औचित्य राजनीति पर धर्म के नियंत्रण का ?

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– तनवीर जाफरी –

politics and the religionसदियों से यह एक चर्चा का विषय रहा है कि राजनीति का धर्म के साथ आिखर क्या रिश्ता होना चाहिए?अनेक धर्मगुरुओं का मत है कि धर्म का राजनीति पर अंकुश अथवा नियंत्रण होना चाहिए। कुछ धर्मोपदेशक तथा ऐसे राजनेता जो धर्म को राजनीति से जोडऩे के बाद स्वयं लाभान्वित होते हैं तथा उन्हें इस मार्ग पर चलकर सत्ता सुख प्राप्त होता है ऐसे लोग निश्चित रूप से यही मानते हैं कि धर्म व राजनीति का गठजोड़ा होना चाहिए। परंतु यदि हम हज़ारों वर्ष पूर्व के इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो हमें यही नज़र आएगा कि जब-जब धर्म व राजनीति के मध्य सगाई हुई है अथवा शासकों द्वारा अपने शासन की रक्षा तथा विस्तार के लिए धर्म के नाम का सहारा लिया गया है तब-तब मानवता का खून बहने के सिवा शायद और कुछ नहीं हुआ। यहां तक कि यदि हम विभिन्न धर्मों से जुड़े इतिहास को देखें तो भी हमें यही देखने को मिलेगा। हज़रत मोहम्मद की मृत्यु के पश्चात उनके उत्तराधिकारी के चयन का मामला हो या दौर-ए-िखलाफत की शुरुआत का समय हो, उसके बाद करबला की घटना हो या फिर आज के दौर में आईएस,तालिबान और अलशबाब जैसे दूसरे कई अतिवादी संगठनों की बात हो। हर जगह धर्म और राजनीति का घालमेल दिखाई देता है और हर जगह खूनरेज़ी,तबाही व बरबादी के मंज़र ही नज़र आते हैं।

हमारे देश में हिंदू धर्म से जुड़ी भी अनेक विसंगतियां ऐसी हैं जो सदियों से समाज में तूफान बरपा किए हुए हैं। उदाहरण के तौर पर हिंदू धर्म का वह वर्ग जो अपने-आपको स्वर्ण या उच्च वर्ग का समझता है तथा जो वर्ग मनुस्मृति में उल्लिखित दिशा निर्देशों का पालन करता है वह हिंदू धर्म की ही एक जाति विशेष को नीच व तुच्छ तथा अछूत समझता है। जबकि इस प्रकार की उपेक्षा व प्रताडऩा या अपमान से प्रभावित हिंदू समाज मनुस्मृति के ऐसे कथित विभाजनकारी दिशा निर्देशों के कारण इसका विरोध करता है। जिस प्रकार मुस्लिम देशों में आज कट्टरपंथी सोच रखने वाले तथा स्वयं को जेहादी बताने वाले जन्नत के स्वयंभू ठेकेदार अल्लाह का कलमा पढऩे वाले दूसरे मुसलमानों को ही लगभग प्रतिदिन कहीं न कहीं कत्ल करते सुने जा रहे हैं। उसी प्रकार भारत में भी आए दिन देश में किसी सांप्रदायिक उन्माद की खबर सुनाई देती है तो कहीं दलित उत्पीडऩ के समाचार सुनने को मिलते हैं तो कभी उन्हें आरक्षण देकर उनके ज़ख्म पर मरहम लगाने की कोशिश की जाती है। निश्चित रूप से इन सब का कारण एक ही है और वह है राजनीति व धर्म के मध्य रिश्तों का प्रगाढ़ होना। और धर्मगुरुओं व सत्ताभोगी राजनेताओं की मिलीभगत इस रिश्ते को और परवान चढ़ाने में अपनी सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

