धनाढ्यो की उलटबासी

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 – सुनील दत्ता –

invcnewsकबीर की उलटबासिया जनमानस में प्रचलित रही है और लोकोत्तियो का हिस्सा रही है | लोग अपने अपने हिसाब से उसका गूढ़ अर्थ निकालते व समझते है | लेकिन विडम्बना यह है कि आधुनिक वैज्ञानिक युग में भी ऐसी उलटबासिया का दौर बढ़ता जा रहा है | उस उलटबासी के रूप में नही बल्कि सच के रूप में प्रचारित किये जाने का काम किया जा रहा है | विडम्बना यह भी है कि यह उलटबासी कहने वाले लोग कागज कलम को हाथ तक न लगाने वाले कबीर की तरह अनपढ़ नही है बल्कि आधुनिक युग की उच्च शिक्षा से लैस है | इनमे उच्च शिक्षित राजनीतिग्य , समाजशास्त्रियो अर्थशास्त्रियो प्रचार माध्यमि विद्वानों की पूरी जमात शामिल है|

यहाँ उच्चस्तरीय हिस्सों द्वारा कृषि क्षेत्र से सम्बन्धित एक बहुप्रचारित उलटबासी आपको सुना रहे है | पिछले दस सालो से कृषि क्षेत्र को दी जाती रही सब्सिडी को न केवल अर्थव्यवस्था पर बोझ बताया जा रहा है , बल्कि कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक या सरकारी निवेश के घटने का सबसे बड़ा कारण भी बताया जा रहा है | पिछले 10 – 15 सालो से कृषि क्षेत्र में सब्सिडी की बढ़ती रकम के साथ इस क्षेत्र में घटते सरकारी निवेश को इसके साक्ष्य के रूप में पेश किया जाता रहा है | उदाहरण रासायनिक खादों तथा कृषि क्षेत्र की बिजली – सिंचाई आदि पर दी जाती रही सब्सिडी की रकम इस समय लगभग 1 लाख करोड़ पहुच चुकी है | इसके अलावा खाध्य सुरक्षा योजना के तहत सस्ते दर पर खाद्यान्न सप्लाई करने के लिए दी जाने वाली सब्सिडी की रकम भी 1 लाख करोड़ से उपर है | इन दोनों को मिलाकर कृषि क्षेत्र को 2 लाख करोड़ से अधिक सब्सिडी दिए जाने का प्रचार किया जाता रहा है , हालाकि खाद्यान्न सुरक्षा के मद में दी जाने वाली 1 लाख करोड़ से अधिक की सब्सिडी दरअसल कृषि क्षेत्र  को  मिलने वाली सब्सिडी कदापि नही है | उसका लाभ न तो किसानो को कृषि उअत्पादन में मिलता है और न ही कृषि उत्पादों के बिक्री बाजार में |

इसीलिए इसे कृषि सब्सिडी में शामिल करके कृषि क्षेत्र को भारी  सब्सिडी वाला क्षेत्र बताने के कुप्रचार के साथ साथ यह कृषि सब्सिडी की वास्तविकता को छिपाने वाला हथकंडा भी बन गया है |

अब जहा तक कृषि क्षेत्र को दी जाने वाली सार्वजनिक व सरकारी सहायता का मामला है तो उसकी मात्रा में बहुत कुछ वृद्दि तो होती रही है , लेकिन यह सहायता निजी क्षेत्र की यानी किसानो की निजी हिस्सेदारी के मुकाबले घटती रही है |

उदाहरण 1990 – 91 में कृषि क्षेत्र में सरकारी व निजी क्षेत्र का कुल निवेश 14 हजार 83 करोड़ था जिसमे सरकारी निवेश का हिस्सा 4 हजार 395 करोड़ या कुल निवेश के एक तिहाई से कुछ कम था बाद के सालो में किसानो द्वारा किये जाने वाले निवेश का हिस्सा लगातार बढ़ता और  सरकारी और सार्वजनिक निवेश का हिस्सा लगातार घटता रहा | 2012– 13 में 1 लाख 62 हजार करोड़ के कुल निवेश में सरकारी निवेश लगभग 24 हजार करोड़ का हिस्सा घाट कर कुल निवेश के छठे हिस्से तक पहुच गया |

फिर यह सरकारी निवेश रूपये के बढ़ते अवमूल्यन और आधुनिक कृषि विकास की जरूरतों को देखते हुए ज्यादा घटता रहा | कई बार तो पिछले सालो की तुलना में इसके कुल आवटन में ही कमी कर दी गयी |

उदाहरण 2007 – 8 में सरकारी निवेश की 23 हजार 257 करोड़ की कुल रकम को 2008 – 9 में घटाकर 20 हजार 572 करोड़ कर दिया गया | उसी तरह 2009 – 10 में 22 हजार 693 करोड़ के निवेश को 2010 – 2011 में घटाकर 19 हजार 854 करोड़ कर दिया गया |

कुल मिलाकर देखे तो 90 के दशक से पहले कृषि क्षेत्र में कुल निवेश में सरकारी निवेश के 30 प्रतिशत से अधिक का हिस्सा , 1990 के दशक में और फिर सन 2000 से लेकर अब तक लगातार घटता हुआ15 प्रतिशत तक पहुच गया है | कृषि में निवेश की जिम्मेदारी किसानो पर खासकर धन पूंजीहीन किसानो पर ही डालते जाने का काम निरंतर बढाया जा रहा है |

