रितु झा की कहानी “अदृश्य आश “

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रितु झा की कहानी “अदृश्य आश “

शिव कुमार झा टिल्लू की टिप्पणी : इस कथा के मर्म का दर्शन औऱ इसके गर्भ में छिपे वर्तमान समाज के  गंभीर यथार्थ का मंथन करने के बाद मैं अचरज में पड़ गया . सभ्यता के शहरीकरण में भी अपने बोझिल स्वप्न लुप्त नहीं होते . कथाकार एक महिला हैं .शहरी संस्कृति से ओत- प्रोत हैं , लेकिन बेटे के लिए व्याकुल समाज को गंभीर चुनौती देकर इन्होने यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है की आज की मातायें गांधारी की तरह पुत्र के कुकर्म का भागी नहीं बनेगीं. कन्या भ्रूण ह्त्या जैसे गंभीर अपराध करने वालों को सोचना होगा ” जिस बेटे की लालसा में माँ को मजबूर किया जा रहा है वह बेटा यदि इस कथा के खलनायक इंद्रजीत की तरह  होगा तो रितु जैसी माँ उसे कदापि नहीं माफ़ कर सकती . यह तो कथा के परिपेक्ष्य् से हटकर बोलती हैं   “लेकिन काश ! ऐसे संतान से अच्छा बाँझिल कोख की मालकिन होती….. यह अभागी कमला !!!!!…
कथा के बिम्ब और शिल्प दोनों आकर्षक है  . बुढ़िया कमला के दुःखसागर में उठनेवाले तूफ़ान नीरज जी के एक पद्य के लिए भी चुनौती के  समान है .
“प्राणो की वर्तिका बनाकर
ओढ़ तिमिर की काली चादर
जलने वाला दीपक ही तो
जग का तिमिर मिटा पाता है
रोने वाला ही जाता है …….
वर्तमान समाज में माँ- बाप दीपक की तरह जलकर संतान के सकल तिमिर का अवसान तो करतें हैं लेकिन आदि से अंत तक रोते रह जाते  है.  पहले हम संतान होते हैं फिर हम माँ और बाप …हमें अपनी आरंभिक भूमिका से अडिग रहना होगा हमारा अंत नीरज की तरह हो .शायद यही कथाकार की ” अदृश्य आश ” है. . यहाँ इन्होने पहले भाव को दृश्य रूपक बनाया फिर व्यक्ति और जाति को भी भाव में बदल दिया ..मनोहारी कथा ! धन्यवाद ( टिप्पणीकार : शिव कुमार झा टिल्लू चर्चित साहित्यकार और समालोचक )

