धर्म उद्योग: हर्रे लगे न फिटकिरी

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–  निर्मल रानी –

मई 2014 से पूर्व लोकसभा के चुनाव अभियान के दौरान सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी द्वारा ज़बरदस्त तरीके से पूरे देश में तत्कालीन सत्तारूढ़ यूपीए सरकार की जिन कथित नाकामियों को उजागर किया जा रहा था उनमें भ्रष्टाचार,मंहगाई,नारियों पर होने वाले अत्याचार तो मुख्य मुद्दा थे ही साथ-साथ भाजपाई नेता देश के युवाओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बेरोज़गारी को भी एक बड़ा मुद्दा बनाए हुए थे। भाजपा के प्रमुख नेताओं द्वारा जगह-जगह अपने भाषणों में युवाओं को यह आश्वासन दिया जा रहा था कि यदि देश में भाजपा सरकार बनी तो वह  प्रतिवर्ष देश के बेरोज़गारों को दो करोड़ रोज़गार उपलब्ध कराएंगे। निश्चित रूप से उस समय देश की जनता ने खासतौर पर युवाओं ने नरेंद्र मोदी व अन्य वरिष्ठ भाजपा नेताओं के उन लोकलुभावने वादों पर विश्वास किया और भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को भारी बहुमत से जीत दिलाई। इस समय भाजपा नेतृत्व वाली मोदी सरकार के कार्यकाल के चार वर्ष पूरे हो चुके हैं। परंतु सरकार बेरोज़गारी दूर करने सहित अपने कई प्रमुख वादों को पूरा करने में पूरी तरह नाकाम रही है। पेट्रोल-डीज़ल,रसोई गैस सहित खाद्यान्न व अनेक सामग्रियों के दाम आसमान छू रहे हैं। अपराध, खासतौर पर नारियों पर होने वाले अत्याचार व महिला उत्पीडऩ की घटनाओं में पहले से ज़्यादा तेज़ी आई है। नोटबंदी व जीएसटी जैसे फैसलों ने व्यवसाय तथा व्यसायियों की कमर तोड़ कर रख दी है। यहां तक कि इन फैसलों के कारण देश में बेरोज़गारी घटने के बजाए और बढ़ी है। हमारे देश की सीमाएं भी लगभग चारों ओर से अशांत व असुरक्षित है। परंतु इन सबसे अलग हटकर यदि किसी वर्ग विशेष के लोगों को कुछ राहत मिली है या उनकी प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई हो रही है तो वह है देश का तथाकथित बाबा व स्वयंभू धर्मात्मता वर्ग यानी देश के अन्य उद्योग भले ही चरमरा रहे हों परंतु ‘धर्म उद्योग’ को ज़रूर परवान चढ़ते देखा जा सकता है।

आज देश की जनता और विपक्षी राजनैतिक दल जिस समय वर्तमान सरकार से यह सवाल पूछते हैं कि दो करोड़ युवाओं को प्रत्येक वर्ष रोज़गार देने के आपके वादे का आिखर क्या हुआ? मोदी सरकार ने यह वादा पूरा क्यों नहीं किया? आज जब जनता यह सवाल जानना चाहती है कि देश के लोगों के खातों में 15 लाख रुपये डालने का जो वादा किया गया था उस वादे को ‘जुमला’ क्यों बता दिया गया? सौ दिन के भीतर विदेशों में जमा काला धन वापस क्यों नहीं आया? इसके बजाए सत्ता के करीबी लोग अपने ही देश के बैंक लूटकर विदेशों में क्यों और कैसे जा छुपे? तो इसके जवाब में देश के शिक्षित युवाओं को कुछ ऐसी सलाह दी जाती है जो सलाह यदि 2014 के चुनावों के दौरान दी गई होती तो शायद देश का युवा ऐसे लोगों को सत्ता सौंपना तो दूर विधानसभाओं व नगरपालिकाओं का सदस्य तक निर्वाचित न करता। ज़रा सोचिए देश के पढ़े-लिखे,उच्च शिक्षा प्राप्त,इंजीनियर,डॉक्टर,वैज्ञानिक,लेखाकार,प्रबंधन,अध्यापक तथा अन्य क्षेत्रों में महारत रखने वाले छात्रों को यहां तक कि देश-विदेश की नीतियों का भरपूर ज्ञान रखने वाले व सरकार को चलाने की क्षमता रखने वाले प्रतिभाशाली युवाओं को यह सलाह दी जाती है कि  वे पकौड़ा बेचें,पान की दुकान खोलें और नौकरी ढूंढने के बजाए इस प्रकार के स्वरोज़गार को ही रोज़गार समझें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों द्वारा भी कुछ ऐसी ही सलाहें दी जा रही हैं। त्रिपुरा राज्य के मुख्यमंत्री विप्लब कुमार देब को तो पान बेचने की दुकान में इतनी संभावना दिखाई पड़ती है कि उनके अनुसार यदि अब तक युवाओं ने पान की दुकान खोली होती तो उनके खाते में 5-10 लाख रुपये जमा भी हो गये होते। गौरतलब है कि पान खाने से गंदगी तो फैलती ही है साथ-साथ इसके साथ तंबाकू खाने से स्वास्थय को भी नुकसान पहुंचता है। कैंसर व गले तथा फेफड़े की कई बीमारियां तंबाकू के सेवन से होती है। परंतु हमारे ‘ज्ञानवान भाजपाई मुख्यमंत्री’ बेरोज़गार युवाओं को पान बेचने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं?

