सुशांत सुप्रिय की कविताएँ

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सुशांत सुप्रिय की कविताएँ 

1. सुरिंदर मास्टर साहब और पापड़-वड़ियों की दुकान

तिलक नगर के सरकारी स्कूल में
इतिहास पढ़ाने वाले सुरिंदर मास्टर साहब को
मार डाला दंगाइयों ने सन् ’84 में
पर अब भी जब वहाँ से गुज़रता हूँ
तो लगता है जैसे
वहाँ गुरुद्वारे के पास
पापड़-वड़ियों की अपनी दुकान पर
अपने ख़ाली समय में
वड़ियाँ तोल रहे हों
पापड़ पैक कर रहे हों
स्कूल में हमें इतिहास पढ़ाने वाले
सुरिंदर मास्टर साहब
हालाँकि जब मैं उन्हें
‘ सत् श्री अकाल ‘ कहने
उनके पास जाता हूँ तो
ग़ायब हो जाते हैं वे
” पुत्तर ,  बैठ जा
आज हम पढ़ेंगे नादिर शाह का
भारत पर हमला ”
इतिहास पढ़ाते-पढ़ाते अचानक
एक दिन स्वयं इतिहास बन गए
सुरिंदर मास्टर साहब
बीसवीं सदी के आठवें दशक में
एक मनहूस दिन, दर्जनों नादिर शाहों ने
उन्हें पकड़ कर उनके केश कतल किए
फिर उनके गले में टायर डाल कर
उन्हें ज़िंदा जला दिया
यह ख़बर सुन कर
मैं कई दिनों तक
तेज़ बुख़ार में तपता रहा
जैसे इतिहास पढ़ाते समय
उसमें डूब जाते थे
सुरिंदर मास्टर साहब
वैसे ही पापड़-वड़ियों में
उनकी आत्मा बसती थी
आज भी पापड़-वड़ियाँ खाते हुए
मेरी आँखें भीग जाती हैं
मेरी स्मृतियों में
अब भी धड़कते हैं
सुरिंदर मास्टर साहब —
वे जो तिलक नगर के
सरकारी स्कूल में
हमें इतिहास पढ़ाते थे
वे जो प्यार से
‘ पुत्तर ‘ कह कर
हमें बुलाते थे
और जिनकी पापड़-वड़ियों का
स्वाद अद्भुत था
————0————

 2. नरोदा पाटिया : गुजरात,2002

जला दिए गए मकान के खंडहर में
तनहा मैं भटक रहा हूँ
उस मकान में जो अब साबुत नहीं है
जिसे दंगाइयों ने जला दिया था
वहाँ जहाँ कभी मेरे अपनों की चहल-पहल थी
उस जले हुए मकान में अब उदास वीरानी है
जला दिए गए उसी मकान के खंडहर में
तनहा मैं भटक रहा हूँ
यह बिन चिड़ियों वाला
एक मुँहझौंसा दिन है
जब सूरज जली हुई रोटी-सा लग रहा है
और शहर से संगीत नदारद है
उस जला दिए गए मकान में
एक टूटा हुआ आइना है
मैं जिसके सामने खड़ा हूँ
लेकिन जिसमें अब मेरा अक्स नहीं है
आप समझ रहे हैं न
जला दिए गए उसी मकान के खंडहर में
मैं लौटता हूँ बार-बार
वह मैं जो दरअसल अब नहीं हँू
क्योंकि उस मकान में अपनों के साथ
मैं भी जला दिया गया था …
————०————

3. धन्यवाद-ज्ञापन

मैं उनका कृतज्ञ हूँ
जिन्हें मैं घृणा नहीं करता
घृणा मुझमें विष भर देती
मैं उनका ऋणी हूँ
क्योंकि घृणा मुझे
अपनी ही निगाहों में
बौना बना देती
मुझे ख़ुशी है कि
मेरे जीवन की रेत-घड़ी में
उनकी वजह से
कोई तूफ़ान नहीं आते
उनकी वजह से
मैं नहीं हूँ अशांत
मेरी भाषा उनकी वजह से
नहीं होती अशिष्ट
मेरे संस्कार उनकी वजह से
नहीं होते फूहड़
वे नहीं जानते कि उनके
कितने अहसान हैं मुझ पर
यह उनकी ही उपलब्धि है कि
मुझमें बची हुई है अब भी मनुष्यता
कि मेरा क्षितिज भरा हुआ है अब भी
सकारात्मक और रचनात्मक ऊर्जा से
कि मेरे भीतर बची हुई है अब भी
ऊष्मा प्रेम की
मैं धन्यवाद देता हूँ उन्हें
क्योंकि उन्हीं की वजह से
बचा हुआ है अब भी
मेरा विश्वास जीवन में
…………………………….

