21 वीं सदी का भारत भूखा-प्यासा। सरकार अभी भी नहीं उठा रही ठोस कदम ?

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– कमलेश कुमार गुप्ता –

poor-india-and-the-governmeभारत प्राचीनकाल का सबसे समृद्द देश रहा है। इसे सोने की चिड़िया कहते रहे है। सं १५०० में भी, जो प्राचीन काल नहीं है, भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) विश्व का २५% था। किन्तु एक के बाद एक विदेशी शासन ने इस देश की न केवल सांस्कृतिक बल्कि आर्थिक रीढ़ भी तोड़ डाली, और आज गरीबी के मामले में यह दुनिया के सबसे कलंकित देशों में गिना जाता है। इस कलंक को धोये बिना देश के राष्ट्रीय स्वाभिमान को पुनः स्थापित नहीं किया जा सकता।

भारत में मजबूत आर्थिक प्रगति के बाबजूद भूखमरी की समस्या से निपटने की गति बहुत धीमी है। हमारे यहाँ खाद्यान्नों की कोई कमी नहीं है। कृषि उत्पादन हर साल तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन आज भी देश में करोड़ों की आबादी भूखे सोते है उन्हें दो जून का खाना नसीब नहीं हो रहा। वहीं दूसरी ओर दुनिया में हमारी ख्याति लगातार बढ़ रही है। मगर, भारत में गरीब और गरीब होता जा रहा है, अमीर और अमीर । आज के राजनेताओं की तो बात ही निराली है। नेतागिरी में प्रवेश लिया नहीं कि अमीरों की सूचि में शामिल होते समय नहीं लगता। यह विडंबना ही कहा जाएगा की विकास का वास्तविक लाभ अभी भी मध्य एवं उच्च वर्गीय परिवारों में ज्यादा सकेंद्रित है। दुनिया में सबसे अधिक 19.4 करोड़ लोग भारत में भूखमरी के शिकार हैं। यह संख्या चीन से भी अधिक है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एएफओ) ने अपनी रिपोर्ट ‘द स्टेट ऑफ फूड इनसिक्युरिटी इन द वर्ल्ड-2015’ में यह बात कही गईं है। खाद्यान्न बर्बादी पर इंस्टीट्यूशन ऑफ मैकेनिकल इंजीनियर्स (आईएमई) की वैश्विक रिपोर्ट में कहा गया है कि बेहतर भंडारण सुविधाओं के अभाव में भारत में प्रत्येक वर्ष दो करोड़ टन से अधिक गेहूं बेकार हो जाता है। यह मात्रा आस्ट्रेलिया के समूचे उत्पादन के बराबर है। खाद्यान्न बर्बादी पर तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है ‘‘भारत जैसे बड़े विकासशील देशों में अनाज की बर्बादी अधिक होती है। रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में जितना अनाज पैदा होता है उसमें से करीब आधा अनाज लोगों का काम नहीं आ पाता। इसकी एक बड़ी वजह लाखों टन अनाज उचित रख-रखाव के अभाव में प्रत्येक वर्ष बर्बाद हो चुका है, और लगातार हो रहा है। आज अन्न के अभाव से गरीब भूख से मरने को अपना नियति मानकर मौत को गले लगाने को मजबूर है लेकिन, दुर्भाग्य ही है की आजादी के अड़सठ साल गुजर जाने के बाद भी इस भूखमरी जैसे महा-समस्या से निजात दिलाने के लिए सशक्त व महत्वपूर्ण कदम सरकार द्वारा नहीं उठाये गए? और न ही इस महा-समस्या पर कभी संसद में कोई बहस हुई?

