इस्लाम,संगीत,फतवा और फतवेबाज़

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–  तनवीर जाफरी –

story-of-nahid-afrin,nahid-इस्लाम धर्म से संगीत के क्या रिश्ते हैं,रिश्ते हैं भी या नहीं यह बहस काफी पुरानी है। निश्चित रूप से इस्लाम धर्म का ही एक वर्ग संगीत को इस्लाम विरोधी बताता है। परंतु इस्लाम के ही अनेक वर्ग या  फिरके  ऐसे भी हैं जो संगीत अथवा संगीत से संबंधित धुनों के प्रति अपना नरम रुख रखते हैं। वैसे तो संगीत को इस्लाम विरोधी बताने वाले लोग भी इस बात का जवाब नहीं दे पाते कि नमाज़ के वक्त अज़ान देते समय सुरीले लहजे का इस्तेमाल क्यों किया जाता है? और उन्हीं की जमात के लोग कुरान शरीफ की तिलावत करते समय राग व धुन के साथ झूम-झूम कर कुरान शरीफ क्यों पढ़ते हैं? वैसे तो इस्लामी तारीख यह बताती है कि इस्लाम धर्म के प्रर्वतक हज़रत मोहम्मद(स०)को  हज़रत बिलाल की आवाज़ व उनके अज़ान देने का आकर्षक लहजा इतना पसंद था कि वे बिलाल से ही अज़ान देने को कहा करते थे। इसके अलावा भी इस्लाम धर्म में पैगंबर हज़रत दाऊद के बारे में भी यही कहा जाता है कि वे सुर एवं आवाज़ के बहुत बड़े धनी थे। उनकी गायकी के तमाम िकस्से इस्लाम धर्म खासतौर पर हज़रत दाऊद के जीवन से जुड़ी घटनाओं में आज भी मौजूद हैं।

इस्लाम धर्म से ही जुड़े सूफी समाज में जहां कव्वाली,नात,हमद व कॉफी आदि गीत-संगीत के साथ अदा करने का प्रचलन है वहीं नौहा,मरसिया,सोज़,मिलाद व कसीदा जैसे अनेक कार्यक्रम व आयोजन ऐसे होते हैं जो संगीत के बिना संभव नहीं हैं। इन सब वास्तविकताओं के बावजूद इस्लाम को कलंकित करने वाला तथा अलकायदा व आईएस जैसी ज़हरीली मानसिकता रखने वाला एक वर्ग ऐसा ज़रूर है जो भले ही स्वयं कुरान शरीफ की तिलावत अलग-अलग धुनों के साथ झूम-झूम कर क्यों न करता हो परंतु उसे किसी दूसरे वर्ग द्वारा गीत व संगीत का प्रयोग किया जाना इस्लाम विरोधी प्रतीत होता है। यही वह मानसिकता है जिसने पाकिस्तान में दुनिया के मशहूर कव्वाल गुलाम फरीद साबरी के बेटे एवं विश्व प्रसिद्ध कव्वाल अमजद साबरी को 25 जून 2016 को इन्हीं कट्टरपंथी आतंकवादियों का शिकार बना दिया। जबकि साबरी उस समय रमज़ान से संबंधित एक कार्यक्रम में अपना कलाम पेश करने जा रहे थे। पहले भी इसी प्रकार की हत्याएं कट्टरपंथी आतंकियों द्वारा की जा चुकी हैं। परंतु ख़ासतौर पर दक्षिण एशिया में गत् सात शताब्दियों से भी अधिक समय से पनपने वाली कव्वाली की परंपरा को वे आज भी समाप्त नहीं कर सके।

भारत में भी एक बार फिर संगीत व इस्लाम के रिश्ते को लेकर इसके विरोध का बाज़ार गर्म है। पहली खबर कर्नाटक की 22 वर्षीय एमबीए ग्रेजुएट छात्रा सुहाना सईद से जुड़ी है। इस बालिका का ‘कुसूर’ केवल इतना है कि इसने टेलीविज़न के एक रियलिटी शो में हिंदू धर्म से संबंधित एक भजन सुनाया। उसकी आवाज़ और अंदाज़ की टीवी दर्शकों ने बेहद प्रशंसा की। परंतु कुछ सरफिरे धर्म के स्वयंभू ठेकेदारों को सुहाना सईद का भजन गाना पसंद नहीं आया। और उन्होंने सांप्रदायिक सौहाद्र्र की अलख जगाने की कोशिशों में लगी इस लडक़ी को इस्लाम धर्म का ग़द्दार होने का प्रमाणपत्र जारी कर दिया। हालांकि कर्नाटक सहित पूरे देश के नागरिकों का खासतौर पर भारतीय मुसलमानों का भारी समर्थन सुहाना सईद को मिला और उसके विरोधियों को अपना मुंह छिपाना पड़ा। इस्लाम धर्म के इस प्रकार के स्वयंभू ठेकेदारों से मैं बस इतना ही कहना चाहूंगा कि वे किसी मुस्लिम लडक़ी की भजन गायिकी या उसकी  संगीत के प्रति दिलचस्पी का विरोध करने से पहले भारतवर्ष की उस संस्कृति व इतिहास पर ज़रूर नज़र डालें जिसमें रहीम,जायसी,रसखान,मोहम्मद रफी,नौशाद,खय्याम जैसे लोग गीत-संगीत,सुरों तथा काव्य पाठ के माध्यम से देश की गंगा-यमुनी तहज़ीब को परवान चढ़ाते आ रहे हैं।  ऐसा लगाता है कि यह लोग इनके इतिहास व उनकी कारगुज़ारियों से परिचित नहीं हैं अन्यथा सुहाना सईद की भजन गायकी पर उन्हें आपत्ति नहीं बल्कि गर्व होता।