रितु झा की कहानी “अदृश्य आश “

अदृश्य आश

दुनिया से इंसानियत अभी ख़त्म नहीं हुई हैं .शायद इसलिए किसी ना किसी रूप से आशावादिता और आस्तिक प्रवृति आज भी प्रासंगिक हैं .कभी -कभी जीवन में इत्तफ़ाक़ इंसान को बहुत कुछ सिखा जाता है ..यह कहानी भी महज़  एक इत्तिफ़ाक़ है ..जिसकी नायिका है -एक ” माँ  ” अर्थात स्वयं में परिपूर्ण , धरा पर ईश्वर का एक रूप !
छः महीने पहले सर्दी की एक सुनहरी सुबह मेरे बेटे का दसवां जन्मदिन , मंदिर में पूजा करने के बाद हम माँ- बेटा मदिर के बाहर बैठे दीन-दुखियारों को दान देते हुए बाहर की ओर  बढ़ने लगे .आखिर में मैंने एक बूढ़ी औरत को दान देना चाहा . मैंने सहज रूप से आग्रह किया ,वरन  वो अपनी ध्यान में  मग्न और चिंतित थी .मैंने फिर कहा..” माँ जी ये ले लो” !
उसने मेरी और देखते हुए भीख ले लिया . मुझे थोड़ा अटपटा लगा कारण  वेश -वूषा  से वह भिखारन जो नहीं लग रही थी …..इसी गुनधुन में हम दोनों वहाँ से चल दिए .
चंद दिनों के बाद मैं फिर मंदिर आई .पूजा से ज्यादा उस बूढ़ी माँ को खोजने में मेरा ध्यान लगा रहा , तत्क्षण वो दिखी पर पहले से कमजोर, अस्वस्थ और अधिक मायूस , समझो किसी के इंतज़ार में थकी-हारी अब  अपनी मौत को पुकार रही हो .ध्यानमग्न और अश्रुधार से सिंचित माँ मेरी ” माँ जी!! माँ जी !!!पुकार का कोई जवाब नहीं दे रही थी .
मेरे उनके निकट जाकर ” ऐ माँ जी ” चिल्लाने के बाद  बूढ़ी माँ अंतर्ध्यान के आवरण से बाहर आकर बोली ” क्या है ????? जैसे उन्हें   अपने आत्म-साक्षात्कार से मेरा विमुख करना  भाया नहीं हो !!!!!!
मैंने पूछा ” आप भिखारन तो नहीं दिखती -फिर कौन है और  यहाँ कैसे ?
वृद्ध आँखों से अश्रुधारा वैतरणी की तरह बहने लगी और रुंधील गले से आई आवाज  ” बेटी मैं अपने बेटा और बहु के साथ यहाँबाबा विश्वनाथ का  दर्शन करने आई थी , उनसे मैं बिछड़ गयी , हम फरीदाबाद के हैं , मुझे घर का फ़ोन नंबर नहीं मालूम ..पता भी नहीं मालूम.. मैं मूर्ख जो हूँ और बेटे ने नया घर जो ले लिया है .वे लोग भी परेशान  होंगें ”
मैंने मदद की दुहाई देकर उन्हें अपने साथ अपने घर ले आई. मेरा ससुराल  खुशहाल और आदर्श है .छत पर बैठे अपने परिवार के सदस्यों से ” कमला माँ ” का मैंने परिचय करवाया और उन्होंने फिर आपबीती सबको  सुनाई. मेरे पति ने उनसे उनके बेटे का नाम और यथासाध्य जानकारी एकत्रित कर लिया . सुनील के सकारात्मक वचन से कमला माँ कुछ शांत हुई
.इसी उधेड़बुन में चंद दिन और बीत गए .अब कमला माँ मेरी सास के कामों में भी  हाथ बढ़ाने लगी.  बेटा राहुल तो उन्हें भी दादी माँ का दर्जा दे चुका था.लेकिन  हर शाम कमला माँ अपने अतीत में खो जाती थी और और मेरे पति सुनील के आने की प्रतीक्षा में बाहर बैठ जाती .सुनील आते तो फिर पूछती ” बेटा ! कोई खबर , मेरे परिवार का !
एक दिन सुनील ने आते ही कहा हां माँ जी आज खुशखबरी है .आपके बेटे इंद्रजीत  का पूरा पता और फ़ोन नंबर मिल चुका है ..मैं अभी फ़ोन करता हूँ
सुनील ने फ़ोन मिलाया …आप इंद्रजीत शर्मा बोल रहे हैं ?
उधर से आई आवाज़ हाँ ..लेकिन आप कौन ?
जी मैं सुनील बोल,रहा हूँ
इंद्रजीत शर्मा …कहिये
सुनील …आपकी माँ का नाम कमला शर्मा है
इंद्रजीत शर्मा .. जी हाँ
सुनील ..वो यहाँ ( सुनील कह ही रहे थे कि…)
इंद्रजीत शर्मा : उनका स्वर्गवास हो चुका है. फिर हेलो !हेलो फ़ोन काट दिया गया और अब सुनील काटो तो खून नहीं ! भला कमला माँ को दिए वचन का पालन कैसे होगा…
सुनील बोले वह आपका बेटा नहीं कोई और था , शायद गलत नंबर लग गया , और फिर चुपचाप अपने कमरे में चले गए .
रात को सोते समय मैंने पूछा क्या बात है ..परेशान दिख रहे हैं ….
सुनील बोले ….” अनिता कही हमारे बेटे ने भी ऐसा ही किया तो..?
मैंने हैरानी से पूछा ..क्यों क्या हुआ जी ..?
सुनील बोले– जानती हो, कमला माँ के बेटे ने कहा की उनकी माँ का स्वर्गवास हो चुका है .उन्होंने अपनी जीती जागती माँ को मार डाला है ..
अब मैं क्या कहूँगा अपनी कमला माँ को …वह जो एक आश में हैं ..अदृश्य आश ! अपने परिवार को पुनः पाने की ! मैं उन्हें कब भ्रमित करता रहूंगा .
मैंने कहा– आप कुछ  मत कहना मैं सम्हालने की कोशिश करती हूँ .
अगले सुबह मैंने सास-ससुर को यह कटु सत्य बतलाई . उन्हें  भी आश्चर्य हुआ …कि आज के समय में माँ बाप इस कदर बोझ बन चुके हैं ..अब कमला माँ का क्या होगा .
मेरी सास ने सरलता से कहा ” वह मेरी बहन जैसी बनकर रहेंगीं . मैं खुशी से मुस्कुराने लगी .फिर सारे लोग एकमत हो चुके थे की इस अभागी को ” अदृश्य आश ” में उसकी अंतिम सांस तक  रहने दिया जाय . उन्हें अपनेपन का एहसास कराया जाय . आज से हमलोग ही उनके परिवार हैं . शाम को जब सुनील आये तो वो भी इस मत को सहज रूप से स्वीकार कर चुके थे.
अभी कमला माँ राहुल के साथ बूढ़ी -दादी का आनंद तो उठा रही है …लेकिन उसकी अदृश्य आश छुपाये नहीं छुपती . सत्य भी है .कोख से जन्मे एक  मृत पंखुरी को भी नारी नहीं भूल सकती ..फिर भटके भरे- पूरे संतान औऱ अपनी   हरी -भरी बगिया  को कैसे भूल पाये ?
लेकिन काश ! ऐसे संतान से अच्छा बाँझिल कोख की मालकिन होती….. यह अभागी कमला !!!!!

