सेल्फी विथ डॉटर से ज्यादा जरूरी शौचालय फॉर डॉटर

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– सोनाली बोस –

भारत के ‘मंगल अभियान’ ने एक ज़बर्दस्त क़ामयाबी हासिल की है और हम अब खुद को डिजिटल वर्ल्ड के पैरोकारों की अग्रिम पंक्ति में खड़ा हुआ पाते हैं| लेकिन हमारे देश की ज़मीनी हकीकत अभी भी कुछ और ही कह रही है और देश की बहु बेटियों को एक शौचालय ना होने के अभाव में आत्मह्त्या करने पर मजबूर होते हुए देख रही है| हाल ही में झारखंड के दुमका से आई एक ख़बर सोचने पर मजबूर कर देती है। उस खबर के मुताबिक़ बीए प्रथम वर्ष की १७ वर्षीय छात्रा ने इसलिए आत्महत्या कर ली क्योंकि उसके घर में शौचालय नहीं था| वो कहती रही माँ-बाप से कि उसे खुले में शौच जाना ठीक नहीं लगता… | उन्हें गंभीरता समझ नहीं आई…. जबकि घर में चार कमरे थे पर शौचालय नहीं| अब पिता कह रहे हैं कि वो तो बेटी की शादी के लिए पैसा जोड़ रहे थे इसलिए शौचालय नहीं बनवाया|!!!! अब किसकी शादी करवाएँगे वो ?? ये ख़बर इसलिए भी अहम है क्योंकि ये हमें बताती है कि “जहाँ सोच वहाँ शौचालय” जैसे नारों की ज़मीनी हक़ीक़त क्या है, कितना और कहाँ काम किया जाना है, “स्वच्छ भारत” में रुकावटें कहाँ हैं और “SelfieWithDaughter” के और कितने आयाम हैं जिन पर काम किया जाना है|

हम सभी जानते हैं कि घरों में शौचालयों के अभाव ने स्त्रियों के सामने शारीरिक  और स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां पेश की है। आम के पेड़ को आमतौर पर धूप और गर्मी में खेलते बच्चों के लिए गंगा-जमुना के मैदानी क्षेत्र में छाया देनेवाला माना गया है। ऐसा ही एक पेड़ उत्तर प्रदेश के एक गांव कटरा सदातगंज में है, जो 28 मई को दो किशोरियों की हत्या के बाद एक अपराध के दृश्य में बदल गया। वे अपने घर के पास खेत में शौच करने गई थीं। उन्हें मर्दों ने वहीं दबोच लिया और बलात्कार किया। हत्या की और आत्महत्या का मामला बने और साथ ही गांव की अन्य औरतें दहशतगर्दी के आलम में डुब जाएं इसलिए उन लड़कियों की लाश को पेड़ से लटका दिया।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की सन् 2013 की वार्षिक रपट के अनुसार, सन् 2012 में भारत में बलात्कार की 24,000 से अधिक घटनाएं घटीं और भारत में औरतों के विरुद्ध यह चौथा सबसे आम अपराध रहा। 98 प्रतिशत मामलों में अपराध करनेवाले या तो पड़ोसी थे या रिश्तेदार। इन आंकड़ों के ब्यौरे इस बात के लिए आगाह करते हैं कि महिलाएं अपने परिवारों और आसपास के माहौल में सुरक्षित नहीं हैं।

खुले में शौच के लिए मजबूर बच्चियों और महिलाओं की अस्मिता पर हर वक्त खतरा मंडराता रहता है| सरकार के तमाम दावों के बावजूद हकीकत यह है कि देश के 70 फीसदी से अधिक घरों में आज भी शौचालय नहीं है| मध्य प्रदेश में जहां महिलाओं के साथ बलात्कार के मामले अन्य राज्यों की तुलना में कहीं अधिक है, शौचालय का अभाव स्थिति को और भयावह बना देता है| भोपाल की गैर-सरकारी संस्था आरंभ की डायरेक्टर अर्चना सहाय बताती हैं, ‘‘2004-05 में भोपाल में ऐसी घटनाओं की तादाद बहुत अधिक थी| झुग्गियों में रहने वाली बच्चियों को खुले में शौच के कारण हर रोज शर्मनाक परिस्थितियों का सामना करना पड़ता था| उनके साथ बलात्कार की कोशिशें भी हो चुकी थीं|’’ तब आरंभ ने अंतरराष्ट्रीय एनजीओ वाटर एड के साथ मिलकर शहर की 53 झुग्गी बस्तियों में सामुदायिक शौचालय बनवाए| इनके संचालन की जिम्मेदारी समुदायों को ही दी गई| सहाय कहती हैं, ‘‘इसके बाद ऐसे मामलों में कमी आई| जाहिर है कि शौचालय का मामला महिला की अस्मिता से सीधा जुड़ा हुआ है|’’ शौचालयों का अभाव महिलाओं की सेहत पर भारी पड़ रहा है| हिंसा और उत्पीडऩ की आशंका के चलते महिलाएं दिन निकलने से पहले शौच जाने के लिए मजबूर हैं| यही नहीं, दिन के वक्त वे ज़रूरत से बहुत कम पानी पीती हैं, सिर्फ इसलिए ताकि उन्हें शौच के लिए नहीं जाना पड़े|