गरीब और अमिर के लिए भारत की कानून-व्यवस्था में आज भी काफी असमानता है। जिसका जीता जागता उदाहरण: माल्या जैसे सैकड़ों बड़े-बड़े उधोगपतियों, राजनेताओं ने देश के आम नागरिकों का पैसा हजारों-लाखों करोड़ गबन (हड़पने) करने के बावजूद भी तमाम सुख-सुविधा से अपना जीवन व्यतीत कर रहें है। वहीं दूसरी ओर देश के किसान ऋण नहीं चुकाने एवं सुखा पड़ने जैसे गंभीर समस्या से तंग आकर आत्महत्या करने को मजबूर है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो द्वारा 2014 में जारी रिपोर्ट के अनुसार देश में 5,650 किसानों ने आत्महत्या किया। लेकिन, वास्तविक में किसानों का आत्महत्या का यह आंकड़ा जो रिपोर्ट में दर्शाया गया है उससे दुगुना से भी अधिक है। क्योंकि सरकार ज्यादा आंकड़ा दिखाकर अपनी विफलता जाहिर नहीं करना चाहती है। जारी रिपोर्ट के अनुसार देश का एक किसान प्रत्येक एक घंटे के अंतराल में आत्महत्या करने को मजबूर है। और देश में किसानों की आत्महत्या का यह आंकड़ा प्रतिवर्ष बढ़ता ही जा रहा है। देश में भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन जैसी शिक़ायतें पीडीएफ में कोई नईं बात नहीं है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर पूर्व जस्टिस डीपी वाधवा की अध्यक्षता में बनी कमेटी की रिपोर्ट में वितरण प्रणाली में हुए अनियमितता एवं भ्रष्टाचार सामने आ गयी। वाधवा कमेटी रिपोर्ट के अनुसार, जन वितरण प्रणाली का 53 फीसदी चावल और 39 फीसदी गेहूं ज़रूरतमंद लोगों तक नहीं पहुँच पाता है। जरुरतमंदों के लिए आवंटित अनाज को कुछ बिचौलियों एवं कुछ भ्रष्ट सरकारी अधिकारियों के मिलीभगत से कालाबाज़ारी के जरिये बाजार में बेच दिया जाता है। दूसरी ओर गरीबी से आज भी बुन्देलखण्ड, छत्तीसगढ़, ओड़िशा, झारखंड एवं बिहार आदि। जैसे राज्यों में भुखमरी का प्रतिशत ज्यादा बना हुआ है। एक तरफ देश में भुखमरी का खतरा मंडरा रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकार की लापरवाही के चलते हजारों-लाखों  टन अनाज खुले में रखने के वजह से सड़कर बर्बाद हो रहा है। लेकिन, सरकार के कान में जू तक नहीं रेंग रहा है। वहीं सरकार यह भी दावा करती है की अनाज का भंडारण काफी मात्रा में है। तो, फिर आम जनता के लिए उसे खुले बाजार में जारी क्यों नहीं कर देती?

भारत में भूखमरी, कुपोषण की कुछ प्रमुख वजह –

गरीबी भूखमरी के वजह से करोड़ों लोग भारत में आज भी रोज भूखे पेट सोने को मजबूर हैं।

दुनिया भर में प्रत्येक दिन 24 हजार लोग किसी लाईलाज बीमारी के कारण नहीं, बल्कि भूखमरी से मरते हैं। इस संख्या का एक तिहाई हिस्सा भारत के झोली में आता है। भूख से मरने वाले इन 24 हजार में से 18 हजार बच्चे हैं। और इन 18 हजार का एक तिहाई यानी 6 हजार बच्चे भारतीय हैं जो एक बड़ी अकड़ा है।

अनाज की उपलब्धता पर आत्मनिर्भरता का दावा करने वाला भारत अनाज भंडारण के कुप्रबंधन व्यवस्था की मार झेल रहा है, जिसके वजह से हजारों-लाखों टन की मात्रा में प्रतिवर्ष अनाज सड़ता आ रहा है एवं सड़ रहा है। जिसका परिणाम गरीबी, भूखमरी, कुपोषण एवं महंगाई के रूप में हम सब के सामने है।

कुपोषण का गहरा सम्बन्ध गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, सामाजिक असमानता, पोषण का अभाव आदि से है। इसलिए सरकार को कई मोर्चों पर सफल निति अपनाकर एक साथ मजबूत इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना होगा।