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ritu-jhan-ritu-jhan-ki-kavitaen.poet-ritu-jha-ritu-jha-invc-newsपरिचय – :

रितु झा

जन्म तिथि : ०९–११-१९८२

पूर्व उद्घोषक : आकाशवाणी जगदलपुर

सम्प्रति  : जम्मू में प्रवास

सम्पर्क :  ritujha97@yahoo.com

11 COMMENTS

  1. सारे पाठक मित्रों और अपनी प्रतिक्रिया देने वाले विद्वत जनों को मेरी ओर से नव वर्ष की मंगलकामना …

  2. वाह ! बेजोड़ कथा .साहित्य में नया नाम है रितु जी का पर दर्शन बहुत विशाल लगे ….चिंतन करके लिखी हुई कथा ..पीढ़ी के साथ हमारी सोच बदल रही ..हर माँ को सोचना होगा ..संतान के बीच में फर्क ना किया जाय बेटे निट्ठले होते जा रहे .टिप्पणी का क्या कहना …दोनों बहुत सुन्दर.

  3. kaphi achha lagaa…subah subah international news achche samachar ke saath achha sahitya bhee deta hai…..web portal me yah vikas kee raah me hai..bahut sunder kahaanee ….kaash aise santaan kisee ko naa de bhagwaan..

  4. बहुत बढ़िया . कथा .छोटी परन्तु भाव विशाल .बिम्ब और शिल्प का क्या कहना !! वाह !! बहुत खूब

  5. एक अनोखी कहानी ..देखने में सरल परन्तु मन को छूनेवाली .टिप्पणी ने तो और चार चाँद डाल दिया

  6. बहुत सुन्दर कथा लिखी है आपने .संभव हो तो मैथिली में भी लिखी जाय ..टिप्पणीकार के बारे में क्या कह सकता हूँ .वो तो मैथिलीऔर हिन्दी साहित्य के क्षेत्र के चर्चित नाम हैं ही .बहुत सारगर्भित कहानी .इसे बनाये रक्खें …

  7. बहुत सुन्दर कहानी विशेषकर इसका भाव वर्तमान काल की सच्चाई है आज कल बूढ़े माता पिता की यही दशा होती है बहुत सुन्दर लघु कथा …ह्रदय विदीर्ण हो गया …टिप्पणी भी लाजवाव है …
    साभार,
    सौगता सेन गुप्ता
    # ९१६२१८७५४८

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