तपेश शर्मा की कविता
हाथ से बुनि स्वेटर
अरे उसके बदन पर वो हाथ से बुनि
पीली स्वेटर है ना ?
वो आदमी कितना भाग्यशाली है
उसकी पत्नी या माँ ने उसे ये बुनकर दी है |
मेरे पास भी दो हुआ करती थी
एक स्कूल पेहेन के जाता
एक स्कूल से आके पहनता
दिखता फिरता था कितना प्रेम करती है माँ मुझसे
पूरे 2 महीने की मेहनत से बुनि है |
पता नहीं कब मेरी अलमारी से
वो गायब हो गयी
रह गए तो बस कुछ कपड़ो के टुकड़े
एडिडास या प्यूमा लिखे हुए |
ये बचारे बुनि हुयी स्वेटर से कैसे लड़ पाएंगे
इन्हे इनकी कीमत ने मेरी अलमारी में भरा है
और मेरी आधी बाजू की स्वेटर को
मेरे माँ ने अपने प्रेम से भरा था |
काश आज मेरे पास वो स्वेटर होती
घूमता फिरता उसे पहनकर
लोग पूछते तो कह देता
रात को सैंटा दे के गया है क्रिसमस पर
जन्म तिथि : 5 जनवरी 1996
संपर्क : 09571755331
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