हकीकत के आईने में चीनी सामानों का बहिष्कार ?

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–  तनवीर जाफरी –

चीन भारत का एक ऐसा पड़ोसी देश है जिसे भारत के लोग विश्वास की नज़रों से कम और संदेह की नज़रों से अधिक देखते हैं। इसके मुख्य कारण यह हंै कि चीन भारत से युद्ध भी लड़ चुका है। इसके अतिरिक्त अपनी विस्तारवादी नीति पर चलते हुए चीन समय-समय पर अपनी भारत से लगती कई सीमाओं पर अतिक्रमण करता रहता है। यही नहीं बल्कि चीन ने ही भारत के दूसरे ऐसे पड़ोसी देश पाकिस्तान को परमाणु शस्त्र संपन्न देश बनाने में सहायता की है जिसने भारत में आतंक फैलाने का गोया ठेका ले रखा हो। इसके अतिरिक्त कूटनीतिक स्तर पर भी चीन भारत की तुलना में पाकिस्तान को अपना समर्थन अधिक देता दिखाई देता है। हद तो यह है कि चीन, भारत के परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में शामिल होने पर भी अड़ंगा लगा चुका है। कंधार विमान अपहरण कांड के द्वारा भारत से जबरन छुड़ा कर ले जाए गए आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अज़हर को जब-जब भारत ने संयुक्त राष्ट्र में आतंकवादी घोषित कराए जाने का प्रयास किया तब-तब चीन ने भारत की इन कोशिशों का विरोध किया। परंतु इन सभी वास्तविकताओं के बावजूद चीनी राष्ट्रपति जिन पिंग भारत आते रहे हैं यहां उनकी मेहमान नवाज़ी होती रही है। और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने गृह राÓय गुजरात में उनके मान-सम्मान में उन्हें गुजराती तजऱ् की मेहमाननवाज़ी से भी रूबरू करवा चुके हैं।

