satire : तो दुनिया के रिश्वतखोरों एक हो जाओ

0
28

-अशोक मिश्र –

satire.satire articles,articles on satire,satire on politics,politicl satireकाफी दिनों बाद उस्ताद गुनाहगार से भेट नहीं हुई थी। सोचा कि उनसे मुलाकात कर लिया जाए। सो, एक दिन उनके दौलतखाने पर पहुंच गया। हां, दौलतखाना शब्द पर याद आया। लखनऊ की नजाकत-नफासत के किस्से तो सभी जानते हैं, लेकिन दौलतखाना और गरीब खाना शब्द का एक अजीब घालमेल है। लखनउवा जब कभी आपको अपने घर पर बुलाएगा, तो यही कहेगा, कभी मेरे गरीबखाने पर तशरीफ लाएं। भले ही उसके पास घर के नाम पर टूटी झोपड़ी या महल-अटारी हो। वहीं जब कोई किसी के घर जाने की बात कहेगा, तो कहेगा-चलिए, शाम को मैं आपके दौलतखाने में आता हूं।भले ही वह आदमी जिसके घर मेहमान बनने जा रहा है, वह फुटपाथ पर प्लास्टिक की पन्नियां बांधकर रहता हो।

खैर..उस्ताद गुनाहगार के दौलतखाने पर जब मैं पहुंचा, तो एक अजीब सा दृश्य देखा। मैंने पाया कि गुनाहगार के चारों ओर कुछ कागज बिखरे पड़े हैं। वे काम में इतने मशगूल थे कि मेरे आने की उन्हें तनिक भी भनक तक नहीं लगी। एक कागज उठाकर पहले तो वे कुछ देर तक उसे घूरते रहे और फिर दूसरे कागज पर कुछ नोट करते हुए बोले, ‘दिल्ली में पेट्रोल के दाम में बढ़ोतरी हुई चार रुपये छियालिस पैसे, मुंबई में सात रुपये बत्तीस पैसे। इसका मतलब है कि मुंबई में खसरा-खतौनी की नकल मांगने पर बिटामिन ‘आर’ की कीमत पैंतीस रुपये से बढ़कर पैंसठ रुपये होगी और दिल्ली में बिटामिन ‘आर’ की कीमत पचास रुपये होगी।’

मैं चौंक गया। मन ही मन सोचने लगा कि यह मुई बिटामिन ‘आर’ क्या बला है? मुझसे रहा नहीं गया। मैंने गुनाहगार को दंडवत प्रणाम करते हुए कहा, ‘उस्ताद! यह बिटामिन ‘आर’ क्या है?’ मुझे देखकर गुनाहगार सकपका गए और हड़बड़ी में हाथ का कागज छिपाने लगे। मुझसे उन्होंने तल्ख स्वर में पूछा, ‘तुम कब आए?’ मैंने हंसते हुए कहा, ‘जब से आप पेट्रोल के दाम और बिटामिन ‘आर’ को किसी नामाकूल फार्मूले पर कस रहे थे।’ मेरी बात सुनकर उन्होंने गहरी सांस ली और मुझे बैठने का इशारा किया और फिर बोले, ‘बात यह है कि जब-जब पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ते हैं, सभी जरूरी चीजों के दाम बढ़ जाते हैं। ऐसे में ‘सुविधा शुल्क’ यानी बिटामिन ‘आर’ की कीमत भी बढ़ जाता है। देश भर के आफिसों में बाकायदा एक सूची सबको दे दी जाती है कि आज से फलां काम के इतने और फलां काम के इतने रुपये लिए जाएं। हर बार यह सूची बनाने का जिम्मा मुझे दे दिया जाता है। कल से जुटा पड़ा हूं, लेकिन अभी तक सूची बन नहीं पाई है।’

मैंने आश्चर्य जताते हुए कहा, ‘बिटामिन आर मतलब रिश्वत?’ गुनाहगार ने चेहरे पर कोई भाव लाए बिना कहा, ‘रिश्वत होगी तुम्हारे लिए, हम सबके लिए तो बिटामिन ‘आर’ है। बिटामिन आर का सेवन करते ही कर्मचारी में अपार ऊर्जा का संचार होता है, वह आलस्य किए बिना काम झटपट निबटा देता है, अधिकारी भी बिटामिन आर की झलक पाते ही अपना सारा जरूरी काम-धाम छोड़कर उस फाइल पर चिडिय़ा बिठा देते हैं। जिस बिटामिन ‘आर’…तुम्हारे शब्दों में कहें, तो रिश्वतखोरी को अन्ना दादा जैसे लोग इतनी हिकारत की नजर से देखते हैं, अगर इसका प्रचलन हिंदुस्तान में न होता, तो उसका इतना विकास न हुआ होता। भ्रष्टाचार की बदौलत जो सड़क पांच-छह महीने में बन जाती है, उसी सड़क की फाइल रिश्वत न मिलने पर सालों अटकी रहती।’

‘तो क्या रिश्वतखोरी इस देश के भाग्य में हमेशा के लिए लिख गया है?’ यह सवाल पूछते समय मैं काफी निराश हो गया था। ‘बिल्कुल…जब तक सरकारी और गैर सरकारी आफिसों में बिटामिन ‘आर’ खिलाकर कर्मचारियों को मोटा किया जाता रहेगा, तब तक देश का विकास द्रुत गति से होता रहेगा। मैं तो कहता हूं कि सरकार और ट्रेड यूनियनों को नया नारा गढऩा चाहिए, दुनिया के रिश्वतखोरों! एक हों।’ यह कहकर उस्ताद गुनाहगार ने अपना कागज समेटा और चाय बनाने के लिए किचन में चले गए। चाय पीने के बाद मैं भी अपने घर लौट आया।

______________

Ashok-Mishra-Resident-Editor-daily-new-bright-star-Ashok-Mishra-150x150परिचय -:

अशोक मिश्र

वरिष्ठ पत्रकार व् लेखक

संपर्क -:
मोबाइल-9811674507 , ईमेल -: ashok1mishra@gmail.com

C/O  श्री अमर सिंह चंदेल, फर्नीचर वाले  97-डी, न्यू अशोक नगर, गूबा गार्डेन, कल्यानपुर, कानपुर (उत्तर प्रदेश) पिन कोड-208017

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC  NEWS.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here