ग्रामीण क्षेत्र में अक्सर ग्रामीणों को यह पता ही नहीं होता है कि उनके बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। अंधविश्वास के वजह से वह इसे दैविक श्राप मानकर डॉक्टर की बजाए गाँव के झोला छाप यानि नीम हकीम से काम चलाते हैं, जिसका परिणाम बच्चें ज्यादा मात्रा में कुपोषण के शिकार हो रहें है।

सरकारी स्तर पर कुपोषण के रोक-थाम पर जागरूकता के अभाव एवं ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों में डॉक्टर इलाज के लिए मौजूद नहीं उपलब्ध रहने के वजह से मुश्किल में पड़े लोगों को मदद मिलने में देर हो जाती है। यह एक प्रमुख कारणों में से एक है।

कुप्रबंध निति एवं व्यापक भ्रष्टाचार के वजह से अनाज की बर्बादी भारी मात्रा में हो रही है। जिसके कारण तेजी से गरीबी बढ़ रही है। इस कुव्यवस्था के कारण भुखमरी और कुपोषण लगातार बढ़ रही है।

भारत के गरीब मजदूरों के लिए सरकार की महत्वकांक्षी योजना ‘मनरेगा’ जिसके तहत सौ दिन के रोजगार की गारंटी दी जाती है। यह भी गरीब मजदूर के लिए छलावा ही साबित हो रही है। कुछ बिचौलियों एवं कुछ भ्रष्ट अधिकारियों के वजह से इस योजना के तहत भी गरीब को राहत नहीं मिल सका, मजदूरों का काम किया हुआ पैसा भी भ्रष्टाचार की बलि चढ़ गईं। इससे गरीब और गरीब होते जा रहें है, इससे उनके सामने भूखमरी जैसे संकट गहराता जा रहा है।

आबादी के छठे हिस्से को पर्याप्त पोषणाहार नहीं मिल पाने के वजह से 4 में से प्रत्येक एक बच्चा भारत में कुपोषण का शिकार है।

3,000 बच्चे भारत में कुपोषण से पैदा होने वाली बीमारियों के कारण प्रत्येक दिन मरते हैं एवं दुनियाभर में 30% नवजात शिशुओं की मौत भारत में होती है।

30.7% बच्चे (5 साल से कम उम्र के) भारत में समान्य से कम वजन के हैं तथा  58% बच्चों की ग्रोथ भारत में 2 साल से कम उम्र में ही रुक जाती है।

वैश्विक भुखमरी सूचकांक- 2015 (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) रिपोर्ट के अनुसार-

ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2015 में कुल 117 देशो को शामिल किया गया है।

वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) 2015 में भारत का स्थान 80वां (104 देशों में) है जबकि गत वर्ष 55वां स्थान (76 देशों में) था। ग्लोबल हंगर इंडेक्स -2015 में भारत का स्कोर 29 है जबकि गत वर्ष यह स्कोर 17.8 था। अतः गत वर्ष की भांति इस वर्ष भी भारत ‘भयावह’ (Alarming) वर्ग में न होकर ‘गंभीर’ (Serious) वर्ग में ही बना हुआ है।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स -2015 में शामिल चारों संकेतकों में भारत का स्कोर ‘अल्पपोषण में-15.2 अर्थात 15.2 प्रतिशत जनसंख्या अल्पपोषित है।

बाल मृत्यु दर में 5.3 अर्थात 5 वर्ष से कम आयु के 5.3 प्रतिशत बच्चे बाल मृत्यु के शिकार हैं।

इस वर्ष भी भारत की स्थिति पाकिस्तान (93वां) से बेहतर है जबकि वर्ष 2014 में भारत (55वां स्थान), पाकिस्तान एवं बांग्लादेश (दोनों 57वें स्थान पर) दोनों से बेहतर था।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स-2015 में नेपाल (58वां), श्रीलंका (69वां) तथा बांग्लादेश (73वां) भारत से बेहतर स्थिति में हैं।

भारत में अभी भी 1.2 अरब लोगों में से 15 प्रतिशत (180 मिलियन लोग) लोगों को प्रति दिन कैलोरी की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध नहीं हो पाती।

