क्या है औचित्य… साईं बाबा के विरोध का

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– निर्मल रानी –

sai baba and the hanuman,sai baba killing hanuman,hanuman killing sai baba, hanuman bitting sai baba, sai baba running away from hanuman, resistance of Sai Baba,संतों,पीरों व फकीरों की तपोभूमि भारतवर्ष कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक सैकड़ों महापुरुषों की कर्मभूमि रहा है। यह साधू-संत-फकीर किसी एक धर्म अथवा संप्रदाय में पैदा नहीं हुए बल्कि इन्होंने कई अलग-अलग धर्मों से संबंध रखने वाले परिवारों में जन्म लिया। परंतु उनकी तपस्या,परोपकार की उनकी भावना,उनकी परमार्थ संबंधी कारगुज़ारियां,अपनी तपस्या के बल पर जनहित हेतु दिखाए जाने वाले उनके चमत्कार तथा उनकी नि:स्वार्थ,निश्चल व निष्कपट मनोभावना ने उन्हें समाज में एक सर्वमान्य संत-पीर अथवा फकीर का दर्जा दिलाया। उन्होंने अपने चमत्कारों तथा अपनी कारगुज़ारियों से यह प्रमाणित किया कि वे मानवता के कल्याण हेतु पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं। इसीलिए यह कहा जाता है कि किसी भी वास्तविक साधू-संत अथवा फकीर का अपना कोई धर्म अथवा मज़हब नहीं होता। वह मात्र एक फकीर होता है जिसकी नज़रों में प्रत्येक धर्म,आस्था तथा विश्वास के मानने वाले सभी लोग यहां तक कि समस्त प्राणी एक समान होते हैं। एक सच्चा संत अथवा फकीर निश्चित रूप से अपने जीवन में किए जाने वाले त्याग व तपस्या से यह साबित कर देता है कि उसका धन-दौलत,संपत्ति, वैभव,सोना-चांदी, सिंहासन अथवा शोहरत आदि से कोई लेना-देना नहीं। हमारे देश में जहां ऐसे कई महान संत व फकीर हुए हैं उन्हीं में एक अत्यंत प्रतिष्ठित व सम्मानित नाम शिरडी वाले साईं बाबा का भी है।

आज न केवल भारतवर्ष में बल्कि पूरे विश्व में साईं बाबा के करोड़ों अनुयायी हैं। बावजूद इसके कि साईं बाबा ने न तो कभी स्वयं को भगवान का अवतार अथवा भगवान कहलाए जाने की इच्छा ज़ाहिर की न ही उन्होंने कभी धन-दौलत ,सोना-चांदी आदि के प्रति अपना कोई मोह जताया। उन्होंने अपने जीवन में कभी अपने भक्तों को अपनी मूर्ति बनाए जाने,अपनी पूजा-अर्चना किए जाने या अपनी स्तुुति कराए जाने हेतु कभी प्रोत्साहित नहीं किया। वे स्वयं फटे कपड़ों में शिरडी नामक स्थान पर इधर-उधर भूखे-प्यासे भटकते रहते थे। वे अपनी तपस्या में लीन रहते। उनके त्याग से प्रभावित होकर सभी धर्मों व संप्रदायों के लोग उनके भक्त बनते गए। वे साईं बाबा के चमत्कारों से प्रभावित होते,उनके आशीर्वाद से उन्हें फायदा पहुंचता तथा तमाम लोगों को विभिन्न प्रकार की कठिनाईयों से निजात हासिल होती। साईं बाबा के चमत्कार के सैकेड़ों प्रमाणित िकस्से आज भी शिरडी के निवासी सुनाते रहते हैं। उनके जीवन से जुड़ी अनेक वस्तुएं अभी भी शिरडी में मौजूद हैं जो उनके जीवन में दिखाए जाने वाले चमत्कार का जीता-जागता साक्ष्य हैं। कई िफल्मकारों ने उनके जीवन पर िफल्में बनाकर उनके जीवन पर प्रकाश डालने की कोशिश भी की है। परंतु अब इसे साईं बाबा के भक्तों व उनके अनुयाईयों की दीवानगी की इंतेहा कहा जाए अथवा श्रद्धा का चरमोत्कर्ष कि साईं बाबा अपने जीवन में जिन बातों से दूर रहने की तथा जिनकी अनदेखी करने की कोशिश करते थे आज उनके भक्त उन्हीं रास्तों पर चलकर साई बाबा जैसे महान संत को एक विवादित संत की श्रेणी में खड़ा कर रहे हैं। उन्होंने स्वयं को कभी भगवान का अवतार या भगवान नहीं कहा तो भी उनके अनुयायी उनमें भगवान तलाश रहे हैं। उन्होंने कभी अपनी मूर्ति स्थापित करने या अपने नाम का मंदिर बनाने की इच्छा ज़ाहिर नहीं की परंतु उनके भक्त आज देश में जगह-जगह साईं बाबा के नाम के मंदिर बनवा रहे हैं तथा उनमें साईं बाबा की मूर्तियां स्थापित कर उनकी आरती-पूजा करा रहे हैं। उन्होंने कभी सोना-चांदी,आभूषण तथा धन-सपंत्ति के प्रति अपना कोई लगाव नहीं रखा परंतु आज साईं बाबा के शिरडी स्थित मंदिर की गिनती देश के उन मंदिरों में हो रही है जहां सबसे अधिक सोना-चांदी व धन चढ़ाया जाता है।

