प्रियंका की पाँच कविताएँ

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प्रियंका  की पाँच कविताएँ 

एक

चलते चलते ठहरा था
बादल कोई कभी यूँ ही
कर गया नर्म ज़मी
सूखी सी पड़ी थी जो अब तक
ठहरना फितरत न सही
बंध के रहना यूँ मुमकिन भी न था
रूठे मौसम सा जाऊँगा
पर लौट के फिर आ जाऊँगा
देख लेना तू
कह देता था ज़मी से अक्सर
बदले मौसम,हवाएँ और
जीने के तरीके भी शायद
सिमट चुकी है नमी भी
पलकों की कोरों में
बंदिशों में जकड़ी आवाज़ें भी
घुट के रह जाती है कहीं
खुद ही खुद से भी
कह पाती कुछ भी
हाँ….
यकीन है तो इतना बस
कुछ वादे आज भी
कहीं कभी पूरे हुआ करते है……….
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दो

फिसल ही जाता है वक़्त
बंद मुट्ठी से भी रेत की तरह
छूट जाती है तमाम ज़िद्दी यादें
बीच उँगलियों के
मानो जोड़ लिया हो एक रिश्ता मुझसे
कल की खुशियों और आज के दर्द तक का
सागर सी ज़िन्दगी
कभी अलमस्त कभी शांत
निभा लेती है रिश्ते जाने कैसे कैसे
कभी रेत के घरोंदों जैसे
बनते ढहते सपने
कभी जाने क्या क्या खुद में समेटे
या दफ़न किये बहुत कुछ खुद में
रेत के किनारों जैसे
या
आँख में रेत से चुभते किसी रिश्ते जैसे
जिनकी आज ज़रूरत। ही न रही …….
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तीन

ए ज़िंदगी शायद मेरी तुझको जरूरत न रही
तेरी क्या खुद की भी अब मुझे चाहत न रही
जज़्ब हो गया कुछ इस तरह तेरा वज़ूद मुझमे
इस आइने में मेरी अब तो वो सूरत न रही
मायूस अंधेरों में रूह फिरती है अब तो मेरी
ख्यालों में कभी तू ही था और की सूरत न रही
इन खामोशियों ने कुछ इस तरह घेरा मुझको
तुझसे क्या अब खुद से भी कोई गुफ्तगू न रही
अपनी तन्हाइयों से ही इश्क़ हो चला हमको
तेरे ख्याल के सिवा अब कोई जुस्तजू न रही
बहुत थक गई हूँ लड़ के बेरुखी से तेरी
किसी भी सवाल को ज़वाब की आरज़ू न रही
क्यों खोजूं तुझे सारे जहाँ की गलियों में
हमसाया तू है हर वक़्त मै ही रूबरू न रही
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चार

सच तमाम जो आँखों से दीखते हैं
और वो झूठ जो पोशीदा हैं
उनके बीच की खाली जगहों में कही
हम मिल लिया करते हैं।
बिना शर्त की तमाम शर्तों को
ज़िन्दगी की तरह रोज़ाना ही
बेशर्त ही जी लिया करते हैं।
शोर की चुप,सन्नाटे में छुपी आवाज़ों
और तमाम अनकही बातें
मन ही मन में चुपचाप
सुन लिया करते हैं
कुछ न होकर भी
बहुत कुछ होने का गुमान ही सही
एक अहसास से लबरेज़
ज़िन्दगी रोज़ ही जी लिया करते है…………
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पाँच

वो जो दी थी गिन के तुमने
कुछ सांसों की मियाद
शक्ल में लम्हों की
खर्च हो चली
बड़ी सर्द सी पड़ी हैं
शामें कुछ
रोज़ ही छू कर देखा है
गुज़रते बर्फ से लम्हों को
जाने क्यों कागज़ पर
लफ़्ज़ों के उभरते अक्स में
हरक़त ही नहीं होती
दो आवाज़ कि कहीं कोई
जुम्बिश तो हो
सुना है
एहसास की तपिश से
बर्फ पिघल जाया करती है……..
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PRIYANKA,POET PRINKAपरिचय :-

प्रियंका

कवयित्री व् लेखिका 

प्रियंका जी एक गृहणी हैं  इन्होने संस्कृत साहित्य से स्नातक एवं समाजशास्त्र से परास्नातक किया है।

संवेदनशील मन की संवेदनाएं…
कभी पुष्पों सी सुवासित,कभी मधुरिम, कभी अश्रु बिन्दुओं में परिलक्षित होकर
स्वतः ही शब्दों का प्रारूप लेती गईं।

प्रमुख लेखन विधा -समस्त विधाएं ,हिंदी छंद, गीत,छंदमुक्त कविताएं,हाइकू,मुक्तक लघु कथा
प्रकाशित संग्रह: शुक्तिका प्रकाशन की तीन साझा काव्य संग्रह  अंजुरी , पावनी एवं निर्झरिका । तीन साझा एवं एक एकल काव्य संकलन शीघ्र प्रकाश्य  सृजनात्मकता को नए आयाम मिले…अन्तर्निहित क्षमताओं को  आत्मविश्वास में परिवर्तित करने वाले शुभचिन्तकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए  अन्तर्मन के नन्हें पंखों से अनन्त आकाश की ऊंचाइयां नापने का एक प्रयास !

4 COMMENTS

  1. अतिसुन्दर बहुत ही सुन्दर रचनाएँ है आपको ढेरों शुभकामनाये

  2. सुन्दर रचनाएँ, अछूते विषयों को लेकर मोहक से शब्दों से गढ़ीं आक्रशक प्रस्तुति.और प्रभावित ढँग से की गई समाप्ति। फ्रियंका मेरी तरफ से तुम्हें बधाई और आशीर्वाद।

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