शिक्षा अधिकार कानून और चुनौतियाँ

0
47

javed-anis,JAVED ANIS,Right to Education Act– जावेद अनीस – 

‘‘मैं पहले एक प्रायवेट स्कूल में पढ़ता था परन्तु घर की आर्थिक स्थिति सही नही होने के कारण मुझे परिवार वालों ने प्रायवेट स्कूल से निकाल कर सरकारी स्कूल में दाखिल करा दिया, लेकिन वहां पढ़ाई अच्छी नही होती थी इस कारण कुछ दिनों बाद मैंने स्कूल जाना बंद कर दिया और काम करने लगा। घर वालों ने भी कहा कि इस तरह की पढ़ायी में तो वक्त की बर्बादी है, इसके बदले कुछ हुनर सीख लेना चाहिए क्योंकि ऐसी पढ़ायी से तो कोई नौकरी मिलेगी ही नही। पढ़ायी तो ऐसी होनी चाहिए जिससे आगे की जिंदगी में कुछ फायदा भी दिखे।’’

यह कहना है 14 वर्ष रिजवान  (बदला हुआ नाम) का तो फिलहाल एक आटोमेकेनिक की दूकान में काम सीखते हैं।

पिछले साल नये सत्र की शुरआत के दौरान मुझे कुछ सरकारी स्कूल में जाने का मौका मिला, वहां देखने में आया कि शिक्षातंत्र का ज्यादा जोर तो मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के तहत तय लिए गये 25 फीसदी प्राइवेट स्कूलों के सीटों के दाखिले को लेकर है और वहां के शिक्षक इलाके के गरीब बच्चों का प्राइवेट स्कूलों में दाखिले के लिए ज्यादा दौड़ भाग कर रहे हैं। शिक्षक इस बात से हतोत्साहित भी दिखाई दिए कि उन्हें अपने स्कूलों में बच्चों के एडमिशन के बजाये प्राइवेट स्कूलों के लिए प्रयास करना पड़ रहा है।

दरअसल भारत में सरकारी स्कूलों की यही हकीकत है, उदारीकरण के बाद बहुत ही सुनोयोजित तरीके से सरकारी शिक्षा तंत्र को ध्वस्त किया जा रहा है और इसका नतीजा सामने है, “असर” 2014 (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) के अनुसार भारत में निजी स्कूल जाने वाले बच्चों का प्रतिशत 51.7 फीसदी हो गया है, 2010 में यह दर 39.3 फीसदी थी। सरकारी स्कूलों पर आम जनता का विश्वास लगातार घट रहा है। अभिभावकों की पहली पसंद प्राइवेट स्कूल हो चुके है। सरकारी स्कूल वो ही जाते हैं जिनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है। शिक्षा के जरिये समाज में गैर-बराबरी पाटने का सपना जेसे बिखर सा गया है। आज सरकारी स्कूलों में समाज के सबसे वंचित तबकों के बच्चे ही जाते हैं, इसीलिए इन स्कूलों को भी वंचित बना दिया गया है। यह सब कुछ रातों-रात में नहीं हुआ है। गांधीजी का मानना था कि शिक्षा के अभाव में एक स्वस्थ समाज का निर्माण असंभव है, केवल साक्षरता को शिक्षा नहीं कहा जा सकता और वे ऐसे शिक्षा पर जोर देते थे जो लोगों को रोजगार दे सके और आत्मनिर्भर बना सके। लेकिन आजादी के बाद बनाये गये हमारे संविधान में शिक्षा को मूल अधिकार का दर्जा नहीं मिल सका और इसे राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में अनुच्छेद 45 में शामिल किया जा सका।

वर्ष 2002 में भारत की संसद द्वारा किये गये 86 वें संविधान संशोंधन में शिक्षा को अनुच्छेद “21-क’’  के अध्याय-3 में मूल अधिकार के रूप में शामिल किया गया था। हालांकि इस दिशा में 2009 में भारतीय संसद द्वारा “नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा विधेयक” पास किया गया। इस अधिनियम के आगामी एक अप्रेल को पांच साल पूरे होने वाले हैं, अब तस्वीर काफी हद तक साफ हो चुकी है और हम यह देख सकते हैं कि भारत के बच्चों को दिया गया यह आधा–अधूरा “शिक्षा के हक” का जमीनी स्तर पर ठीक तरह से क्रियान्वयन हो सका है या नहीं, और शिक्षाविदों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा इसको लेकर की गयी आशंकाये सही साबित हो रही हैं। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि इसके लागू होने के बाद सुधार कम और कमियां ज्यादा सामने आने लगी है। इस दौरान सरकार ने सिर्फ नामांकन, अधोसंरचना और पच्चीस प्रतिशत रिजर्वेशन पर जोर दिया है, पढाई की गुणवत्ता को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है।

