संजीबा की कविताएँ

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कविताएँ 

 1. करवाचौथ

संसद की छत से
या गरीब की छाती चढ़के,
तुम देखो सरकारी चाँद
रुपयों में फंसे
चांदी के तार की चलनी से,
हमें पता है
तुम रखते हो निर्जला व्रत
हमारा दम निकलने तक,
जनता जिये चाहे मरे
तुम करो कामना
अपनी कुर्सी की लम्बी उम्र की,
तुम्हारे दिमागी करवा में
जाति – धर्म/ ऊँच- नीच
न जाने क्या क्या,
उफ़ ! तेरी सरकार में
दम सा निकलता है
हरदम ये सोच -सोच,
हमें पता है
हम नही बचेंगे अगले दंगे में
तूने सिर्फ वोट के लिए
देश में नफरत की
हाय ! ऐसी फैलायी करवाचौथ…..

2-

मेरा बड़ा लड़का – जो
सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर
रोजाना ज़मीन पर अख़बार बिछा कर
राजनेताओं की तस्वीरों पर
थूक कर बूट पटकता है,
मेरा मंझला लड़का – जिसकी
ढंग से अभी रेख तक नही निकली
मगर भगत सिंह की तरह
स्कूल में स्याही से
अपनी मूंछ बनाकर ऐंठता है,
हमें डर है – कि कहीं
दिल्ली के काले अंग्रेज
गांधी की फोटो के नीचे खड़े होकर
मेरे बच्चों को
नक्सली बताकर
छत्तीसगढ़ के जंगलों में
कहीँ मुठभेड़ न दिखा दें…………………

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sanjeeba,sanjiba,poet sanjiba,sanjiba poetपरिचय :-

संजीबा

रंग कर्मी , सोशल एक्टिविष्ट , रचनाकार

नुक्कड़ नाटक में गिनीज बुक में दर्ज

कई बार पुलिस के जुर्म का शिकार हुए

जिंदल पुरुष्कार से सम्मानित – 25 लाख

कानपूर में निवास करते हैं,  संपर्क मोब.  093351939 10

1 COMMENT

  1. मै आरएसएस का काम करता था पर वहां भेदभाव इस स्तर का हे कि हम आप जैसों को समझ में नही आता मेरे पास कई साबुत है इनके द्वारा बड़े स्तर पर भेद भाव के इनका भंडाफोड़ कैसे किया जाय इसके लिए में एक प्लानिंग की है समय आने पर सबके सामने आएगी
    मै आपसे बहुत प्रभावित हूँ
    आपको नमस्कार करता हूँ और अपने विचारों से ऐसे ही अलख जागते रहिये ऐसी कामना करता हूँ
    जय हिंद

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