आक्रमणकारियों का बचाव करते दिखाई दे रहे हैं। हद तो यह है कि विश्व हिंदू परिषद के एक नेता ने 72 वर्षीय नन के साथ हुई बलात्कार की घटना को भी ईसाई संस्कृति का एक हिस्सा बताकर अपराध की गंभीरता को कम करने की कोशिश की है। सवाल यह है कि अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति होने वाले इस प्रकार के दुवर््यवहार,उनके विरुद्ध होने वाली आपत्तिजनक बयानबाजि़यां,धर्मस्थलों व उनकी शिक्षण संस्थाओं पर होने वाले हमले आिखर क्या संकेत दे रहे हैं? ऐसी शक्तियों के हौसले आिखर ऐसी शक्तियों के हौसले आिखर नेरंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद ही  क्योंकर बुलंद हो गए हैं? और क्या वर्ग विशेष के लोगों में भय तथा अविश्वास की भावना पैदा होना या इसका बढऩा देश की प्रगति तथा विकास अथवा इसकी अंतर्राष्ट्रीय छवि के लिए हानिकारक नहीं है?

जूलियो रिबैरो भारतीय पुलिससेवा का एक ऐसा वरिष्ठतम नाम है जिनकी सेवाओं के लिए राष्ट्र हमेशा उनका कृतज्ञ रहेगा। उन्होंने मुंबई पुलिस कमिश्रर के रूप में अपनी सेवाएं दीं। पंजाब तथा गुजरात में भी वे पुलिस महानिदेशक रहे तथा उनके बेहतरीन सेवा रिकॉर्ड व बेदाग छवि के मद्देनज़र उन्हें रोमानिया का राजदूत भी नियुक्त किया गया। इस समय श्री रिबेरो 86 वर्ष की आयु के हो चुके हैं। गत् दिनों देश के एक प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी दैनिक में उन्हें एक लेख लिखकर अपनी पीड़ा को सार्वजनिक करने के लिए मजबूर होना पड़ा। वे देश में लगातार बढ़ रहे ऐसे लक्षित आक्रमण व हिंसा की घटनाओं से इस कद्र चिंतित हैं कि वे स्वयं को अपने ही देश में एक परदेसी सा महसूस करने लगे हैं। उन्होंने स्पष्ट कहा कि यह सारी घटनाएं हिंदू दक्षिण पंथियों द्वारा अंजाम दी जा रही हैं जो बेहद खतरनाक हैं। उन्होंने पाकिस्तान में जनरल जि़या उल हक के शासनकाल के बाद पाकिस्तान के बिगड़े हालात का उदाहरण देते हुए कहा है कि जिस प्रकार पाकिस्तान आज इतने बुरे दौर से इन्हीें सांप्रदायिकतापूर्ण विचारों के चलते पहुंच गया है वैसी स्थिति हमारे देश में पैदा नहीं होनी चाहिए। उनका भी यही मानना है कि पिछले 9 महीने से इस प्रकार की घटनाओं में तेज़ी से इज़ाफा हुआ है तथा सांप्रदायिक शक्तियों का सशक्तीकरण हुआ है। आिखर देश के इतने जि़म्मेदार तथा दबंग व बेदाग छवि के पुलि अधिकारी द्वारा जिसकी अपनी कई पुश्तें भारत में ही पैदा हुईं,पलीं-बढ़ंीं तथा देश की सेवा करती रहीं उन्हें स्वयं को परदेसी समझने की ज़रूरत आिखर क्यों महसूस हुई? क्या यह हमारे देश के लिए,यहां की शासन व्यवस्था,सरकार तथा संविधान के लिए यह चिंता का विषय नहीं है? क्या ऐसे लोगों की व्यथा दृुनिया में देश का सिर झुकाने के लिए काफी नहीं है?