चीन को लेकर एक दूसरी स’चाई यह भी है कि इस समय विश्व के आधे से अधिक देश चीनी सामानों से पटे पड़े हैं। $खासतौर पर चीन के उत्पादनकर्ता प्रत्येक देश के नागरिकों की इस नब्ज़ से भी भलीभांति वा$िक$फ हैं कि किस देश के लोगों की क्या ज़रूरत है और वे कैसा सामान चाहते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि हम अपने देश के बहुसंख्य लोगों की बात करें तो हमारे यहां कम $कीमत में अ’छे सामान की तलाश की जाती है। ज़ाहिर है व्यापारिक दृष्टिकोण से यह विचार अथवा सोच तर्कसंगत नहीं है कि सस्ते दाम पर अ’छा सामान मिल सके। परंतु चीन की निर्यात नीति तथा वहां के आर्थिक सलाहकारों ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के ऐसी सोच रखने वाले लोगों की ज़रूरतों के एतबार से अपने देश में ऐसे माल का उत्पादन शुरु कर दिया जो भले ही टिकाऊ न हो परंतु वह माल सस्ता भी हो,अ’छा भी हो और आकर्षक भी। चीन के निर्यातकों ने इस बात पर भी अपनी पैनी नज़र रखी है कि किस देश में किस अवसर पर किस प्रकार की सामग्री किस वर्ग विशेष के लिए बाज़ार में उतारी जानी चाहिए। मिसाल के तौर पर भारत में दीपावली के अवसर पर आतिशबाज़ी,घरों को सजाने हेतु रंग-बिरंगी रौशनी के बिजली के सामान,त्यौहारों में पूजा-पाठ तथा घरों की सजावट के लिए देवी-देवताओं की आकर्षक मूर्तियां तथा चित्र की खपत है तो पाकिस्तान में नमाज़ पढऩे के मुसल्ले,सर पर रखने हेतु गोल जालीदार टोपियां,तसबीह तो पश्चिमी देशों में क्रिसमस व नववर्ष के अवसर पर इस्तेमाल में आने वाले क्रिसमस ट्री व विभिन्न प्रकार की आकर्षक रौशनी,उपहार संबंधी अनेक सामान तथा सजावट के अन्य कई सामान वहां के बाज़ारों में उतारता है। निश्चित रूप से सस्ते व आकर्षक सामान होने की वजह से इस समय दुनिया के लोग चीनी सामानों को इस हद तक $खरीद रहे हैं कि चीन ने अपने-आप को विश्व की आर्थिक महाशक्ति के रूप में भी स्थापित कर लिया है।
पिछले दिनों जब भारत में पाक प्रायोजित आतंकियों द्वारा कश्मीर के सीमावर्ती उड़ी सेक्टर के एक सैन्य कैंप पर हमला कर बीस भारतीय जवानों को शहीद कर दिया गया उसके बाद उत्पन्न हुईपरिस्थितियों में चीन को भी पाकिस्तान का पक्ष लेते हुए देखा गया। चीन न केवल पाकिस्तान के मसूद अज़हर जैसे आतंकियों का पक्षधर बना दिखाई देता है बल्कि आज पाकिस्तान द्वारा जिस परमाणु हमले की घुड़की भारत को बार-बार दी जाती है उस परमाणु शस्त्र का जनक भी चीन ही है। इन हालात में भारत के लोगों में चीन के प्रति अपने $गुस्से का इज़हार करना भी स्वभाविक है। पिछले दिनों राष्ट्रीय स्तर पर यह $गुस्सा आम लोगों में छलकता दिखाई दिया। पूरे देश में कई जगहों पर चीनी उत्पादों की होलियां जलाई गईं। दीपावली में चीनी सामग्री का बहिष्कार करने का कहीं संकल्प लिया गया तो कहीं अपील जारी की गई। पूर्व सैनिकों से संबंधित कई संगठनों ने भी चीनी सामग्री के बहिष्कार की अपील की। कई समाचार पत्रों ने इस विषय पर जनमानस की राय जाननी चाही तो प्राय: अधिकांश लोगों ने यही विचार व्यक्त किए कि चीन भारत से दोस्ती कम निभाता है दुश्मनी अधिक। चीन पर विश्वास करने के बजाए उसे संदेह की नज़रों से देखा जाना चाहिए। चीन की पाकिस्तान के प्रति हमदर्दी तथा उसके साथ दोस्ताना व्यवहार हमारे देश के लोगों को उचित नहीं प्रतीत होता। तमाम लोगों ने विदेशी सामानों का बहिष्कार कर स्वदेशी सामान $खरीदने की ज़रूरत महसूस की। कई देशभक्त लोग चीनी रौशनी $खरीदने के बजाए मिट्अी के दिए जलाने की हिमायत करते देखे गए। ज़ाहिर है जिस देश के प्रति आम लोगों में इतनी कड़वाहट भर जाए उस देश के सामानों के भारतीय बाज़ार में बिकने व उसे $खरीदने का औचित्य ही क्या रह जाता है?