गैर सरकारी संस्था प्रथम की असर (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) भी साल दर साल इसी बात का खुलासा करती आ रही है। जनवरी 2015 में जारी की गयी “असर” की दसवीं सालाना रिपोर्ट भी बताती है कि शिक्षा का अधिकार कानून मात्र बुनियादी सुविधाओं का कानून साबित हो रहा है। पढ़ाई का स्तर सुधरने के बजाये लगातार बिगड़ रही है। यह रिपोर्ट व्यवस्था और शिक्षा प्रशासन से जुड़े लोगों को कठघरे में खड़ा करती है।

रिपोर्ट के अनुसार जहां वर्ष 2009 में कक्षा3 के 5.3% बच्चे कुछ भी पाठ नहीं पढ़ सकते थे, वहीँ  2014 में यह अनुपात और बढ़ कर 14.9 प्रतिशत हो गया है। इसी तरह से 2009 में कक्षा 5 के 1.8% बच्चे कुछ भी पाठ नहीं पढ़ सकते थे, 2014 में यह अनुपात और बढ़ कर 5.7 प्रतिशत हो गया है।

गणित को लेकर भी हालत बदतर हुई है, रिपोर्ट के अनुसार 2009 में कक्षा 8 के 68.7% बच्चे भाग कर सकते थे, लेकिन 2014 में यह स्तर कम होकर 44.1 प्रतिशत हो गयी है।

रिपोर्ट के अनुसार भारत में कक्षा आठवीं के 25 फीसदी बच्चे दूसरी कक्षा का पाठ भी नहीं पढ़ सकते हैं। राजस्थान में यह आंकड़ा 80 फीसदी और मध्यप्रदेश में 65 फीसदी है। इसी तरह से देश में कक्षा पांच के मात्र 48.1 फीसदी छात्र ही कक्षा दो की किताबें पढ़ने में सक्षम हैं।

अंग्रेजी की बात करें तो आठवीं कक्षा के सिर्फ 46 फीसदी छात्र ही अंग्रेजी की साधारण किताब को पढ़ सकते हैं। राजस्थान में तो आठवीं तक के करीब 77 फीसदी बच्चे ऐसे हैं, जो अंग्रेजी का एक भी हर्फ  नहीं पहचान पाते, वही मध्य प्रदेश में यह आकड़ा 30 फीसदी है।

दरअसल इस स्थिति के लिए शिक्षा के अधिकार कानून में कमियाँ और इसका बाजारीकरण ही जिम्मेदार हैं, समस्या खुद इस कानून और इसके क्रियान्वयन में है। कानून में छः साल तक के आयु वर्ग के बच्चों की कोई बात नहीं कही गई है, यानी बच्चों के प्री-एजुकेशन के दौर को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया है। इसी तरह से अनिवार्य शिक्षा के तहत सिर्फ प्राइवेट स्कूलों में 25 फीसदी सीटों पर कमजोर आय वर्ग के बच्चों के आरक्षण की व्यवस्था है, इससे सरकारी शालाओं में पढ़ने वालों का भी पूरा जोर प्राइवेट स्कूलों की ओर हो जाता है। यह एक तरह से गैर बराबरी और शिक्षा के बाजारीकरण को बढ़ावा देता है। जिनके पास थोड़ा-बहुत पैसा आ जाता है वे भी अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाने को मजबूर हैं लेकिन जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति कमजोर हैं उन्हें भी इस ओर प्रेरित किये जा रहे हैं। दूसरी तरफ इस कानून में बजट प्रावधान का भी जिक्र नहीं है। पिछले साल संयुक्त राष्ट्र (यूएन) की शैक्षणिक ईकाईं यूनेस्को द्वारा जारी रिपोर्ट “एजुकेशन फॉर ऑल ग्लोबल मॉनिटरिंग” में भारत में शिक्षा पर बजटीय आवंटन में कमी को लेकर चिंता जताई गयी थी। रिपोर्ट के अनुसार भारत का शिक्षा पर खर्च वर्ष 1999 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.4 प्रतिशत था, जो 2010 में घटकर 3.3 प्रतिशत हो गया। कुल मिलकर खुद सरकार ही शासकीय स्कूलों की बदहाली और इसे मजबूरी वाला विकल्प बनाने के लिए जिम्मेदार है।

