सजदा : पंकज की कलम से

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सजदा : पंकज की कलम से

“ ऐ वक्त मुझे मदहोशी में ही रखना
अच्छा नहीं लगता तेरे सताए हुए को देखना
सारी बादशाहत तो है तेरे खजाने में फिर भी
ऐ बादशाहे वक्त मुझ फकीर से भी कुछ ले लेना अपनी फकीरी में ”

“क्यूँ गुमाँ न करूँ अपनी सोच पर
जब तूने ही मुझे अलहदा कर दिया ”

“रिश्ते को अपनों ने भी बस एक ही बात पर टिकाया
तुमने अपनों के लिए क्या किया ?
मैं तो झुका रहा सज्जदे में
बस इत्ती सी बात पर अपनों ने मुझ से किनारा कर लिया”

“काश अपनी इस तमन्ना को एक दिन मैं जरूर पूरा करूँ
ऐ खुदा मुझे ऐसी कामयाबी बख्श कि पूरी दुनिया को
तेरे नूर से रौशन कर दूँ ”

“पता नहीं लोग क्यूँ गरूर करते हैं
तुझको पा कर भी मुझे तो गरूर ना हुआ”

“क्यूँ इतनी खूबसूरत ज़िंदगी नेमत कर दी मेरे नाम
हर वक्त खौफजदा हूँ तेरी इस ज़िंदगी के लिए ”

“ये किसे भेज दिया तूने मेरी ज़िंदगी बना के
मेज पर बिखरे हुए पन्नों में
ऐ ज़िंदगी
तुझे ढूँढते – ढूँढते तो मैं खुद ही खो गया ”

“मुझे ऐसी नियत देना मेरे मौला
जो किसी को प्यासा देखूँ
तो खुद ही दरिया बन जाऊँ”

“ज़िंदगी के नक्शे तो मैं पहले भी बना लेता था
रंग तो उसमें तूने ही भर दिया “

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pankaj sinha,poet pankaj sinhaपरिचय : – 

पंकज सिन्हा 

लेखक व् कवि 

निवास स्थान पटना ,बिहार

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