पहली कहानी – : अंत

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लेखक  म्रदुल कपिल  कि कृति ” चीनी कितने चम्मच ”  पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी , आई एन वी सी न्यूज़ पर यह एक अलग तरहा प्रयास  व् प्रयोग हैं !

-चीनी कितने चम्मच पुस्तक की पहली  कहानी –

 

___अंत___

MRADUL-KAPILmradul-kapilमेघना मेहता शहर की मशहूर वकील , सुबह के काम निपटा कर अख़बार पढ़ने बैठ गयी , अख़बार के पहले पन्ने पर छपी खबर पढ़ते ही मेघना के हाथ से अख़बार छूट कर गिर गया , खबर थी
” इज्जत बचाने के लिए , बहु ने की ससुर की हत्या ” खबर के अनुसार पति के न रहने पर ससुर ने बहु के साथ जबरजस्ती करने की कोशिश की और अपने बचाव में बहु ने ससुर को चाकू मर दी जिस से उसकी मौत हो गयी , और बहु ने अपना जर्म स्वीकार कर लिया।

इस तरह की घटनाएँ अब भले ही हमे ज्यादा न चौंकाती हो पर मेघना इस लिए चौकी थी क्युकी मरने वाला उसका सगा चाचा था। मेघन ने अपने आप को 21 साल पीछे खड़ा पाया ;
मेघना तब सिर्फ 7 साल की थी , गुड़िया , पंरिया , रंगीन मछलियाँ , स्कूल , शरारते यही उसकी दुनिया थी , चाचा जी का घर बगल में ही था और उनका लड़का रोहित मेघना से सिर्फ 6 महीने ही बड़ा था , स्कूल के बाद मेघना का पूरा दिन रोहित के साथ खेलते हुए ही बीतता था , दोनों घरो में कोई फर्क नही था , चाचा भी मेघना को पापा की तरह ही प्यार करते थे ,उनका मेघना को गोद में लेना , उनका सर सहलाना , बिलकुल पापा के जैसे लगता था , लेकिन मेघना ने बाद में जाना था की इसमें एक हवस छुपी थी।

हल्के जाड़े के दिन थे मेघना रोहित को खेलने के लिए बुलाने चाचा के घर गयी , रोहित अपनी माँ के साथ कंही गया था , घर में सिर्फ चाचा थे , उन्होंने मेघना का सर सहलाते सहलाते उसे अपनी गोद में बिठा लिया , उसके बाद मेघना को सिर्फ उनकी चार खानो वाली लुंगी , बेइंतिहा दर्द , खून और अपने आंसू ही याद थे , मेघना नही जानती थी उसके साथ क्या हुआ , बस उसे लग रहा था उसके साथ जो हुआ वो बहुत गंदा था , वो किसी तरह अपने घर आई , माँ को सब बताया , पापा बहुत गुस्सा थे रिपोर्ट करना चाहते थे , शाम को चाची आई थी माँ पापा के पैर पकड़ लिए इज्जत की दुहाई दी , माँ को मेघना के आने वाले कल की चिंता थी सो सब ने मुंह सील लिए , लेकिन इस हादसे ने मेघना के जीवन में बहुत कुछ बदल दिया था , कुछ ही घंटो में उसका सारा बचपन खत्म हो गया था ,माँ ने उसे नानी के घर पढ़ने के लिए भेज दिया , लेकिन क्या इतना काफी था मेघना के मन पर लगी खरोंचों को मिटाने के लिए , समय बीतता गया पर मेघना अपने शरीर पर हरदम एक अजीब से लिजलिजेपन को मसहसूस करती रही , राजीव  के रूप में उसको एक समझने वाला पति भी मिला लेकिन एक अवसाद था जिस से मेघना आज तक नही निकल पायी थी , पति का स्पर्श भी मेघना को अपरचित सा लगता था , जैसे उसके बदन पर कोई सांप रेंग रहा हो।

मेघना ने अपने सर पर किसी के हाथो प्यार भरा स्पर्श महसूस किया और वो वर्तमान में वापस आ गयी , उसने पलट का देखा , राजीव  थे जो प्यार से उसका सर पर हाँथ फेर रहे थे , मेघना राजीव  के गले लग गयी और फूट फूट कर कर रो पड़ी , वो आज बीते 21 सालो के जमा आंसू बहा देना चाहती थी , उसकी 21 सालो की समाज से और खुद से नफरत का अंत हो गया था ,

सामने लॉन में मेघना की 4 साल की बच्ची निशा खेल रही थी , उसको देखते हुए मेघना ने उसी पल २ फैसले लिए।
पहला ; मेघना को 2 दशको के बाद नई सुबह का आगाज देने वाली और ससुर के सामने हार न मानने वाली वाली बहु का केस वो खुद लड़ेगी और उस एक पल की भी सजा नही होने देगी

दूसरा : वो अपनी बच्ची को इतना मजबूत करेगी कोई अपना भी उसकी ज़िंदगी से खिलवाड़ नही कर सकेगा।

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mardul-kapil,-author-mradulपरिचय – :

म्रदुल कपिल

लेखक व् विचारक

18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब  दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां  देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया .  ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी  हाऊसिंग  कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और  अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l

पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया  है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक  के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची  ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का  सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो ,  वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक  आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार  भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको  अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका  हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी  डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती  जिंदगी का .

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