छल-बल बनाम अन्नदाता

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– तनवीर जाफ़री –

गणतंत्र दिवस के दिन राजधानी दिल्ली में किसान आंदोलन के संदर्भ में जो कुछ भी घटित हुआ वह बेहद शर्मनाक व निंदनीय तो ज़रूर था परन्तु यह सब पूर्णतयः अनअपेक्षित क़तई नहीं था। किसान नेताओं द्वारा बार बार इस बात की शंका व्यक्त की जा रही थी कि आंदोलन को बदनाम व कमज़ोर करने की पूरी कोशिश की जा रही है। यहां तक कि कई आंतरिक सुरक्षा विशेषज्ञ भी इस बात को लेकर चिंतित थे कि किसी भी आंदोलन के लंबा खिंचने पर उसमें राष्ट्र विरोधी शक्तियों का दख़ल होने की संभावना बढ़ जाती है। लाल क़िले पर अनावश्यक रूप से सैकड़ों अवांछित लोगों का प्रवेश और कई जगहों पर हिंसा के दृश्य उन्हीं शंकाओं व चिंताओं के परिणाम कहे जा सकते हैं। परन्तु इस दुःखद घटना के बाद जिस तरह गोदी मीडिया व सरकारी हित चिंतकों द्वारा रटे रटाए पाठ की तरह एक ही भाषा का इस्तेमाल कर किसान आंदोलन पर कालिख पोतने की कोशिश की गयी वह उससे भी अधिक निंदनीय है। प्रचारित यह किया गया कि लाल क़िले पर किसानों द्वारा राष्ट्रीय ध्वज हटाया गया और वहां ख़ालिस्तान झंडा फहराया गया।

राष्ट्रीय ध्वज को हटाना और उसकी जगह ख़ालिस्तानी ध्वज फहराना, वह भी लाल क़िले की प्राचीर पर और उपद्रवी भीड़ के बल पर,निश्चित रूप से यह ख़बर ‘राष्ट्रभक्तों’ को उत्तेजित करने तथा किसान आंदोलन का विरोध करने वालों को ऊर्जा देने के लिए पर्याप्त है। दिल्ली में किसान आंदोलन स्थल से लेकर और भी कई जगहों पर इस ‘कथित राष्ट्र विरोधी’ घटना को लेकर प्रतिक्रिया के समाचार भी मिले। परन्तु यदि इसी ख़बर का वास्तविक पक्ष देखें तो पता चलता है कि न केवल लाल क़िले तक किसानों के एक धड़े का कूच करना किसान आंदोलन को बदनाम करने की साज़िश का एक अहम हिस्सा था बल्कि लाल क़िले की प्राचीर पर झण्डा लहराने की ख़बर को उकसावे की ख़बर के रूप में पेश करना और आंदोलनकारी किसानों को ख़ालिस्तानी बताना भी उसी साज़िश का नतीजा था।

                                                सोचने का विषय है कि न तो लाल क़िले से राष्ट्रीय ध्वज हटाया गया न ही उसका अपमान किया गया और न ही उसकी जगह खालिस्तानी ध्वज लहराया गया। बल्कि एक  प्राचीर पर कुछ शरारती तत्वों द्वारा सिक्खों का पवित्र निशान साहब लगाया गया और उसी के साथ किसान आंदोलन का ध्वज भी लगाया गया। जिस समय कुछ शरारती लोग यह सब कार्रवाई कर रहे थे ठीक उसी समय कई ज़िम्मेदार किसान नेता उपद्रवियों को लाल क़िले में घुसने व इस तरह का ग़ैर ज़रूरी काम करने से रोक भी रहे थे। परन्तु मीडिया को उनके नेक प्रयासों को दिखाने के बजाए पूरे आंदोलन पर इस एक घटना की कालिख पोतना ज़्यादा फ़ायदे का सौदा नज़र आया। हद तो यह कि ख़ालिस्तान समर्थकों की एक कैलीफ़ोर्निया,अमेरिका की एक ऐसी पुरानी वीडिओ को वॉयरल कर इसे दिल्ली के किसानों के आंदोलन की वीडिओ बताया गया जिसमें कोई सिख युवक तिरंगे का अपमान करते व ख़ालिस्तानी परचम उठाए हुए दिखाई दे रहा है। गोया अफ़वाह का सहारा लेकर किसान आंदोलन में पलीता लगाने की भरपूर कोशिश की गयी।

