लेखक म्रदुल कपिल कि कृति ” चीनी कितने चम्मच ” पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l
-चीनी कितने चम्मच पुस्तक की छठी कहानी –
_____कब तक ?___
तारीख : 10 अप्रैल 2013
स्थान : सुकमा ( छत्तीसगढ़ ) जिले का एक आदिवासी गांव
2 जीपों से पुलिस वाले आये थे कल रात थाने में हुए नक्सली हमले जिसमे 5 जवान शहीद हो गए थे की जाँच करने , गाँवो के सारे लोगो को घर से बाहर निकला , घरो की तलाशी ली ,कुछ न मिलने पर झोपड़ियो को आग लगा दी गयी ,और हरिया और सजीवन महतो को उठा ले गयी ,
अगले दिन दोनों की लाशे सडक़ पर मिली , पुलिस के अनुसार दोनों नक्सली थे और मुठभेड़ में मारे गए।
बाप की लाश देख कर सजीवन महतो के 16 साल के लड़के जियावन महतो ने लाल झंडे को थाम लिया और बाप का बदला लेने के लिए नक्सली बन गया।
सीन 2:
तारीख : 10 अप्रैल 2013
स्थान : प्रतापगढ़ ( उत्तर प्रदेश ) जिले का एक छोटा सा गांव
सुकमा से दुरी : 1028 किलोमीटर
दशरथ सिंह चौहान के घर जश्न का माहौल है उनका एकलौता बेटा अभय सिंह चौहान CRPF में पिछले साल हलवदार बन गया था , आज उसकी शादी है , पूरे गांव में सब को उस पर गर्व है गांव के युवाओ का वो आदर्श बन चूका है ,
शादी की छुट्टी के बाद उसे पोस्टिंग पर सुकमा जाना है।
सीन 03 :
तारीख : 22 अगस्त 2013
स्थान : सुकमा का घना जंगल
CRPF के गश्ती दल से नक्सलियों की बड़ी मुठभेड़ के बाद 2 लाशो को जवान मुख्यालय ले जाने के लिए ट्रक में रख रहे है जिनमे से एक है शहीद हलवदार अभय सिंह चौहान की और दूसरी नक्सली जियावन महतो की।
सीन : 4
तारीख : 23 अगस्त 2013
स्थान : सुकमा जिले का आदिवासी गांव और प्रतापगढ़ का छोटा सा गांव
नक्सली जियावन महतो की विधवा माँ और शहीद हलवदार अभय सिंह चौहान की विधवा पत्नी की आंसू से भरी आँखों में एक ही सवाल
“क्यों ?
किसके लिए ?
…क़ब तक ? “
_____________
म्रदुल कपिल
लेखक व् विचारक
18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया . ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी हाऊसिंग कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l
पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो , वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती जिंदगी का .