सुभाष चन्द्र बोस : कई सच छुपाए गए तो कई अधूरे बताए गए

0
32

– डॉ नीलम महेंद्र –

अपनी आजादी की कीमत तो हमने भी चुकाई है
तुम जैसे अनेक वीरों को खो के जो यह पाई है।

Subhash-chandra-bose-,mahatकहने को तो हमारे देश को 15 अगस्त 1947 में आजादी मिली थी लेकिन क्या यह पूर्ण स्वतंत्रता थी?
स्वराज तो हमने हासिल कर लिया था लेकिन उसे ‘ सुराज ‘ नहीं बना पाए ।
क्या कारण है कि हम आज तक आजाद नहीं हो पाए सत्ता धारियों की राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं से जिनकी कीमत आज तक पूरा देश चुका रहा है?
आजादी के समय से  ही नेताओं द्वारा अपने निजी स्वार्थों को राष्ट्र हित से ऊपर रखा जाने का जो सिलसिला आरंभ हुआ था वो आज तक जारी है।
राजनीति के इस खेल में न सिर्फ इतिहास को तोड़ा मरोड़ा गया बल्कि कई सच छुपाए गए तो कई अधूरे बताए गए।
22 अगस्त 1945, जब टोक्यो रेडियो से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की 18 अगस्त, ताइवान में एक प्लेन क्रैश में मारे जाने की घोषणा हुई , तब से लेकर आज तक उनकी मौत इस देश की अब तक की सबसे बड़ी अनसुलझी पहेली बनी हुई है।
किन्तु महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि मृत्यु के लगभग 70 सालों बाद भी यह एक रहस्य है या फिर किसी स्वार्थ वश इसे रहस्य बनाया गया है ?
उनकी 119 वीं जयन्ति पर जब मोदी सरकार ने जनवरी2016 में उनसे जुड़ी गोपनीय फाइलों को देश के सामने रखा, ऐसी उम्मीद थी कि अब शायद रहस्य से पर्दा उठ जाएगा लेकिन रहस्य बरकरार है।
यह अजीब सी बात है कि उनकी मौत की जांच के लिए 1956 में शाहनवाज समिति और 1970 में खोसला समिति दोनों के ही अनुसार नेताजी उक्त विमान दुर्घटना में मारे गये थे  इसके बावजूद उनके परिवार की जासूसी  कराई जा रही थी क्यों?
जबकि 2005 में गठित मुखर्जी आयोग ने ताइवान सरकार की ओर से बताया कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई विमान दुर्घटना हुई ही नहीं थी !जब दुर्घटना ही नहीं तो मौत कैसी ?
उन्हें 1945 के बाद भी उन्हें रूस और लाल चीन में देखे जाने की बातें पहली दो जांच रिपोर्टों पर प्रश्न चिह्न लगाती हैं।
इस देश का वो स्वतंत्रता सेनानी जिसके जिक्र के बिना स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास अधूरा है वो  किसी गुमनाम मौत का हकदार कदापि नहीं था।
इस देश को हक है उनके विषय में सच जानने का, एक ऐसा वीर योद्धा  जिन्होंने आजादी की लड़ाई में अंग्रेजों की नाक में जीते जी ही नहीं बल्कि अपनी मौत की खबर के बाद भी दम करके रखा था ।
उनकी मौत की खबर पर न सिर्फ अंग्रेज बल्कि खुद नेहरू को भी यकीन नहीं था जिसका पता उस पत्र से चलता है जो उन्होंने तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली को लिखा था, 27 दिसंबर 1945  कथित दुर्घटना के चार महीने बाद। खेद का विषय यह है कि इस चिठ्ठी में नेहरू ने भारत के इस महान स्वतंत्रता सेनानी को ब्रिटेन का ‘युद्ध बंदी ‘ कह कर संबोधित किया, हालांकि कांग्रेस द्वारा इस प्रकार के किसी भी पत्र का खंडन किया गया है।
नेताजी की प्रपौत्री राज्यश्री चौधरी का कहना है कि अगर मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट बिना सम्पादित करे सामने रख दी जाए तो सच सामने आ जाएगा ।
बहरहाल फाइलें तो खुल गईं हैं सच सामने आने का इंतजार है।
जिस स्वतंत्रता को अहिंसा से प्राप्त करने का दावा किया जाता है उसमें ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा ‘ का नारा देकर आजाद हिन्द फौज से अंग्रेजों की ईंट से ईंट बजाने वाले नेताजी को इतिहास में अपेक्षित स्थान मिलने का आज भी इंतजार है।