और निश्चित रूप से इन्हीं परिस्थितियों ने व साईं बाबा के प्रति लोगों के बढ़ते आकर्षण ने व उनके अनुयाईयों की लगातार बढ़ती संख्या ने कुछ ऐसे धर्माधिकारयिों के कान खड़े कर दिए हैं जिन्हें यह महसूस होने लगा है कि कहीं साई बाबा के बढ़ते प्रभाव से उनकी अपनी लोकप्रियता में गिरावट न आने लगे। वे यह महसूस करने लगे हैं कि कहीं उनके हिस्से में आने वाला चढ़ावा      साईं बाबा के मंदिरों में न चला जाए। और इन्हीं चिंताओं ने देश में साईं बाबा के विरोध का एक बड़ा मोर्चा खोल दिया है। दु:ख की बात तो यह है कि साईं बाबा का  विरोध बेहद निचले स्तर पर जाकर किया जा रहा है। जहां साधू-संत-फकीर की कोई जात अथवा धर्म नहीं होता वहीं उस महान फकीर को मुसलमान मां-बाप की संतान बताकर उनके प्रति लोगों के दिलों में भेदभाव पैदा करने की कोशिश की जा रही है। बिना यह सोचे-समझे हुए कि भारतवर्ष वह देश है जहां बाबा फरीद,बुल्लेशाह,ख़्वाज़ा मोईनुदीन चिश्ती व हज़रत निज़ामुदीन औलिया जैसे दर्जनों संत ऐसे हैं जो भले ही मुस्लिम माता-पिता की संतान क्यों न रहे हों परंतु अपने वास्तविक फकीरी जीवन तथा सभी धर्मों व जातियों के लोगों को समान रूप से गले लगाने व सब को समान रूप से आशीर्वाद देने के चलते उन्होंने मुसलमानों से भी अधिक लोकप्रियता अन्य धर्मों में खासतौर पर हिंदू धर्म के लोगों में अर्जित की है। लिहाज़ा साईं बाबा को यदि साईं चांद मियां के नाम से भी प्रचारित करने की कोशिश की जाए तो भी उनकी लोकप्रियता पर कोई फर्क नहीं पडऩे वाला।

बड़े दु:ख की बात है कि शंकराचार्य जैसी अति सम्मानित गद्दी पर बैठे हुए शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जिन्होंने कुछ माह पूर्व sai baba and the hanuman,sai baba killing hanuman,hanuman killing sai baba, hanuman bitting sai baba, sai baba running away from hanumanही साईं बाबा के विरुद्ध अपना मोर्चा खोला था एक बार फिर पिछले दिनों उन्होंने भोपाल में साईं बाबा को अपमानित करने वाला एक विवादित पोस्टर जारी किया। इस पोस्टर में पेंटिंग के माध्यम से यह दर्शाया जा रहा है कि हनुमान जी अपने हाथों में एक बड़ा वृक्ष उठाकर साईं बाबा को खदेड़ रहे हैं। पोस्टर के ऊपरी भाग में लिखा है कि-‘ हनुमान जी ने खदेड़ा साईं चांद मियां को,बजरंग बलि हुए क्रोधित  साईं के साथ रामनाम को जोडऩे पर। बजरंग बली ने किया साईं मियां के पाखंड का अंत’। इसी पोस्टर के निचले भाग पर साईं बाबा की ओर से लिखा दर्शाया जा रहा है कि-‘अब हम शिरडी में नहीं रह सकते,मेरी रूह कांप रही है। हम यहां से पाकिस्तान जा रहे हैं,हमें बख्श दो हनुमान जी महाराज हम आप का कोप नहीं सह पाएंगे’। इस प्रकार का पोस्टर साईं भक्तों का नहीं बल्कि सीधे तौर पर साईं बाबा जैसे महान फकीर का अपमान है। और दु:ख की बात तो यह है कि केवल शंकराचार्य ही नहीं बल्कि और भी कई ऐसे लोगों द्वारा साईं बाबा का विरोध किया जा रहा है जो स्वयं सोने-चांदी के सिंहासनों पर बैठते हैं और धर्म के नाम पर सुख संपत्ति,वैभव,शानोशौेकत तथा प्रसिद्धि व प्रतिष्ठा को ही अपने जीवन का लक्ष्य समझते हैं।

