एक दूसरे की सत्ता खत्म करने की राजनीति में पिस्ता भारत

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– ज्योति मिश्रा –

भारत देश में 1975 से जो सत्ता अस्तित्व में रही है वह कांग्रेस सरकार की सत्ता थी। और इसीलिए कांग्रेस ने भारत में कई सालों तक जमकर राजनीति की। लेकिन कहते है ना कि एक म्यान में दो तलवार नहीं टिक सकती। वैसे ही जबतक देश में दो या दो से अधिक पार्टियां राजनीति करने पर उतर आए, तो ऐसे में उस देश की सत्ता भी चरमरा जाएगी और देश का विकास भी संभवत: उसी सीमा पर आ जाएगा जहां से वह शुरू हुआ था।

मुख्यत: भारत की स्थिति भी अभी बहुत अच्छी स्थिति में है ऐसा भी हम नहीं कह सकते। क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जो   कई विभिन्न परिस्थितियों  भुखमरी, नोटबंदी, आर्थिक अव्यवस्थाओं, भ्रष्टाचार जैसी सभी चीजों से गुजर रहा है। और अब ऐसे में राजनीतिक दल भी अगर इसके विकास में अवरोधक बन जाएं तो  भारत का विकास तो ठप्प ही समझो। ऐसा इसीलिए क्योंकि ऐसी राजनीतिक पार्टियां एक ऐसी चक्की की तरह है जिसमें पूरा भारत देश पिसता नजर आ रहा है।

अब सबसे अहम मुद्दे की बात करें तो वह ये है कि आखिर भारत की राजनीति किस प्रकार गर्मा रही है। और किस प्रकार से यह भारत के विकास में बाधक बन रही है।

तो आजकल भारत में चल कुछ यूं रहा है कि कांग्रेस पार्टी भाजपा पर और भाजपा पार्टी कांग्रेस पर तंज कसने का मौका नहीं छोड़ रहे है जब जिसको मौका मिलता है वह उस पर राजनीतिक तंज कसना शुरू कर देता है। लेकिन कहते है न कि हर चीज एक दायरे तक एक सीमा तक ही अच्छी लगती है। उसी प्रकार से राजनीति भी सिर्फ उतनी ही अच्छी लगती है जबतक वह वास्तविक दृष्टि से राजनीतिक रूप में हो।  क्योंकि आजकल राजनीति नहीं राजनीति के नाम पर एजेंडे खड़े किए जाते है, और उन्हीं को सियासी मुद्दों का नाम भी दे दिया जाता है।

अब अगर राजनीतिक पार्टियों पर एक नजर डाले तो हम समीक्षात्मक रूप से क्या पाएंगे आइए जानते है।

सबसे पहले बात करें कांग्रेस सरकार की तो कांग्रेस पार्टी जब शुरूआती दौर में बनी ही थी तब वह मिशन के तौर पर कार्यरत थी। लेकिन धीरे — धीरे कांग्रेस अपने मिशन से तो हट ही गई साथ ही कई प्रकार के घोटालों में इस पार्टी के लोगों के नाम भी सामने आए। जिससे  आज सभी लोग भली भांति परिचित है। चाहे वह भ्रष्टाचार में लिप्त नेता हो या कोई भी अन्य घोटाले उसमें कांग्रेस की ही हाइपरलिंक समझ में आई।

अब अगर बात करें भाजपा सरकार की तो भाजपा ने एक ओर जहां गरीब जनता और पूरे देशभर से जो वादे किए थे। उनमें वह कहीं न कहीं कमजोर साबित होती अब नजर आ रही है। अब सबसे बड़ी बात यह है कि भाजपा जहां एक ओर कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देख रही है। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस अब अपना सिक्का जमाने की कोशिश में है और वह अपनी इस कोशिश में सफल होती हुई नजर भी आ रही है। क्योंकि इस बात का स्पष्टीकरण तो इस बात से ही हो जाता है कि अब कांग्रेस मध्यप्रदेश पर अपनी सत्ता जमाने में कामयाब साबित हो रही है। और अगर ऐसा हो गया तो यह बीजेपी के कांग्रेस मुक्त भारत के सपने का खंडन तो कर ही देगा।

लेकिन आज जरूरत इस बात की है कि भाजपा को कांग्रेस मुक्त भारत की बजाय देश के विकास की उन्नति के सपने देखने होंगें। देश को भृष्टाचारियों से आजाद करने के सपने देखने होंगें। लेकिन सोचने की बात यह है कि जब भारत के ही लेाग राजनीतिक रूप से लड़ते रहेंगें, तबतक भारत देश अपने बाहरी शत्रु देशों से किस प्रकार लड़ सकता है।

हमारे देश की सीमा पर कोई जवान शहीद हो जाता है और राजनीतिक प्रहार पहले शुरू हो जाते है। कारणों पर किसी का ध्यान नहीं जाता, कमियों पर किसी का ध्यान नहीं जाता बस सभी राजनेताओं को यह ध्यान होता है कि पार्टियों पर राजनीतिक तंज कैसे कसा जाए। उन्हें किस प्रकार से घेरा जाए।और मुद्दे को सियासी रूप कैसे दिया जाए। उस जवान के प्रति किसी को कोई सहानूभूति ही नहीं है बस एक दूसरे पर तंज कसने के अलावा। राजनीतिक दल कभी यह नहीं सोचते है कि कोई बाहर का व्यक्ति हमारे जवान को मार गया तो उस पर कुछ विचार किया जाए उस पर किसी की कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी और होगी भी तो एक दो दिन बस और फिर वह मुद्दा राजनीतिक रूप ले लेता है।