ईसाईयों अथवा उनके धर्मस्थलों पर होने वाले हमलों अथवा उनके साथ किए जा रहे बलात्कार अथवा अन्य हिंसक घटनाओं को यह कहकर कतई जायज़ नहीं ठहराया जा सकता कि यह उस समुदाय के लोग हैं जो धर्म परिवर्तन कराते रहते हैं। हां इस विषय को उछालकर तथा उन पर यह आरोप मढक़र राजनीति ज़रूर की जा सकती है। गुजरात,छत्तीसगढ़ तथा मध्यप्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में ही जाकर यह बखूबी देखा जा सकता है कि दूर-दराज़ क े क्षेत्रों में जहां आदिवासी व जनजातीय समुदाय के लोग रहते हैं तथा जहां सरकार की ओर से सुविधायुक्त अस्पताल तथा पाठशालाओं की व्यवस्था नहीं हो सकी है वहां ईसाई मिशनरीज़ द्वारा स्वास्थय केंद्र भी खोले गए हैं तथा स्कूल भी संचालित किए जा रहे हैं। ज़रा सोचिए कि एक बीमार व्यक्ति अपने इलाज हेतु क्या किसी ईसाई स्वास्थय केंद्र पर जाने से इंकार करेगा जबकि वहां सरकार अथवा उसके अपने धर्म की ओर से कोई दूसरा सवास्थय केंद्र संचालित न किया जा रहा हो? यही हाल शिक्षा का भी है। जहां सरकारी स्कूल नहीं है वहां ईसाईयों ने मिशनरीज़ द्वारा संचालि स्कूल खोल रखे हैं। अब यदि धर्म परिवर्त रोकना है तो सर्वप्रथम उन कारणों की तलाश की जानी चाहिए जिसके चलते दूसरे समाज के लोग ईसाई समुदाय की ओर आकर्षित होने के लिए मजबूर होते हैं। असमानता व ऊंच-नीच व जात-पात की भावना भी इनमें एक महत्वपूर्ण कारण है। अभी इसी वर्ष जनवरी के दूसरे सप्ताह में बिहार के सारण व गया जि़लों में 1700 हिंदू,दलित व महादलित समुदाय के लोगों द्वारा बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया गया। इनमें बारह सौ लोग सारण जि़ले के बैंकथपुर व कुदारबाघा गांव के थे जबकि पांच सौ लोगों गया में बौद्ध धर्म अपनाया। इन लोगों का कहना था कि उन्हें रोज़मर्रा के जीवन में सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ रहा था। और उन्होंने बौद्ध धर्म इसलिए अपनाया कि इसमें एकता पर ज़ोर दिया जाता है तथा वहां आपस में भेदभाव का कोई स्थान नहीं है।

बाबा साहब भीम ्रराव अंबेडकर से लेकर अब तक लाखों लोग भारतवर्ष में बौद्ध धर्म अपना चुके हैं। बौद्ध धर्म के धर्मगुरुओं द्वारा तो किसी प्रकार की लालच दिए जाने की भी कोइ्र खबर नहीं आती। ऐसे में क्या बौद्धधर्म सथलों पर या उनके शिक्षण संस्थानों पर आक्रमण कर दिया जाना चाहिए? या फिर इस समुदाय के लोगों के साथ भी हिंसा से पेश आना चाहिए? या फिर इनके लिए भी कथित घरवापसी की मुहिम छेड़े जाने की ज़रूरत है? दरअसल नरेंद्र मोदी के सत्ता संभालने के बाद सांप्रदायिकतावादी सोच रखने वाले संगठनों तथा इनके नेताओं के हौसले सातवें आसमान पर पहुंच गए हैं। कोई गांधीजी को अपमानित कर रहा है तो कोई गोडसे की मूर्ति स्थापित करने पर तुला है। कोई घर वापसी के मिशन में लगा हुआ है तो कहीं हिंदुओं की जनसंख्या कम होने का भय दिखाया जा रहा है। कोई भाजपा नेता मस्जिदों को तोड़े जाने को जायज़ ठहरा रहा है तो कोई देश को हिंदू राष्ट्र घोषित किए बैठा है। कई सांसद ऐसे हैं जो सार्वजनक रूप से धर्म विशेष के लोगों को अपमानित करते व उनके विरुद्ध ज़हर उगलते देखे जा रहे हैं। और यही हालात ऐसे है जिनकी वजह से गणतंत्र दिवस पर भारत पधारे अमेरिकी राष्ट्र्रपति बराक ओबामा को एकता व धार्मिक सहिष्णुता का पाठ पढ़ाना पड़ा। संभव है कि ऐसी परिसिथतियां चंद सांप्रदायिकतावादी लोगों के लिए संतोष अथवा प्रसन्नता का कारण बनती हों अथवा इस प्रकार होने वाले धु्रवीकरण का लाभ उन्हें सत्ता के रूप में मिल जाता हो। परंतु इस प्रकार के हालात देश की अंतराष्ट्रीय छवि तथा भारत की धर्मनिरपेक्ष वैश्विक पहचान पर धब्बा ज़रूर हैं।
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Tanveer-Jafriwriter-Tanveer-Jafriinvc-newsतनवीर-जाफ़रीTanveer Jafri
Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities

Email – : tanveerjafriamb@gmail.com –  phones :  098962-19228 0171-2535628
1622/11, Mahavir Nagar AmbalaCity. 134002 Haryana

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