ऐसे में सबसे महत्वपूर्ण प्रश्र यह भी है कि आिखर धर्म तथा राजनीति की अपनी परिभाषा है क्या? वैसे तो धर्म का शाब्दिक अर्थ सद्कर्म,पुण्यकर्म तथा सदाचार आदि है। कुछ अनुवादक धर्म का अर्थ धारण करना भी बताते हैं। परंतु वास्तव में यदि हम धर्म को परिभाषित करेंगे तो धर्म उस आचरण का नाम है जिससे समाज की रक्षा हो,समाज का कल्याण हो, समाज में सुख-शांति की वृद्धि हो और परलोक में सद्गति प्राप्त हो। धर्म की उपरोक्त परिभाषा के अनुसार कोई भी धर्म यदि अपने वास्तविक स्वरूप में प्रचारित कियाजाए तो किसी भी धर्म से संबंध रखने वाला वास्तविक सत्कर्मी,पुण्यकर्मी अथवा सदाचारी व्यक्ति समाज में रहकर निश्चित रूप से केवल ऐसा ही आचरण करेगा जो समाज के लिए कल्याणकारी हो। दूसरे शब्दों में धर्म परस्पर प्रेम,सहयोग तथा सद्भावना बढ़ाने का नाम है। इसी प्रकार राजनीति यानी राज करने की नीति अर्थात् वह नीति जिसके अनुसार राजा अपने राज्य का शासन तथा प्रजा की रक्षा करता हो उसे राजनीति कहते हैं। इस परिभाषा के मद्देनज़र यदि हम पूरे विश्व के राजनैतिक हालात पर नज़र डालें तो हमें प्राय: यही दिखाई देता है कि कोई भी शासक,राजनेता अपने-आप को सत्ता में बरकरार रखने या सत्ता में आने के लिए हरसंभव हथकंडे अपनाता है। उसकी सभी कोशिशें इसी एक बिंदु पर केंद्रित रहती हैं कि किस प्रकार सत्ता प्राप्त की जाए और ऐसा क्या किया जाए कि सत्ता में आने के बाद उसी का शासन हमेशा के लिए चलता रहे। और अपनी इसी मनोकामना को पूरी करने के लिए वह धर्म तथा धर्मगुरुओं की शरण में चला जाता है। वह राजनेता अथवा शासक स्वयं जिस संप्रदाय से संबंध रखता है उसी संप्रदाय के लोगों को धर्म के नाम पर अपने साथ जोडऩे जैसी भावनात्मक ब्लैकमेलिंग करता है।

उदाहरण के तौर पर इराकी राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को ही देख लीजिए। जब तक उस तानाशाह ने इराक पर हुकूमत की तब तक उसने इरािकयों के साथ भरपूर मनमानी व अत्याचार किया। वह तथा उसके पुत्र संभवत: अल्लाह के बाद धरती पर अपने परिवार को ही सर्वोच्च शक्तिमान समझने की गलतफहमी पाले रहे। परंतु जब उसके गले तक अमेरिकी हाथ पहुंचने लगा उस समय वही सद्दाम हुसैन पूरी दुनिया के मुसलमानों को एक होने तथा अमेरिका के विरुद्ध जेहाद घोषित करने का न्यौता देने लगा। आिखर सद्दाम हुसैन को इस प्रकार की धार्मिक ब्लैकमेलिंग करने की ज़रूरत सत्ता को हाथों से खिसकता देखने के बाद ही क्यों महसूस हुई। जिस समय वह क्रूर शासक के रूप में कभी ईरान से युद्ध कर बैठता था,कभी कुवैत पर चढ़ाई कर देता था तो कभी अपने ही देश के विभिन्न समुदायों के लोगों पर सामूहिक अत्याचार करता था जिसके परिणामस्वरूप हज़ारों लोग मारे गए, उस समय सद्दाम हुसैन को जेहाद,मुस्लिम इत्तेहाद और धर्म आधारित भाईचरे की बात क्यों नहीं याद आती थी? यही स्थिति अफगानिस्तान में मुल्ला उमर,ओसामा बिन लाडेन तथा एमन-अल-जवाहिरी से लेकर बगदादी जैसे उन सभी लोगों की रही है जो धर्म व राजनीति के संयुक्त ‘उद्यम’ के पोषक रहे हैं। ऐसे सरगनाओं का फांसी पर लटकना या इन्हें मौत के घाट उतार दिया जाना भी कोई इतनी बड़ी बात या चिंता का विषय कतई नहीं है। बल्कि सबसे बड़ी चिंता का विषय तो यह है कि धर्म व राजनीति की सगाई करने वाले ऐसे शासकों,तानाशाहों,राजनेताओं या तथाकथित धर्मगुरुओं की इसी नीति की वजह से शताब्दियों से लाखों बेगुनाह लोग दुनिया में कहीं न कहीं मारे जा रहे हैं। पूरे देश के देश इन्हीं नीतियों के चलते खंडहरों और वीरानों में परिवर्तित हो गए हैं। इसी गलत नीति ने समाज में ऊंच-नीच,छूत-अछूत तथा काले-गोरे का अंतर पैदा कर दिया है। हिटलर का नाज़ीवाद,इज़राईल-फि़लिस्तीन का दशकों पुराना विवाद,भारतीय राजनीति का अहम मुद्दा बन चुका अयोध्या का मंदिर-मस्जिद विवाद,अफगानिस्तान-पाकिस्तान में आतंकियों द्वारा अल्पसंख्यकों पर ढाए जा रहे ज़ुल्म धर्म व राजनीति के ऐसे ही घिनौने घालमेल का परिणाम हैं।