ऐसे में सवाल यह है कि क्या चीनी सामानों के बहिष्कार अर्थात् इसके बाज़ार में बेचने से लेकर इसके $खरीदने तक के विरोध में भारतीय जनता समान रूप से अपने $कदम उठा सकेगी? क्या वर्तमान समय में मंहगाई की मार झेल रही हमारे देश की जनता सस्ते चीनी सामानों को $खरीदने के बजाए तुलनात्मक दृष्टि से उससे मंहगे भारतीय सामान $खरीदने के लिए स्वयं को तैयार कर पाएगी? उदाहरण के तौर पर दीपावली के अवसर पर ही तीस-चालीस छोटे बल्ब की एक लतर लगाने का भुगतान किसी बिजली के दुकानदार को 150 रुपये से लेकर 200 रुपये तक किराए के रूप में करना पड़ता था। अब चीन ने मात्र बीस रुपये में उसी प्रकार की बल्कि उससे भी आकर्षक और करिश्माई रौशनी की लड़ी बाज़ार में बेच डाली। ज़ाहिर है भारतीय जनता इस प्रकार की सस्ती व आकर्षक सामग्री पर टूट पड़ी। नतीजतन आज घर-घर में चाईना निर्मित अनेक सामान भरे पड़े हैं। कई चीन निर्मित सामग्रियां तो ऐसी हैं जिनका भारत में कोई विकल्प ही मौजूद नहीं है। ऐसे में क्या देशभक्ति का पैमाना यह नहीं होना चाहिए कि हमारे उद्योग जगत से जुड़े लोग $खासतौर पर लघु उद्योग चलाने वाले उद्योगपति भारत में भी उसी चीनी उत्पाद एवं निर्यात नीति पर चलते हुए उतना ही सस्ता व वैसा ही आकर्षक उत्पाद बाज़ार में उतारने का प्रयास करें? और भारत सरकार द्वारा अपने स्तर पर ऐसे उद्योगों को बढ़ावा दिए जाने हेतु उनकी पूरी सहायता की जाए? केवल जनता से अपील करना या जनता से यह उम्मीद रखना कि वह राष्ट्रभक्ति का परिचय देते हुए सस्ते चीनी सामन $खरीदने के बजाए मंहगे भारतीय सामान $खरीदकर चीन को आर्थिक रूप से मज़बूत होने से रोके,यह बात कितनी तर्कसंगत है?
कुछ समय पूर्व मुझे भी चीन जाने का अवसर मिला था। मैंने वहां के लोगों का उनके अपने कार्यों के प्रति जो समर्पण देखा वह निश्चित रूप से अत्यंत सराहनीय था। प्रत्येक चीनी व्यक्ति अपने काम को यह सोचकर पूरी लगन के साथ अंजाम देता है कि वह जो कुछ भी कर रहा है अपने देश के लिए कर रहा है। मिलावट$खोरी,झूठ-$फरेब,दलाली,रिश्वत,भ्रष्टाचार,सांप्रदायिकता,जातिवाद,मंदिर-मस्जिद,धर्म के नाम पर लाऊडस्पीकर पर दिन-रात होने वाला शोर-शराबा,भूख हड़ताल, धरना-प्रदर्शन जैसी बुराईयां चीन के सामाजिक परिवेश में नज़र नहीं आतीं। अब यहां यह उल्ल्ेाख करने की ज़रूरत नहीं कि हमारे देश में उपरोक्त बुराईयां किस स्तर पर हैं। निश्चित रूप से चीन के लोगों की इसी भावना ने उन्हें आज न केवल विश्व की महाशक्ति बल्कि आर्थिक महाशक्ति भी बना दिया है। लिहाज़ा हमारे देश के शासकों तथा उद्योगपतियों को मिलकर यह निर्णय लेना पड़ेगा कि चीन के उत्पादों के बहिष्कार का सतही तरी$का अर्थात् बहिष्कार की अपील करना या उसकी होली जलाना आदि उपाय पर्याप्त हंै या उन चीनी उत्पादों के मु$काबले में उसी प्रकार के या उससे भी अ’छे व उससे भी सस्ते सामान न केवल भारत के बाज़ार में बल्कि पूरे विश्व में जहां-जहां भी चीनी सामानों ने अपनी जगह बनाई है वहां-वहां जाकर सस्ते व आकर्षक भारतीय सामान बेचे जाएं? ज़ाहिर है इसके लिए एक व्यापक नीति बनाए जाने की ज़रूरत है। इसके लिए विशेष औद्योगिक ज़ोन राष्ट्रीय स्तर पर बनाए जाने चाहिए जहां केवल उसी स्तर के सामान बनाए जाएं जो चीनी सामानों का मु$काबला विश्व स्तर पर कर सकें।

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tanvir-jafri1About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

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