घरों में शौचालय का न होना औरतों के लिए शारीरिक से लेकर स्वास्थ्य एवं संभार-संबंधी चुनौतियां प्रस्तुत करता है। शौच के लिए बाहर जाने में उन्हें काफी दूरी तय करनी पड़ती है। इससे वे गंदी स्थितियों और शारीरिक  खतरों की गिरफ्त में आ जाती हैं। अस्वास्थ्यकर स्थितियां और खुले में शौच, डायरिया, कृमि-रोग तथा वाइरल इनसेफलाइटिस-जैसी बीमारियों को पैदा करनेवाले स्थल हो जाते हैं।

महिलाओं के लिए समीप स्थित कुएं या पानी का ज़रिया ज़रूरी है। पानी अनेक ढंग से उपयोगी हो सकता है, उसमें शौचालय में उसका इस्मेमाल भी शामिल है। आदर्श स्थिति तो यह होगी कि पानी सीधे घर तक आए, लेकिन इसके अभाव में अनेक कुएं बनाए जा सकते हैं। गांवों में जाति और वर्ग की चेतना बहुत होती है, अतः इसके चलते होनेवाले संघर्ष या विरोध को बचाया जा सकता है, जो ग्रामीण-जीवन की एक वास्तविकता है। यह सुनिश्चित किया जाए कि स्त्रियां आसानी से पानी-स्रोत से अपने आस-पास से पानी ले सकें।

लेकिन एक दूसरा पहलू और है और वो है गाँवों के हालात| साफ-सफाई के मामले में गांव बदहाल हैं, इस मामले में सरकारी स्कूल भी कम नहीं है। स्कूलों में टॉयलेट नहीं होना एक आम समस्या है। मजबूरन बच्चे और टीचर शौच के लिए खुले मैदान में जाते हैं। कहते हैं जहां ‘सोच है वहां शौचालय’ है, स्वच्छता मिशन का भी यही पंचलाइन है। लेकिन सरकारी संस्थानों में अमल कुछ भी नहीं। जबकि स्कूल सोच की जगह है। यहीं से समाज को नई दिशा मिलती है, इस मिशन को घर घर पहुंचाने के लिए स्कूल से बढ़िया मुकाम दूसरा कोई नहीं….. लेकिन हकीकत क्या है? अब हम यदी प्रायमरी स्कूल की बानगी देखते हैं तो पाते हैं कि प्राइमरी स्कूल के स्तर पर 60|1 मिलियन से अधिक लड़कियों के नाम लिखाए जाते हैं।  लेकिन अपर प्राइमरी तक पहुंचते-पहुंचते इस संख्या में तेज़ी से गिरावट आ जाती है और वह 22|7 मिलियन पर आ जाती है। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशनल प्लानिंग ऐंड एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि लगभग 30 प्रतिशत लड़कियां कक्षा छठी तक पहुंचने से पहले ही स्कूल छोड़ देती हैं। सर्वेक्षण यह भी बताता है कि स्कूल छोड़ने की सर्वाधिक घटना कक्षा 5वीं में पहुंचने के वक्त होती है यानी 13 प्रतिशत। यह वह समय है, जब लड़की मासिक धर्म की स्थिति में पहुंचने की होती है।