हमारे देश में प्राथमिक शिक्षा के सुधार के प्रति गठित कई आयोगों ने सिफारिश की है कि शिक्षा खर्च बढाया जाए और इसमें समानता लाने, गुणवत्ता सुधारने के लिए कदम उठाये जाए। 1964 में भारत सरकार द्वारा गठित “डॉ दौलतसिंह कोठारी आयोग” ने समान स्कूल प्रणाली (कामन स्कूल सिस्टम) की वकालत करते हुए एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था तैयार करने की सिफारिश की थी जहां सभी तबकों के बच्चे एक साथ पढ़ सकें। अगर ऐसा होगा तभी शिक्षा का तंत्र ठीक ढंग से काम कर सकेगा और सही मायनों में हम देश के सभी बच्चों को निःशुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का हक देने में कामयाब हो सकेंगें।

लेकिन इसके विपरीत हमारी सरकारों ने शिक्षा जैसे मौलिक अधिकार और महत्वपूर्ण विषय को बाजार के हवाले करने का ही काम किया है। पिछले वर्ष नई सरकार बनने के बाद से उदारीकरण के दूसरे दौर की शुरूआत हो चुकी है, इससे शिक्षा के बाजारीकरण की प्रक्रिया और तेज हो रही है। पूरे देश में करीब एक लाख सरकारी स्कूलों को युक्तिकरण ( स्कूलों का विलय ) के नाम पर बंद किया जा चूका हैं। बंद करने के पीछे यह तर्क दिया जा रहा है कि यहाँ बच्चों की संख्या कम थी। इसी कड़ी में मुंबई नगर पालिका ने एक नया माडल पेश किया है जिसमें उन्होंने स्कूलों को निजी-सरकारी सांझेदारी से चलाने का फैसला किया है, क्रूर शब्दों में कहा जाये तो अब निजी क्षेत्र और कॉर्पोरेट स्कूलों को ठेके पर चलाया करेंगें। लेकिन जैसे कि यह काफी नहीं था कि शिक्षा पर एक और मार पड़ी है, मोदी सरकार आने के बाद देश की शिक्षा के भाग्यविधाता “दीनानाथ बत्रा” जैसे लोग बन बैठे है और इसे एक खास रंग में रंगने के लिए कमर कस कर तैयार हैं। शिक्षा के क्षेत्र में “अंधरे दिनों” के संकेत साफ नज़र आ रहे हैं।

शिक्षा एक बहुत बुनियादी जरूरत है इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक मूल्यों, आपसी सहिष्णुता, वैज्ञानिक सोच के साथ रोजगारपरक होना चाहिये हैं। लेकिन ज्ञान आधारित और शिक्षित समाज बनाने की हकीकत तो  बहुत दूर की बात है, अभी तक हम साक्षर भारत ही नहीं बना पाए हैं।

हमारे प्रधानमंत्री नारे गढ़ने में बहुत माहिर है, देश के बच्चों को भी उनके लिए एक नारा गढ़ना चाहिए “समतामूलक और पूँजी के पहुँच से दूर की शिक्षा ” का नारा।
——————————————————-

javed-anis,JAVED ANIS]परिचय – :
जावेद अनीस
लेखक ,रिसर्चस्कालर ,सामाजिक कार्यकर्ता

लेखक रिसर्चस्कालर और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, रिसर्चस्कालर वे मदरसा आधुनिकरण पर काम कर रहे , उन्होंने अपनी पढाई दिल्ली के जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पूरी की है पिछले सात सालों से विभिन्न सामाजिक संगठनों के साथ जुड़  कर बच्चों, अल्पसंख्यकों शहरी गरीबों और और सामाजिक सौहार्द  के मुद्दों पर काम कर रहे हैं,  विकास और सामाजिक मुद्दों पर कई रिसर्च कर चुके हैं, और वर्तमान में भी यह सिलसिला जारी है !

जावेद नियमित रूप से सामाजिक , राजनैतिक और विकास  मुद्दों पर  विभन्न समाचारपत्रों , पत्रिकाओं, ब्लॉग और  वेबसाइट में  स्तंभकार के रूप में लेखन भी करते हैं !

Contact – 9424401459 –   anisjaved@gmail.com
C-16, Minal Enclave , Gulmohar clony 3,E-8, Arera Colony Bhopal Madhya Pradesh – 462039

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here