भारत में वर्ष 2005 के 20 प्रतिशत के मुकाबले वर्ष 2014 में Child Wasting घट कर 15 प्रतिशत तथा Child Stunting 48 प्रतिशत से घट कर 39 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है।

भुखमरी जैसे गंभीर समस्या से निपटने हेतु कुछ महत्वपूर्ण उपाय –

भारत कृषि प्रधान देश है फिर भी देश भूखा है क्यों? अपने खून पसीने की मेहनत से दिन-रात एक कर देश का पेट भरने वाला अन्नदाता के बच्चें और परिवार ही जब अन्न के बिना खुद मरने को मजबूर हो जाएं, तो यह कृषि प्रधान देश के लिए दुःख व शर्म की बात है। सरकार को प्रधान प्राथमिकताओं में से कृषि को केंद्र में रखकर कृषि निति योजनाओं  में अभी तक मिली असफलता को ध्यान में रखते हुए, कृषि-वैज्ञानिकों, सफल किसानों के साथ गंभीर शोध व सफल तकनीकीयुक्त प्रयोगों को कृषि-निति में समायोजन कर गाँव-गाँव, किसान-किसान तक सरलीकरण तरीके से किसानों को लाभ पहुँचाने हेतु गंभीर कदम उठाना चाहिए।

आजादी के 68 वर्ष गुजर जाने के पश्चात भी आज 60% खेती वर्षा पर ही निर्भर है। ऐसी स्थिति में किस तरह खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित किया जा सकता है। भूख की वैश्विक समस्या से तभी राहत मिल सकता है जब, दूसरी ओर उत्पादन बढ़ाया जाय। लेकिन इस दिशा में सरकार गंभीर पहल नहीं कर रही है। सुखाड़ की त्रासदी झेलने वाले देश के प्राय: सभी क्षेत्रों की स्थिति पहले जैसे ही है। सब कुछ वर्षा पर ही निर्भर है। जल संचयन हेतु उचित प्रबंधन के लिए ईमानदारी प्रयास बाकि है।

देश में कृषि योग्य धरती वाले क्षेत्र को अधिक से अधिक सिंचित कर खेती के दायरे में लाया जाना चाहिए ताकि, उत्पादन बढ़ाया जा सके। साथ ही साथ सूखा प्रबंधन कार्यक्रम में सार्वजनिक तथा निजी व जन-भागीदारी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।

देश में चलाए गए सूखा राहत कार्यक्रमों की समग्र विफलता से यह स्पष्ट हो जाता है कि नए व तकनीकयुक्त उपायों को प्राथमिकता से लागू किये जाने की जरुरत है। आंकड़ा के अनुसार भयावह व साधारण सूखा कि स्थिति तो देश में लगभग हर 2-3 वर्ष के अन्तराल में पड़ता ही रहा है। लेकिन, दुर्भाग्यवश इस गंभीर विषय पर भविष्य के लिए दूरगामी दृष्टिकोण नहीं रखा जाता है। सूखा व भूखमरी से उपाय के तहत चलाए जा रहें निम्नलिखित कार्यक्रमों को समन्वित रूप से स्थाई आधार पर लागू करने की जरुरत है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली में लगे घुन रूपी कीड़ा को जड़ से मारना होगा। साथ ही सभी स्तरों पर व्याप्त रूप से फैले भ्रष्टाचार को ख़त्म करना होगा। तथा गरीब को गरीब मानना होगा। अगर ऐसा करने में सरकार सफल नहीं होती है। तब-तक सरकारी सब्सिडी और अन्न की बर्बादी रोकना काफी मुश्किल होगा।

अनाज भंडारण करने हेतु सरकारी गोदामों की कमीं को दूर करना सरकार के प्रधान प्राथमिकताओं में से एक होना चाहिए। भारत सरकार जबतक अन्न भंडारण की नीति दीर्घकालिक व तकनीकीयुक्त नहीं बनाएगी तबतक अन्न बर्बादी जैसे समस्या से उबरना मुश्किल होगा।