परिस्थिति की गंभीरता को स्वीकार करते हुए भारत-सरकार ने सन् 2008 में एक राष्ट्रीय शहरी स्वच्छता-नीति शुरू की। उद्देश्य था शहरी क्षेत्रों में शत-प्रतिशत स्वच्छता के उद्देश्य की पूर्ति। नीति के अंतर्गत स्कूलों के लिए यह अनिवार्य कर दिया गया है कि वे उचित स्वच्छता, निजी शुचिता, स्वच्छ शौचालय की आदतें और सबसे महत्वपूर्ण लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय बनाए जाएं। बहरहाल, रिपोर्ट बताती है कि भारत में 10 स्कूलों में से 4 में अभी भी काम लायक शौचालय नहीं हैं। 31 प्रतिशत स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालय नहीं हैं, यदि उपलब्ध भी हैं तो वे संख्या में अत्यंत कम हैं और उनकी देखभाल ठीक तरीके से नहीं की जाती है। इसके परिणामस्वरूप लड़कियां स्कूल से गैरहाजिर रहती हैं। लंबे समय तक के लिए और कुछ मामलों में वे स्कूल छोड़ देती हैं।

इस गंभीर वास्तविकता को देखते हुए यह एक अच्छी बात है कि सरकार की नीति स्कूलों में लड़कियों के लिए अलग शौचालय की व्यवस्था की है। बहरहाल, उस नीति को अमल में लाने में अधिक तेज़ी की ज़रूरत है। सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनाव-घोषणा-पत्र में खासतौर पर इसका ज़िक्र किया है और कहा है कि उनकी उच्चतम प्राथमिकता स्त्रियों का कल्याण, स्वास्थ्य की देख-रेख, स्कूलों में स्वास्थ्य तथा स्वच्छता की देखभाल है। लोकसभा के सदस्यों में स्त्रियां केवल 11 प्रतिशत हैं, लेकिन वे प्रधानमंत्री के मंत्रिमंडल में 25 प्रतिशत तक हैं। यह एक जबरदस्त संकेत है कि अब उन पर ध्यान जाएगा, जिनकी वे हकदार हैं|

आज समय की आवश्यकता है, एक समयबद्ध कार्यक्रम बनाना, जिसके अंतर्गत प्रत्येक घर में एक शौचालय हो। उसके लिए सब्सिडी की व्यवस्था हो, पंचायतें और राज्य-सरकार की स्थानीय एजेंसियां उसकी निगरानी करें। शौचालयों का निर्माण, उदाहरण के लिए ग्रामीण-रोजगार-गारंटी-योजना के साथ जोड़ने पर विचार किया जा सकता है।

सुलभ इंटनेशनल ने एक दिलचस्प उदाहरण प्रस्तुत किया है, कटरा सदातगंज में सुलभ ने एक संक्षिप्त सर्वेक्षण किया जिससे पता चला कि गांव में 650 परिवारों में से 400 से अधिक घरों में शौचालय नहीं है। इस गैर सरकारी संगठन का दावा है कि उसने गांव में शौचालयों का निर्माण उन लोगों के लिए किया है, जो उससे वंचित हैं। उसका अनुमान है कि प्रति शौचालय-निर्माण की लागत रु|10,000 से लेकर 15,000 आती है। बहरहाल, सरकार उससे सस्ते और उपयोगी शौचालों का निर्माण करा सकती है।

और आखिर में सिर्फ एक बात कह कर मैं ये बात समाप्त करना चाहती हूँ ‘’ आज भी मेरे आस पास कितनी ही निर्भयायें गुहारती हैं ,चीख़ती हैं और दर्द भरे अपमान से चिंघाडती हैं –“मत बनाओ चिकनी सड़कें ,हमें धूल भरे रास्तों पर बेख़ौफ़ चलने की आज़ादी चाहिये ।मत उठाओ फ़्लाइओवर , हमें लम्बी गलियों में निशंक जाने दो । नहीं चाहिये बिजलीदार चमकते खम्भे क्योंकि रौशनी में लड़की को नंगा करने का फरमान शोहदों ने जारी किया है । बुझा दो शहर भर की रौशनी कि अंधेरा ढक ले हमारी अनावृत देह को ….. हमें सिर्फ एक हक़ चाहिए , हमें इज़्ज़त से जीने का हक़ चाहिए| देवी नहीं एक इंसान मानो… बस इतनी ही पहचान चाहिए |

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sonali-bosearticle-of-sonali-bose-sonali-bose-sub-editor-invc-news-sub-editor-invc-new-11परिचय :-

सोनाली बोस

सह – सम्पादक
इंटरनेशनल न्यूज़ एंड वियुज़ डॉट कॉम
व्
अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम

Sonali Bose

Associate editor
international News and Views.Com
&
International News and Views Corporation

संपर्क –: sonali@invc.info & sonalibose09@gmail.com

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  1. It was really painful article to read. I wish Community and Government together does as suggested in this well written, well meaning article by Sonaliji.

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