ठीक है साईं बाबा को भगवान मानना अथवा उन्हें भगवान का दर्जा देना या उनकी मूर्ति स्थापित कर उनके नाम के मंदिर बनवाना किसी हद तक गलत कहा जा सकता है। परंतु इस प्रकार के निर्देश स्वयं साईं बाबा ने तो कतई नहीं दिए? इस मुद्दे पर विरोध तो दरअसल साईं भक्तों का किया जाना चाहिए न कि साईं बाबा का और वह भी इस घटिया स्तर पर आकर कि वे चांद मियां थे, मुसलमान थे,मांसाहारी थे या फिर वे पाकिस्तान जाते दिखाई दे रहे हैं आदि? इस प्रकार के विरोध के स्तर से साईं बाबा का विरोध करने वालों की अपनी मानसिकता और उनके विरोध करने का औचित्य अपने-आप ज़ाहिर हो जाता है। आज हमारे देश में तो लाखों लोग ऐसे तथाकथित संतों को भगवान अथवा भगवान का अवतार माने बैठे हैं जो हिंदू धर्म तो क्या बल्कि मानवता तक के लिए कलंक के समान हैं। कोई स्वयंभू अवतार किसी नाबालिब लडक़ी से बलात्कार के जुर्म में जेल की सलाखों के पीछे तो किसी पर हत्या या सैक्स रैकेट चलाए जाने का आरोप है। कोई देश में सांप्रदायिकता फैला रहा है तो कोई अपने कटु वचनों से समाज को विभाजित करने की कोशिश कर रहा है। मुझे यहां यह कहने में कोई आपत्ति नहीं कि साईं बाबा का घ्टिया स्तर पर जाकर विरोध करने वाले लोग मनसा वाचा करमना किसी भी स्तर पर साईं बाबा के समक्ष एक प्रतिशत भी उनके मुकाबले में नहीं ठहरते। परंतु बड़े आश्चर्य की बात है कि ऐसे लोगों द्वारा साईं बाबा को बेहद घटिया स्तर पर जाकर अपमानित करने की कोशिश की जा रही है।

वह हमारे देश के प्रथम शंकराचार्य स्वामी रामानंदाचार्य जी ही थे जिन्होंने मुस्लिम परिवार में जन्में कबीर को अपना शिष्य बनाकर कबीरदास का नाम दिया और बाद में उनका यह शिष्य संत कबीर कहलाया। स्वामी रामानंदाचार्य को भगवान राम का अवतार भी कहा जाता है। जब शंकराचार्य की गद्दी पर सर्वप्रथम विराजमान होने वाले महान संत रामानंदाचार्य ने हिंदू-मुस्लिम का भेद किए बिना कबीर को अपना शिष्य स्वीकार कर लिया फिर आिखर उनकी परंपरा को आगे ले जाने वाले किसी दूसरे शंकराचार्य को संतों और फकीरों की परंपरा से अलग हटकर साईं बाबा जैसे फकीर को धर्म की सीमाओं में घसीटने की ज़रूरत आिखर क्यों महसूस हुई? साईं बाबा के इस प्रकार के विरोध के औचित्य को समझने की ज़रूरत है।

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nirmalraninirmal-rani-invc-news11111परिचय -:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क : – Nirmal Rani  : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City13 4002 Haryana ,  Email : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

* Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS .

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