श्यामल सुमन की ग़ज़लें
शिव कुमार झा टिल्लू की टिप्पणी : मंच से श्रोताओं को अपने प्रगीत काव्यों से झंकृत करनेवाले “गबैया -कवि ” के साथ एक समस्या होती है की वह श्रोताओं की चाह और वाहवाही की आह से ओतप्रोत होकर सर्जनाएँ करता है . सहज रूप से श्यामल जी मंच के जनप्रिय कवि हैं , इन्हें भी इस तरह की आशाओं के गर्व से जन्मे समस्याओं का सामना करना पड़ता होगा . परन्तु इन्होने अपने काव्य को एक नवल आवरण देकर एक अलग रास्ता का निर्माण कर लिया है. यहाँ श्रोता तो मंत्रमुग्ध होते ही हैं साथ ही साथ काव्य की गंभीरता और प्रांजल व्यंग्य पर कोई असर भी नहीं पड़ता .निष्कर्षतः इनकी आह सिद्द्धांतपरक माना जा सकता है. जहाँ छंद ,लय , राग , गति, यति और नियति के साथ साथ व्याकरण का बाँध काफी मजबूत है. ऐसे कविओं को देखकर यह तो निश्चित माना जा सकता है की विद्वता और भाषायी समृद्धि से काव्य बिलकुल अलग होते है. किसी कवि ने कहा है …..अंतर्मन अतृप्त ज्वार सम सरित स्रोत की बात कहाँ ? श्याम सघन घन घुमर रहा परती है बरसात कहाँ ? आँखों की भाषाएँ बदली गीत नाद स्वछन्द हुए , आशाओं के घिरते बादल धीरे धीरे मंद हुए ….यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है की यह परिपेक्ष्य कम से कम यहाँ तो आशावादी रूप से देखा ही जा सकता है .मेरी यही कामना है की इनके आशुत्व रस का आनंद हमें चिर काल तक मिलती रहे. श्यामल जी मैथिली साहित्य के चर्चित साहित्यकार पंडित हरिमोहन की भाँति गंभीर बातों को भी सरल व्यंग्य में इसकदर लिख देते है की पाठक हँसने के बाद सोचता है . टिप्पणीकार : शिव कुमार झा टिल्लू ( जमशेदपुर ) मैथिली और हिन्दी साहित्य के एक प्रखर आलोचक और आशु कवि1.बेदर्द शाम हो जाए
हवाएं सर्द जहाँ, बेदर्द शाम हो जाए
मेरी वो शाम, तुम्हारे ही नाम हो जाए
बदन सिहरते ही बजते हैं दाँत के सरगम
करीब आ, तेरे हाथों से जाम हो जाये
घना अंधेरा मेरे दिल में और दुनिया में
तुम्हारे आने से रौशन तमाम हो जाए
छुपाना इश्क ही कबूल-ए-इश्क होता है
जुबां से कह दो इश्क अब ये आम हो जाए
सुमन हटा दे सभी चिलमन तो मिलन होगा
रहीम इश्क है, कहीं पे राम हो जाए
आँसू को शबनम लिखते हैं
जिसकी खातिर हम लिखते हैं
वे कहते कि गम लिखते हैं
आस पास का हाल देखकर
आँखें होतीं नम, लिखते हैं
उदर की ज्वाला शांत हुई तो
आँसू को शबनम लिखते हैं
फूट गए गलती से पटाखे
पर थाने में बम लिखते हैं
प्रायोजित रचना को कितने
हो करके बेदम लिखते हैं
चकाचौंध में रहकर भी कुछ
अपने भीतर तम लिखते हैं
कागज करे सुमन ना काला
काम की बातें हम लिखते हैं।
2.यह मुर्दों की बस्ती है
व्यर्थ यहाँ क्यों बिगुल बजाते, यह मुर्दों की बस्ती है
कौवे आते, राग सुनाते. यह मुर्दों की बस्ती है
यूँ भी शेर बचे हैं कितने, बचे हुए बीमार अभी
राजा गीदड़ देश चलाते, यह मुर्दों की बस्ती है
गिद्धों की अब निकल पड़ी है, वे दरबार सजाते हैं
बिना रोक वे धूम मचाते, यह मुर्दों की बस्ती है
साँप, नेवले की गलबाँही, देख सभी हैं अचरज में
अब भैंसे भी बीन बजाते, यह मुर्दों की बस्ती है
दाने लूट लिए चूहे सब समाचार पढ़कर रोते
बेजुबान पर दोष लगाते, यह मुर्दों की बस्ती है
सभी चीटियाँ बिखर गयीं हैं, अलग अलग अब टोली में
बाकी सब जिसको भरमाते, यह मुर्दों की बस्ती है
हैं सफेद अब सारे हाथी, बगुले काले सभी हुए
बचे हुए को सुमन जगाते, यह मुर्दों की बस्ती है