अब होता क्या है हमारे देश मे, अपनी सत्ता को बनाये रखने के लिए राजनेता अपने विचार दूसरो पर थोपने का प्रयास करने लगते है। अभी हाल ही में पीएम मोदी ने बेंगलुरू में राज्य की सत्ताधारी कांग्रेस की सिद्धारमैया सरकार पर तंज कसते हुए कहा है कि राज्य सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गई है और आने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस हारेगी और भाजपा सत्ता में आएगी। मोदी जी ने तो यहां तक कह दिया कि देश को कांग्रेस कल्चर की जरूरत नही है लेकिन अगर वास्तव में ऐसा होता तो क्या मध्यप्रदेश में बीजेपी की सरकार सिमटती हुई नजर आती।

सरकार अपनी राय जनता पर थोपने का प्रयास क्यो कर रही है। सत्ता की सरकार को यह समझना जरूरी है कि उसकी आखिर ऐसी क्या कमियां थी जिससे म.प्र. में उसका अस्तित्व सिमटने की कगार पर आ गया है।

वहीं मोदी की इन बातों को सुनकर तो कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी पीएम मोदी पर करारा पलटवार कर दिया और मोदी जी की बातों पर एतबार न करने की सलाह लोगो को दे डाली। राहुल गांधी भी गढे मुर्दे  उखाड़ने में पीछे नही है उन्होंने भी कह दिया कि नगा के तीन साल बीत गए लेकिन समझौते का कहीं कोई अता पता ही नहीं है। मतलब राहुल ने मोदी जी की जुबान पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है उन्होनें कहा है कि मोदी सिर्फ बोलते है वास्तव में वह करते नहीं है।

पकोड़े की राजनीति

आजकल भारत में एक और राजनीति चल रही है। वह है पकोड़े की राजनीति। जी हां आजकल पकौड़े की सियासत भारत मे जोरों पर है ! जबसे पीएम मोदी के मुँह से पकौड़े शब्द का उच्चारण हुआ है। पकौड़े देश की राजनीति पर छा गए है। आज पकौड़े ने नेताओं के दिलो में एक अहम स्थान बना लिया है। मुद्दे के रूप में पकौड़ा आज विपक्ष की पहली पसंद बन गया है। इन दिनों भाजपा और विपक्ष के बीच बयानों में पकौड़े का किरदार बड़ा अहम् हो गया है।

हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने राज्यसभा में अपना पहला भाषण दिया और गलती से उन्होंने यह कह दिया कि बेरोजगारी से अच्छा है पकौड़े बेचना, परिश्रम से पैसे कमाना बस फिर क्या था, पकौड़ा फिर सुर्खियों में आया। इस मुद्दे को लेकर इस समय राजनीति गर्म है। मोदी द्वारा पकौड़ा बेचने को भी रोजगार बताने पर पर कांग्रेस नेता और पूर्व वित्त पी चिदंबरम ने कह दिया कि अगर पकौड़ा बेचना नौकरी है तो भीख मांगने को भी रोजगार के तौर पर ही देखना चाहिए।

गौरतलब है कि यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने छत्तीसगढ़  में भाजपा के विरोध में पकौड़ा प्रदर्शन भी आयोजित किया, और छत्तीसगढ़ में शिक्षित बेरोजगार पकौड़ा सेंटर भी खोल दिया। कई बैनर पर तो यह भी लिखा की हर साल 2 करोड़ की नौकरियां भजिया बेचने को मजबूर है।

रोजगार के मुद्दे पर इस प्रकार से चौतरफा आलोचना झेल रही मोदी सरकार अब अपने विरोधियों से बचने का रास्ता तलाश रही है। इसके लिए बीजेपी नेता और सांसद अजीब-अजीब तरह के तर्क भी दे रहे हैं। आलम ये है कि अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और सरकार के लोग पकौड़ा बेचने को भी रोजगार मानने लगे हैं।

आपको बता दें कि कांग्रेस बीजेपी को लगातार रोजगार के मुद्दे पर पहले दिन से ही घेरती रही है। हालांकि बीजेपी भी अपने विरोधियों को जवाब देने की कोशिश कर ही रही है।  नरेन्द्र मोदी ने जो 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त हर साल 1 करोड़ रोजगार देने का वादा किया था। और सत्ता में आने के बाद भी ऐसा कुछ नही हुआ तो आमजनता तो वास्तविकता समझ ही जाएगी। बहरहाल बेरोजगारी के मुद्दे को लेकर देशभर में भी कई जगह विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। इसी क्रम में समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने भी पकौड़ा प्रदर्शन आयोजित किया, यहाँ भी पकौड़े तले गए। बहरहाल अभी पकौड़ा रुकने का नाम नहीं ले रहा है और विपक्ष इस लज़ीज मुद्दे को फ़िलहाल छोड़ने के मूड में नहीं है।

अब जबतक इस तरीके की राजनीति भारत मे चलती रहेगी तब तक शायद ही भारत में  रोजगार उत्पन्न हो पाएं। इसीलिए आवश्यकता इस बात की है कि राजनीतिक दल कम से कम भारत के मार्ग में अवरोधक न बने
राजनीति को राजनीति के तरीके से लें। नहीं तो एक दूसरे की सत्ता को खत्म करने के साथ साथ पूरा भारत भी राजनीति की चक्की में पिस जाएगा।

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परिचय -:

ज्योति मिश्रा

लेखिका व् पत्रकार

संपर्क -:

मोबाइल -; 7999842095,  इमेल -:  Jmishra231@gmail.com

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