बेपर्दा होता फ़र्ज़ी राष्ट्रवाद का ढोंग

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– निर्मल रानी –

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू),दिल्ली के तत्कालीन छात्र संघ अध्यक्ष व ऑल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन के नेता कन्हैया कुमार को फरवरी 2016 में जब देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था उस समय से भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने तथा उसके संरक्षण में चलने वाले छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने अपने छात्र संगठन के माध्यम से पूरे देश में राष्ट्रद्रोही बनाम राष्ट्रभक्त की एक लंबी बहस छेड़ दी थी। देश में धीरे-धीरे एक ऐसा माहौल बनाया जाने लगा था कि जो उनकी भाषा नहीं बोलता,या उनसे सवाल करता है या उनकी नीतियों पर उंगली उठाता है या पिछले 2014 लोकसभा चुनावों में भाजपा द्वारा किए गए वादों की याद दिलाता है तो वह कम से कम राष्ट्रभक्त अथवा राष्ट्रवादी तो हो ही नहीं सकता। इतना ही नहीं बल्कि इनकी पूरी कोशिश यह भी होती है कि ऐसे विरोधियों या आलोचकों पर यथासंभव राष्ट्रद्रोही होने का लेबल लगा दिया जाए। ज़ाहिर है इसी नीति का शिकार कन्हैया कुमार को भी बनाया गया था। परंतु 2016 से छिड़ी यह बहस अब निर्णायक मोड़ पर पहुंचती दिखाई दे रही है।

गत् 10 सितंबर को उसी जेएनयू में छात्रों के मध्य व्यापक पैमाने पर पैदा किए गए वैचारिक मतभेद की कोशिशों के बीच तथा जेएनयू को बदनाम करने की इंतेहा के मध्य एक बार फिर छात्रसंघ चुनाव संपन्न हुए। और जिस पक्ष को राष्ट्रद्रोही बताया जा रहा था,जिसे पाकिस्तान परस्त अथवा राष्ट्रद्रोही साबित करने की कोश्शि की जा रही थी वही संयुक्त छात्र गठबंधन अर्थात् वामपंथी विचारधारा एबीवीपी के सभी दुष्प्रचार तंत्र को रौंदते हुए विजयी हो गया। इस छात्र संगठन ने जेएनयू में चारों सीटों पर जीत हासिल की। इसी प्रकार गत् दिवस दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष जैसे पदों पर एबीवीपी को मुंह की खानी पड़ी। गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय एबीवीपी के प्रभाव क्षेत्र वाला विश्वविद्यालय समझा जाता है तथा यहां गत् पांच वर्षों से छात्र संघ पर विद्यार्थी परिषद् का कब्ज़ा था। परंतु राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई)ने विद्यार्थी परिषद् के इस िकले को भेद कर यहां अपना परचम बुलंद कर दिया। इसी प्रकार इसी सितंबर माह में पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ के चुनाव में भी राष्ट्रीय छात्र संगठन जोकि कांग्रेस समर्थित छात्र इकाई है ने तीन सीटों पर जीत हासिल कर अपनी सफलता का परचम बुलंद किया। भाजपा शासित राज्य का राजस्थान विश्वविद्यालय जोकि राज्य का सबसे बड़ा व प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय समझा जाता है यहां  भी एनएसयूआई ने एबीवीपी को धूल चटा दी। इसी प्रकार के समाचार उत्तराखंड के कई विश्वविद्यालयों व महाविद्यालयों से भी प्राप्त हो रहे हैं। यहां भी भाजपा समर्थित विद्यार्थी परिषद कई स्थानों पर हार का मुंह देख रही है।

कहने को तो महाविद्यालय अथवा विश्वविद्यालय के चुनाव छात्रों के संगठन से संबंधित चुनाव होते हैं। परंतु दरअसल इन चुनावों के परिणामों के पीछे देश के युवाओं,बेरोजग़ारों,देश के भविष्य के कर्णधारों की सोच तथा उनके विचार निहित होते हैं। यही वजह है कि देश के किसी भी विश्वविद्यालय में होने वाले छात्र संघों के चुनावों में लगभग सभी राजनैतिक दलों की पूरी दिलचस्पी होती है। यह राजनैतिक दल केवल दिलचस्पी ही नहीं लेते बल्कि इन चुनावों में वे फं्रट फुट पर आकर चुनाव लड़ते हैं, पैसे खर्च करते हैं, अपने समर्थकों के पक्ष में चुनाव प्रचार करते हैं, चुनाव की रणनीति बनाने में पूरी दिलचस्पी लेते हैं। यहां तक कि कई जगह छात्र उम्मीदवारों द्वारा अपने पोस्टर्स व अन्य प्रचार सामग्री में राजनेताओं के चित्र भी अपने पक्ष में छापे जाते हैं। और तो और कई बार ऐसा भी देखा गया है कि प्रतिष्ठा का प्रश्र बन जाने पर विश्वविद्यालय स्तर के चुनाव संग्राम का नियंत्रण कक्ष प्रधानमंत्री अथवा गृहमंत्री के कार्यालय से ही संचालित होता है। 2016 में जेएनयू को किस निचले दर्जे तक बदनाम किया गया यहां तक कि इस प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय को बंद किए जाने की साजि़श तक रची जाने लगी,यहां टैंक खड़ा कर जेएनयू के बच्चों में राष्ट्रवाद व राष्ट्रभक्ति की भावना जगाने का कुछ ऐसा प्रयास किया जाने लगा मानो यहां के बच्चों की नस्ल राष्ट्रप्रेमी होती ही नहीं। यह और बात है कि देश की वर्तमान रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण भी इसी विश्वविद्यालय की देन हैं। किस प्रकार भाजपा के नेताओं ने जेएनयू को अय्याशी,नशे,राष्ट्रविरोध तथा मांसाहार का अड्डा साबित करने की सुनियोजित साजि़श रची थी यह सब तमाशा पूरे देश ने देखा।

