राजनीति:राष्ट्र सेवा या व्यवसाय ?

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–  तनवीर जाफरी –

कहने को तो राजनीति को समाज तथा राष्ट्रसेवा का माध्यम समझा जाता है। राजनीति में सक्रिय किसी भी व्यक्ति का पहला धर्म यही होता है कि वह इसके माध्यम से आम लोगों की सेवा करे,समाज व देश के बहुमुखी विकास की राह हमवार करे,ऐसी नीतियां बनाए जिससे समाज के प्रत्येक वर्ग का विकास तथा कल्याण हो। आम जनता निर्भय होकर सुख व शांति से अपना जीवन गुज़ार सके। आम लोगों को बिजली,सडक़-पानी जैसी सभी मूलभूत सुविधाएं मिल सकें। रोज़गार,शिक्षा,स्वास्थय जैसी ज़रूरतें सभी को हासिल हो सकें। पूरे विश्व में राजनीति के किसी भी नैतिक अध्याय में इस बात का कहीं कोई जि़क्र नहीं है कि राजनीति में सक्रिय रहने वाला कोई व्यक्ति इस पेशे के माध्यम से अकूत धन-संपत्ति इक_ा करे , नेता अपनी बेरोज़गारी दूर कर सके,अपनी आने वाली नस्लों के लिए धन-संपत्ति का संग्रह कर सके,अपनी राजनीति को अपने परिवार में हस्तांरित करता रहे तथा राजनीति को सेवा के बजाए लूट,भ्रष्टाचार,सांप्रदायिकता,भेदभाव,कट्टरता,जातिवाद,गुंडागर्दी अथवा दबंगई का पर्याय समझने लग जाए। परंतु हमारे देश में कम से कम राजनीति का चेहरा कुछ ऐसा ही बदनुमा सा होता जा रहा है।

समय-समय पर हमारे देश की सर्वोच्च अदालत से लेकर विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायालयों ने इस प्रकार के पेशेवर िकस्म के भ्रष्ट व देश को बेच खाने वाले व अपराधी िकस्म के नेताओं को लेकर कई बार तल्ख़ टिप्पणियां की हैं। परंतु सड़े हुए अंडे व टमाटर तथा जूते व पत्थर की मार सहन कर जाने वाले ऐसे नेताओं पर आिखर अदालत की टिप्पणी का प्रभाव क्या होगा? अफसोस तो इस बात का है कि कई बार अदालती हस्तक्षेप होने के बावजूद राजनेताओं के ढर्रे में सुधार आने के बजाए इसमें और गिरावट आती जा रही है। 2014 के लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने बड़े ही विशेष अंदाज़ में अपनी तालियां बजाकर और बजवाकर यह घोषणा की थी कि उनके सत्ता में आते ही राजनीति से अपराधी लोगों का सफाया हो जाएगा। यहां तक कि अपनी पार्टी में भी उन्होंने ‘स्वच्छता अभियान’ चलाने का संकल्प लिया था। परंतु अब तो ऐसा महसूस होने लगा है कि मोदी के वादों को याद दिलाना अथवा उनके द्वारा की गई किसी लोकलुभावन बात को गंभीरता से लेना ही मूर्खता है। मोदी के सत्ता में आने के बाद राजनीति का अपराधियों से मुक्त होना तो दूर स्वयं उनके अपने मंत्रिमंडल से लेकर पार्टी संगठन के शीर्ष पद पर और विभिन्न राज्यों में मुख्यमंत्री से लेकर मंत्री तक और कई प्रदेशों में सांसद व विधायक तक कईयों की भ्रष्ट व आपराधिक छवि वाली पृष्ठभूमि देखी जा सकती है।  ज़ाहिर है जब देश के सर्वोच्च पद पर बैठने वाला व्यक्ति इतनी गैरजि़म्मेदाराना बात कर सकता है तो ऐसे में ले-देकर देश का न्यायालय ही एकमात्र ऐसा संस्थान रह जाता है जिससे देश की जनता कुछ उम्मीद रख सके।