3.बस उलझन की बात यही है
किसकी गलती कौन सही है
बस उलझन की बात यही है
हंगामे की जड़ में पाया
कारण तो बिलकुल सतही है
सब आतुर हैं समझाने में
मीठा कितना अपन दही है
सीना तान खड़े हैं जुल्मी
ऐसी उल्टी हवा बही है
है इन्साफ हाथ में जिनके
प्रायः मुजरिम आज वही है
हम सुधरेंगे जग सुधरेगा
इस दुनिया की रीति यही है
कुछ करके ही पाना संभव
सुमन पते की बात कही है
४. ये कैसी सरकार देखिये
.आमजनों के शुभचिंतक का, दिल्ली में तकरार देखिये
लेकिन सच कि अपना अपना, करते हैं व्यापार देखिये
होड़ मची बस दिखलाने की, है कमीज मेरी उजली
पर मुश्किल कि समझ रहे सब, है कुर्सी की मार देखिये
एक है मुद्दा पर ये कैसे, मंचन करते अलग अलग
राज्य, केंद्र में चला रहे हैं, ये कैसी सरकार देखिये
समाचार की हर सूर्खी में, कैसे नाम मेरा आए
लगे हुए सब अपने ढंग से, रजनीति बीमार देखिये
सहनशीलता ख़तम हो रही, उबल रहे हैं सभी सुमन
क्यों ना मिलकर सब सोचें कि, कैसे हो उद्धार देखिये
5.रोज पछताता यहाँ
कौन किसको पूछता है कौन समझाता यहाँ
आईने का दोष देकर सच को भरमाता यहाँ
मौत से आगे की खातिर धुन अरजने की लगी
अपना अपना गीत गाते कौन सुन पाता यहाँ
सच कभी शायद वो सपने बन्द आँखों में दिखे
पर खुली आँखों का सपना सच भी दिखलाता यहाँ
बह रहा जिसका पसीना खेत और खलिहान में
वक्त से पहले भला क्यूँ आज मर जाता यहाँ
चाँदनी भी कैद होकर रह गयी है आजकल
क्यूँ सुमन इस हाल में अब रोज पछताता यहाँ
वर्तमान पेशा : प्रशासनिक पदाधिकारी टाटा स्टील, जमशेदपुर, झारखण्ड, भारत
साहित्यिक कार्यक्षेत्र : छात्र जीवन से ही लिखने की ललक, स्थानीय
समाचार पत्रों सहित देश के प्रायः सभी स्तरीय पत्रिकाओं में अनेक
समसामयिक आलेख समेत कविताएँ, गीत, ग़ज़ल, हास्य-व्यंग्य आदि प्रकाशित
स्थानीय टी.वी. चैनल एवं रेडियो स्टेशन में गीत, ग़ज़ल का प्रसारण, कई
राष्ट्रीय स्तर के कवि-सम्मेलनों में शिरकत और मंच संचालन
अंतरजाल पत्रिका “अनुभूति,हिन्दी नेस्ट, साहित्य कुञ्ज, साहित्य शिल्पी,
प्रवासी दुनिया, प्रवक्ता, गर्भनाल, कृत्या, लेखनी, आखर कलश आदि मे
अनेकानेक रचनाएँ प्रकाशित
गीत ग़ज़ल संकलन “रेत में जगती नदी” – (जिसमे मुख्यतया मानवीय मूल्यों और
संवेदनाओं पर आधारित रचनाएँ हैं) प्रकाशक – कला मंदिर प्रकाशन दिल्ली
“संवेदना के स्वर” – कला मंदिर प्रकाशन में प्रकाशनार्थ
“अप्पन माटि” – मैथिली गीत ग़ज़ल संग्रह – प्रकाशन हेतु प्रेस में जाने को तैयार
सम्मान –
पूर्व प्रधानमंत्री माननीय अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा प्रेषित प्रशंसा पत्र -२००२
साहित्य-सेवी सम्मान – २०११ – सिंहभूम जिला हिन्दी साहित्य सम्मलेन
मैथिल प्रवाहिका छतीसगढ़ द्वारा – मिथिला गौरव सम्मान २०१२
नेपाल के उप प्रधान मंत्री द्वारा विराट नगर मे मैथिली साहित्य सम्मान – जनवरी २०१३
अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी सम्मेलन संयुक्त अरब अमीरात में “सृजन श्री” सम्मान – फरवरी २०१३
Email ID – shyamalsuman@gmail.com phone – : 09955373288
अपनी बात – इस प्रतियोगी युग में जीने के लिए लगातार कार्यरत एक जीवित-यंत्र, जिसे सामान्य भाषा में आदमी कहा जाता है और जो इसी आपाधापी से कुछ वक्त चुराकर अपने भोगे हुए यथार्थ की अनुभूतियों को समेट, शब्द-ब्रह्म की उपासना में विनम्रता से तल्लीन है – बस इतना ही।