 4.  दीवार

बर्लिन की दीवार
न जाने कब की तोड़ी जा चुकी थी
पर मेरा पड़ोसी
अपने घर की चारदीवारी
डेढ़ हाथ ऊँची कर रहा था
पता चला कि
वह उस दीवार पर
कँटीली तार लगाएगा
और उस पर
नुकीले काँच के
टुकड़े भी बिछाएगा
मुझे नहीं पता
उसके ज़हन में
दीवार ऊँची करने का ख़्याल
क्यों और कैसे आया
किंतु कुछ समय पहले
उसने मेरे लाॅन में उगे पेड़ की
वे टहनियाँ ज़रूर काट डाली थीं
जो उसके लाॅन के ऊपर
फैल गई थीं
पर उस पेड़ की परछाईं
उस घटना के बाद भी
उसके लाॅन में बराबर पड़ती रही
धूप इस घटना के बाद भी
दो फाँकों में नहीं बँटी,
हवाएँ इस घटना के बाद भी
दोनों घरों के लाॅन में
बेरोक-टोक आती-जाती रहीं ,
और एक ही आकाश
इस घटना के बाद भी
हम दोनों के घरों के ऊपर
बना रहा
फिर सुनने में आया कि
मेरे पड़ोसी ने
शेयर बाज़ार में
काफ़ी रुपया कमाया है
कि अब उसका क़द थोड़ा बड़ा
उसकी कुर्सी थोड़ी ऊँची
उसकी नाक थोड़ी ज़्यादा खड़ी
हो गई है
मैं उसे किसी दिन
बधाई दे आने की बात
सोच ही रहा था कि
उसने अपने घर की चारदीवारी
डेढ़ हाथ ऊँची करनी
शुरू कर दी
याद नहीं आता
कब और कहाँ पढ़ा था कि
जब दीवार आदमी से
ऊँची हो जाए तो समझो
आदमी बेहद बौना हो गया है
——- ० ——-