राजनीति की व्याख्या के अनुरूप किसी भी शासक को अपना शासन चलाने के लिए वह नीति अपनानी चाहिए जिससे प्रजा का विकास तथा उसकी रक्षा हो सके। अब यहां हमें अपने देश के परिपेक्ष्य में यह देखना ज़रूरी है कि हमारे देश के शासकों व राजनेताओं द्वारा जनता की रक्षा के लिए,उसकी खुशहाली के लिए आिखर वह उपाय अपनाए जा रहे हैं या नहीं जो राजनीति की परिभाषा को पूरा करते हों? एक शासक के लिए सबसे ज़रूरी विषय मंहगाई को नियंत्रित करना,सडक़-बिजली-पानी व स्वास्थय जैसी मूलभूत सुविधाओं को बिना किसी भेदभाव के समस्त नागरिकों को उपलब्ध कराना,बेरोज़गारों को रोज़गार मुहैया कराना,कृषि तथा उद्योग को बढ़ावा देना, महिलाओं तथा बुज़ुर्गों की सुरक्षा सुनिश्चित करना,समस्त नागरिकों के लिए समान शिक्षा व्यवस्था उपलब्ध कराना तथा पूरे देश को समृद्ध व खुशहाल बनाना। परंतु यदि शासकों द्वारा उपरोक्त जनहित कार्यों के बजाए आपको यह बताया जा रहा हो कि असली व नकली गौरक्षकों को पहचानो,गंगा नदी को हम साफ करेंगे भले ही तुम गंदा करते हो, धर्म विशेष के लोग अपनी जनसंख्या बढा़एं, घर वापसी और लव जेहाद जैसे विषय उछाले जाएं, अब हमने निकर पहननी छोडक़र पैंट पहनना शुरु कर दिया है, कभी देश का मुख्यिा स्वयं को 56 ईंच के सीने का स्वामी बताए तो कभी वही यह कहता भी सुनाई दे कि ‘उनको मत मारो बल्कि मुझे मारो’ मुझे गोली मार दो’।  तो देशवासियों को स्वयं यह समझ लेना चाहिए कि शासक द्वारा राजनीति का पालन नहीं किया जा रहा बल्कि इसके साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। और देश में जो भी अशांति या उथल-पुथल अथवा सांप्रदायिक विद्वेष या तनाव का वातावरण दिखाई दे रहा है यह सब धर्म और राजनीति की सगाई होने के परिणामस्वरूप ही सामने आ रहा है। ऐसे में समाज को यह स्वयं समझ लेना चाहिए कि राजनीति पर धर्म के नियंत्रण का आिखर औचित्य ही क्या है?

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Tanveer JafriAbout the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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Email – tjafri1@gmail.com –  Mob.- 098962-19228 & 094668-09228 , Address –  1618/11, Mahavir Nagar,  AmbalaCity. 134002 Haryana

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