सरकार द्वारा भूख से लड़ने के लिए दर्जनों कल्याणकारी योजनाएं चलाये जा रहें है। जिसके अंतर्गत नरेगा, आंगनबाड़ी, मिड डे भोजन, काम के बदले अनाज, सार्वजानिक वितरण प्रणाली, सामाजिक सुरक्षा नेट, अंत्योदय अन्न योजना आदि। सरकार द्वारा विभिन्न  कार्यक्रम चलाने का उदेश्य था की सभी देशवासियों को स्वतंत्र रूप से जीवनयापन के लिए रोजगारपरक आय के साथ-साथ सभी को पोषणयुक्त भोजन मिल सकें और भूख मिटाये जाएं। लेकिन, भूखमरी और कुपोषण के अकड़ा से ऐसा प्रतीत होता है कि ये तमाम प्रकार के योजनाएं केवल अन्न का बंदरबांट करने व भ्रस्टाचार का केंद्र बनकर रह गया है। आधे से अधिक योजनाएं सिर्फ सरकारी कागजों पर ही शोभा बढ़ाती रही, वास्तव में ये सभी योजनाएं काफी वेहतर है लेकिन, इसे जमीन पर मजबूत इच्छा-शक्ति के साथ ईमानदारीपूर्वक कार्यान्वयन करने की जरुरत है।

भारत में करोड़ों लोग आज भी रोज भूखे सोने को मजबूर है. वहीं दूसरी ओर धनबल, बाहुबल, रजनीतिक पैरवी-पहचान के बल पर भारत के विभिन्न जेलों में आज भी हजारों-लाखों बेगुनाह लोग गलत तरीके से जेल में सजा काट रहें है. ऐसे बेगुनाहों को सत्यता के आधार पर देश के कानून व्यवस्था को “फ़ास्ट ट्रैक” के तहत 6 महीने से 1 वर्ष का समय निर्धारित कर न्याय दे देनी चाहिए। ताकि उनके खाने-पिने एवं तमाम सुविधा के एवज में सरकार को जितना खर्च आ रहा है, उस खर्च से लाखों भूखे लोगों को पेट भरा जा सकता है।

भूखमरी के खिलाफ लड़ाई अभी भी भारत के सामने एक बड़ी चुनौती है। फिर भी सरकार असंवेदनशील है? आजादी के अड़सठ वर्षों के पश्चात भी देशभर में इस गंभीर विषय पर न ही कोई चिन्ता की गई? और न ही संसद में इस सम्बंध में कोई बहस हुई? देश के किसी भी सरकार के लिए यह शर्म की बात है की दुनिया की 27% कुपोषित जनसंख्या भारत में रहती है। इन सभी विरोधाभाष के बीच यदि सरकार खाद्य सुरक्षा की बात करती है, तो उसपर सवालिया निशान खड़ा होना स्वभाविक है। क्योंकि अभी भी जिस तरह से गरीबी, भूखमरी एवं कुपोषण की गंभीर आंकड़ा उजागर हो रहीं है, इससे सरकार का दोहरा चरित्र उभरकर स्पष्ट रूप से सामने नजर आता है। आज आवश्यकता इस बात की है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस गंभीर समस्या पर गंभीरता से विचार करें। और देश की जन-कल्याणकारी योजनाओं को चुनावी फायदे के हिसाब से लागू करने के बजाय शासन में बैठी हुयीं राजनीतिक पार्टियाँ दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इस गंभीर समस्या का समाधान हेतु उचित व ईमानदारी से पहल करें। और गरीबी मुक्त भारत, भूख मुक्त भारत एवं कुपोषण मुक्त भारत का निर्माण कर भारत की गौरव स्थापित करें।

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Kamlesh-Kumar-Gupta,परिचय – :

कमलेश कुमार गुप्ता

सामाजिक व राजनीतिक चिन्तक

संपर्क – :
हरमू हाउसिंग क्लोनी, राँची-834002 ,  झारखण्ड (भारत)

E: kamleshg09@gmail.com ,  M. +91-7677184040

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