दूसरी घटना इसी विषय से संबंधित आसाम के होजाई नामक स्थान से प्राप्त हुई है। यहां नाहीद आफरीन नामक पंद्रह वर्षीया एक मुस्लिम बालिका जोकि अकीरा िफल्म में गाने गा चुकी है तथा इंडिया आईडल फेम रह चुकी है,उसे भी अपने सुर-संगीत व गायकी के शौक के चलते भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि कुछ जि़म्मेदार टीवी चैनल्स द्वारा नाहीद से जुड़ी यह खबर प्रसारित की गई कि 45 मौलवियों की ओर से नाहिद के विरुद्ध संयुक्त फतवा जारी किया गया है। परंतु कुछ जि़म्मेदार मीडिया एजेंसी के लोगों ने जब इस ‘फतवेबाज़ी’ की हकीकत जानने की कोशिश की तो यह पता चला कि मौलवियों द्वारा नाहीद आफऱीन का विशेष रूप से विरोध करने वाला कोई फतवा जारी नहीं किया गया। बल्कि चूंंकि 25 मार्च को आसाम के नौगांव में एक धार्मिक आयोजन किसी मस्जिद व कब्रिस्तान के निकट होना था जिसमें अन्य तमाम गायकों व गायिकाओं के साथ नाहिद आफरीन ने भी शिरकत करनी थी। लिहाज़ा मौलवियों द्वारा उस कार्यक्रम स्थल का विरोध किया गया था न कि नाहिद आफरीन का। बहरहाल, चूंकि इन दिनों फतवा अथवा फतवेबाज़ी से जुड़ी कोई भी मामूली सी खबर देश के टीवी चैनल्स के लिए टीआरपी बढ़ाने का एक माध्यम बन जाती हैं इसलिए ऐसी खबरों की वास्तविकता जाने बिना इन्हें उछाल दिया जाता है और दर्शकों में उत्सुकता पैदा कर दी जाती है। स्वयं नाहिद व उसके परिजन यह बता रहे हैं कि उन्हें नाहीद के विरुद्ध किसी फतवे से संबंधित न तो किसी मौलवी मुल्ला का कोई फोन आया न ही इससे संबंधित कोई पत्र उनके हाथ लगा। परंतु मीडिया को न जाने कहां से ऐसे तथाकथित फतवों की जानकारी भी मिल गई और उन्होंने आनन-फ़ानन में इन्हें प्रसारित भी कर दिया। इतना ही नहीं असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनवाल ने पूरी चौकसी दिखाते हुए नाहिद को फोन कर उसे सुरक्षा का भरोसा भी दे दिया। मुख्यमंत्री सोनवाल ने इस विषय पर लगातार कई ट्वीट भी कर डाले। उन्होंने लिखा कि कलाकार की आज़ादी लोकतंत्र का मूल तत्व है। हम नाहीद आफरीन जैसी युवा प्रतिभा के प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाने की निंदा करते हैं। केवल मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद व गिरीराज सिंह भी ‘फतवे’ की इस झूठी खबर पर सक्रिय हो उठे।

आज ऐसे समय में जबकि इस्लाम धर्म के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी साजि़श रची जा रही है और न केवल अनेक मुसलमान बल्कि शासक वर्ग से लेकर मीडिया घराने तक के लोग इस साजि़श का हिस्सा बन चुके हैं ऐसे में खासतौर पर यह मुस्लिम धर्मगुरुओं व स्वयं को इसलाम धर्म का हमदर्द समझने वालों की ही जि़म्मेदारी है कि वे ऐसी किसी बयानबाज़ी,फतवेबाज़ी तथा इस्लाम के नाम पर अपनी रूढ़ीवादी सोच अथवा विचारधारा का प्रदूषण फैलाने से बाज़ आएं। जो इस्लाम कभी प्रेम,सौहाद्र्र,भाईचारा व समानता का प्रतीक समझा जाता था आज ऐसे ही कठमुल्लाओं व कट्टरपंथियों की इस्लाम धर्म की उनके अपने तरीकों से की जा रही गलत व्याख्या के चलते इस्लाम,आतंकवाद व चरमपंथ का प्रतीक बनता जा रहा है। हो सकता है किसी व्यक्ति या वर्ग को यह लगता हो कि संगीत इस्लाम विरोधी है तो ऐसे लोग स्वयं संगीत से परहेज़ ज़रूर कर सकते हैं यह उनका अपना अधिकार क्षेत्र है। परंतु अपने विचारों को इस्लाम का कानून या सिद्धांत बताकर दूसरों पर थोपना यह भी कतई तौर पर गैर इस्लामी है।

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tanveer jafri, writer tanveer jafri, story by tanveer jafri, article by tanveer jafriAbout the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

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