बहरहाल,छात्रों व सरकार के बीच चल रही इस लगभग डेढ़ वर्ष की जद्दोजहद में जिस प्रकार उपरोक्त परिणाम देखने को मिल रहे हैं और स्वयं को सांस्कृतिक राष्ट्रवादी,सबसे बड़ा देशभक्त व राष्ट्रभक्त बताने का पाखंडपूर्ण प्रयास किया जा रहा है और इसी के साथ-साथ अपने विरोधियों की राष्ट्रभक्ति को संदिग्ध बताया जा रहा है यहां तक कि पूरे देश को राष्ट्रभक्ति का प्रमाणपत्र बांटने का ठेका भाजपा व परिषद् के लोगों ने उठा रखा है उसके दिन अब लद चुके से प्रतीत होते हैं। गाय,गंगा,भगवा,धर्म-संस्कृति,मांसाहार बनाम शाकाहार,लव जेहाद,घर वापसी,शमशान व कब्रिस्तान,एंटी रोमियो स्कवॉयड,बूचडख़़ाना जैसे मुद्दों को उठाकर देश की भोली-भाली व अशिक्षित जनता को तो अपने पक्ष में किया जा सकता है परंतु एक शिक्षित युवा जो अपने भविष्य को लेकर चिंतित है,एक ऐसा छात्र जो विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद अपनी नौकरी अथवा रोजग़ार के प्रति चिंतित हो जाता है,एक ऐसा शिक्षित नवयुवक जो अपने राष्ट्र के विकास तथा प्रगति के लिए चिंतित रहता हो,एक ऐसा छात्र जो राजनेताओं की वर्तमान छल-कपट व पाखंड की राजनीति से दु:खी हो,एक ऐसा छात्र जो इन बारीकियों को देख व समझ सकने में पूरी तरह सक्षम हो कि सत्ता में आने से पहले राजनैतिक दल अपने चुनाव घोषणापत्र अथवा नई भाषा में चुनाव संकल्प पत्र में जो वादे करते हैं उन्हें पूरा करते भी हैं या नहीं ऐसे छात्रों में सत्ता के प्रति किस प्रकार का रुझान पैदा हो रहा है पिछले दिनों विभिन्न राज्यों में होने वाले छात्रसंघ चुनाव के परिणाम कम से कम यही इशारा कर रहे हैं।

इन छात्रसंघ चुनावों में चाहे वामपंथी विचारधारा से जुड़े छात्रसंगठन विजयी हुए हों अथवा उनका गठबंधन विजयी हुआ हो या कांग्रेस से संबंधित छात्रसंगठन एनएसयूआई ने जीत हासिल की हो परंतु यह तो तय है कि आिखरकार हार का मुंह भाजपा समर्थित अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को ही देखना पड़ा है। सवाल यह है कि राष्ट्रवाद का इतना ऊंचा झंडा उठाकर चलने के बावजूद तथा अपने विरोधियों के मुंह पर राष्ट्रद्रोही होने की कालिख पोतने के बावजूद भी यहां तक कि सत्ता शक्ति व छल-कपट- पाखंड के सभी हथकंडे अपनाने और तो और मीडिया घरानों को नियंत्रित रखने बावजूद भी यदि मुंह की खानी पड़ जाए तो इसका सीधा सा अर्थ यही निकलता है कि देश का शिक्षित नौजवान अब पूछ रहा है कि कहां गया वह दो करोड़ लोगों का रोजग़ार जिसका वादा किया गया था? वह पूछ रहा है कि नौकरियों की संभावनाएं कम होती जा रही हैं तो हमारे अंधकारमय भविष्य का जि़म्मेदार कौन है? वह यह भी पूछ रहा है कि देश में सांप्रदायिकता और मंहगाई तथा जातिवाद क्यों बढ़ता जा रहा है? वह पूछ रहा है कि आिखर अच्छे दिन कहां हैं? इन छात्रों का स्वभाव व इनकी प्रकृति इस बात की ओर साफ इशारा कर रही है कि देश नफरत और बंटवारे की राजनीति से अब ऊब चुका है। और देश के छात्रों को अपना भविष्य वर्तमान शासन में पूरी तरह असुरक्षित नजऱ आ रहा है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि फजऱ्ी राष्ट्रवाद का आडंबर रचने वालों का भंडाफोड़ होना शुरु हो गया है।

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परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

 कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

 संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

                                                              Email :nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

 Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

 

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