5. दूसरे दर्ज़े का नागरिक

उस आग की झीलों वाले प्रदेश में
वह दूसरे दर्ज़े का नागरिक था
क्योंकि वह किसी ऐसे पिछड़े इलाक़े से
आ कर वहाँ बसा था
जहाँ आग की झीलें नहीं थीं
क्योंकि वह ‘ सन-आफ़-द-सोएल ‘
नहीं माना गया था
क्योंकि उसकी नाक थोड़ी चपटी
रंग थोड़ा गहरा
और बोली थोड़ी अलग थी
क्योंकि ऐसे ‘ क्योंकियों ‘ की
एक लम्बी क़तार मौजूद थी
आग की झीलों वाले प्रदेश में चलती
काली आँधियों को नज़रंदाज़ कर
उसने वहाँ की भाषा सीखी
वहाँ के तौर-तरीक़े अपनाए
वह वहाँ जवानी में आया था
और बुढ़ापे तक रहा
इस बीच कई बार
उसने चीख़-चीख़ कर
सबको बता देना चाहा
कि उसे वहाँ की मिट्टी से प्यार हो गया है
कि उसे वहाँ की धूप-छाँह भाने लगी है
कि वह ‘ वहीं का ‘ हो कर रहना चाहता है
पर हर बार उसकी आवाज़
बहरों की बस्ती में भटकती चीत्कार बन जाती
वहाँ अदालतें थीं जिनमें
खड़ी नाक वाले
सम्मानित जज थे
वहाँ के संविधान की किताब
और का़नून की पुस्तकों में
सब को समान अधिकार देने की बात
सुनहरे अक्षरों में दर्ज थी
वहाँ के विश्वविद्यालयों में
‘ मनुष्य के मौलिक अधिकार ‘ विषय पर
गोष्ठियाँ और सेमिनार आयोजित किए जाते थे
क्योंकि आग की झीलों वाला प्रदेश
बड़ा समृद्ध था
जहाँ सबको समान अवसर देने की बातें
अक्सर कही-सुनी जाती थीं
इसलिए उसने सोचा कि वह भी
आकाश जितना फैले
समुद्र भर गहराए
फेनिल पहाड़ी नदी-सा बह निकले
पर जब उसने ऐसा करना चाहा
तो उसे हाशिए पर ढकेल दिया गया
वह अपनी परछाईं जितना भी
न फैल सका
वह अंगुल भर भी
न गहरा सका
वह आँसू भर भी
न बह सका
उसकी पीठ पर
ज़ख़्मों के जंगल उग आए
जहाँ उसे मिलीं
झुलसी तितलियाँ
तड़पते वसन्त
मैली धूप
कटा-छँटा आकाश
और निर्वासित स्वप्न
दरअसल आग की झीलों वाले उस प्रदेश में
सर्पों के सौदागर रहते थे
जिनकी आँखों में
उसे बार-बार पढ़ने को मिला
कि वह यहाँ केवल
दूसरे दर्ज़े का नागरिक है
कि उसे लौट जाना है
यहाँ से एक दिन ख़ाली हाथ
कि उसके हिस्से की धरती
उसके हिस्से का आकाश
उसके हिस्से की धूप
उसके हिस्से की हवा
उसे यहाँ नहीं मिलेगी
इस दौरान सैकड़ों बार वह
अपने ही नपुंसक क्रोध की ज्वाला में
सुलगा
जला
और बुझ गया
रोना तो इस बात का है
कि जहाँ वह उगा था
जिस जगह वह अपने
अस्तित्व का एक अंश
पीछे छोड़ आया था
जहाँ उसने सोचा था कि
उसकी जड़ें अब भी सुरक्षित होंगी
जब वह बुढ़ापे में वहाँ लौटा
तो वहाँ भी उसे
दूसरे दर्ज़े का नागरिक माना गया
क्योंकि उसने अपनी उम्र का सबसे बड़ा हिस्सा
आग की झीलों वाले प्रदेश को
दे दिया था …

Sushant supriy poemsपरिचय -:
सुशांत सुप्रिय
कवि , कथाकार व अनुवादक

शिक्षा: अमृतसर ( पंजाब ) व दिल्ली में ।
प्रकाशित कृतियाँ : हत्यारे , हे राम ( कथा-संग्रह )
एक बूँद यह भी ( काव्य-संग्रह )
सम्मान : भाषा विभाग ( पंजाब ) तथा प्रकाशन विभाग ( भारत सरकार ) द्वारा
रचनाएँ पुरस्कृत ।
कमलेश्वर – कथाबिंब कथा प्रतियोगिता ( मुंबई ) में लगातार दो वर्ष प्रथम  पुरस्कार ।
अन्य प्राप्तियाँ : कई कहानियाँ व कविताएँ अंग्रेज़ी , उर्दू , पंजाबी , उड़िया ,असमिया , मराठी , कन्नड़ व मलयालम आदि भाषाओं में अनूदित व प्रकाशित । कहानियाँ कुछ राज्यों के कक्षा सात व नौ के हिंदी पाठ्यक्रम मेंशामिल । कविताएँ पुणे वि.वि. के बी.ए. ( द्वितीय वर्ष ) के पाठ्य-क्रम में शामिल । कहानियों पर आगरा वि.वि. , कुरुक्षेत्र वि.वि. व गुरु नानक देव वि.वि. , अमृतसर के हिंदी विभागों में शोधकर्ताओं द्वारा शोध-कार्य ।
# अंग्रेज़ी व पंजाबी में भी लेखन व प्रकाशन । अंग्रेज़ी में काव्य-संग्रह ” इन गाँधीज़ कंट्री ” प्रकाशित । अंग्रेज़ी कथा-संग्रह ” द फ़िफ़्थ डायरेक्शन ” प्रकाशनाधीन ।

# सम्पर्क : मो – 8512070086 ,  ई-मेल: sushant1968@gmail.com

1 COMMENT

  1. अद्भुत! बेहद सरस भाषा और अनोखी अभिव्यक्ति! सराहनीय!

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