रमेश के दोहे

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रमेश के दोहे

नये दुखों ने भर दिये,…..पिछले सारे घाव !
इसी भांति चलती रही,जीवन की यह नाव !!

कोलतार सीमेंट के,.जहां बिछे हों जाल !
हरियाली कैसे रखे,खुद को वहां सँभाल !!

सजना तो परदेस है, ऊपर से त्यौहार !
तन को मेरे डस रही,सावन के बौछार !!

यूँ गिरती हैं झूमकर,सावन की बौछार !
लेती है अँगडाइयाँ ,ज्यों अलबेली नार !!

रोजा रखे रसूल तो, ..राम रखे उपवास !
अपना अपना ढ़ंग है,करने का अरदास!!

सच्चाई की राह पर,..चले अगर इन्सान !
तो प्रतिदिन ही ईद है,प्रतिदिन है रमजान !!

नामुमकिन कुछ भी नहीं, दुनिया में इंसान !
अगर इरादे नेक हो,.. हर मुश्किल आसान !!

ऐसों से मिलना नहीं, जिनका मरा जमीर !
जीयें नकली जिंदगी, ….दूजों को दें पीर !!

हुआ नहीं इक बार भी, उनसे कभी मिलाप !
फिर गम किस बात का, कैसा मित्र विलाप !!

अवसरवादी आदमी,…..दिल से रहे मलीन !
नहीं कीजिये भूलकर, उस पर कभी यकीन !!

बातें जो अच्छी लगी,..मैंने रखी सम्हाल !
दोहों के आकार में, दिया उन्हें फिर ढाल !!

रुतबा मेरे यार का,…जैसे फूल पलास़ !
गर्दिश मे भी जो कभी,होता नही उदास !!

कृष्ण सुदामा सी कहां…. रही मित्रता आज !
कहाँ रहा किस मित्र का, मेरे दिल पर राज !!

बना सुदामा मैं प्रभो,……खोजूं सत्य चरित्र !
कलियुग में भी श्याम सा, सीधा सच्चा मित्र !!

जहाँ लगी मतभेद की, थोड़ी बहुत कतार !
वहां दिलों के बीच में, .बढने लगी दरार !!

चली नहीं कानून की, उन पर कभी कटार !
होते हैं जो जुर्म के,……… असली ठेकेदार !

दुनिया से तो हर समय,लड़ जाये हर बाप !
पर आगे औलाद के,…झुक जाता है आप !!

अपने तक मत राखिये,कभी स्वयं को बंद !
संग बुजुर्गो का रहे,…… सदा फायदेमंद !!

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ramesh   sharmaपरिचय -:

रमेश शर्मा

लेखक व् कवि

 पूरा नाम : रमेश बनारसी दास शर्मा

मूल निवासी  : जिला अलवर (राजस्थान)
बचपन राजस्थान के जिला अलवर के एक छोटे से गाँव में गुजरा ,
प्रारंभिक पढाई आठवीं तक वहीं हुई, बाद की पढाई मुंबई में हुई, १९८४ से
मुंबई में  एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी की शुरुआत की , बाद में नौकरी के साथ साथ
टैक्स कन्सल्टन्ट का भी काम शुरू किया जो कि आज तक बरकरार है ,
बचपन से ही कविता सुनने का शौक था  काका हाथरसी जी को बहुत चाव से  सुनता था ,
आज भी उनकी कई कविता  मुझे मुह ज़ुबानी याद है बाद में मुंबई आने के बाद यह शौक
शायरी गजल की तरफ मुड गया , इनकम टैक्स का काम करता था तो मेरी मुलाकात जगजीत सिंह जी के शागिर्द घनशाम वासवानी जी से हुई उनका काम मैं आज भी देखता हूँ उनके साथ साथ कई बार जगजीत सिंह जी से मुलाकात हुई ,जगजीत जी के कई साजिंदों का काम आज भी देखता हूँ , वहीं से लिखने का शौक जगा जो धीरे धीरे दोहों की तरफ मुड़ गया दोहे में आप दो पंक्तियों में अपने जज्बात जाहिर कर सकते हैं और इसकी शुरुआत फेसबुक से हुई फेसबुक पर साहित्य जगत की  कई बड़ी हस्तियों से मुलाकात हुई उनसे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला

18/984,आश्रय को- ऑप. हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड  खेर नगर , बांद्रा (ईस्ट )  मुंबई ४०००५१  …

फोन ९७०२९४४७४४ –  ई-मेल. rameshsharma_123@yahoo.com

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