मात्र 15 वर्ष की आयु में  सम्पूर्ण विवेकानन्द साहित्य पढ़ लेने के कारण उनका व्यक्तित्व न सिर्फ ओजपूर्ण था अपितु राष्ट्र भक्ति से ओत प्रोत भी था। यही कारण था कि अपने पिता की इच्छा के विपरीत आईसीएस में चयन होने के बावजूद उन्होंने देश सेवा को चुना और भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति दिलाने की कठिन डगर पर चल पड़े। उन्हें अपने इस फैसले पर आशीर्वाद मिला अपनी माँ प्रभावति के उस पत्र द्वारा जिसमें उन्होंने लिखा  ” पिता, परिवार के लोग या अन्य कोई कुछ भी कहे मुझे अपने बेटे के इस फैसले पर गर्व है  “।
20 जुलाई 1921 को गाँधी जी से वे पहली बार मिले और शुरू हुआ उनका यह सफर जिसमें लगभग 11 बार अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें कारावास में डाला।
कारावास से बाहर रहते हुए अपनी वेश बदलने की कला की बदौलत अनेकों बार अंग्रेजों की नाक के नीचे से फरार भी हुए।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 1938 में जिन गाँधी जी ने नेता जी को काँग्रेस का अध्यक्ष बनाया , उनकी कार्यशैली और विचारधारा से असन्तोष के चलते आगे चलकर उन्हीं गाँधी जी का विरोध नेता जी को सहना पड़ा ।
लेकिन उनके करिश्माई व्यक्तित्व के आगे गाँधी जी की एक न चली।
किस्सा कुछ यूँ है कि गाँधी जी नेता जी को अध्यक्ष पद से हटाना चाहते थे लेकिन कांग्रेस में कोई नेताजी को हटाने को तैयार नहीं था तो बरसों बाद कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ। गाँधी जी ने नेहरू का नाम अध्यक्ष पद के लिए आगे किया किन्तु हवा के रुख को भाँपते हुए नेहरू जी ने मौलाना आजाद का नाम आगे कर दिया । मौलाना ने भी हार के डर से अपना नाम वापस ले लिया । अब गाँधी जी ने पट्टाभि सीतारमैया का नाम आगे किया। सब जानते थे कि गाँधी जी सीतारमैया के साथ हैं इसके बावजूद नेता जी को 1580 मत मिले और गाँधी जी के विरोध के बावजूद सुभाष चन्द्र बोस 203 मतों से विजयी हुए। लेकिन जब आहत गाँधी जी ने इसे अपनी ‘व्यक्तिगत हार’ करार दिया तो नेताजी ने अपना स्तीफा दे दिया और अपनी राह पर आगे बढ़ गए।
यह उनका बड़प्पन ही था कि 6 जुलाई 1944 को आजाद हिन्द रेडियो पर आजाद हिन्द फौज की स्थापना एवं उसके उद्देश्य की घोषणा करते हुए गाँधी जी को राष्ट्र पिता सम्बोधित करते हुए न सिर्फ उनसे आशीर्वाद माँगा किन्तु उनके द्वारा किया गया अपमान भुलाकर उनको सम्मान दिया।
बेहद अफसोस की बात है कि अपने विरोधियों को भी सम्मान देने वाले नेताजी अपने ही देश में राजनीति का शिकार बनाए गए लेकिन फिर भी उन्होंने आखिर तक हार नहीं मानी।
वो नेताजी जो अंग्रेजों के अन्याय के विरुद्ध अपने देश को न्याय दिलाने के लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़े उनकी आत्मा आज स्वयं के लिए न्याय के इंतजार में हैं ।
ऐसे महानायकों के लिए ही कहा जाता है कि धन्य है वो धरती जिस पर तूने जन्म लिया, धन्य है वो माँ जिसने तुझे जन्म दिया।

____________

डाँ नीलम महेंद्रपरिचय –

डाँ नीलम महेंद्र

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

समाज में घटित होने वाली घटनाएँ मुझे लिखने के लिए प्रेरित करती हैं।भारतीय समाज में उसकी संस्कृति के प्रति खोते आकर्षण को पुनः स्थापित करने में अपना योगदान देना चाहती हूँ।
हम स्वयं अपने भाग्य विधाता हैं यह देश हमारा है हम ही इसके भी निर्माता हैं क्यों इंतजार करें किसी और के आने का देश बदलना है तो पहला कदम हमीं को उठाना है समाज में एक सकारात्मकता लाने का उद्देश्य लेखन की प्रेरणा है।

राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय समाचार पत्रों तथा औनलाइन पोर्टल पर लेखों का प्रकाशन फेसबुक पर ” यूँ ही दिल से ” नामक पेज व इसी नाम का ब्लॉग, जागरण ब्लॉग द्वारा दो बार बेस्ट ब्लॉगर का अवार्ड

संपर्क – : drneelammahendra@hotmail.com  & drneelammahendra@gmail.com

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here