ऐसी स्थिति में यह कहना कि सरकारों द्वारा पिछले 15 – 20 सालो से कृषि सब्सिडी बढाने की नीतियों एवं कार्यवाही के चलते ही सरकारी निवेश कम किया जाता रहा है , झूठ के अलावा कुछ नही है | यह आधुनिक युग की एक उलटबासी ही है | जिसे एक सच का जमा पहनकर प्रचारित किया जाता रहा है |यह प्रचारित उलटबासी इसीलिए भी है की 1990 के दशक से पहले खासकर 1965 – 66 से लेकर 1986तक कृषि क्षेत्र में सरकारी निवेश को बढ़ावा देते हुए खाद , बीज , सिंचाई , बिजली में सब्सिडी देने का कम होता रहा है | पर 1991 में उदारीकरणवादी , वैश्वीकरणवादी व निजीकरणवादी नीतियों को लागू किये जाने के बाद से ही सर्वाधिक साधन सम्पन्न उद्योग वाणिज्य – व्यापार के बड़े मालिको के लिए अधिकाधिक छुट दिए के साथ देश के व्यापक अशक्त एवं साधनहीन किसानो को अपने बूते खेती करने के छोड़ा जाता रहा है |

फिर जहा तक कृषि में सब्सिडी बढाये जाने की बात है तो यह प्रचार भी सच नही बल्कि कोरा झूठ है | उसका सबसे बड़ा सबूत तो यह है की 1990 से पहले  किसानो को खाद , बिजली , बीज , सिचाई को सरकारों द्वारा नियंत्रित मुले से कम मुले पर दिया जाता था | लेकिन 1990 के बाद से इस मूल्य नियंत्रण को घटते हुए कृषि लागत के साधनों सामानों को उसके बाजार मूल्य के हवाले कर दिया गया है | 90 के दशक से खासकर 1995 -96 से बीजो खादों के तेजी से बढ़ते मुले इसी प्रक्रिया के परिलक्षण है l

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sunil-kumar-duttaपरिचय:-

सुनील दत्ता

स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक

वर्तमान में कार्य — थियेटर , लोक कला और प्रतिरोध की संस्कृति ‘अवाम का सिनेमा ‘ लघु वृत्त चित्र पर  कार्य जारी है
कार्य 1985 से 1992 तक दैनिक जनमोर्चा में स्वतंत्र भारत , द पाइनियर , द टाइम्स आफ इंडिया , राष्ट्रीय सहारा में फोटो पत्रकारिता व इसके साथ ही 1993 से साप्ताहिक अमरदीप के लिए जिला संबाददाता के रूप में कार्य दैनिक जागरण में फोटो पत्रकार के रूप में बीस वर्षो तक कार्य अमरउजाला में तीन वर्षो तक कार्य किया |

एवार्ड – समानन्तर नाट्य संस्था द्वारा 1982 — 1990 में गोरखपुर परिक्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक द्वारा पुलिस वेलफेयर एवार्ड ,1994 में गवर्नर एवार्ड महामहिम राज्यपाल मोती लाल बोरा द्वारा राहुल स्मृति चिन्ह 1994 में राहुल जन पीठ द्वारा राहुल एवार्ड 1994 में अमरदीप द्वारा बेस्ट पत्रकारिता के लिए एवार्ड 1995 में उत्तर प्रदेश प्रोग्रेसिव एसोसियशन द्वारा बलदेव एवार्ड स्वामी विवेकानन्द संस्थान द्वारा 1996 में स्वामी
विवेकानन्द एवार्ड
1998 में संस्कार भारती द्वारा रंगमंच के क्षेत्र में सम्मान व एवार्ड
1999 में किसान मेला गोरखपुर में बेस्ट फोटो कवरेज के लिए चौधरी चरण सिंह एवार्ड
2002 ; 2003 . 2005 आजमगढ़ महोत्सव में एवार्ड
2012- 2013 में सूत्रधार संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह
2013 में बलिया में संकल्प संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह
अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन, देवभूमि खटीमा (उत्तराखण्ड) में 19 अक्टूबर, 2014 को “ब्लॉगरत्न” से सम्मानित।
प्रदर्शनी – 1982 में ग्रुप शो नेहरु हाल आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो चन्द्र भवन आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो नेहरु हल 1990 एकल प्रदर्शनी नेहरु हाल 1990 एकल प्रदर्शनी बनारस हिन्दू विश्व विधालय के फाइन आर्ट्स गैलरी में 1992 एकल प्रदर्शनी इलाहबाद संग्रहालय के बौद्द थंका आर्ट गैलरी 1992 राष्ट्रीय स्तर उत्तर – मध्य सांस्कृतिक क्षेत्र द्वारा आयोजित प्रदर्शनी डा देश पांडये आर्ट गैलरी नागपुर महाराष्ट्र 1994 में अन्तराष्ट्रीय चित्रकार फ्रेंक वेस्ली के आगमन पर चन्द्र भवन में एकल प्रदर्शनी 1995 में एकल प्रदर्शनी हरिऔध कलाभवन आजमगढ़।

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* Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS .

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