पिछले दिनों एक बार फिर माननीय सर्वोच्च न्यायलय ने भ्रष्ट नेताओं पर प्रहार करने की एक ज़बरदस्त कोशिश की। सर्वोच्च न्यायालय ने कई सांसदों तथा विधायकों की संपत्ति में हुए पांच सौ गुणा तक के इज़ाफे पर सवाल खड़ा करते हुए यह जानना चाहा कि यदि ऐसे जनप्रतिनिधि यह बता भी दें कि उनकी आमदनी में इतनी तेज़ी से बढ़ोतरी उनके किसी व्यापार की वजह से हुई है तो भी सवाल यह उठता है कि सांसद और विधायक होते हुए कोई व्यापार या व्यवसाय कैसे कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि अब यह सोचने का वक्त आ गया है कि भ्रष्ट नेताओं के विरुद्ध कैसे जांच की जाए और फास्ट ट्रैक कोर्ट में तेज़ी से ऐसे मामलों की सुनवाई हो। लोकप्रहरी नामक एक गैर सरकारी संगठन की याचिका पर माननीय उच्च न्यायालय ने अपनी यह टिप्पणी दी। माननीय न्यायालय ने यह भी कहा कि जनता को यह पता होना चाहिए कि नेताओं की आय क्या है? इसे आिखर क्यों छुपा कर रखा जाए? अब उच्चतम न्यायालय ही यह तय करेगा कि नामांकन के समय उम्मीदवार अपनी व अपने परिवार की आमदनी के स्त्रोतों का खुलासा करे अथवा नहीं। इस संबंध में हो रही सुनवाई के दौरान उस सीलबंद लिफाफे को भी खोला गया जिसमें सात लोकसभा सांसदों तथा 98 विधायकों द्वारा चुनावी हलफनामे में अपनी संपत्तियों के संबंध में दी गई जानकारियां आयकर रिटर्न में दी गई जानकारी से भिन्न हैं।

निश्चित रूप से भ्रष्ट नेताओं पर नकेल डालने की माननीय अदालत की कवायद देश की आम जनता की इच्छाओं के अनुरूप ही है। परंतु वास्तविकता यह है कि स्वयं को सेवक बताने वाला नेता दरअसल अधिकांशत: दोहरे आचरण में जीता है। चुनाव के समय अपनी विभिन्न प्रचार सामग्रियों में दोनों हाथ जोडक़र अपना विनम्र चेहरा दिखाने वाला यह नेता प्राय:अपने भीतर दुनिया भर की बुराईयां पाले होता है। इसमें उसकी सबसे बड़ी मनोकामना धनवान बनने की तथा नामी व बेनामी संपत्तियां जुटाने की होती है। दरअसल इस सोच के पीछे भी एक प्रमुख कारण यह है कि नेता किसी पार्टी का टिकट हासिल करने से लेकर चुनाव जीतने या हारने तक के दौरान अपने करोड़ों रुपये खर्च कर देता है। सही अर्थों में उसका लूट-खसोट का धंधा तो टिकटार्थी बनने के साथ ही शुरु हो जाता है। और टिकट पाने के बाद तो गोया पैसे वसूलने का उसे लाईसेंस हासिल हो जाता है। और अगर खुदा न ख्वास्ता ऐसी सोच रखने वाला व्यक्ति निर्वाचित हो गया फिर तो उसे चुनाव में खर्च की गई अपनी रकम भी वापिस लानी है, अगले चुनाव का खर्च भी जुटाना है, अपनी दु:ख-तकलीफों व दरिद्रता से भी निजात पानी है, अपनी खानदानी गरीबी भी दूर करनी है तथा पूरे ऐशे-ो-आराम की जि़ंदगी भी गुज़ारनी है। ऐसे में ले-देकर राजनीति ही एक ऐसा माध्यम है जो किसी भी बेज़मीर नेता को निर्धन से धनवान बना देता है। किसी व्यक्ति का छोटा सा दुकान रूपी व्यवसाय भी राजनीति में आने के बाद औद्योगिक व्यवसाय में परिवर्तित हो जाता है।

जिस देश में महात्मा गांधी,पंडित जवाहरलाल नेहरू,लाल बहादुर शास्त्री,सरदार वल्लभ भाई पटेल, गुलज़ारी नंदा जैसे सैकड़ों ऐसे राजनेता हुए हों जिन्हें देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया चरित्र व सोच-विचार को लेकर एक आदर्श पुरुष समझती आ रही हो जिन्होंने अपनी ज़मीन-जायदाद,धन-संपत्ति,ऐश-ो-आराम,सुख तथा वैभव सबकुछ कुर्बान कर देश की राजनीति को एक चरित्र तथा दिशा प्रदान की आज उसी देश में समाचार पत्रों में यह प्रकाशित हो रहा हो कि केंद्रीय सत्तारूढ़ दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की संपत्ति पहले से पांच सौ गुणा अधिक बढ़ गई है। दूसरी ओर यह भी चर्चा का विषय हो कि इस समय देश पर दो ही लोगों का राज है एक नरेंद्र मोदी और दूसरे अमित शाह ऐसे में यह सवाल उठना तो प्राकृतिक है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा ? यानी है कोई जो अमितशाह से यह सवाल पूछ सके कि आप अचानक इतनी तेज़ी से इतने धनवान कैसे हो गए? ज़ाहिर है उन्हें भी अपने धन में हो रही बेतहाशा बढ़ोतरी के लिए अपने किसी व्यवसाय के नाम का ही सहारा लेना पड़ेगा। और माननीय सर्वोच्च न्यायालय का ताज़ा दिशा निर्देश नेताओं द्वारा व्यवसाय के नाम पर लूट-खसोट के चलाये जा रहे धंधे पर निश्चित रूप से लगाम लगाने का काम करेगा।

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  About the Author

  Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

  He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address – Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar,  Ambala City(Haryana)  Pin. 134003

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