Q &A with Dayaneshu patel – अंग्रेजी के कमजोर छात्रों के लिए आदर्श बने दिव्यांशु

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– आईएएस की परीक्षा में 204 वीं रैंक प्राप्त जिले के होनहार दिव्यांशु पटेल से घनश्याम भारतीय की  आई एन वी सी न्यूज़ के लिएँ खास बातचीत –

“कैसे आकाश में सुराख नहीं हो सकता,
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों।”

Dayaneshu-patel-ias,-ias-Da हिंदी गजल सम्राट दुष्यंत कुमार का यह शेर इस बात की जमानत है कि पूर्ण लगन और कठिन परिश्रम ही किसी साधक को सफलता की ओर ले जाता है। इसका ताजा उदाहरण वह युवा साधक है जिसने अपनी साधना के बदौलत कला वर्ग के तमाम छात्र छात्राओं का संबल बन कर उन्हें एक बड़ी ताकत दी है। खासतौर से उन लोगों को जिनकी अंग्रेजी कमजोर है। किशोरावस्था में मां के बिछड़ने  के गम के बावजूद इस प्रतिभावान ने कभी हिम्मत नहीं हारी। मां की चिता के सम्मुख पिता के संकल्पों को साकार करने के लिए परिश्रम की पराकाष्ठा पार कर देने वाले इस दैदीप्यमान नक्षत्र का नाम है दिव्यांशु पटेल। जिन्हें आईएएस की परीक्षा में 204 वीं रैंक मिली है।

           खास बात यह कि बीए तक की पढ़ाई कला वर्ग से हिंदी माध्यम के स्कूल से करने के बाद जब इस होनहार ने दिल्ली विश्वविद्यालय से निकलकर जेएनयू की तरफ रुख किया तो बाधा बनी कमजोर अंग्रेजी को इस तरह साधा कि वह मूली गाजर हो गई। इसी बीच संस्कृत वैकल्पिक विषय के साथ अंग्रेजी माध्यम से आईएएस की परीक्षा में संस्कृत में 303 अंक अर्जित कर देश में दूसरा स्थान प्राप्त किया। सबसे खास बात है कि दिव्यांशु पटेल पहली बार इंटरव्यू व्यक्तित्व विकास परीक्षण में शामिल हुए और सफलता ने कदम चूम लिया। आईएएस बनने के बाद जब यह होनहार अपने पैतृक गृह पहुंचा तो परिजनों की खुशी और स्वजनों के स्नेह से भाव विभोर हो उठा। इसी बीच समय निकालकर दिव्यांशु पटेल ने इस प्रतिनिधि से लंबी बातचीत के दौरान विभिन्न जिज्ञासाओं का समुचित समाधान किया। एक-एक रहस्योद्घाटन पूरी तरह चैंकाने वाला रहा।

         बकौल दिव्यांशु उनका जन्म 11 अगस्त 1990 को अंबेडकरनगर जनपद की जलालपुर तहसील के अजईपुर गांव में डॉ अवधेश प्रताप वर्मा और नीला देवी के पुत्र के रुप में हुआ। होश संभालते ही शिक्षक पितामह अयोध्या प्रसाद वर्मा का सानिध्य मिला। तत्समय संस्कृत विषय में स्वर्ण पदक प्राप्त पिता डॉ अवधेश प्रताप वर्मा जातिवाद के भंवर में फंसे थे। डिग्री कॉलेज में व्याख्याता न हो पाने की पीड़ा मन में समेटकर अकबरपुर में प्रधान डाकघर में डाक सहायक पद की नौकरी कर रहे थे और मां नीला देवी प्राथमिक विद्यालय अकबरपुर में सहायक अध्यापिका थी। अकबरपुर के शास्त्री नगर में मां बाप के साथ रहते हुए दिव्यांशु पटेल ने जूनियर तक की शिक्षा सरकारी स्कूल में प्राप्त की। इसी बीच पिता को राजकीय महाविद्यालय जैती अल्मोड़ा में संस्कृत व्याख्याता पद पर नियुक्ति और उसके एक साल बाद महारानी लाल कुंवरि पीजी कॉलेज बलरामपुर में संस्कृत के एसोसिएट प्रोफेसर पद पर तैनाती मिल गई। बाद में मां का भी स्थानांतरण यही हो गया। दिव्यांशु ने 2004 में मॉडल इंटर कॉलेज बलरामपुर से हाई स्कूल, 2006 में एसएसबी इंटर कॉलेज फैजाबाद से कला वर्ग से इंटर तथा 2009 में एम एल के पीजी कालेज बलरामपुर के संस्कृत, मध्यकालीन इतिहास और राजनीति शास्त्र विषय के साथ बीए परीक्षा उत्तीर्ण की।

         इस दौरान दिव्यांशु पटेल ने एनसीसी और एनएसएस में राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधित्व किया 2010 में दिल्ली विश्वविद्यालय से बीएड और 2011 में एमएड की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी दौरान फरवरी 2011 में मां की मौत ने दिव्यांशु को अंदर तक झकझोर कर रख दिया। फिर भी दिव्यांशु ने हिम्मत नहीं हारी। इसके बाद समाजशास्त्र से एमए करने के लिए जब जेएनयू में दाखिला लिया तो प्रख्यात शिक्षाविद प्रोफेसर विवेक कुमार का सानिध्य मिलते ही अंग्रेजी का मुकाबला कर उस पर अधिकार जमा लिया। 2013 में एमए और 2015 में एमफिल किया। खास बात यह कि दिव्यांशु ने हाई स्कूल से लेकर सभी परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। मौजूदा समय में दिव्यांशु पटेल जेएनयू से प्रोफेसर विवेक कुमार के निर्देशन में “अर्जक संघ- ए सोशियोलॉजिकल स्टडी” विषय पर शोधरत रहते हुए संस्कृत वैकल्पिक विषय के साथ अंग्रेजी माध्यम से आईएएस की परीक्षा पास की।

           छत्रपति शिवाजी महाराज, छत्रपति शाहूजी महाराज, महात्मा बुद्ध, ज्योतिबा राव फूले, बाबा साहब डॉ भीमराव अंबेडकर, राम स्वरूप बर्मा, विश्वनाथ प्रताप सिंह को अपना आदर्श मानने वाले दिव्यांशु पटेल का कहना है कि इन महापुरुषों ने जाति धर्म की संकीर्णता से ऊपर उठकर समतामूलक समाज की स्थापना के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया। भावी भारत के निर्माण में उनका बहुत बड़ा योगदान है। बकौल दिव्यांशु सत्ता समानता के लिए शक्ति की समानता जरूरी है। वंचित वर्ग के समान अवसर मिलने तक समाजवाद की परिकल्पना बेमानी है। समाज मे ऊंची हो चली भेदभाव की संकीर्णता भरी दीवार को ढहाने के लिए जेएनयू के छात्र आंदोलन को धार देने के बाद यह युवा अब अपने कर्मपथ पर बढ़ चला है। वैचारिक रूप से पहाड़ जैसे कठोर व्यक्तित्व वाले इस कर्मयोगी का दिल फूल सा कोमल है। आज उनकी इस सफलता के तमाम दीवाने हैं।

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ghanshyam-bhartपरिचय -:

घनश्याम भारतीय

राजीव गांधी एक्सीलेंस एवार्ड प्राप्त पत्रकार

संपर्क – :
ग्राम व पोस्ट – दुलहूपुर ,जनपद-अम्बेडकरनगर 224139
मो -: 9450489946 – ई-मेल- :  ghanshyamreporter@gmail.com

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