                                               रहा सवाल तिरंगे व सिक्खों के पवित्र निशान साहब का तो सर्वप्रथम तो जिस तिरंगे के अपमान का झूठा प्रोपेगंडा किया जा रहा है और जिन किसानों पर तिरंगे के अपमान का ठीकरा फोड़ने की कोशिश की जा रही है ऐसे अवसरवादी राष्ट्र भक्तों को यह नहीं भूलना चाहिए कि इन्हीं किसान परिवारों के घरों में सीमा पर शहीद होने वाले सैनिकों की लाशें जिस तिरंगे में लिपटकर उनके घर आंगन में आती हों उन्हें तिरंगे की क़द्र करने की शिक्षा देना वह भी व्यवसायिक व अवसरवादी मानसिकता रखने वाले तथाकथित राष्ट्रवादियों द्वारा,क़तई शोभा नहीं देता। दूसरा निशान साहब को ख़ालिस्तानी झंडा बताने वालों को अभी कुछ ही दिन पीछे मुड़कर देखना चाहिए जबकि किसान आंदोलन के शुरू होते ही केंद्र सरकार की ओर से आई आर सी टी सी ने करोड़ों लोगों को ईमेल भेज कर यह प्रचारित करना चाहा था कि सिख समाज से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के कितने घनिष्ठ व आत्मिक संबंध हैं। इस सचित्र व वीडिओ वाली विस्तृत ई पत्रिका में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसी निशान साहब में दर्शाए जाने वाले खंडा साहब से सुसज्जित रुमाला अपने मस्तक पर बांधे नज़र आते हैं। यही नहीं सेना के अनेकानेक सिख यूनिटों में यही निशान साहब का परचम लहराते देखा जा सकता है जो सिख समाज को प्रेरणा देता रहता रहता है। गणतंत्र दिवस परेड में भी युद्धक वाहनों पर अनेक बार निशान साहब लहराता देखा गया है। परन्तु अफ़सोस कि जब यही ‘धर्म ध्वजा’ सत्ता के विरुद्ध हो रहे आंदोलन में इस्तेमाल की गयी,वह भी कुछ ऐसे उपद्रवी लोगों द्वारा जिन्हें किसान नेता अपना साथी नहीं बल्कि विरोधियों की साज़िश का मोहरा बता रहे हैं, तब यही झंडा ख़ालिस्तानी ध्वज हो जाता है ?                                            

                                            बेशक उन चेहरों को बेनक़ाब ज़रूर करना चाहिए जिनकी साज़िश के चलते लाल क़िले में घुसपैठ की कोशिश की गयी परन्तु उन लोगों के विरुद्ध भी कठोरतम कार्रवाई की जानी चाहिए जो तिरंगे के अपमान का विलाप केवल साज़िश के तहत कर रहे थे और उनके विरुद्ध भी कार्रवाई की दरकार है जो विवादित ख़ालिस्तानी ध्वज व निशान साहब में भेद करना नहीं जानते और अपनी ग़लत जानकारी को प्रचारित कर देश का सद्भावपूर्ण माहौल ख़राब करने व किसान आंदोलन पर अलगाववाद का ठप्पा लगाना चाह रहे हैं। किसी भी पक्ष द्वारा इस आंदोलन को धर्म व संप्रदाय का रंग देने की कोशिश हरगिज़ नहीं की जानी चाहिए। सरकार को किसानों की मांगों को स्वीकार करना चाहिए और यह समझना चाहिए कि 21वीं सदी का अन्नदाता छल और बल से घबराने व पीछे हटने वाला नहीं है।

 

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Contact – : Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

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