सातवीं कहानी – : गुलमोहर का पेड़ और मील का पत्थर

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लेखक  म्रदुल कपिल  कि कृति ” चीनी कितने चम्मच  ”  पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l


चीनी कितने चम्मच पुस्तक की सातवीं कहानी –


____ गुलमोहर का पेड़ और मील का पत्थर _____

mradul-kapil-story-by-mradul-kapil-articles-by-mradul-kapilmradul-kapil-invc-newsमेरे घर के सामने से जाती सड़क थोड़ा आगे जा कर एक छोटे से चौराहे में तब्दील हो जाती है, चौराहे से बायीं और जाती सड़क के ठीक मुहाने पर था एक गुलमोहर का पेड़।
राह चलते हुए अक्सर मेरी नजर उस गुलमोहर के पेड़ पर पड़ जाती।
उसकी शाखाओ पर आये हुए सुंदर लाल फूल मुझे तुम्हारे चेहरे पर बिखरी हुई लालिमा का आभास दिलाते।
सुंदर फूलों से सजी उस पेड़ की डाली जब हवा के झोको से लचक जाती ,मुझे अनायास ही जाने क्यों शर्मो हया से झुकी तेरी पलकें नजर आती।
सूर्य की पहली किरण जब उस पेड़ के हरे पत्तो को छूती वो तेरे चेहरे की मीठी मुस्कान सी लगती
उस पेड़ के फूलों , शाख़ाओ , कण कण में बिखरी सुंदरता एकदम से दिल को छू जाती।
पेड़ की शाखाओं पर फूल आने पर परदेशी पक्षी जब आकर अपना डेरा जमाते तो गुलमोहर के पेड़ की खुशियो पर कुछ अलग ही तरह के रंग चढ़ जाते।
न चाहते हुए भी उस गुलमोहर के पेड़ के पास से गुजरने पर उस पर ध्यान चला जाता।
बहुत कुछ जो पीछे कही छूट सा गया है जेहन में याद आ ही जाता था।
……..
उस गुलमोहर के पेड़ के ठीक नीचे था एक मील का पत्थर , समय की मार ने उसे बदरंग सा कर दिया था , वो जंहा की दूरी बताता वो शब्द तो मिट चूके थे , मिटते से शब्दों में लिखा सिर्फ एक “0” ही बचा था उसमे। .
शांत स्थिर और खुद में ही सिमटी हुई उसकी हालत थी उसकी
सब सुख त्याग कर उसको गुलमोहर की वो प्यारी सी छांव बहुत ही भाती।
दिन रात हर पल हर पहर वो उस गुलमोहर के पेड़ की सुंदरता में ही खोया रहता।
उस पेड़ के करीब अपना निवास पाकर वो मील का पत्थर खुश रहता।
गुलमोहर के सुंदर पेड़ में वह शांत मन से अपनी प्रेमिका का रूप देखता रहता।
लेकिन कही पेड़ उसकी मनोकामना से नराज न हो जाये इसलिए चुप ही रहता।
उसका दिल गदगद हो जाता है जब गुलमोहर का फूल हवा से बहकर उसके मस्तक पर टकराता।
पतझड़ के मौसम में मील का वो पत्थर गुमसुम खामोश मजबूर सा रहता।
फूलों सी लदी पेड़ की डाली को जब वो सूखी सहमी सी हुई देखता।
जाड़ा गर्मी बरसात सब मौसम की मार वह खुशी खुशी बिना शिकायत झेलता।
उस पेड़ का सानिध्य ही उसे सब कुछ सहन करने की शक्ति देता।
जाने क्यों उस मील के पत्थर पर मुझे दया आती
कभी कभी खुद की बेपरवाह सी हालत उस पत्थर में नजर आती है!
कभी कभीब सोचता था इस अनोखी सी प्रेम कहानी का अंत क्या होगा ?
कब तक खिलखिलाते गुलमोहर की छांव में कही कोई मील का पत्थर सिसकता रहेगा ?
……..
तभी एक दिन फरमान आया की सड़क को चौड़ा करना है , गुलमोहर के पेड़ को काट दो , कुछ लोग आये लाल फूलो से लदे पेड़ को काट कर ले गए , उसकी जड़े भी खोद कर फेक दी ,गुलमोहर का कंही कोई भी निशान बाकी न रहा ,
मील के पत्थर को भी उन्होंने उस जगह से हटा कर थोड़ी दूरी पर लगा दिया , और उस पर नया रंग रोगन कर के लिखा ” प्रेम नगर 10 किलोमीटर। ”
गुलमोहर का पेड़= तुम
मील का पत्थर= हम


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mradul-kapil-story-by-mradul-kapil-articles-by-mradul-kapilपरिचय – :

म्रदुल कपिल

लेखक व् विचारक

 

18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब  दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां  देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया .  ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी  हाऊसिंग  कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और  अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l

पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया  है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक  के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची  ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का  सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो ,  वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक  आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार  भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको  अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका  हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी  डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती  जिंदगी का .

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