अब इसी व्यवस्था का दूसरा पहलू भी देखिए। इस समय जहां पढ़े-लिखे बेरोज़गारों के लिए पान-चाय-पकौड़ा को रोज़गार का माध्यम बताया जा रहा है वहीं धर्म उद्योग से जुड़े लोगों अर्थात् साधू-संतों,प्रवचन कर्ताओं,डेरा-आश्रम संचालकों को मंत्री,सांसद व विधायक बनाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश जैसा देश का सबसे बड़ा राज्य तो पूरी तरह से ‘बाबा जी’ के हवाले ही कर दिया गया है। देश की लोकसभा में भी आप यदि नज़र दौड़ाएं तो सत्ता पक्ष में कई साधू-संत अपनी धार्मिक वेशभूषा में लिपटे हुए दिखाई देंगे। और इस बात की भी पूरी संभावना है कि आगामी लोकसभा व विधानसभा चुनावों में धर्म उद्योग से जुड़े लोगों की संख्या और भी बढ़ सकती है। पिछले दिनों मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसी ‘धर्म उद्योग’ से जुड़े पांच बाबाओं को मंत्री पद का दर्जा व मंत्री को दी जाने वाली सारी सुविधाएं देकर उन्हें सम्मानित किया। यहां यह बताने की ज़रूरत नहीं कि अपने घरों व परिवारों की जि़म्मेदारियों से मुंह मोडक़र जो लोग त्यागी,तपस्वी,महात्मा या धर्मोपदेशक बन जाते हैं वे कितना शिक्षित होते हैं या अपनी जि़म्मेदारियों को निभाने में कितना सक्षम होते हैं? परंतु इन बातों की परवाह किए बिना भगवाधारी व जटाधारी कथित धर्माधिकारियों को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। ज़ाहिर है इसका मकसद केवल यही है कि एक तो ऐसे संतों के पीछे खड़े उनके भक्तजनों का समर्थन हासिल किया जा सके और दूसरे यह कि समाज को यह संदेश दिया जा सके कि भाजपा हिंदू धर्म की हितैषी होने के नाते ऐसे धर्माधिकारियों को सम्मान दे रही है। कर्नाट्क में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में भी भाजपा कुछ ऐसे ही हथकंडे अपना रही है।

इन परिस्थितियों में यह सवाल उठना ज़रूरी है कि अब पढ़ाई-लिखाई व डिग्री-डिप्लोमा हासिल करने से अधिक उज्जवल भविष्य की संभावनाए क्या बाबागिरी में ही मौजूद हैं? ज़ाहिर है धर्म उद्योग एक ऐसा उद्योग है जिसमें उच्च शिक्षा,अच्छा चरित्र,ज्ञान,आयु जैसी बातों की न तो कोई आवश्यकता होती है न ही इनका कोई महत्व है। भगवा वस्त्र अपने-आप में सम्मान तथा आदर का प्रतीक होता है। और यदि इस वस्त्र के साथ-साथ आप जटाधारी हैं व मस्तक पर चंदन का लेप लगा हुआ है तो आप को हमारा समाज स्वयं एक महान संत अथवा महात्मा समझने लगता है। और यदि सौभाग्यवश आप अपने किसी गुरु की सेवा करते-करते किसी डेरे अथवा आश्रम के मुखिया बन गए या महंत, श्रीमहंत अथवा महामंडलेश्वर की उपाधि हासिल कर ली फिर तो समाज में आप की इज़्ज़त व सम्मान तो और बढ़ेगा ही साथ-साथ आपके रुतबे में भी काफी इज़ाफा हो जाएगा। ऐसे धर्म उद्योगों में देश के शिक्षित युवा अपने लिए रोज़गार की दुआएं व मन्नतें मांगने के लिए चक्कर लगाने लगेंगें और और वहां मौजूद धर्माधिकारी का आशीर्वाद भी प्राप्त करेंगे। परंतु जिस समय रेवड़ी बांटने की बारी आएगी या विधानसभा अथवा लोकसभा का टिकट दिए जाने अथवा मंत्री के बराबर का दर्जा दिए जाने का समय आएगा उस समय न तो पार्टी के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की सुनवाई होगी न ही बेरोज़गार नवयुवकों को आमंत्रित किया जाएगा। इसके बजाए बाबा व धर्म उद्योगों के संचालक प्राथमिकता के आधार पर पूछे जाएंगे। ज़ाहिर है बेरोज़गारी के वर्तमान दौर में तथा उद्योगों के चरमराते काल में धर्म उद्योग ही एक ऐसा उद्योग है जिसे संचालित करने  पर ‘हर्रे लगे न फिटकिरी रंग चोख्ेा का चोखा।’

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परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 4003
Email :nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

 




1 COMMENT

  1. ज्वलंत विषयों पर आपके लेख काफी अच्छे। होते हैं। दैनिक सवेरा में आपके क ई लेख पढ़ चुका हूं। उपरोक्त लेख भी पसंद आया।

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